अाज्ञाकारी अभिनेता है अमिताभ बच्‍चन : इरफान


-अजय ब्रह्मात्मज
पहली बार अमिताभ बच्चन के साथ काम करने से अभिभूत इरफान उनकी तारीफ करते नहीं थकते। उन्होंने झंकार के साथ अमिताभ बच्चन से जुड़ी अपनी यादें ताजा कीं और अभिनेता अमिताभ बच्च्न को भी सहयोगी अभिनेता की नजर से डिकोड किया।
बुडापेस्ट से लौटने के बाद इरफान ‘तलवार’ की शूटिंग में व्यस्त हो गए हैं। महाद्वीपों को लांघते हुए इरफान कभी भारत में हिंदी और अन्य भाषाओं की फिल्में कर रहे होते हैं तो हॉलीवुड की फिल्म के सिलसिले में पश्चिम के किसी देश में डेरा डाल देते हैं। इस मायने में वे हिंदी फिल्मों के अलहदा कलाकार हैं, जो समान गति से देश-विदेश की फिल्में कर रहे हैं। इस हफ्ते उनकी हिंदी फिल्म ‘पीकू’ रिलीज होगी। इसमें वह अमिताभ बच्चन और दीपिका पादुकोण के साथ दिखेंगे। इन दोनों कलाकारों के साथ यह उनकी पहली फिल्म है। कुछ महीने पहले एक अनौपचारिक बातचीत में इरफान ने बताया था कि लंबे समय के बाद अमिताभ बच्चन इंटेंस भूमिका में दिखेंगे। इस फिल्म में उन्हें काम करते हुए देखने का मेरा अनुभव बहुत अच्छा रहा। बात यहीं से शुरू होती है। इरफान बताते हैं, ‘बच्चन साहब का अपना एक ओरिएंटेशन रहा है। उनकी एक तरह की प्रेजेंस और रोल को इंडस्ट्री भुनाती रही है। ‘पा’ जैसी कुछ ही फिल्में होती हैं, जहां उन्हें चैलेंज मिलता है। च्यादातर ऐसे मामले में एक अभिनेता एक जैसी भूमिकाएं करते हुए खुद के दूसरे आयाम भूल जाता है। दर्शकों को भी पता नहीं चलता। इस तरह से अभिनेता से अपनी क्षमताएं खत्म हो जाती हैं। बच्चन साहब में खुद को नई भूमिकाओं में ढाल देने की खास क्षमता है। मैंने पहले भी कहा था कि वे आज भी कच्ची मिट्टी के बने हुए हैं। उन्हें भिन्न चरित्रों में ढाला जा सकता है। ‘पीकू’ में वे इस चरित्र में ढले हुए नजर आ रहे हैं। इस फिल्म में उन्होंने अब तक की अपनी कमाई को भुनाने की कोशिश नहीं की है।’
    ‘पीकू’ और अन्य बेहतरीन फिल्मों के बारे में इरफान की राय स्पष्ट है। वे साफ शब्दों में कहते हैं, ‘हम अभिनेताओं को तारीफ मिलती है। सच्चाई यह है कि फिल्म ढंग से लिखी और बनाई गई नहीं हो तो कोई भी कलाकार कुछ नहीं कर सकता। हम दी गई स्क्रिप्ट में ही अपने कैरेक्टर को उन्नीस-बीस करके निभा ले जाते हैं। सलीम-जावेद और अमिताभ बच्चन की जुगलबंदी चलती है।’ अमिताभ बच्चन के प्रति अपने आकर्षण के बारे में भी वे बेहिचक बताते हैं, ‘राजस्थान में हमें पहले तो फिल्में देखने की इजाजत ही नहीं मिलती थी। थोड़े बड़े हुए तो चोरी-छिपे कोई फिल्म देख लेते थे। दसवीं से बाहर आने के बाद मैंने बच्चन साहब की फिल्में देखीं। हमारी उम्र के सभी लड़कों पर अमिताभ बच्चन का सीधा असर था। हम भी थोड़े नाराज रहते थे। जबड़े खींचकर बातें करते थे। फिल्म देखकर घर लौटने पर अपने पिता से उन्हीं के अंदाज में बातें करते थे। बाप-बेटे के बीच एक कंफिल्क्ट चलता रहता था, जिसे अमिताभ बच्चन की फिल्में हवा देती रहती थीं। उनका कद्दावर व्यक्तित्व हम पर हावी था। उसी दौर में मैंने कुछ पैरेलल फिल्में भी देखीं। उन्हें देखने के बाद एहसास हुआ कि हम भी एक्सप्लोर कर सकते हैं। हमें भी फिल्मों में काम मिल सकता है। असीम संभावनाएं दिखीं। पॉपुलर स्टार की स्टाइल छूने में हमें दिक्कत होती थी, लेकिन रियल जिंदगी को तो हम जी ही सकते थे। मेरा यह विश्लेषण बचकाना लग सकता है। बच्चन साहब का एक जादू तो है ही। ‘कौन बनेगा करोड़पति’ के समय जब वे कहते थे कि मैं अमिताभ बच्चन बोल रहा हूं तो साफ लगता था कि वे आपसे मुखातिब हैं। उनमें यह नायाब गुण है।’
