फिल्म समीक्षा : रॉय : गजेन्द्र सिंह भाटी
न महानगरीय, न कस्बाई दर्शकों की "रॉय’
** 2/5
गजेंद्र सिंह भाटी
फिल्म
खत्म होने के बाद हमें ये भूलना पड़ता है कि इसमें रणबीर कपूर, अर्जुन
रामपाल और जैकलीन जैसे सितारे हैं। अंत में यही सत्य उभरता है कि विक्रमजीत
सिंह की ये पहली फिल्म है और नौसिखिया फिल्म है। हो सकता है दस साल बाद वे
इसे ज्यादा बेहतर बना पाएं। ट्रेलर्स से ऐसा लगता है कि रणबीर एक चोर रॉय
बनकर एंटरटेन करते देखेंगे जबकि ऐसा नहीं है। वो सिर्फ फिल्ममेकर कबीर
(अर्जुन) की स्क्रिप्ट का काल्पनिक पात्र है। ये जानकर निराशा होती है।
लेकिन बाद में कबीर-आएशा (जैकलीन) की प्रेम कहानी कुछ लुभाने भी लगती है।
"रॉय’
एक क्रिएटिव और स्वार्थी आदमी की जिदंगी के अमूर्त (Abstract) पहलुओं को
दिखाती है जो नई बात है। अपनी फिल्म "गन्स-3’ बनाने तक कबीर एक जिम्मेदार
आदमी बनकर उभरता है। दर्शकों को कैसा लगता है? पहले एक घंटे में वे कई बार
दोहराते हैं कि ये हो क्या रहा है? क्योंकि दो समानांतर कहानियां अस्पष्ट
रूप से चलती रहती हैं। अगर खूबसूरत लोकेशंस, वाइन, सिगरेट, क्रिएटिव लोगों
की जिंदगी, खुलापन और प्यार की परतें पसंद करते हैं तो डीवीडी पर फिल्म देख
सकते हैं।
Story [2/5] बहुत महत्वाकांक्षी
कहानी है। लेकिन इसमें जो प्रभावी अमूर्त चीजें (विचार) हैं वे चुस्ती से
नहीं आतीं। चोर व फिल्म निर्देशक जैसे मूर्त पात्र, प्रेम प्रसंग व घटनाएं
हैं जिन्हें मनोरंजक व ताजा होना था, पर वे नहीं हैं।
direction
[1/5] निर्देशकीय कौशल के बजाय विक्रम बौद्धिक डायलॉग्स और मलेशिया की भव्य
लोकेशंस से लुभाने की असफल कोशिश करते हैं। लेकिन दर्शक उनके पात्रों की
समृद्ध जीवनशैली से भी प्रभावित नहीं होते।
music [2.5/5] मीत
ब्रदर्स का कंपोज किया कनिका कपूर का गाया "कलाइयां’, अंकित तिवारी का "तू
है के नहीं’ और केके का गाया "यारा रे’ इस एलबम में गुनगुनाने लायक हैं।
बेजान फिल्म में जो भी राहत मिलती है वो म्यूजिक से, लेकिन ये फिल्म से
जुड़ा नहीं लगता।
acting [2/5] रणबीर कपूर की एक्टिंग रोबोट जैसी
है। उन्हें देख मन में हलचल नहीं होती। अर्जुन रामपाल किसी भी अन्य फिल्म
जैसे हैं। जैकलीन का हिंदी उच्चारण बेहतर है।
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