जासूस बन देखें ‘डिटेक्टिव ब्योमकेश बख्शी’ : दिबाकर बनर्जी

-अजय ब्रह्मात्‍मज
-इस फिल्म को देखने के लिए ऑडिएंस को किस तरह तैयार होना चाहिए। दर्शक आप की फिल्मों को लेकर द्वंद्व में रहते हैं।
0 बड़ा अच्छा सवाल किया आपने, लेकिन डायरेक्टर ही दर्शकों को बताता फिरे कि मेरी फिल्म को इस तरह देखो तो वह जरा अजीब सा लगता है। बहरहाल,मेरे हिसाब से हमारी फिल्मों में आजकल खाली टाइम बढ़ गया है। मैं पाता हूं कि सीन में गाने चल रहे हैं। डायलॉग चल रहा है, पर ऑडिएंस मोबाइल पर बातें कर रहे हैं। सिनेमा के बीच से बाहर जा चक्कर लगा कर आ रहे हैं। फिर वे कहना शुरू कर देते हैं कि यार हम तो बोर हो रहे हैं। इधर हिंदी फिल्में दर्शकों को बांधकर नहीं रख पा रही हैं। साथ ही सिनेमा के प्रति दर्शकों के समर्पण में भी कमी आई है। वे भी समर्पित भाव से फिल्में नहीं देखते। मेरा कहना है कि यार इतना आरामदेह सिनेमहॉल है। बड़ी सी हाई क्वॉलिटी स्क्रीन है। डॉल्बी साउंड है। अगर हम उस फिल्म के प्रति सम्मोहित न हो गए तो फिर फायदा क्या? कॉलेज स्टूडेंट को देखता हूं कि सिनेमा हॉल में बैठ वे आपस में तफरीह कर रहे हैं। मस्ती कर रहे हैं। सामने स्क्रीन पर चल रही फिल्म तो उनके लिए सेकेंडरी चीज है। सामने कितनी ही झकझोरने वाली फिल्म क्यों न हो, दर्शक समर्पित और अनुशासित भाव से फिल्में नहीं देखते।
    ऐसे माहौल में आप अगर मेरी फिल्म देखने जाएं। खासकर ब्योमकेश को तो हर सीन में क्लू है। हर सीन में दर्शकों को एक मौका है कि वे ब्योमकेश के साथ आगे बढ़ें। पहले से पकड़ सकें कि कौन क्या है? अगर ‘डिटेक्टिव ब्योमकेश बख्शी’ देखने दर्शक बतौर जासूस जाएं तो उन्हें वह फिल्म देखने में बड़ा मजा आएगा। बस दो घंटे बीस मिनट की मेरी फिल्म एकाग्रचित होकर फिल्म देखें। यह सोचकर देखें कि मुझे ब्योमकेश को हराना है तो वे फिल्म के एक-एक क्षण का मजा ले सकेंगे।
-हिंदी फिल्मों के साथ एक और समस्या रही है कि दर्शक बड़ी आसानी से सीन स्पेक्यूलेट कर लेते हैं। कई बार तो ऐसा भी देखने को मिला है कि हम कोई डायलॉग विशेष बोलते हैं और स्क्रीन पर वही कुछ सितारे भी बोल देते हैं। आप कैसे सरप्राइज करने वाले हैं?
0 इस फिल्म में एक से बढक़र एक सरप्राइजेज हैं। आप को सांस लेने तक की फुर्सत नहीं मिलेगी। अगर आप को पहले एक-दो मिनट में फिल्म जम गई तो फिल्म के बाकी के घंटों में आप को सांस लेने की फुर्सत नहीं मिलने वाली। हमने तो ट्रेलर में भी लिख दिया, एक्सपेक्ट द अनएक्सपेक्टेड। हिंदी तर्जुमा होगा, अप्रत्याशित की प्रत्याशा करें। आप बस जासूस की तरह फिल्म को देखें। हर छोटी-बड़ी, ऊंची-नीची चीज को टटोलिए। पीछे क्या हो रहा है, सामने क्या हो रहा है, वह देखिए। इतना मैं कह सकता हूं कि आप जब यह फिल्म देख, बाहर निकलेंगे तो आप को पक्का लगेगा कि आप किसी और दुनिया में गए थे।
-ब्योमकेश नायक ने ही आप को क्यों आकर्षित किया?
