बॉम्बे वेल्वेट : किरदार और कलाकार
किरदार और कलाकार
-कायजाद खंबाटा/करण जौहर
दक्षिण मुंबई का कायजाद खंबाटा एक अखबार का मालिक है। पहली मुलाकात में ही वह जॉनी बलराज को ताड़ लेता है। वह उसकी महत्वाकांक्षाओं को हवा देता है। साथ ही कभी-कभार उसके पंख भी कतरता रहता है। धूर्त, चालाक और साजिश में माहिर खंबाटा के जटिल किरदार को पर्दे पर करण जौहर ने निभाया है।
‘बॉम्बे वेल्वेट’ मेरी दुनिया और मेरी फिल्मों की दुनिया से बिल्कुल अलग है। अनुभवों के बावजूद इस फिल्म की शूटिंग के दौरान मैं अनुराग को कोई सलाह नहीं दे सकता था। मैं तो वहां एक छात्र था। अनुराग से सीख रहा था। मेरी फिल्में लाइट के बारे में होती हैं। यह डार्क फिल्म है। मैं स्विचबोर्ड हूं तो यह फ्यूज है। बतौर एक्टर मैंने सिर्फ अनुराग के निर्देशों का पालन किया है।
फिल्म का माहौल और किरदार दोनों ही मेरे कंफर्ट जोन के बाहर के थे। अनुराग मेरे बारे में श्योर थे। उनके जेहन में मेरे किरदार की तस्वीर छपी हुई थी। वे खंबाटा के हर एक्शन-रिएक्शन के बारे में जानते थे। मुझे उन्हें फॉलो करना था। अनुराग ने कहा था कि हर इंसान के अंदर एक डार्क स्ट्रिक होता है। मुझे अपने अंदर से उसी हैवान को दिखाना था। खंबाटा को जीने के लिए मैंने यही किया।
सच कहूं तो मुझे इस फिल्म में सचमुच एक्टिंग करनी पड़ी। मैं खंबाटा की तरह बिल्कुल नहीं हूं। मैं ऐसा इंसान ही नहीं हूं। कुछ चीजें समान हो सकती हैं। मैं रियल लाइफ में मेंटोर हूं। खंबाटा भी जॉनी बलराज का मेंटोर है, लेकिन मैनिपुलेशन, स्कीमिंग और आंखों में खुमारी लाना मेरे स्वभाव में नहीं है। फिर भी अनुराग का मानना था कि मेरे अंदर एक टेढ़ा इंसान है। उसने उसी टेढ़े इंसान को पर्दे पर खड़ा कर दिया है।
कैमरा ऑन होने के पहले मैं एक किस्म के मेडिटेशन से गुजरता था। मोबाइल ऑफ कर देता था। खुद को सभी से डिस्कनेक्ट कर लेता था। खंबाटा को निभाते समय मैं अपनी रोजमर्रा जिंदगी भूल जाता था। बाहरी कोलाहल से खुद को अलग कर शांति के साथ खंबाटा को जीता था। खंबाटा बहुत ही कठोर और निरंकुश इंसान है। वह पॉवरफुल होना चाहता है। इसके लिए किसी की जान जाए या उसे किसी की जान लेनी पड़े तो भी उसे कोई फर्क नहीं पड़ता।
अनुराग के ऑफर को मैंने स्वीकार कर लिया और पर्दे पर निभा दिया। दर्शकों को मैं पसंद आया तो बहुत अच्छी बात होगी। किसी भी रूप में उन्हें नापसंद आया तो मुझे अफसोस होगा कि मेरी वजह से कुछ गलत हुआ।
