दरअसल, हैदर पिता द्वारा भटकाये गये बेटे को मां द्वारा इंत्तकाम पर लगाये गये विराम की कहानी है.
-अनुप्रिया वर्मा
जिंदगी
में अब तक देखी गयी तमाम फिल्मों में कठिन फिल्मों में से एक है हैदर.सो,
इस पर कोई भी नजरिया या प्रतिक्रिया व्यक्त करना एक कठिन टास्क है. फिल्म
में कई परत हैं. मेरे लिए यह फिल्म बेटे पर न्योछावर हो जानेवाली मां की
कहानी है. फिल्म मदर इंडिया में मां बेटे को गलत रास्ते पर जाने से रोकने
के लिए मौत के घाट उतारती है. और ताउम्र उस पाश्याताप में जीती है. हैदर की
मां खुद को मार कर बेटे को इंतकाम की आग में झूलसने से बचाती है. मदर
इंडिया की तरह हैदर की गजाला भी रुद्र रूप धारण करती है. लेकिन दोनों का
अंदाज अलग है. दरअसल, हैदर पिता द्वारा भटकाये गये बेटे को मां द्वारा
इंत्तकाम पर लगाये गये विराम की कहानी है. एक पिता के प्रेम में अंधे बेटे
से आगे बढ़ती यह कहानी एक मां के एक बेटे के लिए अंधे प्यार में तब्दील हो
जाती है. एक बेटा है जो अपने पिता को हीरो मानता है. अबुजी उसकी जिंदगी में
सबसे अहम है. वह अपने पिता से सिर्फ बोली वाला प्यार नहीं. सेवा भाव वाला
प्यार रखता है. पिता के जूतों में पॉलिश करके उसकी आंखों में वही चमक आती
है. जितनी पॉलिश लगने के बाद जूतों में. लेकिन पिता के अंधमुग्ध प्यार में
वह वही करता है. जो उसके पिता कर रहे होते हैं. अपनी पत् नी के प्यार की
अनदेखी. अपने पिता को अपना आदर्श मानने वाले हैदर को पिता के इंतकाम के
सामने मां का लाड़, प्यार,उसका सर्मपण, उसका संवेदना, उसका अकेलापन और इन
सबके बीच एक बेटे के लिए बेइतहां प्यार नजर ही नहीं आता. वह ताउम्र उसे शक
की निगाह से ही देखता है. ठीक उसी तरह जैसे विशाल भारद्वाज की ही फिल्म
ओंकारा में ओमी डॉली मिश्रा का प्यार उसका समर्पण नहीं देखता. शक की बिलाह
पर ही डॉली को मौत के घाट उतार देता है. दरअसल, विशाल किरदारों को ही आपस
में ही शक की बिलाह पर नहीं उलझाते. बल्कि निर्देशकों की आंखों में उस
किरदार के प्रति शक पैदा कर जाते हैं. जैसा कि फिल्म हैदर में दर्शक स्पष्ट
नहीं हो सकते कि गजाला हैदर की तरफ है या फिर मतलबपरस्त. हिंदुस्तान में
किसी मां द्वारा बच्चे के होंठों पर चुंबन करना एक मां को शक के दायरे में
ही डालता है कि मां बेटे से मातृत्व भाव रख रही है या फिर कुछ और. लेकिन
विशाल की इस हिम्मत की सराहना करनी चाहिए कि उन्होंने बिना लाग लपेट के
हिंदी फिल्म में चरणों व मंदिरों में देवी की मूरत मानी जाने वाली मां को
एक अलग रूप प्रदान किया है. हिंदी सिनेमा में अब तक ऐसी मां शायद ही नजर
आयी होगी. चूंकि हिंदुस्तान में मां को हमेशा बेटे को माथे पर चूमते हुए
ही दिखाया गया है. जबकि विशाल यहां स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि गजाला किस
तरह बेटे के प्यार में पागल है. विशाल की खूबी रही है कि वह अपनी फिल्मों
में औरतों के व्यक्तित्व( ममता, प्यार, समर्पण) को कह कर या किसी हक को
जता कर नहीं, बल्कि खामोशी से दर्शाते हैं. फिल्म हैदर की गजाला के साथ भी
विशाल ने वही किया है. हैदर की मां उसे हैदर के नाम से नहीं...जाना के नाम
से ही बुलाती हैं. यहां निर्देशक यूं ही एक मां द्वारा अपने बच्चे को जाना
कह कर नहीं बुलवा रहे. इससे वह स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि हां, गजाला के
लिए हैदर उसकी जान ही है. और वह उसे दुनिया में सबसे ज्यादा मोहब्बत करती
है.
