इरफान की अनौपचारिक बातें-2



2. 
इरफान ने इस बातचीत में अपनी यात्रा के उल्‍लेख के साथ वह अंतर्दृष्टि भी दी है,जो किसी नए कलाकार के लिए मार्गदर्शक हो सकती है। चवन्‍नी पर इसे तीन किस्‍तों में प्रकाशित किया जाएगा। इरफान के बारे में आप की क्‍या राय है ? आप उन्‍हें कैसे देखते और समझते हैं ? अवश्‍य लिख्‍ें chavannichap@gmail.com 
कल से आगे.... 
-अजय ब्रह्मात्‍मज 
     मीरा नायर की जब फिल्म मिली थी, उसके ठीक पहले मैंने नेमसेक किताब पढक़र खत्म की थी। मुझे लगा कि कुछ दैवीय हस्तक्षेप हो रहा है। अभी मैंने किताब खत्म की और अभी मुझे यह रोल मिल रहा है। किताब में तो मेरा किरदार पृष्ठभूमि में ही रहता है। जिंदगी बार-बार उसका इम्तिहान ले रही है। शुरू में मीरा ने मुझसे तीन महीने का समय ले लिया था। तब कोंकणा सेन शर्मा फिल्म में थीं। फिर पता चला कि तब्बू कर रही हैं। बीच में उन्होंने अभिषेक बच्चन को भी लाने की कोशिश की। शूटिंग टलती रही और मेरा समय बर्बाद होता रहा। छह महीने के  इंतजार के बाद फिल्म की शूटिंग शुरू हुई। तब मुझे कुल 15 लाख रुपए मिले थे। मैंने तय कर लिया था कि नेमसेक करनी है। मैं टिका रहा। मैं कुछ मांग कर नहीं सकता था। उसके पहले मैंने कभी अमेरिका की यात्रा नहीं की थी। उसके पहले माइटी हार्ट आ गई थी। उसके सिलसिले में मैं कान फिल्म समारोह गया था। मैंने अपनी मैनेजर पर दवाब डाला था कि तुम मेरे लिए हॉलीवुड के निर्माताओं से बात करो। उसने मुझे समझाया कि हॉलीवुड के निर्माता तभी तुम्हें अपनी फिल्मों में लेंगे, जब तुमसे उन्हें तुरंत लाभ हो। समझ लो कि वे तुम में निवेश नहीं करेंगे। मेरी निराशा बढ़ती जा रही थी। मेरे साथ एक अच्छी बात रही है कि जब भी निराश और हताश हुआ हूं तो कोई नई राह निकल पड़ती है। जिस चीज के लिए परेशान रहता हूं, वह तो नहीं मिलती, कोई और चीज मिल जाती है। मेरी लाइफ में यह पैटर्न बन गया है। मुझे लगता है कि हर आदमी अपनी जिंदगी के कचरे को हटाकर देखे तो उसे एक पैटर्न दिखाई पड़ेगा। मैंने देखा है कि जब भी मैं कोई दावा करता हूं तो वह पूरा नहीं होता। यहां तक कि बच्चों के साथ खेलते समय भी हार जाता हूं।
        वॉरियर जब कान फिल्म समारोह में नहीं ली गई तो बहुत झटका लगा। मैंने तो पूरा प्लान बना लिया था। पता चला कि फिल्म ही नहीं चुनी गई। फिर मैंने खुद को समझाया कि मेरे लिए कोई प्लान काम नहीं करता। समय की धारा में मैं चलता रहूं तो राहें मिलती रहती हैं। मैं सिर्फ काम करता रहूं। कोई भी प्लानिंग न करूं तो सब कुछ मिलता चला जाता है। बीच में स्लमडॉग मिलियनयेर और स्पाइडरमैन जैसी फिल्में जरूर आईं, लेकिन असल प्रभाव तो लंचबॉक्स का रहा। इसके प्रभाव के दो पहलू हैं- एक तो यह फिल्म पूरी दुनिया में चली है। अभी तक किसी भारतीय फिल्म ने विदेशों के स्थानीय दर्शकों को आकर्षित नहीं किया है। लंचबॉक्स जहां भी गई, वहां के दर्शकों ने इसे पसंद किया। पहली बार किसी भारतीय फिल्म ने इंटरनेशनल पहचान बनाई हंै। यह बड़ी बात हुई है। फिल्म की कमाई भी हुई है।
