फिल्‍म समीक्षा : तेवर

-अजय ब्रह्मात्‍मज 
लड़के का नाम घनश्याम और लड़की का नाम राधिका हो और दोनों ब्रजभूमि में रहते हों तो उनमें प्रेम होना लाजिमी है। अमित शर्मा की फिल्म 'तेवर' 2003 में तेलुगू में बनी 'ओक्काड़ु' की रीमेक है। वे शांतनु श्रीवास्तव की मदद से मूल कहानी को उत्तर भारत में रोपते हैं। उन्हें अपनी कहानी के लिए आगरा-मथुरा की पूष्ठभूमि समीचीन लगती है। वैस यह कहानी हरियाणा से लेकर झारखंड तक में कहीं भी थोड़े फेरबदल के साथ ढाली जा सकती है। एक बाहुबली है। उसके दिल यानी रोज के गार्डन में एक लड़की प्रवेश कर जाती है। वह प्रोपोज करता है। लड़की मना कर देती है। और ड्रामा चालू हो जाता है। मथुरा के गुंडा बाहुबली की जोर-जबरदस्ती के बीच में आगरे का लौंडा पिंटू शुक्ला उर्फ घनश्याम आ जाता है। फिर शुरू होती है भागदौड़, मारपीट,गोलीबारी और चाकू व तलवारबाजी। और डॉयलागबाजी भी। हिंदी फिल्मों में मनोरंजन के इन परिचित मसालों का इस्तेमाल होता रहा है। इस बार नई बात है कि उसमें अर्जुन कपूर और सोनाक्षी सिन्हा आ जाते हैं। उन्हें मनोज बाजपेयी से मुकाबला करना है। अपने तेवर के साथ प्यार का इजहार करना है।
फिल्में में कथ्य और विषय-वस्तु के तौर पर कोई नयापन नहीं है। फिर भी निर्देशक अमित रवींद्रनाथ शर्मा की प्रस्तुति रोचक है। नए कलाकारों की वजह से उत्सुकता बनी रहती है। यों लगता है कि निर्माता की तरफ से निर्देशक को स्पष्ट निर्देश है कि उन्हें एक मेकविलीब मसालेदार फिल्म में अर्जुन कपूर को फिट करना है। अमित इस निर्देश और जिम्मेदारी को बखूबी निभाते हैं। वे अर्जुन को नाचते-गातेे, मस्ती करते, जोखिम उठाते, निडर भाव से विलेन से टकराते और नायिका के साथ प्रेम करते दिखाते हैं। माना जाता है कि किसी हीरो को अगर दर्शक इन अदाओं में पसंद कर लेते हैं तो वह पॉपुलर हो जाता है। 'तेवर' का ध्येय है अर्जुन कपूर को ऐसे पॉपुलर हीरो के तौर पर स्थापित करना। जाहिर सी बात है कि इसके लिए एक दमदार विलेन भी चाहिए था। उसकी जरूरत मनोज बाजपेयी ने पूरी की है। नायिका सुंदर और नृत्य प्रवीण हैं। वक्त-बेवक्त वह हीरो के साथ गाने गाती हैं। विलेन तो उनके नृत्य से ही मुग्ध और प्रेमासिक्त हुआ है। कुल मिला कर 'तेवर' शुद्ध मसाला फिल्मों के मानदंड पर खरी उतरती है। यह दर्शकों को भरपूर आनंद देगी।
'तेवर' में निर्देशक अमित रवींद्रनाथ शर्मा ने अर्जुन कपूर और सोनाक्षी सिन्हा को पारंपरिक मसाला फिल्म के ढांचे में ही कुछ नया कर दिखाने के अवसर दिए हैं। अर्जुन कपूर भरोसेमंद एक्टर-स्टार के तौर पर उभरते हैं। उन्होंने फिल्म में खुद का सलमान खान का फैन बताया है। 'तेवर' में वे वास्तव में सलमान खान के फंस के बीच अपनी पैठ बनाने की सफल कोशिश करते हैं। सच कहें तो मनोज बाजपेयी की मौजूदगी ने फिल्म को नया आयाम दे दिया है। वे अपने अंदाज से फिल्म को घिसे-पिटे माहौल से बाहर निकाल लाते हैं। खल भूमिकाओं के लिए आवश्यक नहीं है कि आप ऊंची आवाज में चिल्लाएं या अपनी कद-काठी से आतंकित करें। मनोज अपने हाव-भाव और छोटे इशारों से ही सिहरन पैदा करते हैं।
'तेवर' में देसी टच है। पिछले दिनों साउथ की रीमेक के तौर पर बनी अन्य फिल्मों से यह इसी कारण भिन्न प्रभाव डालती है। कहानी उत्तर भारत की लगती है। कलाकारों की संवाद अदायगी में उच्चारण की स्पष्टता गौरतलब है। इसमें थिएटर के ही चार से अधिक कलाकार है। उनके सान्निध्य में अर्जुन कपूर और सोनाक्षी सिन्हा की बोली भी निखर गई है। 'तेवर' में सुब्रत दत्ता पर नजर टिकती है। वे दी गई भूमिका में प्रभावित करते हैं। महेन्द्र मेवाती भी छोटी भूमिका में असरदार हैं। इसी प्रकार अनुभवी राज बब्बर अपनी भूमिका में जंचते हैं। इस बार तो वे अपनी जमीन के किरदार में थे।
फिल्म के गीत-संगीत में ब्रज की शैली और संस्कार की ध्वनियों की कमी खलती है। कुछ गीत तो असंगत और अनावश्यक हैं।
और अंत में, 'तेवर' हिंदी सिनेमा की उस शैली की फिल्म है, जिसमें गाल पर गुलाल लगा देने से पहचान छिप जाती है। इसके बावजूद अमित शर्मा की बारीकी ध्यान खींचती है।
अवधि-159 मिनट 
*** तीन स्‍टार

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