पोस्टर - जेड प्लस
इस पोस्टर को गौर से देखें।
याद करें कि हाल-फिलहाल में ऐसा कोई और पोस्टर देखा है क्या ? आप ने सही गौर किया कि एक व्यक्ति एक हाथ से लोटा उठाए और दूसरे हाथ से लुंगी थामे शौच के लिए जा रहा हैत्र स्पष्ट है कि इस व्यक्ति के घर में शौचालय नहीं है। देश के अधिकांश पुरुष गांवों से लेकर महानगरों तक में ऐसे ही खुलेआम शौच के लिए जाते हैं।
इस व्यक्ति का नाम असलम है। यह पंचर बनाने का काम करता है। आप को बता दें कि असलम को गफलत में जेड प्लस सेक्युरिटी मिल गई है। अब ये सुरक्षा गार्ड उसे तनहा नहीं छोड़ सकते। शौच में भी साथ जाते हैं। पोस्टर में सुरक्षा गार्डो के अलावा तीन और व्यक्ति दिख रहे हैं। वे मुकेश तिवारी,कुलभूषण खरबंदा और संजय मिश्रा हैं। मुकेश तिवारी असलम के पड़ोसी हैं। कुल जी प्रधानमंत्री की भूमिका में हैं। संजय मिश्रा आतंकवादी बने हैं।असलम की भूमिका में आदिल हुसैन असली से दिख रहे हैं। एक प्रधानमंत्री के अलावा सभी देश-समाज के आम नागरिक हैं। इन्हें अपने आसपास आप ने देखा होगा। याद करें कि ऐसे आम किरदारों को कब आखिरी बार पोस्टर और सिनेमा में देखा था। दाएं कोने में एक साइनबोर्ड भी दिख रहा है-असलम पंचर शॉप।
हिंदी सिनेमा के पोस्टर इन दिनों चमकीले,ग्लाॅसी और हीरो-हीरोइन के आलिंगन से भरे होते हैं। पोस्टर में रिवॉल्वर या अत्याधुनिक हथियार रहते हैं। हिंदी फिल्मों के पोस्टर सेक्स,हिंसा और आक्रामकता जाहिर करते हैं। पोस्टर की इस समकालीन परंपरा के विरोध में दिखता है जेड प्लस का पोस्टर। रंग भी फीके और धूसर हैं। सितारों के चेहरे आम आदमी का प्रतिनिधित्व करते हैं। कहीं भी कृत्रिमता और बनावटीपन नहीं है। पोस्टर की सादगी का निजी आकर्षण है।
लंबे समय के बाद हिंदी फिल्मों की बनावटी चमक से बाहर कीरियल दुनिया दिख रही है। इसके लिए फिल्म के लेखक रामकुमार सिंह और निर्देशक डॉ. चंद्रप्रकाश द्विेवेदी बधाई के पात्र हैं।
बस एक ही बात खटक रही हैं कि हिंदी फिल्म के इस पोस्टर में हिंदी में कुछ नहीं लिखा है। बाजार के अबाव में डॉ. द्विवेदी भी आ गए। और हां,कोई महिला किरदार भी नहीं दिख रही। अभी अन्य पोस्टर और ट्रेलर का इंतजार है।
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