         इस बीच एक अमेरिकी टीवी शो इन ट्रीटमेंट किया था। उस टीवी शो में मेरी भयंकर तारीफ हुई। यूं लगा, लोग तारीफ में कविताएं लिख रहे हैं। कसीदे पढ़े गए। वह रोल मेरे लिए बहुत चैलेंजिंग था। मेरी जिंदगी के अनुभव कम पड़ गए थे। उस किरदार के दर्द को जीने में मजा आया। शूटिंग के आनंद के बावजूद मैं दर्द के उस अनुभव से निकलना  चाहता था। हिंदी फिल्मों में याद करने की आदत खत्म हो जाती है। वहां पूरे-पूरे एपिसोड याद करने पड़ते थे। टीवी शो में रीटेक नहीं होता। अगर रीटेक हो गया तो यों समझें कि 15 पेज फिर से बोलना होगा। तीन तरफ से कैमरे लगे रहते थे। ऑनलाइन एडिटिंग होती रहती थी। उस शो को देखने के बाद परितृप्ति हुई। इन ट्रीटमेंट के बाद स्पाइडर मैन आई। उस फिल्म में ऐसा कुछ खास नहीं था। शुरू में हॉलीवुड की फिल्म करते समय अंग्रेजी से लड़ता था। उसे साध नहीं पाता था। हिंदी फिल्मों के हीरो जैसे हिंदी नहीं साध पाते, वैसे ही मैं हॉलीवुड की फिल्म में भाषा साध नहीं पा रहा था। किसी भी फिल्म में जब आप संवाद बोलते हैं तो उस भाषा का रस दर्शकों तक जाना चाहिए। फिल्में करते-करते इसे मैंने सीखा और साधा। अभी एक जापानी टीवी शो कर रहा हूं। यह पर्ल हार्बर पर हुए आक्रमण से संबंधित है। तब जापान पर मुकदमा चला था। केवल एक भारतीय जज ने पाकिस्तान के पक्ष में वोट डाला था। उसी जज की भूमिका मिली है। अगर तारीखें वगैरह मैच कर गईं तो वह शो  करूंगा। बाकी कुछ फिल्में भी मिली हैं, जिनकी स्क्रिप्ट पढ़ रहा हूं।
        कुछ महीने पहले जुरासिक पार्क की शूटिंग करके लौटा हूं। मुझे पता चला कि स्टीवन स्पीलबर्ग मेरे साथ काम करना चाहते हैं। महीने, दो महीने के बाद पता चला कि वे खुद इस फिल्म को डायरेक्ट नहीं कर रहे हैं। वे निर्माता बन गए। स्पीलबर्ग ने नए डायरेक्टर के ऊपर छोड़ दिया कि वह चाहे तो मुझे ले या हटा दे। बहुत मजा आया, क्योंकि बहुत ही मजेदार और खिलंदड़ा किरदार है मेरा। पहली बार ऐसी यूनिट दिखाई पड़ी, जहां दो-ढाई महीने साथ काम करने के बाद भी एक-दूसरे को देखकर खुश होती थी। दोस्ताना माहौल था। यहां पर अनुराग कश्यप और निशिकांत कामत के सेट पर ऐसा माहौल रहता है। अब देखें फिल्म पूरी होने के बाद मेरा रोल कितना रह जाता है। जुरासिक पार्क में मैं पार्क ओनर का रोल कर रहा हूं। मेरा किरदार थोड़ा दिखावटी और शो-ऑफ करने वाला है। हमेशा जोश में रहता है। मिशनरी है। कुछ करना चाहता है, लेकिन उसकी सोच में गहराई नहीं है। 
क्रमश:

Comments

"हर आदमी अपनी जिंदगी के कचरे को हटाकर देखे तो उसे एक पैटर्न दिखाई पड़ेगा।"
-इरफान खान
मशहूर हस्तियाें के कोट्स की इंटरनेट पर कई साइट हैं और मुझे लगता है कि इरफान जी वहां जब भी होंगे, तो यह कोट भी शामिल होगा। सचमुच कलाकार के भीतर के दार्शनिक को बेहद बारीकी से उकेर रहे हैं वे। परदे पर जिन कलाकारों को देखते हैं और उनके बारे में लगता है कि वो असल में भी वैसे ही होंगे, उन चुनिंदा कलाकारों में, उंगली पर गिने जा सकने वालों में, इरफान मेरी तीसरी उंगली पर आ जाते हैं। नवाज भाई इनके बाद आते हैं। लगता है यह आदमी निजी जिंदगी में भी ऐसे ही बोलता होगा, "काये, चाय बन गई का भैया" टाइप।
शुक्रिया अजय दा, इस अनुभव का हिस्सा बनाने के लिए। तीसरी कड़ी जल्दी परोसिये। भूख बढ़ गई है।

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