अमिताभ बच्चन : 78 सोच
अमिताभ बच्चव के 70वें जन्मदिन पर यह कोशिश की गई थी। अखबार में पूरा छाप पाना संभव नहीं हुआ था। आप पढ़ें।
१: राकेश ओमप्रकाश मेहरा
२: आशुतोष राणा
३: सुरेश शर्मा
४: मनोज बाजपेयी
५: विद्या बालन
६: तिग्मांशु धूलिया
७: संजय चौहान
८: सोनू सूद
९: जयदीप अहलावत
१०: राणा डग्गुबाती
११: अविनाश
१२: कमलेश पांडे
१३: जावेद अख्तर
१४: शाजान पद्मसी
१५: जरीन खान
१६: शक्ति कपूर
१७: श्रेयस तलपड़े
१८: सोनाली बेंद
१९: असिन
२०: ओमी वैद्य
२१: सतीश कौशिक
२२: कुणाल खेमू
२३: रूमी जाफरी
२४: अर्चना पूरन सिंह
२५: मुग्धा गोडसे
२६: गौरव सोलंकी
२७: गुलशन देवैया
२८: रजत बरमेचा
२९: रुसलान मुमताज
३०: रानी मुखर्जी
३१: सौरभ शुक्ला
३२: कल्कि
३३: सलमान खान
३४: सुजॉय घोष
३५: विवेक अग्निहोत्री
३६: रजा मुराद
३७: वरुण धवन
३८: जॉनी लीवर
३९: यशपाल शर्मा
४०: रणदीप हुड्डा
४१: ऋचा चड्ढा
४२: के के मेनन
४२: मनु ऋषि
४४: चित्रांगदा सिंह
४५: संगीत सिवन
४६: राहुल ढोलकिया
४७: राम गोपाल वर्मा
४८: मैरी कॉम
४९: जे डी चक्रवर्ती
५०: गौरी श्ंिादे
५१: करण जौहर
५२: अक्षय कुमार
५३: परेश रावल
५४: प्रीति जिंटा
५५: अर्जुन रामपाल
५६: विपुल शाह
५७: कुणाल कोहली
५८: शरत सक्सेना
५९: अनुपम खेर
६०: राजकुमार गुप्ता
६१: रवीश कुमार
६२: राजपाल यादव
६३: निखिल द्विवेद्वी
६४: नवाजुद्दीन
६५: समीर कार्णिक
६६ : पंकज त्रिपाठी
६७: अमोल गुप्ते
६८: सीमा आजमी
६९ : रणबीर कपूर
७० : करीना कपूर
७१ : प्रसून जोशी
७२ : दीपिका पादुकोण
७३ : विमल कुमार
७४: मिहिर पंड्या
७५: डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी
७६: विनोद अनुपम
७७: अनुराग कश्यप
७८: यश चोपड़ा
: राकेश ओमप्रकाश मेहरा
अपने अनुभवों से यही कहूंगा कि अमित जी किसी पर भरोसा करहते हैं तो पूरी तरह से खुद को समर्पित कर देते हैं। उनके समर्पण से ही उनकी फिल्में निकली हैं। वे संपूर्ण एक्टर हैं। उन्हें सिर्फ एक बार सहमत करना होता है। उस सहमति के बाद वे फिर कुछ नहीं पूछते। ‘अक्स’ के समय तो मैं एकदम नया था, लेकिन सहमति और विश्वास के बाद मेरी पीठ पर अपना हाथ रखा। मुझे पूरा सपोर्ट दिया। कभी किसी दृश्य या संवाद पर नहीं अड़े।
(निर्देशक)
: आशुतोष राणा
या तो पिता महान होते हैं या पुत्र। पिता-पुत्र दोनों कालजयी हैं। एक ने भावों को उकेरने के लिए कविता का सहारा लिया तो दूसरे ने अभिनय। दोनों इनके लिए जाने जाते होंगे। अदाकार खुद को दोहराता है। कलाकखुद को नहीं दोहराता है। वे हिंदी फिल्मों ऐसे अदाकार हैं, जो सही अर्थों में कलाकार हैं। उनकी अदाओं में कला दिखती है। एंग्री यंग मैन, ‘ब्लैक’ और ‘पा’ या फिर ‘दीवार’ या ‘आंखें’ ़ ़ ़इन फिल्मों में उनके अभिनय में जमीन-आसमान का अंतर पाएंगे। उनकी अदा भी चली,कला भी। सौ प्रतिशत अभिनेता हैं वे। अभिनय का सुर और सुख दोनों अमिताभ ने दिखाया। इस 70 वर्षीय युवा में हमें भाई, पिता, गुरू और मित्र नजर आता है। वे सखा सदृश हो गए हैं। सखा पलट दें तो वह खास हो जाता है। अमित जी हमारे खास हैं।
(अभिनेता)
: सुरेश शर्मा
हिंदी सिनेमा में कुछ ही नायकों ने अभिनय की दुनिया में निर्एायक परिवर्तन किए, उनमें अमिताभ बच्चन पहली पंक्ति में हैं। वे चार्ली चैप्लिन की तरह ऐसे महान अभिनेता हैं जो महज चरित्र को अभिव्यक्त नहीं करते, बल्कि अपने अभिनय की रचनात्मकता से उसका विकास करते हैं। पटकथा जो चरित्र उन्हें देती है वह उनके अभिनय के बाद वही नहीं रह जाता है, वह उससे आगे निकल जाते हैं। यही विशेष्ता बिग बी को बिग ए एक्टर बनाती है। यह अफसोस का विषय है कि निर्देशकों ने उनसे ज्यादातर घोर व्यावसायिक और फार्मूला वाली फिल्मों में काम लिया है। ‘ब्लैक’ और ‘सौदागर’ जैसी फिल्में अगर ज्यादा नहीं मिलीं तो उन्हें स्वयं ऐसे रोल के लिए पहल करनी चाहिए थी। वैसे 70 वर्ष की उम्र तक फिल्म की मुख्यधारा में वे अपनी अद्वितीय रचनात्मकता के कारण ही बने हुए हैं। र्