    मुंबई आने के काफी सालों के बाद मेरी उनसे मुलाकात हुई। उस मुलाकात में उन्होंने मेरे एक ऐड की चर्चा की और भोले स्वर में पूछा, ‘कैसे कर लेते हैं आप?’ उनसे अच्छी मुलाकात मोरक्को में हुई थी। वहां ‘मकबूल’ दिखाई गई थी। वे अपने परिवार के साथ ‘मकबूल’ देखने बैठे थे। वहां की मुलाकात तो आई-गई हो गई। मुंबई में हम टकराते रहे और हर बार उन्होंने मुझे प्यार और इच्जत दी। बच्चन साहब में चुंबकीय आकर्षण है। फिल्मों में जब वे सहज होते हैं तो बहुत प्यारे लगते हैं। उनमें निखार आ जाता है। मनोज बाजपेयी के साथ आई फिल्म ‘अक्स’ में वे सहज लगे थे। ‘पीकू’ में मेरा उनसे क्या रिश्ता है, यह तो आप फिल्म में देखें। बतौर एक्टर उनसे मेरा रिश्ता बहुत ही अहम और आनंददायक रहा। उनके जैसे अभिनेता के साथ काम करने से बड़ी खुशी नहीं हो सकती। वे आज भी अपनी भूमिका में जान झोंक देते हैं। सौ प्रतिशत से च्यादा योगदान करते हैं। अपने किरदार को वे कैसे बदलते हैं, यह बताया नहीं जा सकता। उसके लिए कभी आप को उनको देखना होगा। इस उम्र में इतने सालों के बाद भी वे जितने धैर्यशील है, वह अनुकरणीय है। गर्मी हो, धूप हो, कॉस्ट्यूम का लबादा हो। एक-दो बार तो मैंने कहा कि सर गर्मी हो रही है, जुराबें तो निकाल दीजिए। वे नहीं निकालते थे। सेट पर वे खुद को समर्पित कर देते हैं। पूछते रहते हैं कि बताओ क्या करें? वे बहुत ही आज्ञाकारी अभिनेता हैं। दुर्लभ है यह गुण। इतना काम करने के बाद अमूमन अभिनेता थकने और बकने लगते हैं। उनके पास देने के लिए कुछ बचता नहीं है। अमिताभ बच्चन के पास देने के लिए आज भी बहुत कुछ है। इस फिल्म के दरम्यान उनसे मेरा रिश्ता प्रेरक रहा। उनके साथ रिहर्सल का भी अच्छा अनुभव रहा। समान स्तर पर कम्युनिकेट करते हैं। बहुत ही शार्प हैं। वे सिर्फ अपने अभिनय पर ध्यान नहीं देते। वे सामने वाले को भी देख रहे होते हैं। एक्टिंग का मजा तभी है, जब किसी सीन में जुगलबंदी हो जाए। वह दे रहा है। आप ले रहे हैं। आप दे रहे हैं। वह ले रहा है। गिव एंड टेक से सीन ग्रो करता है।
    इरफान आगे कहते हैं, ‘इस फिल्म की स्टोरी सुनते समय मुझे इस बात का इल्म नहीं था कि बच्चन साहब से मेरी कोई सिनर्जी बनेगी या उसकी कोई जरूरत भी होगी। मुझे कोई गुंजाइश नहीं दिख रही थी कि हमारा इंटेरेक्शन यादगार रह जाए। शुजित ने जिस तरीके से फिल्म की शूटिंग प्लान की, उससे जादू निकला। हम लोगों ने थिएटर की रह रिहर्सल किया। दीपिका और बच्चन साहब दोनों ने पूरा समय दिया। हर सीन का ब्लॉक बनने के बाद टेक लेने के पहले भी हम लोग रिहर्सल करते थे। एक-दूसरे की मदद करते थे। और फिर सामूहिक तरीके से उस सीन में हिस्सा लेते थे। कई दिन तो सुबह से दोपहर तक हम लोग रिहर्सल ही किया करते थे, लेकिन उससे जो माहौल बन जाता था, उसमें सीन झट से शूट हो जाता था।’
    मैं चाहूंगा कि आगे भी बच्चन साहब के साथ मुझे खुद को एक्सप्लोर करने का मौका मिले। दीपिका के साथ मेरे अनुभव चौंकाने वाले रहे। इस फिल्म में उन्होंने अपनी इमेज और ग्लैमरस पर्सनैलिटी की परवाह नहीं की है। अमिताभ बच्चन के साथ अंतरंग दृश्य करना आसान नहीं है। 
   

Comments

शानदार ! बहुत उम्दा !

Popular posts from this blog

तो शुरू करें

फिल्म समीक्षा: 3 इडियट

सिनेमालोक : साहित्य से परहेज है हिंदी फिल्मों को