ई ससुरी NET NEUTRALITY है क्या बे ? -अनुभव सिन्हा
अनुभव सिन्हा का यह जरुरी लेख चवन्नी के पाठकों के लिए। इसे मैंने उनके ब्लॉग से जस का तस उठा लिया है। उन्होंने एक बड़ी जिम्मेदारी निभाई। मैा तो सिर्फ हाथ बंटा रहा हूं। उनका लिखा बांट रहा हूं।
-अनुभव सिन्हा
मैंने मेरे एक डायरेक्टर फ्रेंड से पूछा कि net neutrality के लिए कर क्या
रहे हो। वो थोड़ा शर्मिंदा हो गया और बोला सुन तो रहा हूँ की कुछ चल रहा है
पर सच कहूँ तो समझ नहीं आ रहा कि है क्या ये। मैं थोड़ा चिंता में पड़ गया।
अगर पढ़े लिखे लोग अनभिज्ञ हैं तो किसी और को क्या समझ आएगा। सोचा चार
लाइनें लिख देता हूँ, चार लोगों को भी समझा पाया तो काफी होगा। अंग्रेजी
में काफी बातें उपलब्ध हैं नेट पे, हिंदी में कम है। मैं इंजीनियर भी हूँ
और भैय्या भी सो सोचा हिंदी वाली ज़िम्मेदारी मैं निभा देता हूँ।
पहली बात, इंटरनेट है क्या। दुनिया भर में हज़्ज़ारों लाखों करोड़ों कम्प्यूटर्स हैं जो आपस में एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। किसी कंप्यूटर पर संगीत है, तो किसी पर भूगोल तो किसी पर इतिहास तो किसी पर और कुछ तो किसी पर सब कुछ। ये सारा कुछ मिला कर इतना है कि आप कभी भी कुछ भी जानना चाहें तो आपने देखा होगा कि मिल ही जाता है अमूमन। अगर इन सारे जुड़े हुए कम्प्यूटर्स को एक कंप्यूटर मान लें तो ये है इंटरनेट। जैसे ही आपका कंप्यूटर इस इंटरनेट से जुड़ता है, आपका कंप्यूटर भी उन हज़्ज़ारों लाखों करोड़ों कम्प्यूटर्स का हिस्सा बन जाता है जिनसे इंटरनेट बनता है।
दूसरी बात, आपका कंप्यूटर इंटरनेट से जुड़ता कैसे है। ध्यान रखें कि मैं यहाँ जब भी कंप्यूटर कहूँगा मेरा मतलब आपके मोबाइल से भी है। आपका मोबाइल फ़ोन भी एक कंप्यूटर ही है। स्मार्ट फ़ोन तो बाक़ायदा कम्प्यूटर्स हैं। कंप्यूटर मूल रूप से अंग्रेजी का शब्द है और क्या। वह यन्त्र जो कंप्यूट कर सके। कंप्यूट माने कैलकुलेट जैसा कुछ। सो प्रश्न यह कि आपका कंप्यूटर इंटरनेट से जुड़े कैसे। हमारे देश में, हमारी सरकार ने कई निजी कंपनियों को इस सेवा का 'लाइसेंस' दे रखा है। ये कम्पनियाँ हमें मोबाइल सर्विस भी देती हैं और उसी के साथ इंटरनेट सर्विस भी। और भी कई कम्पनियाँ हैं जो मोबाइल के अलावा दफ्तरों, घरों इत्यादि में इंटरनेट सेवा का प्रावधान करती हैं। तो लिहाज़ा इन कंपनियों को सरकार ने 'लाइसेंस' दिया है हमारे कम्प्यूटर्स को इंटरनेट से जोड़ने की सुविधा देने का। दुबारा कहता हूँ इन कंपनियों को सरकार ने 'लाइसेंस' दिया है की ये हमारे कम्प्यूटर्स को 'इंटरनेट' से जोड़ने की सुविधा दें और उसके बदले हमसे पैसे लें। इंटरनेट इन कंपनियों का नहीं है। वो मेरा और आपका है। उन हज़्ज़ारों लाखों करोड़ों कम्प्यूटर्स का है जिनसे इंटरनेट बनता है। ये कंपनियां सिर्फ तार जोड़ती हैं हमारे कम्प्यूटर्स के। और एवज़ में हमसे पैसे लेती हैं। इनको ISP (इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर) कहते है और फ़ोन के ज़रिये ऐसा करने वालों को TSP (टेलीकम्यूनिकेशन सर्विस प्रोवाइडर) ।
