पीड़ा भी रंग है प्यार का : आनंद राय
पीड़ा भी प्यार का रंग है : आनंद राय
-अजय ब्रह्मात्मज
आनंद राय अपने ही शब्दों में खुशमिजाज व्यक्ति हैं। उन्हें लोग पसंद हैं। वे अपने रिश्तों में सुरक्षित महसूस करते हैं। इस मुलाकात के लिए जाते समय मैंने उनके प्रशंसकों से सवाल मांगे थे। एक सवाल बड़ा रोचक आया था। उनके नायक प्रेम में पीड़ित क्यों रहते हैं। इस सवाल के जवाब में आनंद राय ने कहते हैं,‘एक बार खुद को किसी परीक्षा में डाल कर देखने पर ही प्यार का पता चलता है। शायद अचेतन रूप से मैं प्रमुख चरित्रों में से किसी एक को पीड़ा में ले जाता हूं। मुझे जरूरी लगता है। मेरी फिल्मों में नायक ही पीड़ित रहता है। पीड़ा भी प्यार का एक रंग है।’ आनंद राय के संदर्भ में यह बात नहीं लिखी जा सकती कि निर्देशक अपने स्वभाव के मुताबिक ही चरित्र चुनता है। आनंद राय का जवाब होता है,‘मेरे मामले में ऐसा नहीं है। मैं अपने अंदर से चरित्रों को नहीं निकालता। मैं चरिषें को अपने अंदर ले जाता हूं। फिर सोचता हूं कि अगर मैं खुद उनकी स्थितियों में पाता तो क्या करता? आखिरकार एक कहानी है। मैं खुद को सारे चरित्रों में बांट देता हूं। हा किरदार मेरे अंदर जीता है।’
आनंद राय इस आरोप से सहमत नहीं हैं कि उन्होंने ‘तनु वेड्स मनु’ की लोकप्रियता भुनाने के लिए ‘ ¸ ¸ ¸रिटर्न्स ’ के बारे में सोचा। वे बताते हैं,‘अगर भुनाना ही होता तो मैं ‘रांझणा’ का रिस्क क्यों लेता? मेरे लिए जरूरी था कि मैं नई जमीन चुनूं। ‘रांझणा’ से निकलने के बाद इस फिल्म के बारे में सोचा। यह फिल्म मेरी भावनात्मक जरूरत है।’ ‘तनु वेड्स मनु रिटर्न्स’ में कुछ नए चरित्र भी आए हैं। एक तो दत्तो आ गई हैं और दूसरे तनु के पड़ोसी चिंटू आ जाते हैं। पहली फिल्म के चार सालों बाद आ रही इस फिल्म में किरदारों की उम्र सात साल बढ़ चुकी है। आनंद राय गर्व के साथ कहते हैं,‘मेरी फिल्म सही मायने मेें सीक्वल है। पिछली फिल्म से आगे की कहानी है। सारे किरदार वही हैं। सब कुछ आनुपातिक दृष्टि से बढ़ा है।’
अमूमन हम फिलम के सहयोगी चरित्रों की बातें नहीं करते। याद करें तो तनु के पिता का खास चरित्र दिखा था। इस बार भी वे थोड़े खीझे हुए हैं। खाट को पांव मारते हुए कहते हैं कि फिर आ गई। आनंद राय चौंकते हैं,‘मतलब पिता नोटिस हुए हैं। मैंने बाप-बेटी के रिश्ते की ज्यादा बात नहीं की है। पिछली फिल्म का संदर्भ लें तो पिता कानपुर के हैं। उन्होंने अपनी बेटी को दिल्ली यूनिवर्सिटी पढ़ने भेजा। वे खुले मिजाज के हैं। उन्होंने परेशानी के बावजूद उस पर कोई पाबंदी नहीं लगाई। वे उसके फैसलों को स्वीकार करते हैं,लेकिन उसे अपनी तकलीफों से सीखने की सलाह भी देते हैं। तनु जब ऐन मौके पर अपना दूल्हा बदल देती है तो भी वे खफा नहीं होते। मेरे हिसाब से वे बहुत प्रोग्रेसिव फादर हैं। झ¸ंझलाए भी रहते हैं,लेकिन अपनी बेटी को उसकी कमियों के साथ स्वीकार करते हैं।’
