बस अच्छी फिल्में करनी है - अनुष्का शर्मा
फिल्मों के चयन में काफी एहतियात बरतती हैं अनुष्का शर्मा। 'पीके' में
आमिर खान के साथ काम करके वह हैं काफी उत्साहित हैं। अजय ब्रह्मात्मज से
साक्षात्कार के अंश...
आपको इस बात का इल्म कब हुआ कि आप असल में अपने करियर से क्या चाहती हैं?
मुझे पिछले दो-तीन सालों में इस बात का एहसास हुआ कि मुझे अपने करियर से
चाहिए क्या? उन सालों में मैंने चार फिल्में की। सब में अलग-अलग टाइप के
रोल थे। अलग-अलग और अपनी-अपनी किस्सागोई में महारथी निर्देशकों के संग काम
करने का मौका मिला। वहां से मुझे लगने लगा कि मुझे क्या करना है। मैंने तय
कर लिया कि मुझे सिर्फ अच्छी फिल्में ही करनी हैं और अच्छे-अच्छे
निर्देशकों के संग काम करना है।
यह एहसास सफलता से हुआ। अगर आप सफल न हुई होतीं तो ऐसा एहसास हो पाता?
असफल रहने पर भी मैं ऐसी ही रहती। मेरे ख्याल से मैं ऐसी हूं तभी मुझे
सफलता मिली है। मैंने वह सब नहीं किया, जो बहुत सारे लोगों ने मुझे सजेस्ट
किया। वह भी तब, जब मैं रेस में भाग रही थी। यही वजह है कि पिछले छह सालों
में मेरी फिल्मों का आंकड़ा डबल डिजिट में नहीं है। अब जब मैं इंडस्ट्री
में अच्छी पोजीशन में हूं, फिर भी मैं उसका बेजा इस्तेमाल नहीं कर रही हूं।
कोई मुझसे बोले कि यार तुम्हें साल में तीन फिल्में करनी चाहिए या फिर कोई
कहे कि यह प्रोजेक्ट बड़ा है तो वह मुझसे नहीं हो सकेगा।
फिल्म प्रोड्यूस करने का ख्याल कहां से दिमाग में आया?
मेरे दिमाग में था कि अच्छी फिल्मों को सपोर्ट करना है। जब मेरे पास
'एनएच-10" की स्क्रिप्ट आई तब मुझे लगा कि सही समय आ गया है। सच कहूं तो
अपनी जिंदगी के बड़े फैसले आप किस तरह से ले लेते हैं, आपको पता नहीं चलता।
ये फैसले इंस्टिंक्ट से आते हैं, ज्यादा सोच-समझकर नहीं आते। मैं
'एनएच-10' की स्क्रिप्ट पढ़ रही थी तो मैंने अपने मैनेजर से बात की कि क्या
मुझे यह फिल्म प्रोड्यूस करनी चाहिए। उसे हैरानी हुई। उसने पूछा भी कि
अचानक ऐसा ख्याल क्यों आया दिमाग में। मैंने जवाब दिया कि मुझे ऐसी ही
फिल्म से फिल्म निर्माण में कदम रखना है। एक तो मैं कहानी से काफी कनेक्टेड
फील कर रही थी। दूसरी चीज मुझे लगी कि अगर मैं बतौर एक्टर इस फिल्म के साथ
काफी अंदर तक इन्वॉल्व हो रही हूं तो क्यों न इसे प्रोड्यूस ही किया जाए।
पारंपरिक सोच तो कहती है कि अभिनेत्रियां तब प्रोडक्शन में उतरती हैं, जब उनका करियर ढलान पर होता है। अब जरूर यह बदलाव आया है कि आपकी जेनरेशन रिस्क लेने में कोताही नहीं करती। अब उस रिस्क को सपोर्ट करने वाला सिस्टम भी स्ट्रॉन्ग हुआ है...
जी हां, मुझे पता ही नहीं था कि मैं क्या कर रही हूं। वक्त के साथ चीजें
बेहतर होती गईं। आज की जेनरेशन जोखिम लेना पसंद करती है। वे चाहे वरुण हों,
सिद्धार्थ या रणवीर सिंह हों। सब अलग-अलग किस्म की फिल्में कर रहे हैं।
किरदार में डूबने के लिए वे किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं।
'पीके' के बारे में कुछ बताना चाहेंगी? आपके गेटअप की काफी चर्चा है? फिल्म में आपके किरदार का रोमांस किसके संग है, आमिर या सुशांत?
