पार्टीशन के बैकड्राप पर निजी ‘किस्सा’



-अजय ब्रह्मात्मज
अनूप सिंह की फिल्म ‘किस्सा’ देश-विदेश के फिल्म समारोहों की सैर के बाद सिनेमाघरों में आ रही है। अंतर्निहित कारणों से यह फिल्म देश के चुनिंदा शहरों के कुछ सिनेमाघरों में रिलीज हो रही है। मल्टीप्लेक्स के आने के बाद माना गया था कि बेहतरीन फिल्मों के प्रदर्शन की राह आसान होगी,लेकिन हआ इसके विपरीत। अब छोटी और बेहतरीन फिल्मों का प्रदर्शन और भी मुश्किल हो गया है। बहरहाल, ‘किस्सा’ के निर्देशक अनूप सिंह ने फिल्म के बारे में बताया। पार्टीशन की पृष्ठभूमि की यह फिल्म पंजाबी भाषा में बनी है। प्रस्तुत हैं निर्देशक अनूप सिंह की बातों के अंश-:
‘किस्सा’ का खयाल
 पार्टीशन को 67-68 साल हो गए,लेकिन हम सभी देख रहे हैं कि अभी तक दंगे-फसाद हो रहे हैं। आए दिन एक नया नरसंहार होता है। हर दूसरे साल कोई नया सांप्रदायिक संघर्ष होता है। लोग गायब हो जाते हैं। कुछ मारे जाते हैं। हम अगले दंगों तक उन्हें आसानी से भूल जाते हैं। देश के नागरिकों को यह सवाल मथता होगा कि आखिर क्यों देश में दंगे होते रहते हैं? इस सवाल से ही फिल्म का खयाल आया। सिर्फ अपने देश में ही नहीं। पिछले 20 सालों में अनेक देश टूटे हैं। राजनीतिक सत्ता बदली है। लाखों लोग बेघर और शरणार्थी हुए हैं। हम भयंकर हिंसा के दौर में जी रहे हैं। हमें हिंसा की मूलभूत वजहों को खोजना होगा। ‘किस्सा’ ऐसी ही एक तलाश है।
    इस फिल्म को बनाने का दूसरा कारण निजी है। पार्टीशन में मेरे दादा जी मक्खन सिंह ने अपना वतन छोड़ा था। उनके लिए भारत आना भी दूसरे देश में आना था। वे बिल्कुल नए देश तंजानिया चले गए। वे बहुत नाराज थे। एक दिन में उनके घर-बार,दोस्त और देश छिन गए। उनके किस्से सुनते हुए मैं बड़ा हुआ। मेरे रिश्तेदारों की कहानियों में भी पार्टीशन की गूंज रहती थी। विछोह और अवसाद के उन संस्मरणों से मेरा बचपन घबराया रहा। 25 सालों के बाद मेरे दादा जी को फिर से दरबदर होना पड़ा। इस बार मैं भी उनके साथ था। ईदी अमीन की वजह से हम फिर से उखड़ गए। मेरी उम्र 14 साल की थी। हमलोग पानी के जहाज से निकले थे। मैं गहरी उदासी में था। मूझे अच्छी तरह याद है तीसरी रात बीच समुद्र में खुले आकाश और नीचे अनंत सागर के बीच जहाज पर किसी ने फिल्म लगा दी। मैं विस्मित था। सिनेमा ने मुझे अपना नागरिक बना लिया। मैंने राहत की सांस ली। मुझे लगा कि अब मैं होमलेस नहीं रहूंगा। मैं विश्व नागरिक बन गया। मैंने अपनी स्थितियों को स्वीकार कर लिया। मैंने 1984 के सिख विरोधी दंगों को भी जज्ब किया।
इन दोनों कारणों से ‘किस्सा’ की कहानी और किरदारों ने आकार लिया। ‘किस्सा’ एक पिता और उसकी बेटी की कहानी है। पार्टीशन से तबाह होने के बाद वह अपनी चौथी बेटी को बेटे के रूप में पालता है। उम्र के साथ आने वाली समस्याओं से जूझती उस बेटी की शादी एक लड़की से कर दी जाती है। जटिलताएं और बढ़ती है। फिर भी खुद को सही मानता अंबर स्थिितियों की दुरूहता को नजरअंदाज करता है। इस किरदार को इरफान ने भावपूर्ण तरीके से जीवंत किया है। बेटी के रूप में तिलोत्तमा बोस हैं। टिस्का चोपड़ा और रसिका दुग्गल अन्य खास रोल में हैं।
    यह फिल्म 20 फरवरी को एक साथ सभी फार्मेट में रिलीज की जा रही है। सिनेमाघरों में रिलीज के साथ डीवीडी और वीडियो ऑन डिमांड के जरिए दर्शकों के बीच पहुंचने की यह कोशिश नयी और अप्रचलित है।

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