0 क्योंकि ब्योमकेश भारतीय है। वह ऐसा भारतीय है, जो देसी बनने के चक्कर में अतीत या इतिहास का गुलाम नहीं बन जाता। वह ठीक वैसा ही युवक है, जैसा 20 वीं सदी में कौस्मोपॉलिटन सिटी कोलकाता में रहने वाला एक शख्स हो सकता है। उसकी अंग्रेजी भी बड़ी स्ट्रौंग है। बंगाली साहित्य भी पढ़ रखा है, पर वह धोती पहनता है। वह पान भी खाता है। उसे ठुमरी भी पसंद है तो वह अंग्रेजी जैज गाना भी सुनता है। वह आज की तारीख का आधुनिक भारतीय है, जबकि वह 1943 के भारत का है। वह जो आधुनिकता थी, आज से 50-60 साल पहले, वह आधुनिकता आज हम लोगों में भी नहीं है। वह खुलापन शायद थोड़ा सा कम ही हो गया है। ब्योमकेश उस तरह का  डिटेक्टिव है, जो पारंपरिक जासूसों की वेशभूषा व ऐट्टियूड पर प्रहार करता है। ब्योमकेश के प्रति मेरे आकर्षण की एकमात्र वजह यही थी कि वह किरदार इतना देसी गढ़ा गया था कि आप उसे भारत के सिवा और कहीं इमैजिन ही नहीं कर सकते। मैंने जब बचपन में ही उस किरदार को पढ़ा था तो उस किरदार के सोच पर बड़ा गर्व हुआ था। वह जबरन देशभक्त या इंडियन होने का दावा नहीं करता था।
-ब्योमकेश बंगाली भद्रलोक है या..?
बिल्कुल भद्रलोक है। वह सिंपल मिडिल क्लास फैमिली से आता है। उसके संवाद ‘मां-बाप कौलरा ले गए, घर-बार रिश्तेदार’ से पता भी लग जाता है कि वह क्या है।
-यह पीरियड फिल्म है और ऊपर से आप के द्वारा निर्मित। आप जैसे फिल्मकारों का एक पॉलिटिकल अंडरटोन होता है, जो बेबाकी से आता है। सन् 1943 के कलकत्ते की कौन सी तस्वीर आप पेश कर रहे हैं?
0 बड़ा सही सवाल किया है आपने। उन दिनों कोलकाता को लेकर जो सबसे उल्लेखनीय बात थी वह था कोलकाता पर जापान का आक्रमण। जापान वैसे तो ब्रिटेन पर आक्रमण कर रहा था, लेकिन क्योंकि भारत ब्रिटेन के अधीन था तो टेक्निकली जापान भारत पर अटैक कर रहा था। तब क्या हुआ कि भारतीय फंस गए जापान के आक्रमण में। भारतीय अंग्रेजों से त्रस्त तो थे ही। ऊपर से जापानियों को लेकर एक किस्म के भय का माहौल भी था। वह इसलिए कि जापान कोलकाता से पहले इंडोनेशिया, बर्मा व अन्य पूर्वी एशियाई इलाकों में आक्रमण कर तबाही मचाते रहे थे। वैसे भी जब कोई सामरिक शक्ति किसी मुल्क में आती है तो उसका नतीजा अच्छा नहीं होता। दूसरी तरफ अंग्रेजों के अधीन होने के बावजूद भारत उस तारीख में स्वतंत्र गणराज्य के तौर पर काम कर रहा था। पराधीनता को लेकर ग्लानि थी, मगर हमने कभी दूसरे मुल्क के आक्रमण और उसके आर्मी के घिनौने अत्याचार को कभी नहीं देखा था। अगर जापानी आर्मी भारत में आ जाती तो भारत का इतिहास बदल जाता। इस फिल्म में इतिहास का वह चक्र भी दिखाया गया है। और एक बात जो आज लोग भूल चुके हैं कि उस वक्त ब्रिटिश सरकार जापानियों के समक्ष हथियार डालने को तैयार थी। उनका प्लान था कि अगर जापानी कोलकाता पर अटैक करते हैं तो वे कोलकाता को जापानी आर्मी के हवाले कर दिया जाएगा। उसी वक्त दूसरे वल्र्ड वॉर में ही अंग्रेजों ने हिंदुस्तान से भारी मात्रा में चावल समेट कर ग्रीस भेज दिया। अपने रंगरूटों के लिए और बंगाल में हो गई भुखमरी। 60 लाख लोग मर गए। वह अंग्रेजों के द्वारा बनाया हुआ अकाल था। एक किस्म की अनिश्चितता थी कि हम किसका साथ दें। बापू साम्राज्यवादियों के अलावा मिलिट्री रूल करने वालों के भी खिलाफ थे। आज उनकी बातों की झलक पाकिस्तान के राजनीतिक हालात देखकर पता चलते हैं कि वहां आर्मी ने क्या कुछ किया है?
-ब्योमकेश किस किस्म के केसेज को सॉल्व करता है? लॉ एंड ऑर्डर प्रॉब्लम या पॉलिटिकल प्रॉब्लम?