(विभागाध्यक्ष, नाट्य कला और हिंदी अध्ययन विभाग, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय, वर्धा)
: मनोज बाजपेयी
हाल-फिलहाल के दिनों में मैंने गौर किया है कि अमित जी का झुकाव खास तरह की फिल्मों और अभिनेताओं की ओर हुआ है। वे केवल उनकी सराहना नहीं करते हैं। सराहना करते समय अपनी आवाज ऊंची रखते हैं। उन सभी में मैं भी एक भाग्यशाली हूं। मेरे बारे में वे कुछ न कुछ बोलते रहे हैं। बुरी कम,अच्छी ज्यादा। उनसे मिली सराहना हम सभी के लिए प्रेरक है। इससे यह भी जाहिर होता है कि वे प्रतियोगी की मानसिकता से बाहर आ गए हैं। अनुशासन, समय की पाबंदी, सभी के प्रति आदर, काम के प्रति उत्साह और उत्सुकता.. क़ैसे कोई व्यक्ति इन तत्वों को लगातार बनाए रख सकता है। यह एक रहस्य है। यही सीखने की चीज है।
: विद्या बालन
मुझसे अधिक भाग्यशाली और कौन हो सकता है। मैंने उनकी मां का किरदार निभाया है। जिस शख्स को पूरी दुनिया महानायक के तौर पर जानती है, उसकी मां को कितना गर्व होगा? उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है। उनकी ऊर्जा प्रेरित करती है। बताती है कि मुझे अभी लंबा सफर तय करना है।
(अभिनेत्री)
: तिग्मांशु धूलिया
गोविंदा और बिग बी, मेरे दो सबसे पसंदीदा अभिनेता रहे हैं। बिग बी और मेरा इलाहाबाद का कनेक्शन है। कौन निर्देशक होगा जो उनको निर्देशित नहीं करना चाहेगा? किसी निर्देशक के जीवन का सबसे बेहतरीन दिन होगा जब वह बिग बी जैसी शख्सियत को निर्देश दे रहा होगा।
(निर्देशक)
: संजय चौहान
वे एक बेहतरीन अभिनेता ही नहीं उम्दा इंसान भी है। अनुशासन कोई उनसे सीखे। सबसे बड़ी बात वे किसी की बेइइज्जती नहीं करते। सबको एक समान समझते हैं। एक लेखक के तौर पर मैं कह सकता हूं कि उनसे ज्यादा लेखकीय इज्जत किसी अभिनेता को बख्शी नहीं जा सकती।
(लेखक)
: सोनू सूद
मेरी कद-काठी उन जैसी है। मेरे घरवाले हमेशा मुझे डुप्लीकेट बच्चन कह कर पुकारते हैं। ‘मैक्सिमम’ में कॉप का रोल कर मैं खुद को ‘जंजीर’ का इंस्पेक्टर विजय समझने लगा था। उनके साथ आगे काम करने की बहुत इच्छा है।
(अभिनेता)
: जयदीप अहलावत
उन्हें हमेशा लार्जर दैन लाइफ इमेज में देखा है। इंडस्ट्री की तीन पीढिय़ों के कलाकारों को प्रेरित किया है। भगवान उन्हें लंबी उम्र दे। काम के प्रति उनका समर्पण कमाल का है।
(अभिनेता)
: राणा डग्गुबाती
मैं उनका कायल हूं। काबिलियत के सारे कीर्तिमान वे ध्वस्त कर चुके हैं। बस एक चीज में मैं उनसे आगे हूं, वह है लंबाई। मैं उनसे एक इंच लंबा हूं। ‘डिपार्टमेंट’ के सेट पर इस बात का अनुभव हुआ। अपने घर वालों और दोस्तों को बड़े फख्र से यह बात बार-बार बताता रहता हूं।
(अभिनेता)
: अविनाश
हम उन दिनों से अमिताभ बच्चन को जानते हैं, जिन दिनों अपने आपको भी हम नहीं जानते थे। वे हमारे समय के पहले और (यकीनन) आखिरी महानायक हैं। उनके जादुई जीवन के उत्तराद्र्ध पर गौर करने से पता चलता है कि उन्हें शून्य से उठना आता है और शिखर पर पहुंच कर भी संयमित रहना आता है। वे हिंदी के भी गौरव हैं। इसलिए नहीं कि उनके पिता एक मशहूर कवि थे। बल्कि इसलिए कि अंग्रेजियत से भरे बॉलीवुड के कारोबार में भी उन्हें हिंदी बोलना और बरतना आता है। इस बड़बोले समय में अमिताभ बच्चन से हम एक चीज और सीख सकते हैं कि कैसे अपनी वाणी पर संयम रखा जाए। नेहरु-गांधी परिवार से अपने उलझे हुए रिश्तों पर उन्होंने जब भी कुछ कहा है, मर्यादा की ओट लेकर कहा है। जीवन के उतार-चढ़ाव और अभिनय के ऊबड़-खाबड़ में हमेशा गरिमामय व्यक्तित्व धारण करने वाले सत्तर-साला अमिताभ बच्चन से हम नौजवान हमेशा प्रेरणा ग्रहण करते रहेंगे।