अनुराग के अनुसार-खंबाटा की भूमिका के लिए मैंने पहले नसीरुद्दीन शाह के बारे में सोचा था। मुझे दक्षिण मुंबई की हाई सोसायटी के एलीट की दरकार थी। लिहाजा मैंने जब कहानी करण जौहर को सुनाई तो उनका ख्याल आया। करण को मेरा ऑफर गंभीर लगा। करण के साथ कुछ चीजें खुद ही आ गईं। उनके किरदार को गढ़ने में सीन नहीं खर्च करने पड़े।
- जॉनी बलराज/ रणबीर कपूर
छोटी उम्र में बॉम्बे पहुंचा बलराज शहर की अंधेरी गलियों में प्रवेश कर जाता है। उम्र बढ़ने पर उसकी मुलाकात खंबाटा से होती है। खंबाटा के संपर्क में आते ही उसके सपने बड़े हो जाते हैं। वह उसकी तरह होने के साथ ही बहुत कुछ हासिल करना चाहता है। वह रोजी से प्यार करता है और रोजी के साथ जिंदगी बिताना चाहता है।
मेरे लिए ‘बॉम्बे वेल्वेट’ एक ऐसी प्रेमकहानी है, जो बॉम्बे के इतिहास के पन्नों में कहीं खो चुकी है। बॉम्बे वेल्वेट के किरदार वास्तविक दुनिया में रह चुके हैं। खंबाटा, मिस्त्री, रूमी मेहता सभी वास्तविक व्यक्तियों पर आधारित हैं। इनमें केवल रोजी और जॉनी काल्पनिक किरदार हैं। रियल लाइफ बॉम्बे में एक काल्पनिक प्रेमकहानी है ‘बॉम्बे वेल्वेट’।
जॉनी बलराज जैसे किरदार मुझे ऑफर नहीं होते। मैं लवर ब्वॉय और कमिंग ऑफ एज कैरेक्टर ही करता रहता हूं। मुझे जॉनी बलराज की दुनिया ने बहुत आकर्षित किया। मुझे अनुराग को कनविंस करना पड़ा कि मैं इस ग्रे किरदार को निभा सकता हूं। इस फिल्म की तैयारी में मेरा पहला काम यही था कि मैं अनुराग से दोस्ती कर लूं। वे मुझ पर भरोसा कर सकें। हम दोनों एक-दूसरे के सहारे ही जॉनी बलराज को उसके अग्रेसिवनेस के साथ पर्दे पर ला सकते थे। अनुराग जितना मुस्कराता है, उतना खुला इंसान नहीं है। वह बहुत ही जटिल है। उसके जेहन में अपना ही बायोपिक चलता रहता है।
‘बॉम्बे वेल्वेट’ का पहला शॉट था, जिसमें चिमन जेल से निकलता है और बताता है कि लार्सन मर गया। अब सोना हमारा है। कैमरा मेरी पीठ के पीछे था। इस बैक शॉट में ही अनुराग ने शाबासी दी और झप्पी मारते हुए कहा कि तुम तो कैरेक्टर में घुस गए। अनुराग के इस कथन से आत्मविश्वास बढ़ा। फिर भी शूटिंग बढ़ी तो मुश्किलें बढ़ती गईं। बोलने का लहजा, चलने का ढंग, जॉनी का गुस्सा सभी पर मेहनत करनी पड़ी। पूरी टीम ने मेरी बहुत मदद की।
इस फिल्म के इमोशनल और एक्शन सीन दोनों ही मुझे पसंद हैं। इमोशनल सीन आज की तरह के नहीं हैं। हमारी बातचीत और प्यार जाहिर करने का तरीका भी अलग है। अनुराग ने स्क्रिप्ट में हमारे रोमांस के बढ़ने के लिए ज्यादा स्पेस नहीं दिया था। हमें अपनी केमिस्ट्री चंद दृश्यों में गाढ़ी कर लेनी थी। अनुष्का ने पूरा सहयोग दिया। फिल्म देखते हुए आप को लगेगा कि हम दोनों एक-दूसरे को दिल-ओ-जान से चाहते हैं। फिल्म के क्लाइमेक्स में हम दोनों की इमोशनल इंटेंसिटी बहुत ज्यादा थी। उसे बनाए रखने में मेहनत करनी पड़ी, क्योंकि सात दिनों में क्लाइमेक्स शूट हुआ था। हमें अपना इमोशन सस्टेन करना था।
