किंगमेकर बनते कास्टिंग डायरेक्टर
- स्मिता श्रीवास्तव
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डॉली अहलूवालिया, सुशांत सिंह राजपूत, राजकुमार राव, रणवीर सिंह, ताहिर भसीन, धृतिमान चटर्जी, फ्रीडा पिंटो, देव पटेल, बलजिंदन कौर, दुर्गेश कुमार में एक कॉमन चीज है। वह यह कि वे जिनकी खोज हैं, उन्हें कास्टिंग डायरेक्टर कहते हैं। साथ ही उपरोक्त अधिसंख्य नाम पॉपुलर और समर्थ कलाकार के तौर पर दर्ज हो रहे हैं। ‘काइ पो छे’ , ‘हाईवे’, ‘विकी डोनर’, ‘शाहिद’, ‘स्लमडॉग मिलेनियर’ आदि फिल्मों की एक अहम धुरि कास्टिंग डायरेक्टर रहे हैं। इस तरह कि उक्त फिल्में सिर्फ कमाल की कहानियों के लिए ही विख्यात नहीं हुई, बल्कि अलहदा कलाकारों की मौजूदगी से फिल्म के रियलिच्म में चार चांद लग गए। रणवीर सिंह और ताहिर भसीन शानु शर्मा की खोज हैं तो सुशांत सिंह राजपूत, राजकुमार राव और हाईवे के दुर्गेश कुमार जैसे असाधारण कलाकार मुकेश छाबड़ा की। आंखोदेखी जैसी परफॉरमेंस केंद्रित फिल्मों में कमाल के कलाकारों की खोज भी कास्टिंग डायरेक्टरों ने की और नतीजतन वह फिल्म राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय फिल्म सर्किट से लेकर बॉक्स ऑफिस तक पर क्या कीर्तिमान रच रही है, वह सब को पता है। कास्टिंग डायरेक्टरों के द्वारा उम्दा कलाकारों की खोज से फिल्म की क्वॉलिटी पर सकारात्मक असर पडऩे लगा है। हिंदी फिल्मों की चर्चा ग्लोबल फिल्मों के गलियारों में होने लगी है। फिल्मों के फलक में भी फर्क आया है। मिसाल के तौर पर बेबी के कास्टिंग डायरेक्टर विकी सिडाना ने पाकिस्तान के कलाकार का चयन।
देश में कास्टिंग डायरेक्टर का चलन करीब दो दशक पुराना है। स्क्रिप्ट फाइनल के बाद कलाकारों के चयन की जिम्मेदारी कास्टिंग डायरेक्टर को सौंपी जाती है। निर्देशक की मांग के अनुरुप कास्टिंग डायरेक्टर कलाकारों की तलाश में जुटता है। एक्टिंग में डिप्लोमा करने के बाद मुकेश छाबड़ा ने बतौर कास्टिंग डायरेक्टर अपने करियर की शुरुआत की। ‘काइ पो छे’, ‘पीके’, ‘चिल्लर पार्टी’, ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’, ‘हैदर’, ‘बदलापुर’, ‘तेवर’, ‘अग्ली’ समेत कई फिल्मों की कास्टिंग उन्होंने की। वह जालंधर से ताल्लुक रखते हैं। मुकेश कहते हैं,‘हमारा काम स्क्रिप्ट मिलने के बाद शुरू होता है। एक फिल्म की कास्टिंग में अममून पांच मिनट से लेकर दो से तीन महीने का समय लगता है। यह सब काफी कुछ स्क्रिप्ट और ऑडिशन पर निर्भर करता है। कई बार मेन लीड फिल्ममेकर तय रखते है। बाकी कलाकारों के चयन का काम कास्टिंग डायरेक्टर को सौंपा जाता है। नए कलाकारों की प्रतिभा ऑडिशन के समय दिख जाती है। हम उन्हें निर्माता डायरेक्टरों तक पहुंचाने का सशक्त माध्यम हैं। कलाकारों का चयन करते कास्टिंग डायरेक्टरों को कई बातों का ध्यान रखना पड़ता है। मसलन फिल्म कमर्शियल, आर्ट या कॉमेडी या ड्रामा है। कलाकार की पर्सनालिटी और व्यवहार को भी ध्यान में रखना पड़ता है। कलाकार किरदार में फबे वही सही कास्टिंग होती है।’ उन्होंने ‘तमाशा’, ‘बांबे वेलवेट’, ‘फितूर’ की कास्टिंग भी की है। मुकेश की अपनी कास्टिंग कंपनी भी है। फिल्म में काम करने के इच्छुक कलाकारों को ऑडिशन के लिए कोई फीस नहीं देनी पड़ती।