(मोहल्ला लाइव के संचालक)
: कमलेश पांडे
हॉलीवुड के महान अभिनेता गैरी कूपर के बारे में कहा जाता है कि सिनेमा के पर्दे पर उनकी जैसी बोलती हुई खामोशी कोई नहीं ले आ पाया है। उनकी फिल्में दर्शकों के अंदर झांकने का निमंत्रण है। हेनरी फोंडा, मर्लिन ब्रांडो, अल पचीनो जैसे कुछ अभिनेताओं ने अपनी खामोशी को सफलतापूर्वक चेहरे की भाषा बनाया है। यह भाषा शब्दों की मोहताज नहीं है।
हमारे यहां भी यह खूबी दिलीप कुमार, मीना कुमारी, मधुबाला, नूतन, बलराज साहनी, गुरूदत्त में रही है। वे सब बिना संवाद के भी अपने चेहरे को भाव पढऩे देते थे और दर्शकों को बांधे रखते थे। ये चेहरे वे चेहरे थे, जिसमें गहरे पानी का ठहराव था। जिसके अंदर न जाने कितने तूफान छिपे हुए थे।
वर्तमान में यह खूबी सिर्फ एक में है-अमिताभ बच्चन। अमिताभ बच्चन का चेहरा पुरानी कीमती शराब की तरह वक्त के साथ और नशीला होता गया है। उनके चेहरे का एक भूगोल है। इस भूगोल को एक लेखक भी पढऩा चाहता है और कैमरामैन भी। कैमरामैन के लिए उनके चेहरे की घाटियां और पठारों से गुजरती, उनके आते-जाते मूड्स के साथ बदलती परछाइयां और उन घाटियों के बीच उनकी सर्द ज्वालामुखी सी अंदर ही अंदर सुलगती आंखें एक ऐसा लोक निर्मित करती हैं, जहां जाने में डर भी लगता है और जहां जाए बिना रहा भी नहीं जाता है। लेखक और कैमरामैन दोनों के लिए अमिताभ बच्चन एक ईनाम हैं और चुनौती हैं। यह और बात है कि केबीसी के संचालक के रूप में उन्होंने एक सम्मानीय बुजुर्ग का चोला अख्त्यिार कर लिया है। टीवी में कुछ हद तक दर्शकों से धीरज का गुण छीन लिया। उन्हें हर चीज इंस्टेंट कॉफी की तरह तैयार चाहिए। उनके पास चेहरों की गहराई पढऩे का न समय है, न धीरज। ऐसे समय में अमिताभ जैसा अभिनेता, जिसने अपनी खामोशी को अपने चेहरे का व्याकरण और भाषा दिया है, क्या सोचता होगा? मेरा अपना ख्याल है कि टीवी पर उनका भरपूर इस्तेमाल नहीं हो सका है। हमने उन्हें सस्ते में छोड़ दिया। उनसे अभी और बहुत कुछ अभी मिल सकता था, पता नहीं अभी कितनी जंजीर, अभिमान, अक्स आनी बाकी है। अक्स मैं उनके लिए लिख चुका हूं। दिल्ली-6 में भी उनके लिए थोड़ा सा काम किया था। मगर बहुत सी कहानियां मैंने सिर्फ उनके लिए लिख रखी हैं, जो आज भी उनका इंतजार कर रही हैं। जैसे भैरवी, विधान, मधुशाला और कुणाल।
(लेखक)
: जावेद अख्तर
उन्हें तब से जानता हूं, जब उन्होंने पहली बार मुंबई में कदम रखा था। वे स्टैंड लेने वाले इंसान हैं, वरना आज इस मुकाम पर नहीं होते। कोलकाता में अच्छी खासी नौकरी छोडक़र अनिश्चितता से भरी इस इंडस्ट्री में आना और छा जाना आम इंसान के बस की बात नहीं। राजनीति में जाकर उन्होंने सिस्टम को सुधारने की कोशिश की। उन पर लांछन लगे, लेकिन वे बेदाग वापस लौट आए। ‘आरक्षण’ जैसी संवेदनशील फिल्म में काम करना भी उनकी हिम्मत को दर्शाता है। वे इस बात की मिसाल हैं कि सच चाहे जितना परेशान हो, लेकिन अंत में जीत उसी की होती है।
(लेखक-गीतकार)
: शाजान पद्मसी
उनमें स्टारडम और कमाल की अदाकारी दोनों है। उन्होंने एनएसडी या उस जैसे दूसरे प्रतिष्ठित संस्थान से अदाकारी की ट्रेनिंग नहीं ली है, लेकिन इस कला में उनका नाम सबसे ऊपर है। मेरे पिता भी उनके बहुत बड़े फैन रहे हैं।
(अभिनेत्री)
: जरीन खान
उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह जा सकता। यह अलग बात है कि वे इसका इस्तेमाल किसी पर अपना रसूख कायम करने के लिए नहीं करते। ज्यादातर लोग अपने आभामंडल से सामने वाले पर हावी होने की कोशिश करते हैं। बिग बी ऐसा नहीं करते। यह उनका बड़प्पन है।
(अभिनेत्री)
: शक्ति कपूर
अभिनय कला में वे सब के बाप हैं। अपने जमाने में उन्होंने हीरो वाले रोल तो प्ले किए ही, ‘आंखे’ और ‘राम गोपाल वर्मा की आग’ में विलेन के रोल में भी कमाल के लगे। फिर ‘पा’ जैसी फिल्म में अपने बेटे का बेटा बनना बहुत जिगरे वाला काम है। उनकी जैसी हिम्मत हो तो कोई काम नामुमकिन नहीं।
(अभिनेता)
: श्रेयस तलपड़े
उनका व्यक्तित्व ग्रंथ है। हर पन्ने पर जीवन में आगे बढऩे लायक सैकड़ों चीजें मिलेंगी। सही मायनों में पेशेवर होना और काम के प्रति समर्पण की भावना सीखनी हो तो उनसे बेहतर और कोई नहीं हो सकता। उनकी संगत से कोई भी इंसान संयत बन सकता है।
(अभिनेता)
: सोनाली बेंद्रे
वे पिता सरीखे हैं। गोल्डी बहल और अभिषेक बच्चन बहुत अच्छे दोस्त हैं। अमित अंकल का भी आना- जाना हमारे घर रहा है। उनकी मौजूदगी से पूरे फिल्म जगत को लगता है कि उनके सिर पर संरक्षक का हाथ है। इस अहसास से सब काफी सुरक्षित महसूस करते हैं। हम सब खुशकिस्मत हैं, जो एक ऐसे युग में पैदा हुए जो साक्षात लिजेंड के दर्शन हुए।
(अभिनेत्री)
: असिन
वे कमाल के पेशेवर इंसान हैं। बेहद सजग हैं। जानते हैं कि दर्शकों को क्या चाहिए? इसलिए छवि बदलने में जोखिम महसूस नहीं करते। एंग्री यंग मैन से लेकर टीवी प्रस्तोता के रूप में उन्होंने अपने भिन्न-भिन्न रूपों से हमें अवगत कराया है। वे सबमें काफी विश्वसनीय लगे। सहज इस मायने में हैं कि उन्हें किसी अच्छे कॉज के लिए अप्रोच करें तो वे ना नहीं करते।
(अभिनेत्री)
: ओमी वैद्य
उनकी जितनी लंबी पारी खेलना नामुमकिन है। उनके समकालीन लोगों में किसी को ऐसी सफलता हाथ नहीं लगी। इसके पीछे अहम वजह उनका व्यवहार है। ईगो नहीं है। किसी भी रोल को कमतर नहीं समझते। तभी उम्र के इस पड़ाव पर भी उनको ध्यान में रखकर रोल लिखे जाते हैं।
(अभिनेता)
: सतीश कौशिक
उनकी सफलता अविश्वनीय है। वे अपवाद हैं। उनकी व्याख्या नहीं की जा सकती। उनके साथ कई फिल्में करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। बतौर साथी कलाकार उनसे बेहतर इंसान मैंने अपनी जिंदगी में आज तक नहीं देखा। वे ऐसे शख्स हैं, जिनके पदचिह्नों पर हर किसी को चलना चाहिए।
(अभिनेता-निर्देशक)
: कुणाल खेमू
वे भले ही 70 साल के होने जा रहे हों, लेकिन मैं उन्हें यूथ आइकन मानता हूं। उन्होंने इस इंडस्ट्री को बहुत कुछ दिया है। असल जिंदगी में भी हर मायने में कमाल की शख्सियत हैं। अपने मेकअप मैन की फिल्में मुफ्त में करते हैं। दोस्तों या जानने वालों की फिल्मों के लांच समारोह में चले जाते हैं। वह भी बिना किसी टैंट्रम और लेटलतीफी के। आज के युग में ऐसे लोग कहां मिलते हैं।
(अभिनेता)
: रूमी जाफरी
उनके सरीखा अनुशासित व्यक्ति मैंने कहीं नहीं देखा। मुझे याद है कई साल पहले मुंबई में एक ही दिन तीन अलग अलग जगहों पर समारोह आयोजित थे। तीनों दूर-दूर थे। इसके बावजूद उन्होंने सभी समारोहों में तय समय से पहले शिरकत की। उनकी यह आदत आज भी बरकरार है। समय से सेट और समारोह पर पहुंचते हैं। यही उनकी सफलता और बीमारी से सफलतापूर्वक लड़ कर वापस आने का राज है।
(लेखक-निर्देशक)
: अर्चना पूरन सिंह
सिनेमा के प्रति उनका सेंस कमाल का है। बहुत जुनूनी हैं। रिसर्च से नहीं घबराते। ‘अग्निपथ’ से लेकर ‘मोहब्बतें’ तक उनका रिसर्च ग्राफ देखा जा सकता है। ‘अग्निपथ’ के लिए जहां उन्होंने अपनी आवाज बदली, वहीं ‘मोहब्बतें’ में एंग्री यंग मैन के बजाय एंग्री ओल्ड मैन की भूमिका में दिखे। इसके बाद उनकी छवि आइडियल पिता के रूप में उभरी।