यह भी गौर करने की बात है उनकी फिल्मों में प्रमुख चरित्र को निभा रहे अभिनेता तमिल फिल्मों के हैं। ‘तनु वेड्स मनु’ में आर माधवन और ‘रांझणा’ धनुष को हम देख चुके हैं। वजह पूछने पर वे स्पष्ट कहते हैं,‘मुझे नहीं मालूम कि ऐसा कैसे हुआ? आर माधवन की कास्टिंग के समय यही खयाल था कि मनु को सभी अपना दामाद मैटेरियल समझें। उन्हें देख कर ऐसा नहीं लगता कि वह मेरी बेटी का सही खयाल नहीं रखेगा। ‘रांझणा’ के समय मुझे चेहरे से अधिक मन का सादा व्यक्ति चाहिए था। उसके मन से प्यार हो जाए। ऐसा नहीं था कि मुंबई में कोई एक्टर नहीं था। मुझे उस वक्त कोई नहीं मिला। धनुष के रूप में मुझे एक एक्टर, दोस्त और छोटा भाई भी मिल गया है। मालूम नहीं हमलोग एक साथ और क्या-क्या काम करेंगे? मैं चालीस से ऊपर का हो गया हूं। अब मैं रिश्ते ढूंढने निकलने नहीं निकल सकता। खुद को भाग्यशाली मानता हूं कि उस उम्र में आकर कोई रिश्ता जुड़ गया।’
‘तनु वेड्स मनु रिटर्न्स’ में कंगना डबल रोल निभा रही हैं। वह तनु के साथ-साथ दत्तो के भी किरदार में है। कंगना के व्यक्तित्व से प्रभावित आनंद राय बताते हैं, ‘पहली फिल्म के समय भी वह कंफीडेंट थीं। इधर तो उनका आत्मविश्वास ज्यादा बढ़ गया है। मैं हमेशा कहता हूं कि एक्टर अच्छे या बुरे नहीं होते। केवल बुरे डायरेक्टर होते हैं। चार सालों में कंगना की जितनी ग्रोथ हुई है उतनी ही ग्रोथ क्रिएटिव पर्सन के तौर पर मेरी नहीं हुई है। इन चार सालों में उन्होंने तेजी से लंबे डग भरे हैं। हम सभी में विकास हुआ है, लेकिन कंगना का विकास तो काबिलेतारीफ और सभी के सामने है। ‘तनु वेड्स मनु रिटर्न्स’ की दत्तो सच्चा चरित्र है। दर्शक बहुत जल्दी उससे प्यार करने लगेंगे। वह पारदर्शी किरदार है। एकरंगी है। उसमें ज्यादा लेयर नहीं है। वह हरियाणा की है। किसी प्रकार के कौंप्लेक्स में नहीं रहती। मेरी फिल्म में तनु और दत्तो बाकी डबल रोल फिल्मों की तरह कंट्रास्ट किरदार नहीं है। दोनों की अपनी खूबियां हैं। दोनों एग्रेसिव हैं। मैं कह सकता हूं कि तनु की तरह दत्तो भी याद रह जाएगी।’
-अजय ब्रह्मात्मज
आनंद राय अपने ही शब्दों में खुशमिजाज व्यक्ति हैं। उन्हें लोग पसंद हैं। वे अपने रिश्तों में सुरक्षित महसूस करते हैं। इस मुलाकात के लिए जाते समय मैंने उनके प्रशंसकों से सवाल मांगे थे। एक सवाल बड़ा रोचक आया था। उनके नायक प्रेम में पीड़ित क्यों रहते हैं। इस सवाल के जवाब में आनंद राय ने कहते हैं,‘एक बार खुद को किसी परीक्षा में डाल कर देखने पर ही प्यार का पता चलता है। शायद अचेतन रूप से मैं प्रमुख चरित्रों में से किसी एक को पीड़ा में ले जाता हूं। मुझे जरूरी लगता है। मेरी फिल्मों में नायक ही पीड़ित रहता है। पीड़ा भी प्यार का एक रंग है।’ आनंद राय के संदर्भ में यह बात नहीं लिखी जा सकती कि निर्देशक अपने स्वभाव के मुताबिक ही चरित्र चुनता है। आनंद राय का जवाब होता है,‘मेरे मामले में ऐसा नहीं है। मैं अपने अंदर से चरित्रों को नहीं निकालता। मैं चरिषें को अपने अंदर ले जाता हूं। फिर सोचता हूं कि अगर मैं खुद उनकी स्थितियों में पाता तो क्या करता? आखिरकार एक कहानी है। मैं खुद को सारे चरित्रों में बांट देता हूं। हा किरदार मेरे अंदर जीता है।’
आनंद राय इस आरोप से सहमत नहीं हैं कि उन्होंने ‘तनु वेड्स मनु’ की लोकप्रियता भुनाने के लिए ‘ ¸ ¸ ¸रिटर्न्स ’ के बारे में सोचा। वे बताते हैं,‘अगर भुनाना ही होता तो मैं ‘रांझणा’ का रिस्क क्यों लेता? मेरे लिए जरूरी था कि मैं नई जमीन चुनूं। ‘रांझणा’ से निकलने के बाद इस फिल्म के बारे में सोचा। यह फिल्म मेरी भावनात्मक जरूरत है।’ ‘तनु वेड्स मनु रिटर्न्स’ में कुछ नए चरित्र भी आए हैं। एक तो दत्तो आ गई हैं और दूसरे तनु के पड़ोसी चिंटू आ जाते हैं। पहली फिल्म के चार सालों बाद आ रही इस फिल्म में किरदारों की उम्र सात साल बढ़ चुकी है। आनंद राय गर्व के साथ कहते हैं,‘मेरी फिल्म सही मायने मेें सीक्वल है। पिछली फिल्म से आगे की कहानी है। सारे किरदार वही हैं। सब कुछ आनुपातिक दृष्टि से बढ़ा है।’
