बॉम्‍बे वेल्‍वेट : यों रची गई मुंबई


-अजय ब्रह्मात्‍मज 
  पीरियड फिल्मों में सेट और कॉस्ट्यूम का बहुत महत्व होता है। ‘बॉम्बे वेल्वेट’ में इनकी जिम्मेदारी सोनल सावंत और निहारिका खान की थी। दोनों ने अपने क्षेत्रों का गहन रिसर्च किया। स्क्रिप्ट को ध्यान में रखकर सारी चीजें तैयार की गईं। पीरियड फिल्मों में इस पर भी ध्यान दिया जाता है कि परिवेश और वेशभूषा किरदारों पर हावी न हो जाएं। फिल्म देखते समय अगर यह फील न हो कि आप कुछ खास डिजाइन या बैकग्राउंड को देख रहे हैं तो वह बेहतर माना जाता है। अनुराग कश्यप ने ‘ब्लैक फ्राइडे’ और ‘गुलाल’ में भी पीरियड पर ध्यान दिया था, पर दोनों ही फिल्में निकट अतीत की थीं। ‘बॉम्बे वेल्वेट’ में उन्हें  पांचवें और छठे दशक की मुंबई दिखानी थी। सड़क और इमारतों के साथ इंटीरियर, पहनावा, गीत-संगीत, भाषा पर भी बारीकी से ध्यान देना था।
    निहारिका खान की टीम में आठ सदस्य थे। उन्होंने रेफरेंस के लिए आर्काइव, लायब्रेरी, वेबसाइट, पुरानी पत्र-पत्रिकाएं और परिचितों के घरों के प्रायवेट अलबम का सहारा लिया। रोजी, खंबाटा, जॉनी बलराज और जिमी मिस्त्री जैसे मुख्य किरदारों के साथ ही चिमन, पुलिस अधिकारी, ड्रायवर, पटेल,टोनी और अन्य छोटे-बड़े किरदारों की वेशभूषा पर भी ध्यान देना था। बहुत जरूरी था कि पृष्ठभूमि में दिख रहे किरदार भी पीरियड के अनुकूल रहें। ‘बॉम्बे वेलवेट’ में छठे-सातवें दशक की मुंबई के किरदारों में पारसी, मराठी, एंग्लो-इंडियन, पंजाबी आदि थे। उन दिनों की स्टाइल में पश्चिम का असर आज से ज्यादा था। क्लब में संभ्रांत भारतीय ही जा सकते थे। अंग्रेज तो चले गए थे, लेकिन मुंबई का आभिजात्य समूह अंग्रेजियत ढो रहा था।  ‘बॉम्बे वेल्वेट’ में बहुत खूबसूरती से निहारिका खान ने इस प्रवृत्ति को पिरोया है। उन्हें किरदारों को उस पीरियड के पहनावे और लुक दिए। उन किरदारों की जर्नी और सिचुएशन के मुताबिक उनके पहनावों में भी तब्दीली आती गई।
    ‘बॉम्बे वेल्वेट’ की प्रोडक्शन डिजायनर सोनल सावंत हैं। उन्होंने ‘लक्ष्य’ से अपने करियर की शुरुआत की थी। अनुराग कश्यप ने आरंभ में ही स्क्रिप्ट देने के बाद उनसे फीडबैक मांगा था। अनुराग ने सोनल को बताया था कि उन्हें 1942 से लेकर छठे दशक तक की मुंबई क्रिएट करनी है। फिल्म की कहानी मुख्य रूप से 1960 से लेकर 69 के बीच घूमती है। सोनल के लिए ‘बॉम्बे वेल्वेट’ चैलेंजिंग फिल्म रही। अच्छी बात थी कि प्रोडक्शन और डायरेक्टर की तरफ से उन पर पाबंदी नहीं रखी गई थी। पीरियड फिल्मों में बजट का अनुमान लगाना या खर्च की सीमा तय करना मुश्किल काम होता है। सोनल बताती हैं, ‘मेरे लिए प्राथमिक तौर पर किरदारों की रूपरेखा अहमियत रखती है। उनके जरिए ही माहौल और उनकी दुनिया रचती हूं।’