अब तीसरी बात। इन हज़्ज़ारों लाखों करोड़ों कम्प्यूटर्स के मालिक। ये बड़े दिमाग़दार लोग हैं। इन्हें पता लगा कि इतने कम्प्यूटर्स जुड़ गए तो इन्होने इस इंटरनेट पर आधारित हज़ारो सेवाएं बना डालीं। इमेल से शुरूआल हुयी, फिर इमेल अटैचमेंट, फिर स्काइप , फिर फेसबुक, ट्विटर, फ्लिपकार्ट और न जाने क्या क्या। और अभी तो न जाने कहाँ रुकेगी बात। इन में से बहुत सारी सेवाएं मुफ्त हैं। उनकी क्या इकोनॉमिक्स है वो फिर कभी। पर बहुत सारी ऐसी सेवाएं हैं जो हमसे इंटरनेट के अलावा अलग से पैसे लेती हैं। हम ख़ुशी से देते भी हैं क्योंकि ये सेवाएं हमे पसंद हैं और हमें चाहिए। अब अगर आप टीवी देखते हैं तो सोचिये आजकल कितने एड ऐसे हैं जो इन्यटर्नेट पर आधारित सेवाओं के हैं। फ्लिपकार्ट, क्विकर, मेक माय ट्रिप और ऐसे न जाने कितने। ज़ाहिर है जब वो लोग आपका ध्यान आकर्षित करने के लिए हज़्ज़ारों करोड़ों खर्च कर रहे हैं तो वो कमा कितना रहे होंगे। दुबारा बोलता हूँ "जब वो लोग आपका ध्यान आकर्षित करने के लिए हज़्ज़ारों करोड़ों खर्च कर रहे हैं तो वो कमा कितना रहे होंगे"
यहाँ है जड़ सारी समस्या की। दुबारा पूछता हूँ, इंटरनेट है क्या ???? इंटरनेट है हज़्ज़ारों लाखों करोड़ों कम्प्यूटर्स जो आपस में जुड़े हुए हैं। उन्हें जोड़ा किसने ? ISP, और TSP ने। अब वो कहते हैं की जोड़ें हम और कमाए फ्लिपकार्ट? दरअसल किसी ने सोचा नहीं था कि इंटरनेट यहाँ तक पहुंचेगा। केक छोटा था, उसका एक टुकड़ा मिला तो काफी था। अब केक बड़ा हो रहा है। क्या पता कितना बड़ा होगा कम्बख़त। सात सौ करोड़ लोग हैं दुनिया में, अभी सिर्फ चालीस फ़ीसदी इस्तेमाल करते हैं नेट तो ये हाल हैं बिज़नेस का, ये आंकड़ा अगर सत्तर पिचहत्तर पे पहुँच गया तो? आज से ही नियम बना दो कि हमारी हिस्सेदारी सबसे फायदे की हो। हम जोड़ते हैं हर कंप्यूटर को इंटरनेट से, हम जिस सुविधा को चाहें बेहतर चलायें और जिसको चाहें धीमा कर दें या एकदम नकारा ही कर दें। TSP और ISP के पास वो ताक़त है कि अचानक आपके मोबाइल पर फेसबुक लोड होना स्लो जाय, या बंद ही हो जाय। या कोई भी और सेवा। उसे सही रफ़्तार पे चलाना है तो कुछ पैसे और लगेंगे। कुछ आपसे लिए जाएंगे और कुछ उस सेवा वाले से। वो सेवा वाला भी खुद नहीं देगा, घुमा फिर के आप से ही लेगा। आप भी देंगे, खून लग चुका है आपके मुंह। खून लगा दिया गया है आपके मुंह। लड़ाई ये है की ऐसा नहीं होना चाहिए। हम अगर इंटनेट पर गए तो हर सेवा हमें वैसे ही मिलनी चाहिए जैसी वो उपलब्ध है। उसकी परफॉरमेंस पर TSP और ISP का कोई इख्तियार नहीं होना चाहिए। हम तय करें कि हमें कौन सी सेवा चाहिए। ये है NET NEUTRALITY
आखिरी बात। देश में एक सरकारी संस्था है TRAI . इनकी ज़िम्मेदारी है कि ये तमाम TSP और ISP अपनी तमाम ज़िम्मेदारियों का पालन करें। वो ज़िम्मेदारियाँ जो उन्होंने लाइसेंस लेते वक़्त sign की थीं। चूंकि ये नया परिवर्तन जो TSP और ISP मांग रहे हैं ये TRAI एकतरफा नहीं कर सकती थी लिहाज़ा हमसे से और आप से हमारी राय मांगी है। दो रास्ते हैं। एक जो TRAI का है http://www.trai.gov.in/Content/ConDis/10743_0.aspx . ये बेहद मुश्किल रास्ता है पर है ये भी। और दूसरा आसान रास्ता ये है जो कुछ अच्छे लोगों ने आपके लिए बनाया है। वो है http://www.savetheinternet.in/ . देख दोनों लें। इस्तेमाल वो करें जो आपको बेहतर लगे। पर मेहेरबानी कर के अपनी राय ज़रूर भेजें वरना INTERNET तो बचेगा नहीं, क्या पता कब EXTERNET बने और हम फिर मिलें । लाइफ में कुछ ज़िम्मेदारियाँ भी होती हैं निभाने के लिये। निभा चुकने के बाद अच्छा एहसास होता है। TRAI कर के देखिये।