जॉनी बलराज के लिए मैंने किशोर कुमार, राज कपूर, रॉबर्ट डिनेरो आदि कलाकारों से प्रेरणा ली। छठे दशक की स्टायलिंग ली। एक्टिंग में आप किसी की नकल नहीं कर सकते। आप सिर्फ भाव लेते हैं और उसे अपनी तरह से अचीव करना चाहते हैं। मेरी जगह कोई और एक्टर होता तो जॉनी अलग रूप में नजर आता।
सच कहूं तो डायरेक्टर से प्रभावित होकर मैंने यह फिल्म साइन नहीं की। मुझे फिल्म का कंटेंट पसंद आया था, इसलिए मैंने हां कहा था। कम लोग जानते हैं कि निर्माता ने मेरे पास फिल्म की स्क्रिप्ट भेजी थी। बाद में अनुराग से परिचय हुआ और फिर मैंने उनकी फिल्में देखीं।
अनुराग के अनुसार- रणबीर कपूर को चुनने में समय लगा। अब लगता है कि उनसे अच्छी पसंद नहीं हो सकती थी। रणबीर की एक इमेज बन चुकी है। उन्हें कोई और ऐसी फिल्म ऑफर नहीं करता। रणबीर कपूर लवर ब्वॉय की इमेज से बाहर आकर कुछ करना चाहते थे। उन्हें स्वीकार करने में मुझे थोड़ा वक्त लगा।
रोजी नरोन्हा/अनुष्का शर्मा
मेरे लिए ‘बॉम्बे वेल्वेट’ एक ऐसे दौर की कहानी है,जब प्रेम में शिद्दत रहती थी।
गोवा की सुरीली बच्ची रोजी अपने गुरू के शिकंजे से भागकर बॉम्बे आती है। वह अपने टैलेंट के दम पर कुछ करना चाहती है। वह क्लब सिंगर बन जाती है। जॉनी बलराज को वह पहली ही नजर में पसंद आती है और कुछ वैसा ही रोजी के साथ होता है। दोनों मिलते हैं और साथ रहने लगते हैं। रोजी पर औरों की भी नजर है, लेकिन रोजी तो जॉनी बलराज के लिए समर्पित है।
हिंदी फिल्मों में अभिनेत्रियों को अनेक गाने मिलते हैं। हम लोग ज्यादातर उन गानों के साथ अपने होठ हिलाते हैं। थोड़ा बहुत डांस करते हैं और कभी-कभी एक्टिंग कर लेते हैं। ‘बॉम्बे वेल्वेट’ के गाने नॉर्मल सौंग नहीं हैं। उन्हें नीति मोहन ने जिस इंटेंसिटी के साथ गाया है, उसे पर्दे पर पॉवरफुल तरीके से पेश करना ही मेरी चुनौती रही। रोजी के हर गाने में मुझे मेहनत करनी पड़ी। सारे एक्सप्रेशन लाने पड़े। मेरी पूरी कोशिश यही रही कि पर्दे पर मुझे गाते देखकर किसी को यह ख्याल न आए कि यह तो प्लेबैक का मामला है।
मुझे गानों के साथ ही अपने परफॉरमेंस का भी एक ग्राफ बनाना पड़ा। ‘बॉम्बे वेल्वेट’ नॉर्मल लव स्टोरी नहीं है। अनुराग ने ‘बॉम्बे वेल्वेट’ के फिल्मांकन में रेगुलर तरीका नहीं अपनाया। मेरी पर्सनैलिटी रोजी से अलग है। मैं रोजी की तरह फेमिनिन नहीं हूं। मैं वैसी अल्हड़ भी नहीं हूं। रोजी की जिंदगी में जो हरकतें होती हैं, उनकी कल्पना से ही मैं सिहर जाती हूं। मुझे अपने परफॉरमेंस में वह बात लानी थी। फिल्म में मेरी चुप्पी और दूसरों पर अविश्वास की वजह मेरे बचपन में है। रोजी शरीर और नैतिकता के सवालों से परे जा चुकी है।
