फिल्म समीक्षा : बेबी
समझदार और रोमांचक
-अजय ब्रह्मात्मज
स्टार: चार
लंबे समय के बाद... जी हां, लंबे समय के बाद एक ऐसी फिल्म आई है, जो हिंदी
फिल्मों के ढांचे में रहते हुए स्वस्थ मनोरंजन करती है। इसमें पर्याप्त
मात्रा में रहस्य और रोमांच है। अच्छी बात है कि इसमें इन दिनों के प्रचलित
मनोरंजक उपादानों का सहारा नहीं लिया गया है। 'बेबी' अपने कथ्य और चित्रण
से बांधे रखती है। निर्देशक ने दृश्यों का अपेक्षित गति दी है, जिससे
उत्सुकता बनी रहती है। 'बेबी' आतंकवाद की पृष्ठभूमि पर बनी फिल्म है। ऐसी
फिल्मों में देशभक्ति के जोश में अंधराष्ट्रवाद का खतरा रहता है। नीरज
पांडे ऐसी भूल नहीं करते। यह वैसे जांबाज अधिकारियों की कहानी है, जिनके
लिए यह कार्य किसी कांफ्रेंस में शामिल होने की तरह है। फिल्म के नायक अजय
(अक्षय कुमार) और उनकी पत्नी के बीच के संवादों में इस कांफ्रेंस का
बार-बार जिक्र आता है। पत्नी जानती है कि उसका पति देशहित में किसी मिशन पर
है। उसकी एक ही ख्वाहिश और इल्तजा है कि 'बस मरना मत'।
यह देश के लिए कुछ भी कर गुजरने का आतुर ऐसे वीरों की कहानी है, जो देश के
लिए जीना चाहते हैं। फिरोज अली खान (डैनी डेंजोग्पा) 'बेबी' नामक एक मिशन
के प्रभारी हैं। उनके साथ बहादुर अधिकारियों की एक टीम है, जो इस बात के
लिए तैयार हैं कि अगर कभी पकड़े या मारे गए तो भारत सरकार उनसे किसी प्रकार
के संबंध नहीं होने का दावा कर लेगी। इस असुरक्षा के बावजूद वे देशहित में
कुछ भी करने को तैयार हैं। फिरोज के ही शब्दों में, 'मिल जाते हैं कुछ
ऑफिसर्स हमें, थोड़े पागल, थोड़े अडिय़ल, जिनके दिमाग में सिर्फ देश और
देशभक्ति घूमती रहती है... ये देश के लिए मरना नहीं चाहते, बल्कि जीना
चाहते हैं ताकि आखिरी सांस तक देश की रक्षा कर सकें।' ऐसे ही पागल और अडिय़ल
देशभक्त अधिकारियों के संग नीरज पांडे आतंकवाद के साए की रोमांचक मुहिम पर
निकलते हैं।
नीरज पांडे के विवेक और समझदारी की तारीफ करनी होगी। उन्होंने अपने
किरदारों, प्रसंगों और दृश्यों से स्पष्ट किया कि आतंकवाद का किसी धर्म
विशेष से सीधा रिश्ता नहीं है। राजनीतिक और व्यापारिक मकसद से कुछ लोग
इसमें संलग्न होते हैं। वे असंतुष्टों को बरगलाने में सफल होते हैं। तौफीक
और वसीम (सुशांत सिंह) के किरदारों से स्पष्ट होता है कि वे किसी धार्मिक
भावना से नहीं, बल्कि व्यापारिक हित में साजिशों का हिस्सा बने हुए हैं।
अनेक प्रसंगों में नीरज ने संकेत दिए हैं कि कैसे देश के असंतुष्ट मुसलमान
भटकाव के शिकार होते हैं। नीरज पांडे का उद्देश्य राजनीतिक और सामाजिक
फिल्म बनाने का नहीं है, लेकिन विवेक और समझदारी हो तो संदर्भ और
परिप्रेक्ष्य में ये तत्व आ जाते हैं। 'बेबी' आतंकवाद पर बनी एक समझदार