(अभिनेत्री)
: मुग्धा गोडसे
मेरी नजर में वे असल ग्रीक गॉड हैं। उन पर लड़कियां मरती थीं, लेकिन उन्होंने कभी खुद को कैसानोवा नहीं बनने दिया। आमतौर पर फिल्म इंडस्ट्री में ऐसा नहीं होता, पर वे अपवाद थे। तभी एक-दो घटनाओं को छोड़ दें तो कभी उनके अफेयर के किस्से सुनने को नहीं मिले। वे मिसाल हैं संयम का।
(अभिनेत्री)
कुल कोट : 25
: गौरव सोलंकी
अमिताभ हमारे पिताओं और बच्चों, दोनों को अपने दोस्त-से लगते हैं। ऐसा और कोई मशहूर व्यक्ति नहीं. यह अपनापन अनजाने में या जानबूझकर गढ़ा गया एक भ्रम भी हो सकता है लेकिन अमिताभ की छवि ऐसी है कि कोई भी उत्तरभारतीय मध्यवर्गीय परिवार उन्हें अपने घर के बुजुर्ग जैसा मान सकता है। बीस साल पहले तक वह उन्हें अपने लिए लडऩे वाला जवान बेटा मानता था। आप कस्बों और गांवों की ओर बढ़ेंगे तो वह छवि कई मिथक अपने साथ जोड़ती जाएगी। मसलन अपने बचपन में हम सबके लिए वही दुनिया के सबसे लंबे आदमी थे। मेरे पिता के लिए वे ऐसे आदमी हैं जिन्होंने अदभुत सफलता को अपने सिर नहीं चढऩे दिया और सब संस्कार बचाकर रखे।
(गीतकार-समीक्षक)
: गुलशन देवैया
इस देश के हर उम्र के लोगों को पता है कि बच्चन साहब ही एकमात्र ऐसे सुपरस्टार हैं, जो सभी पीढिय़ों के करीब हंै। बच्चा-बच्चा जानता है कि बिग बी कौन हैं।
(अभिनेता)
: रजत बरमेचा
बच्चन साहब 70 वें साल में वह सब कुछ कर रहे हैं, जिनकी हम सिर्फ कल्पना कर सकते हैं। मेरे दिल में उनके और उनके द्वारा किए गए काम के प्रति अगाध श्रद्धा और प्रेम है। मेरा सपना है कि उनकी उम्र का होने पर मैं भी उनकी तरह ही ऊर्जावान और सुंदर दिखता रहूं।
(अभिनेता)
: रुसलान मुमताज
बिग बी मेरे लिए लार्जर दैन लाइफ शख्सियत हैं। वे इंडिया शब्द के समानार्थी हैं। मतलब यह कि अगर आप किसी विदेशी से कहो कि आप इंडिया से हो तो उसकी पहली प्रतिक्रिया होगी, ओह अमिताभ बच्चन। जो 3 साल के बच्चे से लेकर 80 साल के बुजुर्ग तक की पहली पसंद है, वह सिर्फ और सिर्फ अमिताभ बच्चन है।
(अभिनेता)
: रानी मुखर्जी
मेरी खुशनसीबी है कि मुझे उनके साथ काम करने का मौका मिला। ऐसे लीजेंड के साथ मैं फ्रेम शेयर कर सकी। मुझे इस बात की खास खुशी है कि मैंने उनके साथ ‘ब्लैक’ की है। वह मेरे करियर की सबसे खास फिल्म है। उनसे मिलने और बातचीत करने में बहुत मजा आता है। वे अत्यंत विनम्र हैं। वे कभी सामने बैठे व्यक्ति को एहसास नहीं कराते कि वे अमिताभ बच्चन हैं। वे हमारे साथ हमारी उम्र के बन जाते हैं। मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा है, जो अपने जीवन में अमल करती हूं और आगे भी करूंगी। काम के प्रति उनका समर्पण, ध्यान और फोकस उल्लेखनीय है। मैंने उनके साथ हमेशा एन्ज्वॉय किया। मेरी मुलाकातें ज्यादातर सेट पर ही हुई हैं। इसलिए अभिनेता अमिताभ बच्चन के बारे में ही कुछ कह सकती हूं।
(अभिनेत्री)
: सौरभ शुक्ला
बच्चन साहब से सब परिचित हैं। वे कई पीढिय़ों के लिए बेंचमार्क हैं। संपूर्ण लिजैंड हैं। उनकी फिल्मों से एंग्री यंग मैन का इमेज आया। उनको देखकर लोगों का दबा गुस्सा बाहर आया। बिग बी एक्टर थे या नहीं, यह अलग मुद्दा है, लेकिन उनकी सरीखी ऊंचाई हासिल करना नामुमकिन है।
(अभिनेता)
: कल्कि
मेरे ख्याल से हिंदुस्तान में सिर्फ दो लोग ऐसे हैं, जिनके पते पर सिर्फ उनका नाम लिखकर खत भेज दिया जाए तो वह आसानी से पहुंच जाए। एक राष्ट्रपति और दूसरे अमिताभ बच्चन। कमाल की शख्सियत हैं। वे इस बात की मिसाल हैं कि सफलता का कोई शॉर्ट कट नहीं। सतत साधना की बहुत जरूरत है।
(अभिनेत्री)