मां को जब बचपन में ही हैदर की बैग से
पिस्तौल मिलती है. वह डर जाती है. उसके मन में बेटे को खो देने का खौफ है.
उस वक्त वह निर्णय लेती है कि वह उसे कश्मीर से दूर भेज कर रहेगी. निर्देशक
यही स्पष्ट कर देते हैं कि मां किस तरह अपने बेटे को बंदूक से दूर करना
चाहती है. वह उसी बंदूक को खुद की तरफ टान कर बेटे को अलीगढ़ भेज देती है.
एक दृश्य में हैदर और गजाला टहलते हुए बात कर रहे... हैदर कहता है कि आप
बचपन में सिर्फ कहने के लिए कह रही थी न कि अगर मैं नहीं गया तो आप गोली
मार लेंगी. आप गोली नहीं चलाती न...गजाला इसका जवाब फिल्म के अंतिम दृश्यों
में देती हैं...वह उस वक्त भी अपनी एक आखिरी कोशिश करती है कि उसका बेटा
समर्पण कर दे. इंतकाम से सिर्फ इंतकाम मिलता है.आजादी नहीं. लेकिन हैदर
नहीं मानता. आखिरकार वाकई गजाला खुद को गोली मारती है. लेकिन यह गोली मानव
बम के रूप में होता है. तब जाकर हैदर को एहसास होता है कि उसकी मां वाकई
बचपन में भी हैदर के लिए खुद को गोली मार सकती थी. और इस बार भी जीतती
गजाला ही है... चूंकि आखिरकार एक मां की बातें ही हैदर को इंत्तकाम से आजाद
करने में सफल होती है. जिस खुरर्रम को मारने के लिए हैदर की आंखों में खून
उतर चुका था. अंत में खुरर्रम के मौत मांगने पर भी हैदर उसे छोड़ देता है.
हैदर ताउम्र अपनी मां को शक की निगाह से देखता है. वह अपनी मां को धोखेबाज,
अपने पिता की मौत का जिम्मेदार मानता है. लेकिन उस प्यार को नहीं देख
पाता, जो गजाला अपनी जाना से करती हैं.
गजाला को पति का प्यार
नहीं मिलता और प्यार की तलाश में वह खुरर्रम को हमदर्द मानती है. लेकिन जिस
पल खुरर्रम की आंखों में वह हैदर की मौत देखती है. उसी पल खुरर्रम गजाला
का प्यार खो बैठता है. गजाला पाश्याताप करने लगती है. खुरर्रम उसे कहता है
कि हैदर खूनी हो गया है. इस पर गजाला कहती है कि आस्तीन का सांप तो नहीं
हुआ...गजाला के ये वाक्य स्थापित कर देते हैं कि वह इस बात से अनजान थी कि
डॉ साब का कातिल है खुरर्रम. लेकिन हैदर को वह इस बात का यकीन नहीं दिला
पायी... गजाला के मन में इस बात का पाश्याताप था.
फिल्म के
शुरुआती दृश्य में निर्देशक दिखाते हैं कि गजाला जब डॉ साब से पूछती है कि
आप किसकी तरफ हैं...वह कहते हैं मैं जिंदगी की तरफ हूं. लेकिन खुद पर हुए
जुल्म के साथ वही जिंदगी की तरफदारी करनेवाला इंत्तकाम का हितेसी हो जाता
है. और अपने बेटे को बदले के लिए उकसाता है. वही मां शुरुआत से अंत तक
बेटे को बुराईयों से दूर एक आदर्श जिंदगी देने के लिए ताउम्र संघर्षरत रहती
है.
स्पष्ट है कि भले ही गजाला अच्छी पत् नी
साबित न हो सकी. लेकिन वह मां के रूप में मिसाल हैं. वह ताउम्र हैदर की
संरक्षक बनी रही. अंत तक वह कोशिश करती रही कि हैदर की जान बच जाये. फिल्म
के एक दृश्य में हैदर सोया हुआ है.और उसके पिता की रुह आती है...कि बेटा
मेरा इंत्तकाम लेना. उस वक्त भी गजाला हैदर के पास है. निर्देशक वही स्पष्ट
कर देते हैं कि जब तक गजाला हैदर के पास है. हैदर को कुछ नहीं हो सकता.
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