कैरीकेचर नहीं है झिमली-हुमा कुरेशी
- अजय ब्रह्मात्मज
हुमा कुरेशी को जानकारी थी कि श्रीराम राघवन जल्दी ही अपनी फिल्म आरंभ करने जा रहे हैं। इच्छा तो थी ही कि उनके साथ काम करने का मौका मिले। जल्दी ही उन्हें कॉल भी आ गया कि श्रीराम ने नैरेशन के लिए बुलाया है। इस कॉल से ही उत्साह बढ़ गया। हुमा बताती हैं,‘तब मुझे नहीं मालूम था कि क्या स्टोरी है? किस किरदार के लिए मुझे बुलाया जा रहा है। मैं गई। नैरेशन डेढ़-दो घंटे तक चला। सच्ची कहूं तो उस समय आधी बात समझ में नहीं आई। मैं तो इस उत्साह के नशे में थी कि उनके साथ फिल्म करूंगी। न्वॉयर फिल्म को अच्छी तरह समझते हैं। फिल्मों में आने के पहले उपकी ‘एक हसीना थी’ देखी थी। इस फिल्म ने मुझे सैफ अली खान का प्रशंसक बना दिया था। फिल्म का हीरो ग्रे शेड का था।’
हुमा और वरूण की फिल्में ‘स्टूडेंट ऑफ द ईयर’ और ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ एक ही साल रिलीज हुई थीं। दोनों विपरीत जोनर की फिल्में थीं। हुमा को पता चला कि वरूण ‘बदलापुर’ में ग्रे शेड का रोल कर रहे हैं। वह चौंकी। अपना विस्मय जाहिर करती हैं हुमा,‘मेरी समझ में नहीं आया कि क्यों चाकलेटी हीरो ऐसी फिल्म कर रहा है। नवाजुद्दीन सिद्दिकी के साथ मैं काम कर चुकी थी। उनके बारे में तो पता था। बहरहाल,इस फिल्म मेें वरुण ने काफी मेहनत की थी।’ ‘बदलापुर’ में हुमा सेक्स वर्कर का किरदार निभा रही हैं। अपने किरदार के बारे में वह कहती हैं,‘फिल्म में मेरा नाम झिमली है। पहली बार सेक्स वर्कर का रोल कर रही हूं। मुझे वरुण की बीवी के रोल का ऑप्शन भी मिला था,जिसे यामी गौतम निभा रही हैं। अपने कंफर्ट जोन से निकलने के लिए मैंने सेक्स वर्कर का किरदार चुना। नए लुक और इमोशन पर काम किया है मैंने। मेरे लिए डिफिकल्ट फिल्म है। फिल्म में मेरा एज जंप भी है। फिल्म में वरुण और नवाज के साथ मेरा लंबा रिश्ता रहता है।’ हुमा स्पष्ट करती हैं कि हिंदी फिल्मों में प्रचलित सेक्स वर्कर से अलग रोल है झिमली का।
हुमा जानती हैं कि हिंदी फिल्मों में सभी अभिनेत्रियों ने एक न एक बार सेक्स वर्कर का रोल किया है। पहले उनकी एक छवि बन गई थी। उन्हें कुछ गाने-वाने भी मिलते थे। ‘बदलापुर’ की कहानी के केंद्र में झिमली नहीं है। हुमा की कोशिश रही कि सेक्स वर्कर का रोल कैरीकेचर न बन जाए। इस कोशिश में उन्हें श्रीराम का सहयोग मिला।हुमा स्पष्ट करती हैं,‘झिमली एक लडक़ी और इंसान भी तो है। भारत में मर्जी से कोई भी सेक्स वर्कर नहीं बनता। उन्हें इस तरफ धकेला जाता है। वे एक बार इसमें फंस जाती हैं तो निकलना मुश्किल हो जाता है।’ हुमा अपनी फिल्मों से संतुष्ट हैं और मानती हैं कि उनकी शुरूआत अच्छी हुई। व स्वीकार करती हैं,‘अलग किस्म के निर्देशकों के साथ अच्छी शुरूआत करने का यह फायदा हुआ कि मुझे जल्दी ही पहचान मिल गई। अगर मैं मेनस्ट्रीम फिल्मों से आती तो इस पहचान में वक्त लगता। अभी मुझे वैरायटी के साथ अपने रोल पर मेहनत करने की जरूरत है। मुझे लगता है कि सभी की उम्मीदों पर मुझे खरा उतरना चाहिए।’
अपनी अलग शुरूआत के बावजूद हुमा कुरेशी मेनस्ट्रीम फिल्मों की दीवानी हैं। वह बेलाग शब्दों में कहती हैं,‘मुझे यह बताने में कोई शर्म नहीं है कि ऐसी फिल्में देख कर ही फिल्मों में आने का मन हुआ। मैं चाहती हूं कि मां अपनी सहेलियों के साथ मेरी फिल्में देखने जाएं और फिर मेरी चर्चा हो। दो चीजें मेरे फेवर में नहीं थी-वजन और इमेज। मैंने अपना वजन कम किया है। इमेज में बंधना नहीं चाहती। मैं तो कॉमेडी फिल्मों के लिए भी तैयार हूं। मेरा अपना सर्किल बन चुका है। कोशिश तो यही है कि हर तरह की फिल्में करूं।’
हुमा की नजरों में श्रीराम राघवन इस पीढ़ी के अकेले निर्देशक हैं जिन्हें थ्रिलर फिल्मों में मजा आता है। उनकी फिल्में विदेशी फिल्मकारों से प्रभावित नहीं होतीं। विजय आनंद और गुरु दत्त उनके आदर्श रहे हैं। यही वजह है कि उनकी फिल्मों की स्टायल शुद्ध भारतीय होती है।
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