अनुराग के शूट करने का तरीका बिल्कुल अलग है। एक्टर को ठीक से पता भी नहीं रहता कि कैमरा कहां रखा हुआ है। वे बंधी हुई स्क्रिप्ट नहीं देते। इसकी वजह से परफॉरमेंस में खुलापन आ जाता है। कई दृश्यों में रणबीर और मैंने इम्प्रूवाइज किए हैं। अनुराग को उनसे आपत्ति नहीं थी। कमर्शियल सिनेमा की ट्रैप से बाहर हैं अनुराग, इसलिए उनकी फिल्में भी अलग हो जाती हैं। मुझे अपने नैचुरल रिएक्शन से भी कट के रहना था।
पांचवे-छठे दशक समय के लोग हमारे जैसे नहीं थे। उनकी चाल और बातचीत में ठहराव रहता था। फिल्म में मैंने अपने स्वभाव के विपरीत आराम से बात की है। ‘बॉम्बे वेल्वेट’ जैसी फिल्म और उसमें रोजी जैसा किरदार निभा पाना खुद में एक चैलेंज है। शुरुआत से पहले मैं सहमी हुई थी।
अनुराग के अनुसार- अनुष्का शर्मा को चुनने की एक ही वजह रही कि उन्हें देख कर किसी और अभिनेत्री की याद नहीं आती है। वह अनोखी हैं। पहली फिल्म देखने के बाद ही वह पसंद आ गई थी। फिल्म में पहली कास्टिंग अनुष्का शर्मा की हुई थी।
-कायजाद खंबाटा/करण जौहर
दक्षिण मुंबई का कायजाद खंबाटा एक अखबार का मालिक है। पहली मुलाकात में ही वह जॉनी बलराज को ताड़ लेता है। वह उसकी महत्वाकांक्षाओं को हवा देता है। साथ ही कभी-कभार उसके पंख भी कतरता रहता है। धूर्त, चालाक और साजिश में माहिर खंबाटा के जटिल किरदार को पर्दे पर करण जौहर ने निभाया है।
‘बॉम्बे वेल्वेट’ मेरी दुनिया और मेरी फिल्मों की दुनिया से बिल्कुल अलग है। अनुभवों के बावजूद इस फिल्म की शूटिंग के दौरान मैं अनुराग को कोई सलाह नहीं दे सकता था। मैं तो वहां एक छात्र था। अनुराग से सीख रहा था। मेरी फिल्में लाइट के बारे में होती हैं। यह डार्क फिल्म है। मैं स्विचबोर्ड हूं तो यह फ्यूज है। बतौर एक्टर मैंने सिर्फ अनुराग के निर्देशों का पालन किया है।
फिल्म का माहौल और किरदार दोनों ही मेरे कंफर्ट जोन के बाहर के थे। अनुराग मेरे बारे में श्योर थे। उनके जेहन में मेरे किरदार की तस्वीर छपी हुई थी। वे खंबाटा के हर एक्शन-रिएक्शन के बारे में जानते थे। मुझे उन्हें फॉलो करना था। अनुराग ने कहा था कि हर इंसान के अंदर एक डार्क स्ट्रिक होता है। मुझे अपने अंदर से उसी हैवान को दिखाना था। खंबाटा को जीने के लिए मैंने यही किया।
