डराना सबको नहीं आता: बिपाशा बसु
-अजय ब्रह्मात्मज
भूषण पटेल की फिल्म ‘अलोन’ के ट्रेलर, गाने और दृश्यों की सोशल मीडिया पर बहुत तारीफ हो रही है। इस फिल्म का ट्रेलर आने के साथ बिपाशा के समकालीन कलाकारों ने आगे बढक़र उनकी तारीफ की और फिल्म के बारे में ट्विट किया। हाल-फिलहाल में किसी हीरोइन की फिल्म को ऐसी प्रशंसा नहीं मिली है। फिल्म इंडस्ट्री के इस रवैये से बिपाशा खुश हैं। उन्हें लगता है कि यह फिल्म दर्शकों को भी वैसी ही पसंद आएगी। वह बताती हैं, ‘अभिषेक, शाह रुख और दूसरे सभी दोस्तों ने ‘अलोन’ का ट्रेलर देखने के बात एक ही बात लिखी कि अब बिपाशा से ‘अलोन’ नहीं मिलना है। उनकी इस तारीफ से मैं बहुत उत्साहित हूं। मैंने अपने दोस्तों से कहा भी अगर सभी ने अकेले में मुझसे मिलना बंद कर दिया तो मैं बहुत अकेली हो जाऊंगी। मुझे खुशी है कि यह ट्रेलर आम दर्शकों से लेकर मेरे आस पास के लोगों तक पसंद किया जा रहा है। सभी जानते हैं कि हॉरर फिल्मों के सीमित दर्शक होते हैं, लेकिन इस बार लग रहा है कि ‘अलोन’ पहले की सारी सीमाएं तोड़ देगी। अगर यह फिल्म ढंग से चल जाए तो हॉरर फिल्मों के लिए बड़ा कदम होगा। हॉरर जॉनर के लिए बहुत अच्छी बात होगी।’
हिंदी फिल्मों में हॉरर जॉनर को थोड़ी नीची नजर से देखा जाता है। माना जाता है कि इसमें बी-ग्रेड के डायरेक्टर और एक्टर शामिल होते हैं। हॉलीवुड में हॉरर फिल्मों का एक बड़ा बाजार है। उन फिल्मों को पूरी दुनिया में लोग पसंद करते हैं। हिंदी फिल्मों में इसकी दोयम स्थिति क्यों है? बिपाशा स्पष्ट शब्दों में कहती हैं, ‘हॉरर सभी के बूते की बात नहीं है। भारत में बहुत कम लोगों ने इस जॉनर में सफलता हासिल की है। हाल-फिलहाल में विक्रम भट्ट के बाद भूषण पटेल का नाम ले सकते हैं। गौर करें तो इस जॉनर में अनंत संभावनाएं हैं। हॉरर का मतलब पर्दे पर सिर्फ डर क्रिएट करना नहीं होता है। डर तो उसका मुख्य भाव होता है। बाकी अन्य कहानियां भी चलती रहती हैं। ‘अलोन’ में ‘राज’ और ‘राज 3’ की तरह एक प्रेम कहानी है। हॉरर में इमोशन के साथ स्पेशल इफेक्ट का बहुत ज्यादा काम होता है। ऐसी फिल्म की शूटिंग की प्लैनिंग बहुत बारीकी से करनी पड़ती है। मैं तो कहूंगी कि हॉरर फिल्म को कमतर मानने वाले लोग बेवकूफ होते हैं।’
बिपाशा हॉरर फिल्मों के चुनाव और उनमें अभिनय के अनुभवों के बारे में पूछने पर बेहिचक बताती हैं, ‘बतौर अभिनेत्री मेरे लिए जॉनर से अधिक महत्वपूर्ण कहानी होती है। हिंदी फिल्मों में भेड़चाल कुछ अधिक है। किसी एक जॉनर की कोई फिल्म चल जाती है तो वैसी ही फिल्मों के ऑफर आने लगते हैं। क्या आप यकीन करेंगे कि किसी समय मुझे 70 हॉरर फिल्मों के ऑफर मिले थे। अगर मैं सारी कहानियां पढ़ती तो डर से मेरी रातों की नींद चली जाती। हॉरर फिल्मों से बनती इमेज को तोडऩे के लिए ही मैंने ‘हमशकल्स’ की थी। मेरे सहयोगियों ने कहा था कि मुझे अपनी फिल्मों में कुछ गाने भी करने चाहिए। वह मेरे लिए कुंए से निकल कर खाई में गिरने जैसा हो गया। इस गलती से मैं बहुत पछताई। अब मुझे अपनी मर्जी का ही काम करना है। फिल्म इंडस्ट्री में 14 साल पूरे हो गए हैं। अभी मैं जैसी फिल्में कर रही हूं, उनसे खुश हूं। ‘आत्मा’ भले ही नहीं चली, लेकिन उस फिल्म का अनुभव बहुत अच्छा रहा। पर्दे पर मैंने पहली बार मां का रोल किया था। अभिनेत्री के तौर पर मुझे बहुत कुछ करने को मिला। ‘राज 3’ मेरे लिए बहुत अच्छा अनुभव था। उस फिल्म के द्रम्यान मैंने व्यक्तिगत तौर पर बहुत कुछ सीखा और समझा। दर्शकों को एंटरटेन करने के साथ मुझे अपना विकास भी तो चाहिए।’
