मोहल्ला अस्सी के निर्देशक ने कथित ट्रेलर को बताया फर्जी
सोशल मीडिया पर वायरल हुए ‘मोहल्ला अस्सी’ के अनधिकृत वीडियो फुटेज पर चल रही टिप्पणियों और छींटाकशी के बीच अपनी फिल्म की असामयिक और असंगत चर्चा से फिल्म के निर्देशक डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी व्यथित हैं। उन्हें लगातार हेट मेल, एसएमएस और सवाल मिल रहे हैं, जिनमें सभी की जिज्ञासा है कि असली माजरा क्या है? ज्यादातर लोग इसे अधिकृत ट्रेलर समझ कर उत्तेहजित हो रहे हैं। डॉ. द्विवेदी ने इस फिल्म की शूटिंग 2011 में पूरी कर ली थी। पोस्ट प्रोडक्शेन और डबिंग की प्रक्रिया अभी तक पूरी नहीं हो पाई है। वीडियो फुटेज को लेकर चल रहे शोरगुल के बीच अजय ब्रह्मात्मज ने फिल्म के निर्देशक डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी की प्रतिक्रिया ली।
सोशल मीडिया पर चल रहे ‘मोहल्ला अस्सी’ के वीडियो फुटेज से उत्तेजना फैली हुई है। आप को इसकी जानकारी कब मिली और आप क्या कहना चाहेंगे?
सबसे पहले तो यह ‘मोहल्ला अस्सी’ का ट्रेलर नहीं है। यह उस फिल्म का अनधिकृत फुटेज है, जिसे किसी शातिर और विकृत व्यक्ति ने कहीं से प्राप्त किया है। उसने उत्तेजना और विरोध का वातावरण बनाने के लिए इसे अपलोड कर दिया है। मैं जानना चाहूंगा कि यह कहां से और कब अपलोड हुआ है और इसके पीछे कौन लोग हैं? मैं रात में दस बजे काम कर रहा था, तभी किसी का फोन आया कि ऐसा एक वीडियो नागपुर से लोड हुआ है। मैंने अगले दिन एफडब्लूआईसीई में शिकायत की। ‘मोहल्ला अस्सी’ का पूरा मामला उनके पास है। मैंने उनसे आग्रह किया कि इस गलत वीडियो को तुरंत रोका जाना चाहिए।
ऐसी खबर है कि पहली बार रोक लगने के बाद यह फिर से अपलोड हुआ है?
दूसरी बार अपलोड होने से स्पष्ट है कि इसके पीछे कुछ लोग व्यवस्थित रूप से लगे हुए हैं। उन लोगों को सामने लाने की जरूरत है।
फुटेज से ऐसा लगता है कि फिल्म में केवल गालियां ही हैं। क्या फिल्म के बारे में कुछ बताएंगे?
इस अनधिकृत वीडियो फुटेज में कहीं भी फिल्म की कथा नहीं आती। क्यों ऐसा हुआ? ‘मोहल्ला अस्सी’ काशीनाथ सिंह के प्रसिद्ध उपन्यास ‘काशी का अस्सी’ के ‘पांडे कौन कुमति तोहे लागी’ चैप्टर पर आधारित है। हिंदी जगत में इस उपन्यात की चर्चा रही है। इस पर नाटक भी हो चुका है। फिल्म की कहानी वेदांत और संस्कृत के शिक्षक धर्मनाथ पांडे की कहानी है। यह बनारस और देश के बदलते परिवेश की कहानी है। संस्कृत और संस्कृति की चुनौतियों की कहानी है। इन चुनौतियों के बीच पांडे का आत्मसंघर्ष है। इस कहानी की पृष्ठभूमि में राम जन्मभूमि का आंदोलन है। फुटेज में इसकी कोई झलक नहीं है। यह सांस्कृतिक प्रदूषण और गंगा को लेकर सचेत पांडे के प्रयत्नों और संकट की कहानी है। उनके साथ घाट के दूसरे चरित्र भी आते हैं, जिनमें टूरिस्ट गाइड, नाई और बहुरुपिया भी हैं। धर्म और संस्कृति पर चलने के कारण पिछड़ रहे और ठगी से सफल हो रहे लोगों की भी कहानी है यह। मैंने फिल्म बनाई ही इसलिए थी कि वेदांत और संस्कृत दोनों का नाश हो रहा है। काशी तो इसमें रूपक है।
वीडियो फुटेज को उतारने की कोशिश आप के या निर्माता की तरफ से नहीं हुई?
मैंने इसकी शिकायत अपने संगठन में की थी। यह संगठन ‘मोहल्ला अस्सी’ का पूरा मसला देख रहा है। 2012 के बाद मैं इस फिल्म को पूरा करने के लिए निरंतर जूझ रहा हूं। निर्माता की तरफ से निष्क्रियता रही है। मुझे संबंधित व्यक्तियों की ओर से आवश्यक गंभीरता और सक्रियता नहीं दिख रही है। मैं जानना चाहता हूं कि यह फुटेज कहां से लीक हुई है?
फिल्म की रिलीज की क्या संभावनाएं हैं?
फिल्म अभी पूरी ही नहीं हुई है। फिल्म मे सनी देओल की आधी डबिंग बाकी है। फिल्म रिलीज तो तब होगी, जब पूरी होगी।
विवाद क्या है? उत्तेजना क्यों है फिर?
फुटेज में सुनाई पड़ रही गालियां और शिव के एक रूप से उत्तेजना है। फिल्म शिव जी के एक रूप की अभिव्यिक्ति है। मैं स्पेष्ट कर दूं कि वे महादेव नहीं हैं। फिल्म में एक बहुरूपिया शिव का वेष धारण कर पर्यटकों का मनोरंजन कर अपनी रोजी-रोटी चलाता है। धर्मनाथ पांडे उसका विरोध भी करते हैं। वे समझाते भी हैं कि कोई और रूप बना लो। शिव का रूप धारण करना छोड़ दो। फुटेज देख रहे लोगों की नाराजगी सही है। वे शिव को देख रहे हैं। सच यह है कि वह बहुरूपिया है।
इस वीडियो फुटेज से आप की छवि भी धूमिल हुई है?
मुझे अपनी छवि की ज्यादा चिंता नहीं है। जिस व्यक्ति ने भी यह किया है, मैं उसकी घोर निंदा करता हूं। मैं यही कहूंगा कि आप धैर्य रखें। इस प्रकार के दुष्प्रचार के प्रभाव में नहीं आएं। मैंने कभी सस्ती लोकप्रियता हासिल करने की कोशिश नहीं की है। इस फिल्म से जुड़े काशीनाथ सिंह और सनी देओल भी सस्ती लोकप्रियता में यकीन नहीं रखते। ‘मोहल्ला अस्सी’ वास्तव में देश से शिव और शिवत्व को विस्थापित करने के प्रयास पर प्रहार करती है। वह बनारस और देश कैसा होगा, जब शिव और शिवत्व नहीं होंगे? यह फिल्म संस्कृत और संस्कृति बचाए रखने के ऊपर है।
यह पहली बार जागरण्ा में प्रकाशित हुआ।
यह पहली बार जागरण्ा में प्रकाशित हुआ।
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