सच कहूं तो मुझे इस फिल्म में सचमुच एक्टिंग करनी पड़ी। मैं खंबाटा की तरह बिल्कुल नहीं हूं। मैं ऐसा इंसान ही नहीं हूं। कुछ चीजें समान हो सकती हैं। मैं रियल लाइफ में मेंटोर हूं। खंबाटा भी जॉनी बलराज का मेंटोर है, लेकिन मैनिपुलेशन, स्कीमिंग और आंखों में खुमारी लाना मेरे स्वभाव में नहीं है। फिर भी अनुराग का मानना था कि मेरे अंदर एक टेढ़ा इंसान है। उसने उसी टेढ़े इंसान को पर्दे पर खड़ा कर दिया है।
कैमरा ऑन होने के पहले मैं एक किस्म के मेडिटेशन से गुजरता था। मोबाइल ऑफ कर देता था। खुद को सभी से डिस्कनेक्ट कर लेता था। खंबाटा को निभाते समय मैं अपनी रोजमर्रा जिंदगी भूल जाता था। बाहरी कोलाहल से खुद को अलग कर शांति के साथ खंबाटा को जीता था। खंबाटा बहुत ही कठोर और निरंकुश इंसान है। वह पॉवरफुल होना चाहता है। इसके लिए किसी की जान जाए या उसे किसी की जान लेनी पड़े तो भी उसे कोई फर्क नहीं पड़ता।
अनुराग के ऑफर को मैंने स्वीकार कर लिया और पर्दे पर निभा दिया। दर्शकों को मैं पसंद आया तो बहुत अच्छी बात होगी। किसी भी रूप में उन्हें नापसंद आया तो मुझे अफसोस होगा कि मेरी वजह से कुछ गलत हुआ।
अनुराग के अनुसार-खंबाटा की भूमिका के लिए मैंने पहले नसीरुद्दीन शाह के बारे में सोचा था। मुझे दक्षिण मुंबई की हाई सोसायटी के एलीट की दरकार थी। लिहाजा मैंने जब कहानी करण जौहर को सुनाई तो उनका ख्याल आया। करण को मेरा ऑफर गंभीर लगा। करण के साथ कुछ चीजें खुद ही आ गईं। उनके किरदार को गढ़ने में सीन नहीं खर्च करने पड़े।
- जॉनी बलराज/ रणबीर कपूर
छोटी उम्र में बॉम्बे पहुंचा बलराज शहर की अंधेरी गलियों में प्रवेश कर जाता है। उम्र बढ़ने पर उसकी मुलाकात खंबाटा से होती है। खंबाटा के संपर्क में आते ही उसके सपने बड़े हो जाते हैं। वह उसकी तरह होने के साथ ही बहुत कुछ हासिल करना चाहता है। वह रोजी से प्यार करता है और रोजी के साथ जिंदगी बिताना चाहता है।
मेरे लिए ‘बॉम्बे वेल्वेट’ एक ऐसी प्रेमकहानी है, जो बॉम्बे के इतिहास के पन्नों में कहीं खो चुकी है। बॉम्बे वेल्वेट के किरदार वास्तविक दुनिया में रह चुके हैं। खंबाटा, मिस्त्री, रूमी मेहता सभी वास्तविक व्यक्तियों पर आधारित हैं। इनमें केवल रोजी और जॉनी काल्पनिक किरदार हैं। रियल लाइफ बॉम्बे में एक काल्पनिक प्रेमकहानी है ‘बॉम्बे वेल्वेट’।
जॉनी बलराज जैसे किरदार मुझे ऑफर नहीं होते। मैं लवर ब्वॉय और कमिंग ऑफ एज कैरेक्टर ही करता रहता हूं। मुझे जॉनी बलराज की दुनिया ने बहुत आकर्षित किया। मुझे अनुराग को कनविंस करना पड़ा कि मैं इस ग्रे किरदार को निभा सकता हूं। इस फिल्म की तैयारी में मेरा पहला काम यही था कि मैं अनुराग से दोस्ती कर लूं। वे मुझ पर भरोसा कर सकें। हम दोनों एक-दूसरे के सहारे ही जॉनी बलराज को उसके अग्रेसिवनेस के साथ पर्दे पर ला सकते थे। अनुराग जितना मुस्कराता है, उतना खुला इंसान नहीं है। वह बहुत ही जटिल है। उसके जेहन में अपना ही बायोपिक चलता रहता है।
