खुद को पा लिया मैंने -रितिक रोशन
-अजय ब्रह्मात्मज
रितिक रोशन की ‘बैंग बैंग’ ने दर्शकों का ध्यान पहले टीजर से ही खींचा। फिर प्रोमो और गानों ने उत्सुकता बढ़ा दी। इस फिल्म में रितिक रोशन नए अवतार में दिखे। स्वयं रितिक ने भी फिल्म की शूटिंग के दरम्यान महसूस किया कि यह फिल्म उनकी खुद से पहचान करा रही है। ‘बैंग बैंग’ को मिली प्रतिक्रिया के बारे में रितिक कहते हैं :
बहुत अच्छा लग रहा है। इस फिल्म के लिए ऐसा रेस्पॉन्स मिलना बहुत जरूरी था। ट्रेलर और गानों को अच्छी प्रतिक्रिया मिली। उम्मीद है कि फिल्म भी लोगों को उतनी ही अच्छी लगे। हालांकि हर फिल्म में मेहनत होती है, लेकिन ‘बैंग बैंग’ में हमने ज्यादा समय और मेहनत की है। फिल्म की शूटिंग के दरम्यान हम अजीब-अजीब मोड़ों से गुजरे। लगता था कि कहीं कुछ गड़बड़ हो गई है। फिल्म पूरी होने के बाद लग रहा है कि नहीं सब कुछ ठीक है। मैं बहुत ही खुश और संतुष्ट हूं। यह फिल्म बहुत अच्छी बनी है। आज तक मैं किसी और फिल्म को लेकर इतना आश्वस्त नहीं रहा। मेरे हिसाब से यह अब तक की मेरी सबसे बड़ी और श्रेष्ठ फिल्म है। पहली बार ऐसा लग रहा है।
-क्या यह आप के होम प्रोडक्शन ‘कृष’ से भी बड़ी है?
हां। बहुत च्यादा। ऐसा पहली बार हुआ है कि मैं खुद ऐसी बात कह रहा हूं। मेरे लिए यही ‘बैंग बैंग’ की जीत है। इस फिल्म को जब मैंने साइन किया था तो लोग अलग-अलग सवाल कर रहे थे। दोस्तों ने पूछा-क्या कर रहा है तू? सिद्धार्थ आनंद के साथ फिल्म कर रहा है? उसकी पिछली फिल्म का हश्र मालूम है? सारे मशहूर डायरेक्टर तुम्हारे साथ फिल्म करना चाहते हैं और तू ऐसी फिल्म कर रहा है। दरअसल, लोग जानते नहीं हैं कि हम अपनी सफलता के साथ-साथ असफलता से भी सीखते हैं। ग्रो करते हैं। किसी के असफल होने का मतलब यह नहीं है कि वह भविष्य में कुछ कर ही नहीं सकता। जो आज फेल्योर है, वह दस साल बाद देश का सबसे कामयाब डायरेक्टर हो सकता है। अगर अतीत को साक्ष्य मानकर चलते तो आमिर खान को आशुतोष गोवारिकर के साथ ‘लगान’ करनी ही नहीं चाहिए थी। कई बार तो असफल होने के बाद इंसान च्यादा मंझ जाता है। मैं फिल्मों के चुनाव के पहले सिर्फ यह देखता हूं कि उस कहानी से मुझे गुदगुदी और उत्तेजना हो रही है कि नहीं। यह एहसास होने पर कुछ और नहीं देखता।
-‘बैंग बैंग’ के लिए हां कहने की ठोस वजह क्या रही?
सिद्धार्थ ने इस फिल्म का आइडिया सुनाया। पांच मिनट के अंदर मैंने तय कर लिया कि यह फिल्म करनी है, क्योंकि मेरे सामने यह फिल्म थी। मैं तब सिद्धार्थ के अतीत के बारे में नहीं सोच रहा था। यह एक्शन रॉम-कॉम फिल्म है। ऐसा कैरेक्टर मैंने पहली बार प्ले किया है।
- हर फिल्म का अनुभव अलग होता है। इस जॉनर की फिल्म करते हुए आपने क्या अलग और नया महसूस किया?
