ऊंचाइयों का डर खत्म हो गया - आयुष्मान खुराना
‘विकी डोनर’ से हिंदी फिल्मों में आए आयुष्मान खुराना की अगली फिल्म ‘हवाईजादा’ है। विभु पुरी निर्देशित ‘हवाईजादा’ पीरियड फिल्म है। यह फिल्म दुनिया के पहले विमानक के जीवन से प्रेरित है,जो गुमनाम रह गए। विभु पुरी ने विमानक शिवकर तलपडे के जीवन को ही ‘हवाईजादा’ का विषय बनाया।
-पीरियड और अपारंपरिक फिल्म ‘हवाईजादा’ के लिए हां करते समय मन में कोई संशय नहीं रहा?
0 मेरी पहली फिल्म ‘विकी डोनर’ अपारंपरिक फिल्म थी। कांसेप्ट पर आधारित उस फिल्म को दर्शकों और समीक्षकों की सराहना मिली थी। बीच में मैंने दो कंवेशनल फिल्में कीं। फिर मुझे एहसास हुआ कि मुझे ऐसी ही फिल्म करनी चाहिए,जिसमें स्क्रिप्ट ही हीरो हो। इसी कारण मैं लगातार दो ऐसी फिल्में कर रहा हूं। पहली बार मैं कुछ ज्यादा अलग करने की कोशिश कर रहा हूं। एक मराठी किरदार निभा रहा हूं।
- शिवकर तलपडे के किरदार के बारे में क्या बताना चाहेंगे? और उन्हें पर्दे पर कैसे निभाया?
0 शिवकर तलपडे ने राइट बंधुओं से पहले विमान उड़ाया था। यह सुनते ही मेरे पैरों तले की जमीन खिसक गई थी। पहले मैंने विभु पुरी के बारे में पता किया। पता चला कि वे बड़े होनहार डायरेक्टर हैं। उनकी स्टूडेंट फिल्म ऑस्कर के लिए नॉमिनेट हुई थी। हिंदी भाषा पर उनकी गजब की पकड़ है। मैंने विभु से उनकी सनक ली और सौरभ भावे से उनकी मराठी। अपना चार्म भी डाल दिया। इस तरह शिवकर तलपडे तैयार हो गए। हर बॉयोपिक का रेफरेंस होता है। तलपडे की कोई जानकारी नहीं मिलती। इसका फायदा मिला कि डायरेक्टर के साथ मिल कर मैंने खूबसूरत दुनिया तैयार की। मेरे स्टाफ मराठी हैं। उन्हें हिदायत दे रखी थी कि वे मुझ से मराठी में ही बातें करें। मराठी सुनने से भाषा की पकड़ बढ़ी।
-विभु पुरी के अप्रोच को कैसे देखते हैं?
0 विभु बिल्कुल अलग डायरेक्टर हैं। श्ुाजीत सरकार की फिल्में रियल स्पेस में होती हैं। विभु उनके विपरीत हैं। विभु फैंटेसी में यकीन रखते हैं। वे मेरे यंगेस्ट डायरेक्टर हैं। परफेक्शनिस्ट हैं। सही चीज नहीं मिलती तो लगे रहते हैं। बारीकियों पर ध्यान देते हैं। ‘हवाईजादा’ के ट्रेलर से झलक तो मिल ही गई है।
-जोरदार एंट्री मारी थी आप ने। उस सफलता से क्या सीखा आप ने?
0 सफलता बहुत ही खराब शिक्षक है। असफलता सिखाती है। मैंने अपनी जिंदगी में रिजेक्शन ही रिजेक्शन झेले हैं। इसलिए बीच की दो फिल्मों के न चलने से ज्यादा निराशा नहीं हुई है। मेरे दोस्त पुराने ही हैं। नए दोस्त नहीं के बराबर हैं। वे मुझे जमीन पर रखते हैं। शुजीत सरकार और आदित्य चोपड़ा मेरे मेंटोर हैं। जॉ अब्राहम को दोस्त कह सकता हूं। विभु शांत स्वभाव के दोस्त हैं।
-पीरियड फिल्म में नेशनल फीलिंग भी डाली गई है। इस रुझान से आप कितने सहमत हैं?