कास्टिंग डायरेक्टर थिएटर, ड्रामा इंस्टीट्यूट से लेकर देश विदेश में प्रतिभाओं की तलाश करते हैं। हालिया रिलीज फिल्म बेबी में पाकिस्तानी कलाकारों की कास्टिंग करने वाले विकी सिडाना कहते हैं,‘कास्टिंग डायरेक्टर के आने से सबसे च्यादा लाभ नए कलाकारों को फायदा हुआ है। वे सीधे निर्माता-निर्देशकों से नहीं मिल सकते। मगर कास्टिंग डायरेक्टर से मिल सकते हैं। अब फेसबुक, व्हाट्स अप के कारण भी कास्टिंग डायरेक्टर से संपर्क साधना आसान हो गया है।’ विकी ने एडी के तौर पर काम शुरू किया था। उनका सपना निर्देशक बनना नहीं था। सो उन्होंने कास्टिंग डायरेक्टर बनने का फैसला किया। सूरज बडज़ात्या ने फिल्म इसी लाइफ में उन्हें पहला ब्रेक दिया। बडज़ात्या उसके निर्माता थे।
हालांकि हिंदी सिनेमा के शुरुआती दौर में कास्टिंग डायरेक्टर नहीं हुआ करते थे। निर्माता-निर्देशक अपने आसपास उपलब्ध कलाकारों को च्यादा मौका देते थे। फिल्ममेकिंग के तौर-तरीकों में बदलाव के साथ कॉस्टिंग डायरेक्टर की जरूरत महसूस होने लगी। यह कहना है ‘कमीने’, ‘ओंकारा’, ‘सात खून माफ’, ‘फुकरे’, ‘डेल्ही बेल्ही’ और ‘डिटेक्टिव व्योमकेश बख्शी’ जैसी फिल्मों की कास्टिंग करने वाले हनी त्रिहेन का। दीपक डोगरियाल, अमोल गुप्ते, कुणाल राय कपूर, अनुराग अरोड़ा, स्वातिका मुखर्जी को लौंच करने का श्रेय उन्हें ही जाता है। वह कहते हैं,‘देश में कास्टिंग डायरेक्टर को श्रेय देने की शुरुआत शेखर कपूर ने 1991 की। उनकी फिल्म ‘बैंडिड क्वीन’ में पहली बार कास्टिंग डायरेक्टर को श्रेय दिया था। उसकी कास्टिंग तिग्मांशू धूलिया ने की थी। मैंने बतौर कास्टिंग डायरेक्टर काम नहीं शुरू किया था। मैं फिल्ममेकिंग से जुड़ा हूं। मैंने विशाल भारद्वाज के साथ बतौर एसोसिएट डायरेक्टर उनकी सभी फिल्मों में काम किया है। मैंने दिल्ली में प्ले भी निर्देशित किया। स्क्रिप्ट लिखने से पहले कहानी कही जाती है। फिर स्क्रीन प्ले और डायलाग लिखा जाता है। स्क्रीन प्ले को डाफ्ट करते समय कैरेक्टर क्लीयर हो जाते हैं। जब तक विशाल सर डायलॉग लिखते थे मैं उनकी कास्टिंग शुरू कर देता था। मेरा मानना जितनी सिंपल फिल्म होती है उसकी कास्टिंग च्यादा चैलेंजिंग होती है। हजारों लोगों में किसी एक किरदार को चुनना काफी मुश्किल होता है। उसके लिए अपनी इंस्टिक्ट पर भरोसा करना पड़ता है।’ उन्होंने ‘उड़ता पंजाब’, ‘फैंटम’, ‘जच्बा’, ‘रईस’ की भी कास्टिंग की है। ‘रईस’ से पाकिस्तानी अदाकारा माइरा खान डेब्यू कर रही हैं। ‘फैंटम’ में सैफ अली खान और कट्रीना कैफ के अलावा पाकिस्तानी और अफगानी कलाकारों को कास्ट किया गया है। हनी कहते हैं, ‘कलाकारों को कास्ट करने में सीमाएं कभी बाधा नहीं बनती। उड़ता पंजाब में शाहिद कपूर और आलिया के अलावा 82 कैरेक्टर हैं। उन्हें पंजाब से ही कास्ट किया गया है। यह सभी नए कलाकार हैं। अगर बांबे से कलाकार लिए जाते तो पहले उन्हें पंजाबी सीखानी पड़ती। किरदार अगर कहानी में जमे न दर्शकों को फिल्म नीरस लगेगी।’ उड़ता पंजाब में वह सेकेंड यूनिट डायरेक्टर भी है। मेघना गुलजार की फिल्म ‘तलवार’ की कास्टिंग करने के अलावा वे उसके क्रिएटिव प्रोड्यूसर भी हैं। उनके मुताबिक अब देश में बनने वाली 90 प्रतिशत फिल्मोंं में कास्टिंग डायरेक्टर होने लगे हैं।
हालांकि कास्टिंग डायरेक्टर बनने के लिए कोई कोर्स उपलब्ध नहीं है। सभी कास्टिंग डायरेक्टर का कहना है कि कास्टिंग डायरेक्टर बनने के लिए एक्टिंग की बारीकियों, स्क्रिप्ट की समझ और फिल्ममेकरों के साथ अंडरस्टैंडिंग होना जरूरी है। साथ ही साहित्यिक बैकग्राउंड होना बहुत जरूरी है। जैसे डाक्टर बनने के लिए पढ़ाई की जरूरत है ठीक उसी प्रकार स्पेशलाइड जॉब के लिए खास तैयारी की जरूरत होती है। कास्टिंग डायरेक्टर का भविष्य उच्जवल है। पहले यह कोई करियर नहीं होता था। अब टीवी सीरियल, विज्ञापन से लेकर फिल्मों तक हर जगह कास्टिंग डायरेक्टर है। इसके लिए फिल्मों को देखने और इंच्वाय करने की जरूरत है।
पिछले दस साल से कास्टिंग कर रही नंदिनी श्रीकंत कहती हैं, ‘अब कास्टिंग डायरेक्टर की अहमियत काफी बढ़ गई है। कई बार रोल ज्यादा दमदार नहीं होता पर कलाकार की परफार्मेस उसे दमदार बना देती है। कास्टिंग काउच की बातें भी हमारे स्तर पर नहीं होती। यहां से सिर्फ आपकी प्रतिभा का मूल्यांकन होता है। देश में प्रतिभावान कलाकारों की कमी नहीं है। इंजीनियर डाक्टर बनने के लिए घर में डांट मार पड़ती है। शायद ही कोई माता पिता हो जो अपने बच्चे से कहता हो जाओ जाकर हीरो बनो। जबकि यह प्रोफेशन बहुत उम्दा है। आगे वह कहती हैं कि विज्ञापन की कॉस्टिंग फिल्मों से काफी अलग होती है। इसके लिए खूबसूरत चेहरा चाहिए होता है। डेढ़ मिनट में पूरी कहानी कहनी होती है। उसे लोगों के दिलोदिमाग में बैठाना होता है। कई बार एक्टर विज्ञापन में अच्छे होते हैं। फिल्म में नहीं। यह मीडियम टू मीडियम निर्भर करता है।’ नंदिनी विदेशी फिल्मों के लिए कास्टिंग करती हैं। उन्होंने हाल में फ्रेंच फिल्म ‘रस्ट एंड बोन’ के लिए कुछ कैरेक्टर की कास्टिंग की है। इसमें किसी चर्चित कलाकार को उन्होंने कास्ट नहीं किया है। इस समय भारतीय फिल्म इंडस्टी में कई महिला कास्टिंग डायरेक्टर सक्रिय हैं। नंदिनी कहती हैं, ‘पर्दे के पीछे काम करने वालों को इमेज नहीं बनानी होती यही वजह है कि वे क्रिएटिव होते हैं। पर्दे के पीछे रहने वाले लोग ग्लैमर के लिए नहीं आते। वे अपनी क्रिएटिव से अपनी पहचान बनाते हैं। उनका अलग मुकाम होता है। फिल्म इंडस्ट्री में महिला कास्टिंग डायरेक्टर अपने पुस्ष समकक्ष के काम करती हैं। बस फीस उनके बराबर नहीं मिलती। पर हमारे काम को पूरा सम्मान मिलता है।’ सभी कास्टिंग डायरेक्टरों ने उम्मीद जताई है कि आने वाले समय में बेस्ट कास्टिंग डायरेक्टर अवार्ड की भी शुरुआत होगी।
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