‘बॉम्बे वेल्वेट’ का पहला शॉट था, जिसमें चिमन जेल से निकलता है और बताता है कि लार्सन मर गया। अब सोना हमारा है। कैमरा मेरी पीठ के पीछे था। इस बैक शॉट में ही अनुराग ने शाबासी दी और झप्पी मारते हुए कहा कि तुम तो कैरेक्टर में घुस गए। अनुराग के इस कथन से आत्मविश्वास बढ़ा। फिर भी शूटिंग बढ़ी तो मुश्किलें बढ़ती गईं। बोलने का लहजा, चलने का ढंग, जॉनी का गुस्सा सभी पर मेहनत करनी पड़ी। पूरी टीम ने मेरी बहुत मदद की।
इस फिल्म के इमोशनल और एक्शन सीन दोनों ही मुझे पसंद हैं। इमोशनल सीन आज की तरह के नहीं हैं। हमारी बातचीत और प्यार जाहिर करने का तरीका भी अलग है। अनुराग ने स्क्रिप्ट में हमारे रोमांस के बढ़ने के लिए ज्यादा स्पेस नहीं दिया था। हमें अपनी केमिस्ट्री चंद दृश्यों में गाढ़ी कर लेनी थी। अनुष्का ने पूरा सहयोग दिया। फिल्म देखते हुए आप को लगेगा कि हम दोनों एक-दूसरे को दिल-ओ-जान से चाहते हैं। फिल्म के क्लाइमेक्स में हम दोनों की इमोशनल इंटेंसिटी बहुत ज्यादा थी। उसे बनाए रखने में मेहनत करनी पड़ी, क्योंकि सात दिनों में क्लाइमेक्स शूट हुआ था। हमें अपना इमोशन सस्टेन करना था।
जॉनी बलराज के लिए मैंने किशोर कुमार, राज कपूर, रॉबर्ट डिनेरो आदि कलाकारों से प्रेरणा ली। छठे दशक की स्टायलिंग ली। एक्टिंग में आप किसी की नकल नहीं कर सकते। आप सिर्फ भाव लेते हैं और उसे अपनी तरह से अचीव करना चाहते हैं। मेरी जगह कोई और एक्टर होता तो जॉनी अलग रूप में नजर आता।
सच कहूं तो डायरेक्टर से प्रभावित होकर मैंने यह फिल्म साइन नहीं की। मुझे फिल्म का कंटेंट पसंद आया था, इसलिए मैंने हां कहा था। कम लोग जानते हैं कि निर्माता ने मेरे पास फिल्म की स्क्रिप्ट भेजी थी। बाद में अनुराग से परिचय हुआ और फिर मैंने उनकी फिल्में देखीं।
अनुराग के अनुसार- रणबीर कपूर को चुनने में समय लगा। अब लगता है कि उनसे अच्छी पसंद नहीं हो सकती थी। रणबीर की एक इमेज बन चुकी है। उन्हें कोई और ऐसी फिल्म ऑफर नहीं करता। रणबीर कपूर लवर ब्वॉय की इमेज से बाहर आकर कुछ करना चाहते थे। उन्हें स्वीकार करने में मुझे थोड़ा वक्त लगा।
रोजी नरोन्हा/अनुष्का शर्मा
मेरे लिए ‘बॉम्बे वेल्वेट’ एक ऐसे दौर की कहानी है,जब प्रेम में शिद्दत रहती थी।
