फिल्म समीक्षा : बैंग बैंग
-अजय ब्रह्मात्मज
हॉलीवुड की फिल्म 'नाइट एंड डे' का अधिकार लेकर हिंदी में बनाई गई 'बैंग
बैंग' पर आरोप नहीं लग सकता कि यह किसी विदेशी फिल्म की नकल है। हिंदी
फिल्मों में मौलिकता के अभाव के इस दौर में विदेशी और देसी फिल्मों की
रीमेक का फैशन सा चल पड़ा है। हिंदी फिल्मों के मिजाज के अनुसार यह थोड़ी
सी तब्दीली कर ली जाती है। संवाद हिंदी में लिख दिए जाते हैं। दर्शकों को
भी गुरेज नहीं होता। वे ऐसी फिल्मों का आनंद उठाते हैं। सिद्धार्थ आनंद की
'बैंग बैंग' इसी फैशन में बनी ताजा फिल्म है।
इस फिल्म के केंद्र में देश के लिए काम कर रहे सपूत राजवीर की कहानी है।
हर प्रकार से दक्ष और योग्य राजवीर एक मिशन पर है। हरलीन के साथ आने से लव
और रोमांस के मौके निकल आते हैं। बाकी फिल्म में हाई स्पीड और हाई वोल्टेज
एक्शन है। पूरी फिल्म एक के बाद एक हैरतअंगेज एक्शन दृश्यों से भरी है,
जिनमें रितिक रोशन विश्वसनीय दिखते हैं। उनमें एक्शन दृश्यों के लिए
अपेक्षित चुस्ती-फुर्ती है। उनके साथ कट्रीना कैफ भी कुछ एक्शन दृश्यों में
जोर आजमाती है। वैसे उनका मुख्य काम सुंदर दिखना और अपनी मोहब्बत से
राजवीर का हौसला बनाए रखना है। वह इस जिम्मेदारी को पिछली फिल्मों की तरह
ही कुशलता से निभाती हैं।
'बैंग बैंग' रितिक रोशन के प्रशंसकों के लिए है। उन्होंने इस अवतार में
रितिक रोशन को नहीं देखा होगा। हालांकि रितिक रोशन 'धूम' सीरिज कर चुके
हैं, फिर भी 'बैंग बैंग' को 'धूम' सीरिज की ही एक और फिल्म कहा जा सकता है।
इस फिल्म के एक्शन दृश्यों की गति और स्फूर्ति के लिए रितिक रोशन को बधाई
देनी होगी। थोड़ी कहानी होती और बाकी किरदारों को स्पेस मिला होता तो फिल्म
रोमांचक होने के साथ रोचक भी हो जाती। बीच समुद्र के एक्शन दृश्यों में
रितिक रोशन की चपलता देखते ही बनती है।
अवधि-156 मिनट
**1/2 ढाई स्टार
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