    सभी जानते हैं कि ‘बॉम्बे वेल्वेट’ के लिए श्रीलंका में छठे दशक की मुंबई का सेट तैयार किया गया था। देश के अनेक हिस्सों की छानबीन के बाद भी लोकेशन तय नहीं हो पा रहा था। मुंबई के तत्कालीन इमारतों का धोखा देना भी दूसरे शहरों में नामुमकिन था। फिल्म के इंटीरियर सीन तो कहीं भी शूट हो सकते थे, लेकिन एक्सटीरियर के लिए इमारतों का वजूद जरूरी था। सोनल सावंत ने श्रीलंका की सलाह दी। श्रीलंका में उपलब्ध सुविधाओं को देखते हुए सह निर्माता विवेक अग्रवाल ने हामी भरी। कोलंबो से छह घंटे की दूरी पर मुंबई का पूरा सेट तैयार किया गया। प्रमुख इमारतों के साथ विंटेज कार, बस, ट्राम और अन्य सवारियां तैयार की गईं। सबसे मुश्किल काम था पुरानी मुंबई को बसाना। शूटिंग की सुविधा के लिए इमारतों का वास्तविक क्रम नहीं रखा गया, लेकिन उनका ढांचा वही रहा।
    सोनल सावंत ने बॉम्बे वेल्वेट कैफे का बाहरी ढांचा मुंबई के चर्चगेट पर स्थित इरोस सिनेमा की तरह रखा। उसके अंदर का इंटीरियर क्लब का है। सोनल बताती हैं, ‘इस क्लब में ही फिल्म का अधिकांश हिस्सा है, इसलिए उसके अंदर हमने विस्तार से सब कुछ तैयार किया। कोशिश यह रही कि सब कुछ वास्तविक लगे। पांचवें-छठे दशक के प्रचलित जैज क्लब के लिए प्रायवेट अलबम से रेफरेंस लिए गए। तब ताज होटल में भी एक जैज क्लब चलता था। श्रीलंका में तैयार किए गए सेट की पृष्ठभूमि में शूटिंग करने के बाद वीएफएक्स से बड़ा और विस्तृत किया गया। उनमें जरूरत के मुताबिक रंग भरे गए।’
    ‘बॉम्बे वेल्वेट’ देखते समय पांचवें-छठे दशक की मुंबई की याद आएगी। हिंदी फिल्मों के शौकीन पुराने दर्शकों को छठे दशक के देव आनंद की क्राइम थ्रिलर फिल्मों का स्मरण होगा। हिंदी फिल्मों में मुंबई की पृष्ठभूमि पर आधारित पीरियड फिल्में कम बनती हैं। ज्यादातर फिल्मों में फिल्म के निर्माण के समय की मुंबई दिखती रही है। निर्देशक शहर और किरदारों की वास्तविकता में गहराई से नहीं उतरे हैं। ‘बॉम्बे वेल्वेट’ एक कोशिश है, जिसमें पांचवें-छठे दशक की मुंबई अपने किरदारों के साथ चलती-फिरती नजर आएगी। निहारिका खान और सोनल सावंत के मैसिव योगदान से यह मुंबई रची गई है।
    सोनल सावंत और निहारिका खान के योगदान को रेखांकित करते हुए अनुराग आगे बताते हैं, ‘इस फिल्म में विजुअल रेफरेंस के लिए हमने रोसिलिनी की फिल्म ‘इंडिया मातृभुमि’ के साथ फिल्म्स डिवीजन की अनेक फिल्मों का सहारा लिया। बहुत सारे घरों में जाकर हमने उनसे पुराने अलबम मांगे। उनके आधार पर ही कैरेक्टर और लोकेशन तय रचे गए। सोनल और निहारिका ने किरदारों और परिवेश को साकार कर दिया। उन्होंने आज के कलाकारों को दशकों पुराने रंग-ढंग में ढाल दिया।’

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