: सलमान खान
वे 70 साल के होने जा रहे हैं। उनको ढेर सारी शुभकामनाएं। उस इंसान में कमाल की दृढ़ता है। जबरदस्त ताकत है। आज भी पूरी तरह तरोताजा दिखते हैं। वे हर क्षेत्र के लोगों के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं। सफल और संयत रहना कोई उनसे सीखे।
(अभिनेता)
: सुजॉय घोष
मुझसे उनके बारे में पूछा जाए तो वे ऐसे फिल्म स्कूल हैं, जहां की क्लास हर किसी को अटेंड करनी चाहिए। कमाल के अदाकार और उतने ही अ'छे इंसान हैं। मृदुभाषी हैं। सफल हैं। सभी गुणों से परिपूर्ण इंसान की श्रेणी में उन्हें रखना चाहूंगा।
(निर्देशक)
: विवेक अग्निहोत्री
हमारी जेनरेशन के लोग इस इंडस्ट्री में तीन ही लोगों की वजह से आए। सलीम-जावेद, तीसरे अमिताभ बच्चन। जिन्हें लेखक निर्देशक बनना था,उनके लिए सलीम-जावेद प्रेरणा थे। जिन्हें एक्टर बनना था, उनके जहन में सिर्फ अमिताभ बच्चन हुआ करते थे। मैं सबसे कहूंगा कि जब भी आप परेशानी महसूस करो, बिग बी को याद कर लिया करो। सारी शंकाएं दूर हो जाएंगी।
(निर्देशक)
: रजा मुराद
अमिताभ बच्चन जैसी शख्सियत हजार साल में एक बार पैदा होते हैं। वे खास हैं। किसी दूसरी मिट्टी के बने हुए हैं। उन्होंने जिंदगी में जितने उतार-चढ़ाव देखे हैं, उतना किसी और के साथ हो, तो वह बिस्तर गोल कर कहीं और रवाना हो जाए, मगर अमित जी ने ऐसा नहीं होने दिया। उनको देखकर एक शेर याद आता है कि ‘हजारों साल नरगिस अपनी बेनुरी पर रोती है, बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा।’
(अभिनेता)
: वरुण धवन
उनकी मेहनत के काफी चर्चे मैंने करण सर से सुने हैं। वक्त के पाबंद, कमाल की याददाश्त और गजब के हाजिरजवाब हैं। उन्हें साल 2000 में ‘केबीसी’ में देखा था। अब देख रहा हूं। कोई फर्क महसूस नहीं होता। कभी मिलने का मौका मिला तो जरूर पूछूंगा कि वे इतनी ऊर्जा लाते कहां से हैं। हर किसी के साथ अदब से पेश आना उन्हीं से सीख रहा हूं।
(अभिनेता)
: जॉनी लीवर
बच्चन साहब के साथ ‘जादूगर’ फिल्म में काम किया था। उनकी मेहनत देखकर दांतो तले उंगलियां दबाने का मन करता था। याद है मुझे उस फिल्म की शूट चल रही थी। हम सब असिस्टेंट डायरेक्टर से अपने-अपने सीन मांग रहे थे। उस दिन देखा था अमित जी कुर्सियों पर बैठे कुछ बुदबुदा रहे थे। पता किया तो मालूम हुआ कि उन्होंने अपने सीन के स्क्रिप्ट हम लोगों से एक दिन पहले ही मंगवा लिए थे। खुद पर शर्मिंदगी महसूस हुई।
: यशपाल शर्मा
‘आरक्षण’ में उनके साथ काम कर पता चल गया कि क्यों उनका कद इतना बड़ा है। उनका स्टार पावर तो जबरदस्त है ही, अदाकारी के मामले में भी वे अपने समकालीन और अगली पीढ़ी के कलाकारों से बहुत आगे हैं। वे इंडस्ट्री के एकमात्र कलाकार हैं, जिनको ध्यान में रखकर भूमिकाएं लिखी जाती हैं। ‘पा’ और ‘ब्लैक’ जैसी फिल्में उनके सिवा और कोई नहीं कर सकता था।
(अभिनेता)
: रणदीप हुड्डा
मेरे लिए उनके व्यक्तित्व पर कोई टिप्पणी करना ‘छोटी मुंह बड़ी बात’ सरीखी होगी। वे इंडस्ट्री के ऑल टाइम लिजैंड हैं। वे नित नए कीर्तिमान गढऩे वाले इंसान हैं। संगीन आरोपों का सामना करने के बावजूद उस चक्रव्यूह से बाहर निकलना सचमुच हर किसी के बस की बात नहीं है।
(अभिनेता)
: ऋचा चड्ढा
एक कलाकार के तौर पर उन्होंने देश के लिए जो किया है, वह कल्पना से परे है। उन्होंने खुद को रिडिफाइन किया है। आज भी नाचते-गाते झूमते मिल जाते हैं। ‘बोल बच्चन’ ताजातरीन उदाहरण है इसका। हर इंसान को पूरी इज्जत देते हैं। वे सही मायनों में अजीमो शान शहंशाह हैं।
(अभिनेत्री)
: के के मेनन
