हिंदी टाकीज 2 (6) फिल्मी हुआ मैं - आरजे आलोक
हिंदी टाकीज सीरिज में इस बार आरजे आलोक। आरजे आलोक हाजिरसवाल आरजे और फिल्म पत्रकार हैं। अपनी मधुर और वाक् उपस्थिति से वे हर इवेंट को जीवंत कर देते हैं। पिछले चंद सालों में ाहचान में आए फिल्म पत्रकारों में से एक आरजे आलोक सक्रिय और रंजक हैं।
फ़िल्मी हुआ मैं ..
मैं उत्तर प्रदेश के सोनभद्र ज़िले में "ओबरा " नामक स्थान से ताल्लुक़ रखता हूँ, जहां आज भी नयी फिल्में रिलीज़ होने के २ महीने बाद लगती हैं ! जब मैं छोटा था तो घर में नयी रंगीन टी वी आयी थी और वी सी आर प्लेयर किराये पर मंगा कर के महीने में १-२ बार पिताजी वीडियो कैसेट्स पर फिल्में दिखाया करते थे, आस पास से पडोसी भी आ जाया करते थे , फिल्म देखने की पिकनिक , घर में ही हो जाया करती थी ! उन दिनों में मुझे याद आता है "बड़े दिलवाला " फिल्म पूरे परिवार ने साथ देखा था , मेरे हाथ में वो वीडियो कैसेट का कवर भी था और घर के होली पर बनाये गए चिप्स को खाते हुए हम फिल्म देख रहे थे !
(फोटो - मैं वीडियो कैसेट के साथ ,बगल में मेरे बड़े भाई )
पहली बार मुझे याद है मुंबई दंगो पर आधारित फिल्म "बॉम्बे " रिलीज़ हुयी थी तो सिनेमा हॉल मैं अपने बड़े भाई और उनके दोस्तों के साथ गया था , और थोड़े थोड़े अरविन्द स्वामी और नीले कपडे पहनी हुयी मनीषा कोइराला याद आती है ! २१ इंच वाली साइकिल के आगे वाले डंडे पर बैठ कर सिनेमा हाल पहुंचे , और जब पता चला इस फिल्म के लिए दंगा चल रहा है तो २० मिनट की फिल्म के बाद ही हम सबको भाग कर वापिस घर आना पड़ा ! फिर वीडियो कैसेटस ही काम आते थे !आखिरी फिल्म मैंने वीडियो कैसेट पर देखी थी वो अक्षय कुमार , सुनील शेट्टी और रवीना टंडन की "मोहरा " थी , और पहली बार एक ही फिल्म के 3 वीडियो कैसेट आये थे , जिनमें पूरी फिल्म समायी हुयी थी ! मुझे ये भी याद है की फिल्म देखने के बाद अक्षय कुमार की ही तरह सिर के ऊपर गमछा ( तौलिया ) बाँध कर , एक हाथ सिर और दूसरा पेट के ऊपर रख कर के "तू चीज़ बड़ी है मस्त मस्त " पर नृत्य भी किया करता था !
फिल्मों का क्रेज़ कुछ इस कदर हुआ करता था की जो भी फिल्म रिलीज़ होती थी , उसी अंदाज़ में दोस्तों से संवाद भी किया करते थे , अच्छी तरह से मुझे याद है की अग्निपथ फिल्म जब रिलीज़ हुयी थी तो उसके डायलाग हम क्रिकेट खेलते वक़्त बार बार बोलते थे - " विजय दीनानाथ चौहान पूरा नाम , हायें " ,
आज भी याद आता है जब सिर्फ दूरदर्शन ही मनोरंजन का साधन हुआ करता था , तब रविवार को ही फिल्में देख पाते थे हम सब , और आने वाली फिल्म का प्रचार देख कर हम पूरे परिवार के साथ तय कर लिया करते थे की आज रात ये फिल्म देखनी है , खाना पीना खाकर , हम सब सिर्फ इंतज़ार करते थे की कब बजेगा 9 , और शुरू होगी फिल्म !
"त्रिदेव , अमर अकबर एंथोनी , मशाल , क्रांति , कर्मा और ना जाने कितनी फिल्में हम सबने सिर्फ दूरदर्शन पर देखी और फिर DD2 की एंट्री हुयी और जिस पर अनोखे कार्यक्रमों के साथ साथ गुरूवार वाली फिल्में काफी प्रसिद्ध हुयी और याद आता है जब लोग डिश के केबल पर अपने अपने तार बिछा देते थे , और कुछ लोग एंटेना को बाँध कर रखते थे ताकि फिल्म के वक़्त कोई भी परेशानी ना हो , और जब हम गाँव में होते थे तो ट्रक और ट्रैक्टर की बैटरी को तैयार रखते थे , की अगर बिजली गयी तो कम से कम बैटरी का सहारा रहेगा !
फिल्मों का देखना टी वी पर होता था और रही सही कसर मेरी माँ पूरा कर देती थी , हर एक गीत को आल इंडिया रेडियो पर सुना देती थी , माँ काम करती हुई रेडियो को खुला छोड़ कर रखती थी , और हरेक गीत ज़ेहन में घर कर जाता था ! किशोर मुकेश रफ़ी लता आशा भोसले के साथ बड़ा हुआ हूँ मैं !
आज भी वो दिन याद आते हैं , तो लगता है की बचपन से ही फिल्मों का जूनून और जज़्बा नब्ज़ में आज फिल्म इंडस्ट्री के बीच हूँ , उन्ही सितारों को देखता हूँ , उनसे बातें करने का मौका मिलता है और अतीत की याद आती है ...आज भी वो दिन याद आते हैं , तो लगता है की बचपन से ही फिल्मों का जूनून और जज़्बा नब्ज़ में बहता था जो आज भी उसी तीव्र वेग से बहता रहता है !
सादर
आर जे आलोक (Twitter-@oyerjalok)
Radio Jockey Cum Bollywood Reporter
Mumbai
FB - RJ ALOK
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