गोवा की सुरीली बच्ची रोजी अपने गुरू के शिकंजे से भागकर बॉम्बे आती है। वह अपने टैलेंट के दम पर कुछ करना चाहती है। वह क्लब सिंगर बन जाती है। जॉनी बलराज को वह पहली ही नजर में पसंद आती है और कुछ वैसा ही रोजी के साथ होता है। दोनों मिलते हैं और साथ रहने लगते हैं। रोजी पर औरों की भी नजर है, लेकिन रोजी तो जॉनी बलराज के लिए समर्पित है।
हिंदी फिल्मों में अभिनेत्रियों को अनेक गाने मिलते हैं। हम लोग ज्यादातर उन गानों के साथ अपने होठ हिलाते हैं। थोड़ा बहुत डांस करते हैं और कभी-कभी एक्टिंग कर लेते हैं। ‘बॉम्बे वेल्वेट’ के गाने नॉर्मल सौंग नहीं हैं। उन्हें नीति मोहन ने जिस इंटेंसिटी के साथ गाया है, उसे पर्दे पर पॉवरफुल तरीके से पेश करना ही मेरी चुनौती रही। रोजी के हर गाने में मुझे मेहनत करनी पड़ी। सारे एक्सप्रेशन लाने पड़े। मेरी पूरी कोशिश यही रही कि पर्दे पर मुझे गाते देखकर किसी को यह ख्याल न आए कि यह तो प्लेबैक का मामला है।
मुझे गानों के साथ ही अपने परफॉरमेंस का भी एक ग्राफ बनाना पड़ा। ‘बॉम्बे वेल्वेट’ नॉर्मल लव स्टोरी नहीं है। अनुराग ने ‘बॉम्बे वेल्वेट’ के फिल्मांकन में रेगुलर तरीका नहीं अपनाया। मेरी पर्सनैलिटी रोजी से अलग है। मैं रोजी की तरह फेमिनिन नहीं हूं। मैं वैसी अल्हड़ भी नहीं हूं। रोजी की जिंदगी में जो हरकतें होती हैं, उनकी कल्पना से ही मैं सिहर जाती हूं। मुझे अपने परफॉरमेंस में वह बात लानी थी। फिल्म में मेरी चुप्पी और दूसरों पर अविश्वास की वजह मेरे बचपन में है। रोजी शरीर और नैतिकता के सवालों से परे जा चुकी है।
अनुराग के शूट करने का तरीका बिल्कुल अलग है। एक्टर को ठीक से पता भी नहीं रहता कि कैमरा कहां रखा हुआ है। वे बंधी हुई स्क्रिप्ट नहीं देते। इसकी वजह से परफॉरमेंस में खुलापन आ जाता है। कई दृश्यों में रणबीर और मैंने इम्प्रूवाइज किए हैं। अनुराग को उनसे आपत्ति नहीं थी। कमर्शियल सिनेमा की ट्रैप से बाहर हैं अनुराग, इसलिए उनकी फिल्में भी अलग हो जाती हैं। मुझे अपने नैचुरल रिएक्शन से भी कट के रहना था।
पांचवे-छठे दशक समय के लोग हमारे जैसे नहीं थे। उनकी चाल और बातचीत में ठहराव रहता था। फिल्म में मैंने अपने स्वभाव के विपरीत आराम से बात की है। ‘बॉम्बे वेल्वेट’ जैसी फिल्म और उसमें रोजी जैसा किरदार निभा पाना खुद में एक चैलेंज है। शुरुआत से पहले मैं सहमी हुई थी।
अनुराग के अनुसार- अनुष्का शर्मा को चुनने की एक ही वजह रही कि उन्हें देख कर किसी और अभिनेत्री की याद नहीं आती है। वह अनोखी हैं। पहली फिल्म देखने के बाद ही वह पसंद आ गई थी। फिल्म में पहली कास्टिंग अनुष्का शर्मा की हुई थी।
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