उनका हीरोइज्म को ‘विजय बच्चन’ नाम देना चाहूंगा। हमारी पीढ़ी के लोगों ने हमेशा अमिताभ बच्चन बनना चाहा। वे एक परिकल्पना हैं। वे प्रेरित करते हैं कि कभी मत थको, मत झुको, जीत तुम्हारे कदम चूमेगी। जिस तरह से विवादों, बीमारी और वित्तीय संकट पर उन्होंने पार पाया, वह कोई रीयल लाइफ फाइटर ही कर सकता है। मेरे ख्याल से दुनिया में उनसे बड़ा मोडेस्ट और कोई नहीं हो सकता।
(अभिनेता)
: मनु ऋषि
उन्होंने इंसानियत की एक नई क्लास ईजाद की है। मेरे ख्याल से दुनिया में अच्छा आदमी, बुरा आदमी और तीसरा अमिताभ बच्चन होता है। याद है मुझे आइफा अवार्ड समारोह में उन्होंने मुझे पुरस्कार देते हुए कहा, हाय मैं हूं अमिताभ बच्चन। यह सुनकर मैं अभिभूत हो गया। वे सामने वालों को इतना कम्फर्ट देते हैं कि उसे किसी तरह की नवर्सनेस महसूस नहीं होती।
(अभिनेता)
चित्रांगदा सिंह- अभिनेत्री
उन्हें अभिनेता कहना एक सामान्य कथन होगा। अभिनय के टैग से परे उनका व्यक्तित्व बहुत हद तक लोगों को बेहतर करने की सीख देता है। हिंदी सिनेमा को अपनी फिल्मों के जरिए एक अलग मकाम तक पहुंचाया है। किस अभिनेता की तमन्ना नहीं होगी उनके साथ काम करने की।
(अभिनेत्री)
: संगीत सिवन
तेलुगू सिनेमा से हिंदी में आने की मेरी सबसे बड़ी वजह बिग बी हैं। मैं कॉलेज के दिनों में उनका बहुत बड़ा फैन था,लेकिन हमारे परिवार में हिंदी और हिंदी सिनेमा को सपोर्ट करने वाला कोई माहौल नहीं था। जब भी बिग बी की फिल्म हमारे यहां सिनेमाघरों में लगती तो मैं कॉलेज बंक करके फिल्में देखने चला जाता। उनकी प्रेरणा और एंग्री यंगमैन वाले जमाने का मेरे ऊपर काफी असर हुआ। मैं सिनेमा में उन्हीं की वजह से हूं।
(निर्देशक)
: राहुल ढोलकिया
अमित जी अपने आप में एक इंडस्ट्री है। समय के बदलने के साथ ही उन्होंने अपने आप को भी बदला और प्रूव कर दिया कि वह एक बेहतरीन परफॉरमर हैं। उतार-चढ़ाव इंडस्ट्री में हर व्यक्ति के जीवन में आते रहते हैं,लेकिन उनका करियर की बुलंदी पर पहुंचना एक अभिनेता के अभिनय की ललक को दर्शाता है। वे पूरी तरह निर्देशक के अभिनेता हैं। मेरा उनके साथ काम करने का बहुत ही मन है।
(निर्देशक)
: राम गोपाल वर्मा- निर्देशक
मैंने उनके साथ बहुत काम किया है और आगे भी करता रहूंगा। उनके बारे में बोलना बहुत ही प्रेडिक्टेबल है और लोगों को लगेगा कि मैं अपना संबंध बनाने के लिए उनकी तारीफ कर रहा हूं। लेकिन, मुझे पता है कि मैं जो अंदर हूं, वही बाहर हूं। उनके जैसे विश्वसनीय लोग कम ही हैं।
(निर्देशक)
: मैरी कॉम
वह बहुत ही जिंदादिल इंसान हैं। एक स्पोर्टपर्सन होने के नाते मैंने उनके अंदर के अभिनेता को तुरंत समझ लिया था। मेरे मेडल जीतने के बाद लोगों की बधाई का तांता लग गया,लेकिन अमिताभ बच्चन की बधाई मेरे लिए बहुत ही खास रही। इस उम्र में उनका जज्बा हम खिलाडिय़ों को बहुत ही प्रोत्साहन देने वाला है।
(बॉक्सर)
: जे डी चक्रवर्ती
कौन नहीं काम करना चाहता है उनके साथ। हम मूल रूप से हिंदी बोलने वाले लोग नहीं है,लेकिन उनका हिंदी बोलना हमारे लिए किसी सीख से कम नहीं है। उनकी फिल्में देखकर हम जैसे कई दक्षिण भारतीय कलाकारों ने हिंदी बोलनी सीखी है।
(अभिनेता)
: गौरी श्ंिादे
विज्ञापन फिल्मों की कैचलाइन की तरह हैं बिग बी। जहां जाते हैं वहां क्लिक हो जाते हैं। पा और चीनी कम में मैं और बाल्की उनके एनर्जी लेवल का मुरीद हो गए थे। कभी-कभी तो हम थक जाते थे लेकिन उनकी ललक देखकर हमें भी निरंतर काम करने की सीख मिलती है।
(निर्देशक)
: करण जौहर
