फिल्म समीक्षा : हैप्पी न्यू ईयर
-अजय ब्रह्मात्मज
फराह
खान और शाह रुख खान की जोड़ी की तीसरी फिल्म 'हैप्पी न्यू इयर' आकर्षक
पैकेजिंग का सफल नमूना है। पिता के साथ हुए अन्याय के बदले की कहानी में
राष्ट्रप्रेम का तडका है। नाच-गाने हैं। शाहरुख की जानी-पहचानी अदाएं हैं।
साथ में दीपिका पादुकोण, अभिषेक बच्चन, सोनू सूद, बोमन ईरानी और विवान शाह
भी हैं। सभी मिलकर थोड़ी पूंजी से मनोरंजन की बड़ी दुकान सजाते हैं। इस
दुकान में सामान से ज्यादा सजावट है। घिसे-पिटे फार्मूले के आईने इस तरह
फिट किए गए हैं कि प्रतिबिंबों से सामानों की तादाद ज्यादा लगती है। इसी
गफलत में फिल्म कुछ ज्यादा ही लंबी हो गई है। 'हैप्पी न्यू इयर' तीन घंटे
से एक ही मिनट कम है। एक समय के बाद दर्शकों के धैर्य की परीक्षा होने लगती
है।
चार्ली(शाहरुख
खान) लूजर है। उसके पिता मनोहर के साथ ग्रोवर ने धोखा किया है। जेल जा
चुके मनोहर अपने ऊपर लगे लांछन को बर्दाश्त नहीं कर पाते। चार्ली अपने पिता
के साथ काम कर चुके टैमी और जैक को बदला लेने की भावना से एकत्रित करता
है। बाद में नंदू और मोहिनी भी इस टीम से जुड़ते हैं। हैंकिंग के उस्ताद
रोहन को शामिल करने के बाद उनकी टीम तैयार हो जाती है। संयोग है कि ये सभी
लूजर है। वे जीतने का एक मौका हासिल करना चाहते हैं। कई अतार्किक संयोगों
से रची गई पटकथा में हीरों की लूट और वर्ल्ड डांस कंपीटिशन की घटनाएं एक
साथ जोड़ी गई है। फराह खान ने अपने लेखकों और क्रिएटिव टीम के अन्य सदस्यों
के सहयोग से एक भव्य, आकर्षक, लार्जर दैन लाइफ फिल्म बनाई है, जिसमें
हिंदी फिल्मों के सभी प्रचलित फॉर्मूले बेशर्मी के साथ डाले गए हैं।
कहा जाता
है कि ऐसी फिल्मों के भी दर्शक हैं। शायद उन्हें यह फिल्म भी अच्छी लगे।
कला में यथास्थिति बनाए रखने के हिमायती दरअसल फिल्म को एक व्यवसाय के रूप
में ही देखते हैं। 'हैप्पी न्यू इयर' का वितान व्यावसायिक उद्देश्य से ही
रचा गया है। अफसोस है कि इस बार फराह खान इमोशन और ड्रामा के मामले में भी
कमजोर रही है। उन्होंने फिल्म की पटकथा में इसी संभावनाओं को नजरअंदाज कर
दिया है। किरदारों की बात करें तो उन्हें भी पूरे ध्यान से नहीं रचा गया
है। चार्ली के बदले की यह कहानी आठवें-नौवें दशक की फिल्मों का दोहराव
मात्र है, जो तकनीक और वीएफएक्स से अधिक रंगीन, चमकदार और आकर्षक हो गया
है।
कलाकारों
में शाह रुख खान ऐसी अदाकारी अनेक फिल्मों में कर चुके हैं। वास्तव में यह
फिल्म उनकी क्षमताओं का दुरुपयोग है। फराह खान ने अन्य कलाकारों की
प्रतिभाओं की भी फिजूलखर्ची की है। दीपिका पादुकोण ने मोहिनी के किरदार में
चार-छह मराठी शब्दों से लहजा बदलने की व्यर्थ कोशिश की है। बाद में
डायरेक्टर और एक्टर दोनों लहजा भूल जाते हैं। अभिषेक बच्चन डबल रोल में
हैं। उन्होंने फिल्म में पूरी मस्ती की है। स्पष्ट दिखता है कि उन्होंने
सिर्फ निर्देशक की बात मानी है। अपनी तरफ से कुछ नहीं जोड़ा है। यही स्थिति
बाकी कलाकारों की भी है। सोनू सूद धीरे-धीरे बलिष्ठ देह दिखाने के आयटम
बनते जा रहे हैं। बोमन अपने लहजे से पारसी किरदार में जंचते हैं। विवान शाह
साधारण हैं।
'हैप्पी
न्यू इयर' निश्चित ही आकर्षक, भव्य और रंगीन है। फिल्म अपनी संरचना से
बांधे रखती है। फिल्म का गीत-संगीत प्रभावशाली नहीं है। फराह खान खुद
कोरियोग्राफर रही हैं। फिर भी 'हैप्पी न्यू इयर' के डांस सीक्वेंस
प्रभावित नहीं करते। दीपिका पादुकोण की नृत्य प्रतिभा की झलक भर मिल पाती
है। फराह खान और शाह रुख खान की पिछली दोनों फिल्में 'मैं हूं ना' और 'ओम
शांति ओम' से कमजोर फिल्म है 'हैप्पी न्यू ईयर'।
अवधि- 179 मिनट
** 1/2 ढाई स्टार
Comments