अमूमन हम फिलम के सहयोगी चरित्रों की बातें नहीं करते। याद करें तो तनु के पिता का खास चरित्र दिखा था। इस बार भी वे थोड़े खीझे हुए हैं। खाट को पांव मारते हुए कहते हैं कि फिर आ गई। आनंद राय चौंकते हैं,‘मतलब पिता नोटिस हुए हैं। मैंने बाप-बेटी के रिश्ते की ज्यादा बात नहीं की है। पिछली फिल्म का संदर्भ लें तो पिता कानपुर के हैं। उन्होंने अपनी बेटी को दिल्ली यूनिवर्सिटी पढ़ने भेजा। वे खुले मिजाज के हैं। उन्होंने परेशानी के बावजूद उस पर कोई पाबंदी नहीं लगाई। वे उसके फैसलों को स्वीकार करते हैं,लेकिन उसे अपनी तकलीफों से सीखने की सलाह भी देते हैं। तनु जब ऐन मौके पर अपना दूल्हा बदल देती है तो भी वे खफा नहीं होते। मेरे हिसाब से वे बहुत प्रोग्रेसिव फादर हैं। झ¸ंझलाए भी रहते हैं,लेकिन अपनी बेटी को उसकी कमियों के साथ स्वीकार करते हैं।’
यह भी गौर करने की बात है उनकी फिल्मों में प्रमुख चरित्र को निभा रहे अभिनेता तमिल फिल्मों के हैं। ‘तनु वेड्स मनु’ में आर माधवन और ‘रांझणा’ धनुष को हम देख चुके हैं। वजह पूछने पर वे स्पष्ट कहते हैं,‘मुझे नहीं मालूम कि ऐसा कैसे हुआ? आर माधवन की कास्टिंग के समय यही खयाल था कि मनु को सभी अपना दामाद मैटेरियल समझें। उन्हें देख कर ऐसा नहीं लगता कि वह मेरी बेटी का सही खयाल नहीं रखेगा। ‘रांझणा’ के समय मुझे चेहरे से अधिक मन का सादा व्यक्ति चाहिए था। उसके मन से प्यार हो जाए। ऐसा नहीं था कि मुंबई में कोई एक्टर नहीं था। मुझे उस वक्त कोई नहीं मिला। धनुष के रूप में मुझे एक एक्टर, दोस्त और छोटा भाई भी मिल गया है। मालूम नहीं हमलोग एक साथ और क्या-क्या काम करेंगे? मैं चालीस से ऊपर का हो गया हूं। अब मैं रिश्ते ढूंढने निकलने नहीं निकल सकता। खुद को भाग्यशाली मानता हूं कि उस उम्र में आकर कोई रिश्ता जुड़ गया।’
‘तनु वेड्स मनु रिटर्न्स’ में कंगना डबल रोल निभा रही हैं। वह तनु के साथ-साथ दत्तो के भी किरदार में है। कंगना के व्यक्तित्व से प्रभावित आनंद राय बताते हैं, ‘पहली फिल्म के समय भी वह कंफीडेंट थीं। इधर तो उनका आत्मविश्वास ज्यादा बढ़ गया है। मैं हमेशा कहता हूं कि एक्टर अच्छे या बुरे नहीं होते। केवल बुरे डायरेक्टर होते हैं। चार सालों में कंगना की जितनी ग्रोथ हुई है उतनी ही ग्रोथ क्रिएटिव पर्सन के तौर पर मेरी नहीं हुई है। इन चार सालों में उन्होंने तेजी से लंबे डग भरे हैं। हम सभी में विकास हुआ है, लेकिन कंगना का विकास तो काबिलेतारीफ और सभी के सामने है। ‘तनु वेड्स मनु रिटर्न्स’ की दत्तो सच्चा चरित्र है। दर्शक बहुत जल्दी उससे प्यार करने लगेंगे। वह पारदर्शी किरदार है। एकरंगी है। उसमें ज्यादा लेयर नहीं है। वह हरियाणा की है। किसी प्रकार के कौंप्लेक्स में नहीं रहती। मेरी फिल्म में तनु और दत्तो बाकी डबल रोल फिल्मों की तरह कंट्रास्ट किरदार नहीं है। दोनों की अपनी खूबियां हैं। दोनों एग्रेसिव हैं। मैं कह सकता हूं कि तनु की तरह दत्तो भी याद रह जाएगी।’
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