आपको ट्रेलर से जो कुछ लग रहा है, वही है। एक रोमांटिक एंगल है सुशांत के
साथ। लुक वाकई काफी रोचक है। ढेर सारे लोगों ने उसकी तारीफ की है। राजू सर
ने पहले ही दिन कह दिया था कि मैं तुम्हें बिल्कुल डिफ्रेंट लुक में
प्रजेंट करने वाला हूं। मैं खुशी से फूली नहीं समा रही थी कि वाह अलग-अलग
अवतार एक ही फिल्म में देखने का मौका मिलेगा। हेयरस्टाइल को लेकर एक लंबा
प्रॉसेस था। ढेर सारी स्टाइल अटेंप्ट की गई। लोग मुझे कह रहे हैं कि तुम
बड़ी फ्रेश लग रही हो। सोने पे सुहागा यह कि मेरा लुक लड़कियों को बहुत
पसंद आ रहा है। लड़कियों के लिए बड़ी हिम्मत की बात होती है कि वे अपने
लंबे-घने बालों पर कैंची चलने दें।
यह रोल कैसे मिला और राज कुमार हिरानी के संग काम करने का अनुभव कैसा रहा?
दो-तीन साल पहले मैं 'रॉकस्टार' की स्क्रीनिंग पर गई थी। वहां मुझे राजू सर
मिल गए। उन्हें मेरी 'बैंड बाजा बारात' अच्छी लगी थी तो वे 'पीके' के लिए
मुझे कास्ट करना चाहते थे। उन्होंने मुझसे कहा कि मैं एक फिल्म की
स्क्रिप्ट और कास्टिंग पर काम कर रहा हूं। अगले दिन उन्होंने कहा कि फिल्म
में तुम्हारा लंबा रोल है। यह मैंने अपनी बीवी के कहने पर किया है। वह कहा
करती है कि तुम्हारी फिल्मों में सारा क्रेडिट हीरो ही लेता है। हीरोइन का
रोल सिग्निफिकेंट होता तो है, मगर वह लंबा नहीं रहता। इस बार मैंने उसकी वह
शिकायत दूर कर दी है। यह सुनकर तो मेरी बांछें खिल गई। उनके संग काम करने
का मजा इसलिए भी आता है कि वह औसत दर्जे का काम नहीं करते। मैं ऐसे लोगों
की बड़ी इज्जत करती हूं। उनका सबसे बेस्ट पार्ट है उनकी स्टोरी। उस पर उनकी
कमांड बहुत तगड़ी है। कहानी के अलावा तो वे कुछ और सोचते ही नहीं। सिक्स
पैक, ऐट पैक या लैविश लोकेशन इत्यादि कुछ भी नहीं। उनका सारा जोर कहानी पर
होता है, उससे वे भटकते नहीं। उनके दिमाग में कहीं से 100 या 200 करोड़
क्लब की फिल्में बनाने को लेकर प्लानिंग नहीं रहती। उनके साथ काम करते वक्त
आपको लगेगा कि आप पार्ट हो किसी बहुत बड़ी चीज का। वह बात बहुत कम
फिल्मकारों के संग मिलती है। आप बाकी चीजों को भूल जाएं कि आमिर खान हैं
फिल्म में। 'पीके' ऐसी फिल्म है, जिसे मैं अपने बच्चों को गर्व की अनुभूति
के साथ दिखा सकती हूं।
'पीके' में आपके किरदार का नाम जगत जननी है। क्या है वह एक्चुअली? आमिर खान के संग काम करने के अनुभव को कैसे बयां करेंगी?
किरदार के बारे में ज्यादा कुछ तो नहीं बता सकूंगी। आमिर से आप मिलते ही
अंदाजा लगा लेते हो कि वे बहुत शार्प हैं। उनकी मेमोरी कमाल की है। उसी से
उनका बिहेवियर झलकता है। उनकी इंटेलिजेंस का पता चलता है। मैं तो आमिर की
बहुत बड़ी फैन रही हूं। उन्होंने 'जो जीता वही सिकंदर' में जब आएशा जुल्का
के साथ 'पहला नशा' किया था, मैं तो वहीं से उन पर लट्टू थी। अब जब 'पीके'
में उनके संग काम करने का मौका मिला तो मेरे पांव तो जमीं पर थे ही नहीं।
...और सुशांत सिंह राजपूत के बारे में क्या कहना चाहेंगी?
उनकी एनर्जी कमाल की है। सबसे बड़ी बात है कि वे जिस किस्म की फिल्में चुन
रहे हैं, उनसे साफ है कि फिल्मों को लेकर उनकी समझ और सोच कितनी हाई है। वह
भी शूटिंग कर चुपचाप घर निकल जाते हैं। लो प्रोफाइल रहना उन्हें पसंद है।
वे काम पर पूरा फोकस रखते हैं। अच्छी बात यह हुई कि सेट पर हम दोनों की
फ्रीक्वेंसी मैच हुई। उससे बेस्ट काम निकला।
बॉलीवुड में आपकी जर्नी कितनी संतोषजनक है? युवती होने की वजह से ऐसा कभी लगा कि कोई रोड़े अटका रहा है?
अपेक्षा से बढ़कर। खुशी, गर्व और संतुष्टि की अनुभूति है। एक्ट्रेस के लेवल से बोलूं तो मुझे 'विमेन सेंट्रिक रोल' शब्दावली से नफरत है। आप रितिक की फिल्म को हीरो सेंट्रिक थोड़े न कहते हैं तो फिर यह विशेषण हमारे ही साथ क्यों!
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