श्रद्धांजलि : सितारा देवी
बोटी-बोटी थिरकती थी सितारा देवी की
-अजय ब्रह्मात्मज
सितारा देवी नहीं रहीं। 72 साल की भरपूर जिंदगी जीने के बाद वह चिरनिद्रा में सो गईं। अपने उत्साह,जोश,ऊर्जा और नृत्य की वजह से वह हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में सभी की चहेती रहीं। उन्होंने अपनी शर्तों पर जिंदगी जी और नृत्य के लिए समर्पित रहीं। बनारस के सुखदेव महाराज की बेटी सितारा देवी ने बचपन से ही कथक का अभ्यास किया। तत्कालीन बनारस में उनके घर से आती घुंघरुओं की आवाज पर पड़ोसियों ने आपत्ति भी की,लेकिन उनके पिता ने किसी की नहीं सुनी। वे कहा करते थे कि अगर राधा ने कृष्ण के लिए नृत्य किया तो उनकी बेटियां क्यों नहीं नृत्य कर सकतीं? उनके पिता ने कथक को धार्मिक परिप्रेक्ष्य दिया। वे उसे कोठों से मंच पर ले आए। सितारा देवी ने बाद में कथक शैली में तांडव और लास्य तक की प्रस्तुति की। पिता के प्रोत्साहन से सितारा देवी ने हमेशा अपने मन की बात सुनी। उन्होंने कभी जमाने की परवाह नहीं की। चूंकि वह दीपावली के दिन पैदा हुई थीं,इसलिए उनका नाम धनलक्ष्मी रखा गया था। प्यार से उन्हें सभी धन्नो कहते थे। बाद में उनके पिता ने ही उन्हें सितारा नाम दिया। गुरू रवींद्रनाथ टैगोर ने उनका नृत्य देखने के बाद उन्हें नृत्य सम्राज्ञिनी की उपाधि दी थी।
सभी जानते हैं कि सितारा देवी ने मुंबई बाने के बाद फिल्मों में काम किया। उस दौरान कई पुरुषों से उनके संबंध रहे। मंटो ने उनके इन संबंधों के बारे में तफ्सील से लिखा है,जो उनकी वत्र्तमान पुस्तक मीना बाजार में संकलित है। उन्के व्यक्तित्व का जिक्र करते हुए वे नृत्य एवं कसरत के प्रति उनके समर्पण की भी बातें करते हैं? मंटो ने के आसिफ के साथ उनके जुडऩे और शादी करने की पूष्ठभूमि का अपने अंदाज में रोचक बयान किया है। वे लिखते हैं,वह औरत नहीं, एक तूफान है और वह ऐसा तूफान है जो सिर्फ एक मर्तबा आके नहीं टलता,बार बार आता है। सितारा यों तो दरमियाना कद की औरत है मगर बला की मजबूत है। उसने जितनी बीमारियां सही हैं,मेरा चखयाल है,अगर किसी और औरत पर नाजिल होतीं तो वह कभी जांबर नहीं हो सकती। वह तबअन बहुत हौसलामंद है,शायद इसलिए कि वह कसरत की आदी है? ...मामूली से डांस के लिए वह इतनी मेहनत करेगी,जितनी कोई रक्काशा उम्र भर नहीं कर सकती।उसकी तबियत में उपज है। वह हमेशा कोई खास बात करना चाहेगी। चलत-फिरत जो एक नटिनी में हो सकती है,उसमें जरूरत से ज्यादा मौजूद है। वह एक सेकिंड के लिए भी निचली नहीं बैठ सकती। उसकी बोट-बोटी थिरकती है। ...वह बड़ी कद्दावर औरत है। ...मैं उसे बहैसियत औरत के ऐसी औरत समझता हूं,जो सौ साल में शायद एक मर्तबा पैदा होती है।
सितारा देवी ने के आसिफ और प्रताप बारोट से शादी की। संगीतकार रंजीत बारोट उनके बेटे हैं। सितारा देवी ने फिल्मों में बहुत ज्यादा काम नहीं किया,लेकिन वह फिल्म सर्किल में बनी रहीं। राज कपूर की होली हो या और कोई फिल्मी समारोह...सितारा उन समारोहों की रौनक और चमक होती थीं। बारह साल की उम्र में उन्होंने निरंजन शर्मा की फिल्म की थी। के आसिफ की पहली फिल्म फूल में वह प्रमुख अभिनेत्री थीं। उन्होंने महबूब खान के साथ भी फिल्म की थी। उन्होंने मधुबाला और माला सिन्हा समेत आठवें और नौवें दशक करी मशहूर अभिनेत्रियों को कथक का प्रशिक्षण दिया। कथक और नृत्य के प्रति घटते समर्पण से वह दुखी थीं। वह कहा करती थीं कि मेरे और बिरजू महाराज के बाद तो कथक का कोई नामलेवा पहीं रह जाएगा। सही समय पर सरकार से उचित सम्मान नहीं मिलने से भी वह दुखी थीं। बहुत बाद में उन्हें पद्म सम्मान दिया गया तो उन्होंने उसे ठुकरा दिया।