0 इस विषय पर विभु से मेरी बातें हुई हैं। विभु प्रो-नेशनिलिज्म हैं। मैं चाहता था कि शिवकर के विमान उड़ाने की सनक तक हम सीमित रहें। विभु की सोच व्यापक थी। उन्होंने कहा कि अगर विमान उड़ाते हुए शिवकर अगर कहे कि मैं पहला आजाद हिंदुस्तानी हूं तो क्या दिक्कत है। अंग्रेजों का राज जमीन पर था। वह उड़ गया तो खुद को आजाद मान बैठा। ट्रेलर देख कर राय न निकालें। फिल्म में विमान की बातें ज्यादा हैं। वैसे राष्ट्रवाद उस दौर के अनुकूल है और आज भी प्रासंगिक है।
-आप बाहर से आए हैं। क्या आप को समान अवसर मिल रहे हैं?
0 हां,मिले और मिल रहे हैं। मेरी खुशनसीबी है कि मैं आउटसाइडर हूं। मेरे जैसा मजा इनसाइडर को नहीं मिल सकता। तमाम रिजेक्शन के बाद आप को बेस्ट डेब्यू पुरस्कार मिल रहे हैं। खाली हाथ आकर मैंने इतना पा लिया है। हां,मालूम है कि हर फिल्म में साबित करना होगा। यही तो चुनौती है। सही जगह पर सही समय में पहुंचा। और अब अवसर मिल रहे हैं। मेरे चुनाव सही या गलत होते रहेंगे। 2007 में एक पागलपन के साथ मुंबई आया था। वह आज भी बरकरार है।
-‘हवाईजादा’ का कोई खास अनुभव जो साथ रह गया हो?
0 ऊंचाइयों का डर खत्म हो गए। 40 फीट की ऊंचाई पर 15 टेक दिए। हर बार लगता था कि सुरक्षा के बावजूद कुछ भी हो सकता है। फिल्म में काफी समय जमीन से ऊपर रहा।
-स्टार होने के बाद क्या आनंद आ रहा है?
0 फिल्ममेकिंग का ट्रैवलिंग पार्ट बहुत एंज्वॉय करता हूं। शूट के दौरान हमारा इतना खयाल रखा जाता है। सच्ची हमार आदतें खराब हो जाती हैं।
-पीरियड और अपारंपरिक फिल्म ‘हवाईजादा’ के लिए हां करते समय मन में कोई संशय नहीं रहा?
0 मेरी पहली फिल्म ‘विकी डोनर’ अपारंपरिक फिल्म थी। कांसेप्ट पर आधारित उस फिल्म को दर्शकों और समीक्षकों की सराहना मिली थी। बीच में मैंने दो कंवेशनल फिल्में कीं। फिर मुझे एहसास हुआ कि मुझे ऐसी ही फिल्म करनी चाहिए,जिसमें स्क्रिप्ट ही हीरो हो। इसी कारण मैं लगातार दो ऐसी फिल्में कर रहा हूं। पहली बार मैं कुछ ज्यादा अलग करने की कोशिश कर रहा हूं। एक मराठी किरदार निभा रहा हूं।
- शिवकर तलपडे के किरदार के बारे में क्या बताना चाहेंगे? और उन्हें पर्दे पर कैसे निभाया?
0 शिवकर तलपडे ने राइट बंधुओं से पहले विमान उड़ाया था। यह सुनते ही मेरे पैरों तले की जमीन खिसक गई थी। पहले मैंने विभु पुरी के बारे में पता किया। पता चला कि वे बड़े होनहार डायरेक्टर हैं। उनकी स्टूडेंट फिल्म ऑस्कर के लिए नॉमिनेट हुई थी। हिंदी भाषा पर उनकी गजब की पकड़ है। मैंने विभु से उनकी सनक ली और सौरभ भावे से उनकी मराठी। अपना चार्म भी डाल दिया। इस तरह शिवकर तलपडे तैयार हो गए। हर बॉयोपिक का रेफरेंस होता है। तलपडे की कोई जानकारी नहीं मिलती। इसका फायदा मिला कि डायरेक्टर के साथ मिल कर मैंने खूबसूरत दुनिया तैयार की। मेरे स्टाफ मराठी हैं। उन्हें हिदायत दे रखी थी कि वे मुझ से मराठी में ही बातें करें। मराठी सुनने से भाषा की पकड़ बढ़ी।
-विभु पुरी के अप्रोच को कैसे देखते हैं?