पहली बात, इंटरनेट है क्या। दुनिया भर में हज़्ज़ारों लाखों करोड़ों कम्प्यूटर्स हैं जो आपस में एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। किसी कंप्यूटर पर संगीत है, तो किसी पर भूगोल तो किसी पर इतिहास तो किसी पर और कुछ तो किसी पर सब कुछ। ये सारा कुछ मिला कर इतना है कि आप कभी भी कुछ भी जानना चाहें तो आपने देखा होगा कि मिल ही जाता है अमूमन। अगर इन सारे जुड़े हुए कम्प्यूटर्स को एक कंप्यूटर मान लें तो ये है इंटरनेट। जैसे ही आपका कंप्यूटर इस इंटरनेट से जुड़ता है, आपका कंप्यूटर भी उन हज़्ज़ारों लाखों करोड़ों कम्प्यूटर्स का हिस्सा बन जाता है जिनसे इंटरनेट बनता है।
दूसरी बात, आपका कंप्यूटर इंटरनेट से जुड़ता कैसे है। ध्यान रखें कि मैं यहाँ जब भी कंप्यूटर कहूँगा मेरा मतलब आपके मोबाइल से भी है। आपका मोबाइल फ़ोन भी एक कंप्यूटर ही है। स्मार्ट फ़ोन तो बाक़ायदा कम्प्यूटर्स हैं। कंप्यूटर मूल रूप से अंग्रेजी का शब्द है और क्या। वह यन्त्र जो कंप्यूट कर सके। कंप्यूट माने कैलकुलेट जैसा कुछ। सो प्रश्न यह कि आपका कंप्यूटर इंटरनेट से जुड़े कैसे। हमारे देश में, हमारी सरकार ने कई निजी कंपनियों को इस सेवा का 'लाइसेंस' दे रखा है। ये कम्पनियाँ हमें मोबाइल सर्विस भी देती हैं और उसी के साथ इंटरनेट सर्विस भी। और भी कई कम्पनियाँ हैं जो मोबाइल के अलावा दफ्तरों, घरों इत्यादि में इंटरनेट सेवा का प्रावधान करती हैं। तो लिहाज़ा इन कंपनियों को सरकार ने 'लाइसेंस' दिया है हमारे कम्प्यूटर्स को इंटरनेट से जोड़ने की सुविधा देने का। दुबारा कहता हूँ इन कंपनियों को सरकार ने 'लाइसेंस' दिया है की ये हमारे कम्प्यूटर्स को 'इंटरनेट' से जोड़ने की सुविधा दें और उसके बदले हमसे पैसे लें। इंटरनेट इन कंपनियों का नहीं है। वो मेरा और आपका है। उन हज़्ज़ारों लाखों करोड़ों कम्प्यूटर्स का है जिनसे इंटरनेट बनता है। ये कंपनियां सिर्फ तार जोड़ती हैं हमारे कम्प्यूटर्स के। और एवज़ में हमसे पैसे लेती हैं। इनको ISP (इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर) कहते है और फ़ोन के ज़रिये ऐसा करने वालों को TSP (टेलीकम्यूनिकेशन सर्विस प्रोवाइडर) ।
अब तीसरी बात। इन हज़्ज़ारों लाखों करोड़ों कम्प्यूटर्स के मालिक। ये बड़े दिमाग़दार लोग हैं। इन्हें पता लगा कि इतने कम्प्यूटर्स जुड़ गए तो इन्होने इस इंटरनेट पर आधारित हज़ारो सेवाएं बना डालीं। इमेल से शुरूआल हुयी, फिर इमेल अटैचमेंट, फिर स्काइप , फिर फेसबुक, ट्विटर, फ्लिपकार्ट और न जाने क्या क्या। और अभी तो न जाने कहाँ रुकेगी बात। इन में से बहुत सारी सेवाएं मुफ्त हैं। उनकी क्या इकोनॉमिक्स है वो फिर कभी। पर बहुत सारी ऐसी सेवाएं हैं जो हमसे इंटरनेट के अलावा अलग से