0 उस दौर में दोनों समस्याएं घुल-मिल गईं थीं। वल्र्ड वॉर के टाइम पर ही स्मगलिंग हो रही थी। कोलकाता में दुनिया भर के जासूस थे। शहर में अंडरवल्र्ड का साम्राज्य था। बर्मा से सारा अफीम आता और बाकी देश-दुनिया में जाता। एक और चीज थी, वहां का चाइना टाउन। हालांकि वह भी अब तब्दील हो चुका है। पुराना चाइना टाउन शहर के बीचों-बीच था। वहां हमने शूट भी किया। वह उस समय शहर की शान था। वहां स्मगलिंग भी होती थी। उसी दौरान भारत छोड़ो आंदोलन भी खत्म हुआ था। नेताजी सुभाष चंद्र बोस बाहर थे। कोलकाता में एक अलग माहौल था। जापानी आक्रमण के अंदेशे भी थे। वह सब चीज हमने फिल्म में दिखाई है।
- उन सब चीजों को एक ही कहानी में पिरोना कितना चैलेंजिंग था?
0 मैंने ब्योमकेश की कहानी पर जोर दिया है। बाकी चीजें फिल्म के बैकड्रॉप में है। उस समय नौकरी की भी भारी किल्लत थी। वैसी सिचुएशन में ताजा-ताजा ग्रैजुएशन कर निकला ब्योमकेश लेक्चरार न बन सत्यानवेषी यानी डिटेक्टिव बनने का फैसला करता है। वैसा करने की क्या वजह हो सकती थी। यह फिल्म ब्योमकेश के पहले केस के इर्द-गिर्द है। मैंने अपने इंटरप्रेटेशन से ब्योमकेश को पर्दे पर उतारा है। हां शरदिंदु बंधोपाध्याय की किताब से जिन तीसों कहानियों के राइट्स मैंने लिए हैं, उनमें से कुछ चीजें लेकर मैंने ब्योमकेश के तीस सालों का सफर तो दिखाया है। दो कहानियों को लेकर फिल्म का मेन प्लॉट मैंने वल्र्ड वॉर और तत्कालीन राजनीतिक हालात के बैकड्रॉप में रखकर गढ़ा है। फिल्म में आप को पूरा विंटेज ट्रैफिक देखने को मिलेगा।
- कलाकारों के चयन की वजहें क्या कुछ रहीं?
0 सुशांत सिंह राजपूत में मुझे काफी पोटेंशियल लगा। ब्योमकेश के तौर पर मुझे यंग और वलनरेबल ब्योमकेश की दरकार थी। मैं डिटेक्टिव की टिपिकल धारणा को ध्वस्त करना चाहता था। हमारे यहां अमूमन यह होता है कि कोई अगर डिटेक्टिव है तो वह असाधारण ही होगा। उसकी पैनी नजर होगी। वगैरह-वगैरह। मेरा मानना है कि डिटेक्टिव भी इंसान ही होता है। बहरहाल मुझे एक ऐसा कलाकार चाहिए था, जो इंटेलिजेंट भी लगे, पर आम इंसानी फितरत वाला भी हो। सुशांत दोनों का बढिय़ा संतुलन साधते हैं। उन्होंने जेन्युनली खुद को ब्योमकेश में तब्दील भी किया। वे हर रात अपने कैरेक्टर स्केच के बारे में नोट्स लिखते थे। हर बारीक चीज को उन्होंने पकड़ा। आनंद तिवारी का काम मुझे जंचता है। वह चाहे उनकी ‘उड़ान’ हो या फिर कोई विज्ञापन फिल्म ही। उन के काम पर मेरी नजर ठहरती है। ब्योमकेश बख्शी के दोस्त या सहायक हम, जो कुछ कह लें के तौर पर आनंद तिवारी ने उम्दा काम किया है। वैसा अजीत ब्योमकेश बख्शी के दर्शकों ने नहीं देखा होगा। दिव्या मेनन को ढूंढा हमारे आर्ट डायरेक्टर सब्यसाची मुखर्जी ने। मेन लीड हीरोइन स्वास्तिका बंगाली फिल्मों की स्थापित अभिनेत्री हैं। उन्हें सेलेक्ट किया गया, उन्हें तो पता भी नहीं था कि हम क्या बना रहे हैं? हमारे कास्टिंग डायरेक्टर जब कोलकाता में शूट कर रहे थे तो उन्हें उड़ते-उड़ते इस फिल्म के बारे में खबर लगी। वे 15 मिनट के लिए हम लोगों से मिलने आ गईं। स्क्रीन टेस्ट दिया और चली गईं। बाद में कुछ महीनों बाद उन्हें पता चला कि उनका ऑडिशन ‘डिटेक्टिव ब्योमकेश बख्शी’ के लिए हुआ था। अंगूरी के रोल में उन्होंने जान-प्राण डाल दिए। फिर भी हम उनके चयन को लेकर सशंकित थे, क्योंकि मुंबई, दिल्ली की ऑडिएंस कहां उनसे कनेक्ट करेगी, मगर आखिर में आदित्य चोपड़ा की हामी पर उनका चयन हो गया।

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