फिल्म समीक्षा : एनएच 10
'अजय ब्रह्मात्मज
स्टार: 4
नवदीप सिंह और अनुष्का शर्मा की 'एनएच 10' पर सेंसर की कैंची चली है। कई
गालियां, अपशब्द कट गए हैं और कुछ प्रभावपूर्ण दृश्यों को छोटा कर दिया गया
है। इस कटाव से अवश्य ही 'एनएच 10' के प्रभाव में कमी आई होगी। 'एनएच 10'
हिंदी फिल्मों की मनोरंजन परंपरा की फिल्म नहीं है। यह सीधी चोट करती है।
दर्शक सिहर और सहम जाते हैं। फिल्म में हिंसा है, लेकिन वह फिल्म की थीम के
मुताबिक अनगढ़, जरूरी और हिंसक है। चूंकि इस घात-प्रतिघात में खल चरित्रों
के साथ नायिका भी शामिल हो जाती है तो अनेक दर्शकों को वह अनावश्यक और
अजीब लग सकता है। नायिका के नियंत्रण और आक्रमण को आम दर्शक स्वीकार नहीं
कर पाता है। दरअसल, प्रतिशोध और प्रतिघात के दृश्यों के केंद्र में
नायक(पुरुष) हो तो पुरुष दर्शक अनजाने ही खुश और संतुष्ट होते हैं।
'एनएच 10' में इंटरवल से ठीक पहले अपने पति की रक्षा-सुरक्षा के लिए
बेतहाशा भागती मीरा के बाल सरपट भागते घोड़़ों के अयाल की हल में उछलते है।
वह अपने तन-बदन से बेसुध और मदद की उम्मीद में दौड़ी जा रही है। नवदीप
सिंह ने क्लाइमेक्स तक पहुंचते दृश्यों की संरचना से मीरा के व्यक्तित्व
में आए परिवर्तन को प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत किया है। मीरा हिंदी
फिल्मों की पिछलग्गू प्रेमिका और बीबी नहीं है। अपने पेशे में सफल मीरा
मुश्किल स्थितियों में फंसती है तो कैसे खुद को संभालती हुई अप्रत्याशित
फैसले लेती है। मीरा के प्रतिघात और प्रतिहिंसा पर बहसें हो सकती है, लेकिन
विकट स्थितियों में फंसी मीरा की लाचारगी भी जाहिर है। दो-तीन दृश्यों में
चिल्लाहट में उसकी असह्य विवशता दिखाई देती है।
इस बहस में दम नहीं है कि मीरा और उसके पति ने खुद को क्यों झोंक दिया? वे
आसान रास्ता चुन सकते थे। मुंह फेर कर अपने सफर में निकल सकते थे। चूंकि वे
शहर से हैं, इसलिए कस्बे के नागरिकों, पुलिस अधिकारियों और अन्यों की तरह
घट रही घटनाओं से उदासीन नहीं थे। उन्होंने सोचा भी नहीं होगा कि छोटे
हस्तक्षेप से वे इस कदर मौत के मुहाने पर आ जाएंगे। 'एनएच 10' की खूबी है
कि देश में किसी भी स्थान पर ऐसी दुर्घटना किसी के भी साथ हो सकती है।
'एनएच 10' में मीरा और अर्जुन के साथ ऐसा होता है।
नवदीप सिंह और उनकी टीम ने फिल्म को धूसर रंग दिया है। इलाके की कठोर और
नंगी सच्चाई को उभारने और जताने के लिए इस फिल्म के शिल्प में चमक नहीं रखी
गई है। दिल्ली की रंगीनी और चमक गुड़गांव पार करने के साथ खत्म हो जाती
है। पूरी फिल्म में हम असहज होने के बावजूद बंधे रहते हैं। हमें मीरा के
पति के व्यवहार बेवकूफाना और गैरजरूरी लगता है, क्योंकि हम कहानियों और
फिल्मों में भी मुश्किलों के लिए तैयार नहीं हैं।
'एनएच 10' इंडिया और भारत की सच्चाई को कभी आमने-सामने तो कभी समानांतर
खड़ी कर देती है। हो सकता है कि शहरी दर्शक ऐसी सच्चाईयों से अकुलाहट महसूस
करें। आरंभ के कुछ दृश्यों के बाद ही हम मीरा के साथ हो जाते हैं। उसकी
बेबसी, चीत्कार और लड़ाई में खुद को शामिल पाते हैं। नवदीप सिंह ने मीरा को
21वीं सदी की संयत, समझदार औऱ स्नेहिल औरत के तौर पर पेश किया है, जो बदली
स्थितियों में धीरे-धीरे कठोर और नृशंस हो जाती है। आत्मरक्षा से प्रतिघात
तक का यह परिवर्तन फिल्म के ढांचे में तार्किक और स्वाभाविक लगता है। वह
निकल रही थी, निकल भी जाती, लेकिन खल किरदारों के हिंसक व्यवहार से वह भी
प्रतिहिंसा पर उतारू होती है। फिल्म में वह निहायत लाचार और अकेली हो जाती
है। आम जिन्दगी में अकेली और शायद मीरा जैसी हिम्मत और समझदारी न दिखा सके।
दर्शन कुमार ने अपने चरित्र को पूरी क्रूरता के साथ निभाया है। उन्हें
संवाद कम मिले है, फिर भी अपनी मौजूदगी और अदायगी से वे प्रभावित करते हैं।
मीरा के पति के रूप में भूपलम की भूमिका सीमित है। मामा और मां के किरदार
में रवि झांकल और दीप्ति नवल उपयुक्त है। बिहारी दंपत्ति की छोटी सी भूमिका
में आए दोनों अपरिचित कलाकार नैचुरल और रियल हैं। 'एनएच 10' मुख्य रूप से
अनुष्का शर्मा की फिल्म है। उन्होंने लेखक-निर्देशक से मिले मौके का भरपूर
इस्तेमाल किया है। उन्होंने मीरा की मजबूरी और बहादुरी तक के आयामों को
संजीदगी से निभाया है। बतौर निर्माता ऐसी फिल्म के लिए तैयार होने की उनकी
पहल की भी तारीफ करनी चाहिए। उनके समर्थन में खड़ी कृषिका लु्ल्ला का
योगदान भी सराहनीय है।
अवधि: 115 मिनट
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