पैसे लेती हैं। हम ख़ुशी से देते भी हैं क्योंकि ये सेवाएं हमे पसंद हैं और हमें चाहिए। अब अगर आप टीवी देखते हैं तो सोचिये आजकल कितने एड ऐसे हैं जो इन्यटर्नेट पर आधारित सेवाओं के हैं। फ्लिपकार्ट, क्विकर, मेक माय ट्रिप और ऐसे न जाने कितने। ज़ाहिर है जब वो लोग आपका ध्यान आकर्षित करने के लिए हज़्ज़ारों करोड़ों खर्च कर रहे हैं तो वो कमा कितना रहे होंगे। दुबारा बोलता हूँ "जब वो लोग आपका ध्यान आकर्षित करने के लिए हज़्ज़ारों करोड़ों खर्च कर रहे हैं तो वो कमा कितना रहे होंगे"
यहाँ है जड़ सारी समस्या की। दुबारा पूछता हूँ, इंटरनेट है क्या ???? इंटरनेट है हज़्ज़ारों लाखों करोड़ों कम्प्यूटर्स जो आपस में जुड़े हुए हैं। उन्हें जोड़ा किसने ? ISP, और TSP ने। अब वो कहते हैं की जोड़ें हम और कमाए फ्लिपकार्ट? दरअसल किसी ने सोचा नहीं था कि इंटरनेट यहाँ तक पहुंचेगा। केक छोटा था, उसका एक टुकड़ा मिला तो काफी था। अब केक बड़ा हो रहा है। क्या पता कितना बड़ा होगा कम्बख़त। सात सौ करोड़ लोग हैं दुनिया में, अभी सिर्फ चालीस फ़ीसदी इस्तेमाल करते हैं नेट तो ये हाल हैं बिज़नेस का, ये आंकड़ा अगर सत्तर पिचहत्तर पे पहुँच गया तो? आज से ही नियम बना दो कि हमारी हिस्सेदारी सबसे फायदे की हो। हम जोड़ते हैं हर कंप्यूटर को इंटरनेट से, हम जिस सुविधा को चाहें बेहतर चलायें और जिसको चाहें धीमा कर दें या एकदम नकारा ही कर दें। TSP और ISP के पास वो ताक़त है कि अचानक आपके मोबाइल पर फेसबुक लोड होना स्लो जाय, या बंद ही हो जाय। या कोई भी और सेवा। उसे सही रफ़्तार पे चलाना है तो कुछ पैसे और लगेंगे। कुछ आपसे लिए जाएंगे और कुछ उस सेवा वाले से। वो सेवा वाला भी खुद नहीं देगा, घुमा फिर के आप से ही लेगा। आप भी देंगे, खून लग चुका है आपके मुंह। खून लगा दिया गया है आपके मुंह। लड़ाई ये है की ऐसा नहीं होना चाहिए। हम अगर इंटनेट पर गए तो हर सेवा हमें वैसे ही मिलनी चाहिए जैसी वो उपलब्ध है। उसकी परफॉरमेंस पर TSP और ISP का कोई इख्तियार नहीं होना चाहिए। हम तय करें कि हमें कौन सी सेवा चाहिए। ये है NET NEUTRALITY
आखिरी बात। देश में एक सरकारी संस्था है TRAI . इनकी ज़िम्मेदारी है कि ये तमाम TSP और ISP अपनी तमाम ज़िम्मेदारियों का पालन करें। वो ज़िम्मेदारियाँ जो उन्होंने लाइसेंस लेते वक़्त sign की थीं। चूंकि ये नया परिवर्तन जो TSP और ISP मांग रहे हैं ये TRAI एकतरफा नहीं कर सकती थी लिहाज़ा हमसे से और आप से हमारी राय मांगी है। दो रास्ते हैं। एक जो TRAI का है http://www.trai.gov.in/Content/ConDis/10743_0.aspx . ये बेहद मुश्किल रास्ता है पर है ये भी। और दूसरा आसान रास्ता ये है जो कुछ अच्छे लोगों ने आपके लिए बनाया है। वो है http://www.savetheinternet.in/ . देख दोनों लें। इस्तेमाल वो करें जो आपको बेहतर लगे। पर मेहेरबानी कर के अपनी राय ज़रूर भेजें वरना INTERNET तो बचेगा नहीं, क्या पता कब EXTERNET बने और हम फिर मिलें । लाइफ में कुछ ज़िम्मेदारियाँ भी होती हैं निभाने के लिये। निभा चुकने के बाद अच्छा एहसास होता है। TRAI कर के देखिये।
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