बिपाशा बसु ने तय किया था कि वे तुरंत कोई हॉरर फिल्म नहीं करेंगी। इस फिल्म का ऑफर लेकर जब कुमार मंगत पाठक जब उनसे मिले तो उन्होंने पहली बार तो मना कर दिया। फिर उनके जोर डालने पर स्क्रिप्ट पढ़ी तो लगा कि यह फिल्म कर लेनी चाहिए। कारण पूछने पर वे कहती हैं, ‘सबसे पहले तो यह एक प्रेम कहानी है। उसके साथ यह जुड़ी हुई जुड़वां बहनों की कहानी है। कहानी आगे बढ़ती है, जिसमें एक की मौत हो जाती है। दोनों बहनों को एक ही लडक़े से प्रेम था। संजना और अंजना दोनों बहनें कबीर को पाना चाहती थीं। उनके बीच की मुहब्बत इसी तकरार से दरकने लगती है। बाद में यह कहानी प्रेम त्रिकोण बन जाती है, जिसमें एक लडक़ी जिंदा है और दूसरे की मौत हो चुकी है। इसके अलावा इस फिल्म में आधुनिक पति-पत्नी के संबंधों को भी एक्सप्लोर किया गया है। समय बदलने के साथ दांपत्य में अनेक तरह की दिक्कतें आ गई हैं। ब्याह के बाद प्रेम की नदी सूख जाती है तो फिर से रोमांस का बहाव लाना कितना मुश्किल होता है? इस फिल्म में रोमांच के साथ रहस्य भी है।’
बिपाशा के लिए इस फिल्म की भूमिका थोड़ी चैलेंजिंग रही, क्योंकि उन्हें कई बार साथ-साथ जीवित और मृत लड़कियों की भूमिकाएं निभानी पड़ीं। एक शॉट देने के बाद तुरंत मेकअप और गेटअप बदलना पड़ता था। साथ ही अपने प्रेम के भाव को घ़ृणा और ईष्या में लाना पड़ता था। उनके लिए इमोशनली यह चैलेंजिंग काम था। फिल्म में पहली बार काम कर रहे करण सिंह ग्रोवर के साथ भी उन्हें मैच करना था। बिपाशा पूरे संतोष के साथ कहती हैं, ‘यकीन करें, फिल्म बहुत अच्छी बन गई है। हम दोनों के बीच की केमिस्ट्री बहुत हॉट है। यही उम्मीद है कि मेरे दर्शक इसे पसंद करेंगे।’
हिंदी फिल्मों में हॉरर जॉनर को थोड़ी नीची नजर से देखा जाता है। माना जाता है कि इसमें बी-ग्रेड के डायरेक्टर और एक्टर शामिल होते हैं। हॉलीवुड में हॉरर फिल्मों का एक बड़ा बाजार है। उन फिल्मों को पूरी दुनिया में लोग पसंद करते हैं। हिंदी फिल्मों में इसकी दोयम स्थिति क्यों है? बिपाशा स्पष्ट शब्दों में कहती हैं, ‘हॉरर सभी के बूते की बात नहीं है। भारत में बहुत कम लोगों ने इस जॉनर में सफलता हासिल की है। हाल-फिलहाल में विक्रम भट्ट के बाद भूषण पटेल का नाम ले सकते हैं। गौर करें तो इस जॉनर में अनंत संभावनाएं हैं। हॉरर का मतलब पर्दे पर सिर्फ डर क्रिएट करना नहीं होता है। डर तो उसका मुख्य भाव होता है। बाकी अन्य कहानियां भी चलती रहती हैं। ‘अलोन’ में ‘राज’ और ‘राज 3’ की तरह एक प्रेम कहानी है। हॉरर में इमोशन के साथ स्पेशल इफेक्ट का बहुत ज्यादा काम होता है। ऐसी फिल्म की शूटिंग की प्लैनिंग बहुत बारीकी से करनी पड़ती है। मैं तो कहूंगी कि हॉरर फिल्म को कमतर मानने वाले लोग बेवकूफ होते हैं।’