0 विभु बिल्कुल अलग डायरेक्टर हैं। श्ुाजीत सरकार की फिल्में रियल स्पेस में होती हैं। विभु उनके विपरीत हैं। विभु फैंटेसी में यकीन रखते हैं। वे मेरे यंगेस्ट डायरेक्टर हैं। परफेक्शनिस्ट हैं। सही चीज नहीं मिलती तो लगे रहते हैं। बारीकियों पर ध्यान देते हैं। ‘हवाईजादा’ के ट्रेलर से झलक तो मिल ही गई है।
-जोरदार एंट्री मारी थी आप ने। उस सफलता से क्या सीखा आप ने?
0 सफलता बहुत ही खराब शिक्षक है। असफलता सिखाती है। मैंने अपनी जिंदगी में रिजेक्शन ही रिजेक्शन झेले हैं। इसलिए बीच की दो फिल्मों के न चलने से ज्यादा निराशा नहीं हुई है। मेरे दोस्त पुराने ही हैं। नए दोस्त नहीं के बराबर हैं। वे मुझे जमीन पर रखते हैं। शुजीत सरकार और आदित्य चोपड़ा मेरे मेंटोर हैं। जॉ अब्राहम को दोस्त कह सकता हूं। विभु शांत स्वभाव के दोस्त हैं।
-पीरियड फिल्म में नेशनल फीलिंग भी डाली गई है। इस रुझान से आप कितने सहमत हैं?
0 इस विषय पर विभु से मेरी बातें हुई हैं। विभु प्रो-नेशनिलिज्म हैं। मैं चाहता था कि शिवकर के विमान उड़ाने की सनक तक हम सीमित रहें। विभु की सोच व्यापक थी। उन्होंने कहा कि अगर विमान उड़ाते हुए शिवकर अगर कहे कि मैं पहला आजाद हिंदुस्तानी हूं तो क्या दिक्कत है। अंग्रेजों का राज जमीन पर था। वह उड़ गया तो खुद को आजाद मान बैठा। ट्रेलर देख कर राय न निकालें। फिल्म में विमान की बातें ज्यादा हैं। वैसे राष्ट्रवाद उस दौर के अनुकूल है और आज भी प्रासंगिक है।
-आप बाहर से आए हैं। क्या आप को समान अवसर मिल रहे हैं?
0 हां,मिले और मिल रहे हैं। मेरी खुशनसीबी है कि मैं आउटसाइडर हूं। मेरे जैसा मजा इनसाइडर को नहीं मिल सकता। तमाम रिजेक्शन के बाद आप को बेस्ट डेब्यू पुरस्कार मिल रहे हैं। खाली हाथ आकर मैंने इतना पा लिया है। हां,मालूम है कि हर फिल्म में साबित करना होगा। यही तो चुनौती है। सही जगह पर सही समय में पहुंचा। और अब अवसर मिल रहे हैं। मेरे चुनाव सही या गलत होते रहेंगे। 2007 में एक पागलपन के साथ मुंबई आया था। वह आज भी बरकरार है।
-‘हवाईजादा’ का कोई खास अनुभव जो साथ रह गया हो?
0 ऊंचाइयों का डर खत्म हो गए। 40 फीट की ऊंचाई पर 15 टेक दिए। हर बार लगता था कि सुरक्षा के बावजूद कुछ भी हो सकता है। फिल्म में काफी समय जमीन से ऊपर रहा।
-स्टार होने के बाद क्या आनंद आ रहा है?
0 फिल्ममेकिंग का ट्रैवलिंग पार्ट बहुत एंज्वॉय करता हूं। शूट के दौरान हमारा इतना खयाल रखा जाता है। सच्ची हमार आदतें खराब हो जाती हैं।
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