दरअसल : 2014 की मेरी पसंद की 12 फिल्में


-अजय ब्रह्मात्मज
2014 समाप्त हो गया। कल आखिरी शुक्रवार होगा। अनुराग कश्यप की ‘अग्ली’ रिलीज होगी। पहले तय था कि उनकी ‘बांबे वेलवेट’ क्रिसमस के मौके पर रिलीज होगी। पोस्ट प्रोडक्शन में लग रहे समय की वजह से अब यह फिल्म मई में रिलीज होगी। पिछले हफ्ते राजकुमार हिरानी की ‘पीके’ रिलीज होने के साथ प्रशंसित हुई। गौर करें तो 2014 में भी फिल्मों का हाल कमोबेश 2013 रके समान ही रहा। च्यादातर बड़े और लोकप्रिय स्टारों ने मसाला एंटरटेनर फिल्में ही कीें। अपनी बढ़त और पोजीशन बनाए रखने की फिक्र में पॉपुलर स्टार हमेशा की तरह लकीर के फकीर बने रहे। स्थापित डायरेक्टरों का भी यही हाल रहा। उन्होंने भी लकीर छोडऩे का साहस नहीं किया। अच्छी बात है कि फिर भी कुछ बेहतरीन और उल्लेखनीय फिल्में 2014 में प्रदर्शित हुईं। उनमें से कुछ को कामयाबी और तारीफ दोनों मिली और कुछ केवल सराही गईं। याद करें तो हम समय गुजरने के साथ यह भूल जाते हैं कि रिलीज के समय किस फिल्म ने कितना बिजनेस किया था। हमें बेहतरीन फिल्में ही याद रह जाती हैं। 2014 की रिलीज फिल्मों में से अपनी पसंद  12 फिल्में चुनना अधिक मुश्किल काम नहीं रहा।
1. हाईवे - इम्तियाज अली निर्देशित हाईवे में अमीर परिवार की एक लडक़ी की आजादी की छटपटाहट को आलिया भट्ट ने सलीके से निभाया था। इम्तियाज अली की यह फिल्म किसी साहित्यिक कहानी की तरह असरदार है। रणदीप हुडा को भी इस फिल्म से बतौर अभिनेता गाढ़ी पहचान मिली।
2 .क्वीन - विकास बहल की क्वीन ने दर्शकों को चौंका दिया था। इस फिल्म में कंगना रनोट ने छोटे शहर की कंफीडेंट लडक़ी के किरदार में अनेक लड़कियों की भावनाओं और जोश को अभिव्यक्ति दी थी। सच्चाई यही है कि इस फिल्म को सबसे ज्यादा किशोरियों और युवतियों ने देखा है।
3.आंखों देखी - रजत कपूर की सीमित बजट की यह फिल्म विषय के अनोखेपन के साथ संजय मिश्र के अभिनय के लिए भी याद रखी जाएगी। रजत कपूर ने इस फिल्म के वास्तविक चित्रण में हिंदी सिनेमा के प्रचलित ग्रामर को तोड़ा।
4.हवा हवाई - अमोल गुप्ते बच्चों की भावनाओं के चितेरे हैं। उन्होंने हवा हवाई में बाल मन की आकांक्षाओं की उड़ान को आकाश दिया है। लगन,जोश और समर्पण किसी वर्ग या समूह विशेष की पूंजी नहीं है। समान अवसर मिलने पर समाज के निचले तबके के बच्चे भी कमाल परिणाम दे सकते हैं।
5.सिटीलाइट्स - हंसल मेहता की यह फिल्म फिलीपिंस की फिल्म की रिमेक थी,लेकिन उन्होंने इसका अद्भुत स्थानिकीकरण किया था। राजकुमार राव और पत्रलेखा के स्वाभाविक अभिनय से यह फिल्म अत्यंत रियल नजर आती है।
6. फिल्मिस्तान - नितिन कक्कड़ की फिल्मिस्तान बन जाने के बहुत बाद रिलीज हुई। शारिब हाशमी और इनामुल हक की अदाकारी से लैस इस फिल्म में भारत-पाकिस्तान के रिश्ते में फिल्मी धागे की मजबूती को अच्छी तरह चित्रित किया था।
7.बॉबी जासूस - समर शेख की यह फिल्म हैदराबाद की पृष्ठभूमि में एक मुस्लिम परिवार की लडक़ी बॉबी के सपनों की कहानी कहती है। 21 वीं सदी के मुस्लिम सोशल में किरदारों के रवैए और चित्रण में आए परिवत्र्तन को यह फिल्म आत्मसात करती है।
8.मैरी कॉम - ओमंग कुमार की मैरी कॉम प्रियंका चोपड़ा की प्रतिभा और मैरी कॉम की जिदंगी का फिल्मी साक्ष्य है। वास्तव में यह दो युवतियों की सफलता की कहानी बन जाती है।  नार्थ ईस्ट के किरदार और जमीन को मेनस्ट्रीम में लाने के लिए भी यह फिल्म याद रहेगी।
9. हैदर - विशाल भारद्वाज की हैदर कश्मीर की पृष्ठभूमि में कुछ ऐसे सवालों को पेश करती है,जिन पर बहस की जरूरत है। कश्मीर के मामले में एकांगी सोच से न तो जख्म भरेंगे और न नई शुरुआत होगी। हैदर हमारे समय की वैचारिक फिल्म है।
10. ज़ेड प्लस - रामकुमार सिंह की लिखी डॉ ़चंद्रप्रकाश द्व्विेदी की फिल्म जेड प्लस शुद्ध राजनीतिक व्यंग्य है। हिंदी में ऐसी फिल्मों की कमी है। वास्तविक चित्रण और देसी किरदारों की यह फिल्म वर्तमान समय की राजनीतिक विसंगति जाहिर करती है। भाषा एक बड़ा सवाल है।
11.पीके - राजकुमार हिरानी की पीके भरतीय समाज में फैले धर्म के ढोंग और आडंबर को बेनकाब करती है। राजकुमार ने अपनी सरस शैली में प्रासंगिक संदेश दिया है। आमिर खान की लोकप्रियता का सुंदर और सार्थक उपयोग हुआ है।
12.अग्ली - वर्तमान समय के महत्वपूर्ण निर्देशक और सिग्नेचर अनुराग कश्यप की अग्ली समाज और परिवार के संबंधों के स्याह पक्ष को पेश करती डार्क फिल्म है। अनुराग ने बताया है कि समय ने हमें ऐसा स्वार्थी बना दिया है कि हम अपने संबंधों में भी नृशंस हो गए हैं।


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