बिपाशा हॉरर फिल्मों के चुनाव और उनमें अभिनय के अनुभवों के बारे में पूछने पर बेहिचक बताती हैं, ‘बतौर अभिनेत्री मेरे लिए जॉनर से अधिक महत्वपूर्ण कहानी होती है। हिंदी फिल्मों में भेड़चाल कुछ अधिक है। किसी एक जॉनर की कोई फिल्म चल जाती है तो वैसी ही फिल्मों के ऑफर आने लगते हैं। क्या आप यकीन करेंगे कि किसी समय मुझे 70 हॉरर फिल्मों के ऑफर मिले थे। अगर मैं सारी कहानियां पढ़ती तो डर से मेरी रातों की नींद चली जाती। हॉरर फिल्मों से बनती इमेज को तोडऩे के लिए ही मैंने ‘हमशकल्स’ की थी। मेरे सहयोगियों ने कहा था कि मुझे अपनी फिल्मों में कुछ गाने भी करने चाहिए। वह मेरे लिए कुंए से निकल कर खाई में गिरने जैसा हो गया। इस गलती से मैं बहुत पछताई। अब मुझे अपनी मर्जी का ही काम करना है। फिल्म इंडस्ट्री में 14 साल पूरे हो गए हैं। अभी मैं जैसी फिल्में कर रही हूं, उनसे खुश हूं। ‘आत्मा’ भले ही नहीं चली, लेकिन उस फिल्म का अनुभव बहुत अच्छा रहा। पर्दे पर मैंने पहली बार मां का रोल किया था। अभिनेत्री के तौर पर मुझे बहुत कुछ करने को मिला। ‘राज 3’ मेरे लिए बहुत अच्छा अनुभव था। उस फिल्म के द्रम्यान मैंने व्यक्तिगत तौर पर बहुत कुछ सीखा और समझा। दर्शकों को एंटरटेन करने के साथ मुझे अपना विकास भी तो चाहिए।’
बिपाशा बसु ने तय किया था कि वे तुरंत कोई हॉरर फिल्म नहीं करेंगी। इस फिल्म का ऑफर लेकर जब कुमार मंगत पाठक जब उनसे मिले तो उन्होंने पहली बार तो मना कर दिया। फिर उनके जोर डालने पर स्क्रिप्ट पढ़ी तो लगा कि यह फिल्म कर लेनी चाहिए। कारण पूछने पर वे कहती हैं, ‘सबसे पहले तो यह एक प्रेम कहानी है। उसके साथ यह जुड़ी हुई जुड़वां बहनों की कहानी है। कहानी आगे बढ़ती है, जिसमें एक की मौत हो जाती है। दोनों बहनों को एक ही लडक़े से प्रेम था। संजना और अंजना दोनों बहनें कबीर को पाना चाहती थीं। उनके बीच की मुहब्बत इसी तकरार से दरकने लगती है। बाद में यह कहानी प्रेम त्रिकोण बन जाती है, जिसमें एक लडक़ी जिंदा है और दूसरे की मौत हो चुकी है। इसके अलावा इस फिल्म में आधुनिक पति-पत्नी के संबंधों को भी एक्सप्लोर किया गया है। समय बदलने के साथ दांपत्य में अनेक तरह की दिक्कतें आ गई हैं। ब्याह के बाद प्रेम की नदी सूख जाती है तो फिर से रोमांस का बहाव लाना कितना मुश्किल होता है? इस फिल्म में रोमांच के साथ रहस्य भी है।’
बिपाशा के लिए इस फिल्म की भूमिका थोड़ी चैलेंजिंग रही, क्योंकि उन्हें कई बार साथ-साथ जीवित और मृत लड़कियों की भूमिकाएं निभानी पड़ीं। एक शॉट देने के बाद तुरंत मेकअप और गेटअप बदलना पड़ता था। साथ ही अपने प्रेम के भाव को घ़ृणा और ईष्या में लाना पड़ता था। उनके लिए इमोशनली यह चैलेंजिंग काम था। फिल्म में पहली बार काम कर रहे करण सिंह ग्रोवर के साथ भी उन्हें मैच करना था। बिपाशा पूरे संतोष के साथ कहती हैं, ‘यकीन करें, फिल्म बहुत अच्छी बन गई है। हम दोनों के बीच की केमिस्ट्री बहुत हॉट है। यही उम्मीद है कि मेरे दर्शक इसे पसंद करेंगे।’
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