इस फिल्म की शूटिंग के दौरान मैंने महसूस किया कि राजवीर का किरदार वास्तव में मैं हूं। पहले मुझे लगता था कि मैं राज, रोहित जैसा सीधा-सादा, बोरिंग सा व्यक्ति हूं, जो नेकदिल और लायक है। इस फिल्म से पता चला कि मैं उन किरदारों में एक्टिंग कर रहा था। मेहनत कर रहा था। मैंने पाया कि वास्तव में मैं ऐसा ही हूं। मेरे अंदर ही यह व्यक्तित्व छिपा हुआ था। मैं उसे बाहर लाने में डर रहा था। मुझे डर था कि मेरा यह पहलू देख लिया तो शायद मुझे कम चाहेंगे। राजवीर किसी की परवाह नहीं करता। वह नेक इंसान नहीं है। वह अच्छा और भोला-भाला टाइप नहीं है। इस किरदार को निभाते समय अपने इनपुट से ही मैं चौंकता रहा। चकित होता था कि क्या मैं यही हूं? ‘बैंग बैंग’ पहली फिल्म है, जिसके लिए मैंने कोई तैयारी नहीं की है। पहली बार स्क्रिप्ट और किरदार को लेकर मैं नहीं बैठा।
- आप के लिए तो मशहूर है कि आप अपने किरदारों की पूरी तैयारी करते हैं। कैमरा रोल होने के पहले उन पर पूरी मेहनत करते हैं?
जी। अपने किरदारों के साथ मैं कमरे में बंद हो जाता था। दो-दो, तीन-तीन दिन लगाकर उनके लुक और बॉडी लैंग्वेज पर काम करता था। राजवीर ने मेरा एक सेकेंड भी नहीं लिया। इसका मतलब है कि मैं राजवीर हूं। मुझे कुछ और नहीं करना पड़ा। पर्दे पर खुद को प्ले कर देना पड़ा। ‘बैंग बैंग’ से मैंने खुद को पा लिया।
- क्या बचपन से यह पहलू आप के साथ रहा है? आप के बारे में तो यही धारणा है कि आप सीधे-सादे और मेहनती लडक़े रहे हैं?
मुझे लगता है कि बड़े होते समय हम दूसरों को देखकर अपना व्यक्तित्व बदलते और ढालते हैं। अगर हमें लगता है कि किसी के अच्छे होने की वजह से लोग उसे पसंद करते हैं तो हम उसकी तरह अच्छा होना चाहते हैं। खुद पर विश्वास न हो तो हम नेक बने रहना चाहते हैं। दूसरों की खुशी के लिए सब कुछ करते हैं। शायद यह मानवीय इच्छा है कि सब कोई हमें चाहें, सब कोई हमें प्यार करे। हम ‘नाइस ब्वॉय’ बने रहना चाहते हैं। वास्तव में यह कमजोरी है। ‘नाइस ब्वॉय’ और ‘गुड ब्वॉय’ में फर्क होता है। ‘गुड ब्वॉय’ अपने महत्व के बारे में जानता है। वह नाइस के बदले राइट करना चाहता है। सही काम करते हुए वह अच्छा बन जाता है। किसी को खुश करने की वह अतिरिक्त कोशिश नहीं करता। मुझे लगता है हमें ऐसे ही जीना चाहिए। दूसरों को खुश करने की कोशिश में थक और बिखर जाएंगे। एक दिन फट पड़ेंगे और फिर सबसे पूछेंगे-हमने इतना किया? सब का ख्याल रखा। मुझे क्या मिला? मेरे लिए कोई कुछ नहीं करता। हमने कितनी बार ऐसे वाक्य सुने होंगे। मेरा सवाल है कि क्यों कर रहे हो आप? किसी ने मांगा था क्या? वास्तव में किसी रिटर्न की उम्मीद में आप कर रहे हैं। चाहे वह तारीफ पाने जैसी छोटी ही ख्वाहिश क्यों न हो।
- राजवीर के किरदार को इस तरह क्यों रचा गया?
्रसिद्धार्थ आनंद की यही खूबी है। फिल्म में हमें छोटी-छोटी जानकारियां मिलती हैं, लेकिन यह पता नहीं चलता कि राजवीर क्या है? वह कौन है? क्या कर रहा है? क्यों कर रहा है? चाहता क्या है? कुछ भी ठीक से पता नहीं चलेगा। फिल्म के आखिरी फ्रेम तक यह जिज्ञासा बनी रहती है। वह बहुत ही चार्मिंग और हीरोइक है।
- उसके लिए तो आप को मेहनत नहीं करनी पड़ी होगी?
सच कहूं तो इस फिल्म में मुझे सबसे कम मेहनत करनी पड़ी। फिल्म का डिफिकल्ट एक्शन भी आसान था। इस फिल्म से मेरी मानसिक ताकत इतनी बढ़ गई है कि मैं अब किसी भी स्थिति का सामना कर सकता हूं।
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