फिल्म है। नीरज पांडे की 'बेबी' में पाकिस्तान का जिक्र आता है, लेकिन वह
तथ्य और समाचार की तरह है। देशभक्ति की आड़ में पड़ोसी देशों को कुचल देने
का व्यर्थ नारा नहीं है इस फिल्म में।
वर्तमान में मौलाना मोहम्मद रहमान (राशिद नाज) पड़ोसी देश से आतंकवादी
गतिविधियां संचालित कर रहा है। वह आतंकवादी बिलाल (के के मेनन) को देश से
फरार कराने में सफल होता है। तहकीकात में पता चलता है कि उसके सूत्र देश और
विदेशों तक में जुड़े हुए हैं। एक-एक कर उनकी धड़-पकड़ से अजय और उसकी टीम
मुख्य ठिकाने और सरगना तक पहुंचती है। नीरज पांडे ने मुख्य आतंकवादी तक
पहुंचने की व्यूह रचना और घटनाक्रम में पर्याप्त उत्सुकता बनाए रखी है।
होनी-अनहोनी के बीच दिल की धड़कनें बढ़ती हैं-धकधक, धकधक। इस धकधक को
पाश्र्व संगीत की संगत मिलती है तो उत्तेजना और बढ़ जाती है, हालांकि
पाश्र्व संगीत कुछ स्थानों पर लाउड हो गया है।
क्लाइमेक्स के 30-40 मिनट में नीरज पांडे की पकड़ दिखती है। छोटे-छोटे
दृश्यों से स्थितियां बनती हैं और उत्सुकता बढ़ती जाती है। नीरज पांडे का
दृश्य विधान प्रेडिक्टेबल नहीं है। अनुमान से अलग किरदारों का व्यवहार
चौंकाता है। क्लाइमेक्स दृश्यों में हल्का दोहराव आता है, जो अधिकांश
दर्शकों के लिए हंसी का कारण हो सकता है। क्लाइमेक्स में अजय और शुक्ला
(अनुपम खेर) की नोंक-झोंक तनाव ढीला कर राहत देती है। कह सकते हैं कि नीरज
पांडे अपनी प्रस्तुति में परिपूर्णता के करीब पहुंच जाते हैं।
किरदारों के गठन और कलाकारों के चयन में निर्देशक और कास्टिंग डायरेक्टर की
सूझ-बूझ फिल्म को सही रूप देती है। विकी सदाना की कास्टिंग उल्लेखनीय है।
छोटे-छोटे दृश्यों में भी समर्थ अभिनेताओं की मौजूदगी कथ्य गाढ़ा करती है।
ड्रामा का घनत्व बढ़ाती है। अक्षय कुमार फिल्म की लीड भूमिका में जंचे हैं।
एक्शन दृश्यों में उनकी गति और स्फूर्ति उल्लेखनीय है। 'बेबी' का एक्शन
धूलउड़ाऊ और कांचतोड़ू नहीं है, लेकिन वह पर्याप्त असर डालता है। एक दृश्य
में प्रिया सूर्यवंशी (तापसी पन्नू) और वसीम (सुशांत सिंह) के बीच की
भिड़ंत उल्लेखनीय है। हिंदी फिल्मों में महिला किरदारों को नाजुक दिखाने की
परंपरा रही है। यहां प्रिया भिड़ती है और नायक अजय के आने तक उसे सुला
चुकी होती है। डैनी डैंजोग्पा, मधुरिमा तुली, मुरली शर्मा, सुशांत सिंह,
जमील खान और अनेक अपिरिचित चेहरे अपने अभिनय से किरदारों को विशेष रंग देने
के साथ विश्वसनीय बनाते हैं। ने भी उल्लेखनीय काम किया है।
नीरज पांडे की 'बेबी' आतंकवाद पर बनी एक समझदार फिल्म है। अतिरकों से बचती
हुई यह पूरी ईमानदारी से एक्शन और ड्रामा के साथ थ्रिल पैदा करती है।
'बेबी' दर्शनीय है।
अवधि-160 मिनट
Comments