-अजय ब्रह्मात्मज
सितारा देवी नहीं रहीं। 72 साल की भरपूर जिंदगी जीने के बाद वह चिरनिद्रा में सो गईं। अपने उत्साह,जोश,ऊर्जा और नृत्य की वजह से वह हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में सभी की चहेती रहीं। उन्होंने अपनी शर्तों पर जिंदगी जी और नृत्य के लिए समर्पित रहीं। बनारस के सुखदेव महाराज की बेटी सितारा देवी ने बचपन से ही कथक का अभ्यास किया। तत्कालीन बनारस में उनके घर से आती घुंघरुओं की आवाज पर पड़ोसियों ने आपत्ति भी की,लेकिन उनके पिता ने किसी की नहीं सुनी। वे कहा करते थे कि अगर राधा ने कृष्ण के लिए नृत्य किया तो उनकी बेटियां क्यों नहीं नृत्य कर सकतीं? उनके पिता ने कथक को धार्मिक परिप्रेक्ष्य दिया। वे उसे कोठों से मंच पर ले आए। सितारा देवी ने बाद में कथक शैली में तांडव और लास्य तक की प्रस्तुति की। पिता के प्रोत्साहन से सितारा देवी ने हमेशा अपने मन की बात सुनी। उन्होंने कभी जमाने की परवाह नहीं की। चूंकि वह दीपावली के दिन पैदा हुई थीं,इसलिए उनका नाम धनलक्ष्मी रखा गया था। प्यार से उन्हें सभी धन्नो कहते थे। बाद में उनके पिता ने ही उन्हें सितारा नाम दिया। गुरू रवींद्रनाथ टैगोर ने उनका नृत्य देखने के बाद उन्हें नृत्य सम्राज्ञिनी की उपाधि दी थी।
सभी जानते हैं कि सितारा देवी ने मुंबई बाने के बाद फिल्मों में काम किया। उस दौरान कई पुरुषों से उनके संबंध रहे। मंटो ने उनके इन संबंधों के बारे में तफ्सील से लिखा है,जो उनकी वत्र्तमान पुस्तक मीना बाजार में संकलित है। उन्के व्यक्तित्व का जिक्र करते हुए वे नृत्य एवं कसरत के प्रति उनके समर्पण की भी बातें करते हैं? मंटो ने के आसिफ के साथ उनके जुडऩे और शादी करने की पूष्ठभूमि का अपने अंदाज में रोचक बयान किया है। वे लिखते हैं,वह औरत नहीं, एक तूफान है और वह ऐसा तूफान है जो सिर्फ एक मर्तबा आके नहीं टलता,बार बार आता है। सितारा यों तो दरमियाना कद की औरत है मगर बला की मजबूत है। उसने जितनी बीमारियां सही हैं,मेरा चखयाल है,अगर किसी और औरत पर नाजिल होतीं तो वह कभी जांबर नहीं हो सकती। वह तबअन बहुत हौसलामंद है,शायद इसलिए कि वह कसरत की आदी है? ...मामूली से डांस के लिए वह इतनी मेहनत करेगी,जितनी कोई रक्काशा उम्र भर नहीं कर सकती।उसकी तबियत में उपज है। वह हमेशा कोई खास बात करना चाहेगी। चलत-फिरत जो एक नटिनी में हो सकती है,उसमें जरूरत से ज्यादा मौजूद है। वह एक सेकिंड के लिए भी निचली नहीं बैठ सकती। उसकी बोट-बोटी थिरकती है। ...वह बड़ी कद्दावर औरत है। ...मैं उसे बहैसियत औरत के ऐसी औरत समझता हूं,जो सौ साल में शायद एक मर्तबा पैदा होती है।
सितारा देवी ने के आसिफ और प्रताप बारोट से शादी की। संगीतकार रंजीत बारोट उनके बेटे हैं। सितारा देवी ने फिल्मों में बहुत ज्यादा काम नहीं किया,लेकिन वह फिल्म सर्किल में बनी रहीं। राज कपूर की होली हो या और कोई फिल्मी समारोह...सितारा उन समारोहों की रौनक और चमक होती थीं। बारह साल की उम्र में उन्होंने निरंजन शर्मा की फिल्म की थी। के आसिफ की पहली फिल्म फूल में वह प्रमुख अभिनेत्री थीं। उन्होंने महबूब खान के साथ भी फिल्म की थी। उन्होंने मधुबाला और माला सिन्हा समेत आठवें और नौवें दशक करी मशहूर अभिनेत्रियों को कथक का प्रशिक्षण दिया। कथक और नृत्य के प्रति घटते समर्पण से वह दुखी थीं। वह कहा करती थीं कि मेरे और बिरजू महाराज के बाद तो कथक का कोई नामलेवा पहीं रह जाएगा। सही समय पर सरकार से उचित सम्मान नहीं मिलने से भी वह दुखी थीं। बहुत बाद में उन्हें पद्म सम्मान दिया गया तो उन्होंने उसे ठुकरा दिया।
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