अमित अंकल के लिए मैं क्या कह सकता हूं। सारी दुनिया जानती है उनके बारे में। वे भगवान हैं हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के। वे इंसान नहीं संस्थान हैं। मेरा मानना है कि उन्होंने अपने टाइम स्पैन में जो कुछ किया, वह इनक्रेडिबल है। लिजेंड के आगे का दर्जा दिया जा सकता है उन्हें। उनकी एक मौजूदगी है। वे जहां भी जाते हैं, जिनसे मिलते हैं, उसेे प्रभावित कर देते हैें। हिंदुस्तान में एक ही अमिताभ बच्चन है और एक ही रहेगा।
(निर्देशक)
: अक्षय कुमार
खुद को खुशकिस्मत मानता हूं, जो उनके साथ काम कई बार काम करने का मौका मिला। वे जहां भी मिलते हैं, लंदन हो, टोरंटो हा या हिंदुस्तान का कोई शहर, मन में आदर भाव जग जाते हैं। उनके चरण स्पर्श करता हूं। ऊपरवाले से यही कामना करता हूं कि मैं भी उनकी तरह नेकदिल इंसान बन सकूं। सही मायने में पेशेवर होना और काम के प्रति समर्पण की भावना उन्हीं से सीखी है। उनकी संगत और ट्विंकल के साथ ने मुझे संयत इंसान बनने में मदद की।
(अभिनेता)
: परेश रावल
उनकी जैसी ऊर्जा हो तो इंसान नामुमकिन काम भी चुटकियों में कर ले। वे आज भी 20-20 घंटे काम करते हैं। सोने से पहले सोशल साइट पर अपने प्रशंसकों के नाम मैसेज छोड़ते हैं। यह बताता है कि इंसान चाहे तो अपने काम और संबंधों के बीच आसानी से संतुलन साधा जा सकता है। रिश्तों को सहेजने की कला कोई उनसे सीखे। दोस्तों, परिचितों और समकालीन कलाकारों की मदद के लिए वे हमेशा तैयार रहते हैं। वे पैट्रन हैं। वे कभी-कभी मस्ती भी करते हैं।
(अभिनेता)
: प्रीति जिंटा
मैं उनकी बचपन से बहुत बड़ी फैन रही हूं। कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उन जैसी हस्ती के साथ काम करने को मौका मिलेगा। इंडस्ट्री में जब मैंने कदम रखा तो दो लोगों के साथ काम करने की दिली ख्वाहिश थी। एक धरम जी और दूसरे अमित अंकल। धरम जी के साथ इसलिए, क्योंकि उनकी शक्ल मेरे पिता से काफी मिलती-जुलती थी, जबकि अमित जी को बतौर कलाकार मैं काफी चाहती थी। सोने पर सुहागा यह रहा कि उनके साथ-साथ जया आंटी और अभिषेक के साथ भी काम करने का मौका मिला। बिग बी संपूर्णता शब्द के समानार्थक हैं।
(अभिनेत्री)
: अर्जुन रामपाल
वे फिल्म जगत के बादशाह तो हैं हीं, मैं उन्हें सबसे बड़ा मॉडल भी मानता हूं। अपने दौर में उन्होंने जिन किस्मों के स्टाइल स्टेटमेंट से पूरी दुनिया को रू-ब-रू कराया, वह कमाल का था। मेरे ख्याल से आला दर्जे का मॉडल वह है जिन्हें लोग फिजिकल लिमिटेशन के बावजूद पसंद करें। अमित जी में वह बात थी। वे बॉडी बिल्डर या तीखे नैन-नक्श वाले नहीं थे, पर उन पर लड़कियां जान छिडक़ती थीं। 60 के पार भी उनका जलवा रहा। विज्ञापन जगत में वे धूम मचाते नजर आए। उनके दौर में विज्ञापन कंपनियां होतीं, तो शायद सबसे बड़े बै्रंड एंबेसेडर वह होते।
(अभिनेता)
: विपुल शाह
पहले तो मैं उनका सबसे बड़ा फैन हूं। उनकी इतनी चीजों का मुझपर इम्प्रेशन है कि किसी एक चीज के बारे में बोलना गलत होगा। ‘आंखे’ के दौरान का वाकया सुनाता हूं। विक्रम फडणीस फिल्म के कॉस्ट्यूम डिजाइनर थे। किसी कारण से सेट पर नहीं आ रहे थे। मैंने अमित जी से कहा कि सर आप एक एसएमएस विक्रम को करें कि आप उनके कॉस्ट्ूयम में सहज महसूस नहीं कर रहे हैं। उन्होंने किया। मैसेज मिला कि विक्रम सारी दुनिया छोडक़र दौड़ते-भागते अमित जी के पास आए।
(निर्देशक)
: कुणाल कोहली
उनके सामने सुपरस्टार शब्द भी छोटा पड़ जाता है। उनका नाम ही एक अलग कीर्तिमान है। सफलता को सिर न चढऩे देना और असफलता को दिल में जगह न देना कोई उनसे सीखे। वे इंडस्ट्री के अकेले बेताज बादशाह हैं। उनकी जितनी लंबी पारी खेलना नामुमकिन हैं। इसके पीछे अहम वजह उनका व्यवहार है।
े(निर्देशक)
: शरत सक्सेना
उनके बारे में क्या बताऊं, हर कोई उनसे वाकिफ है। वे ऐसे स्टार हैं, जिनमें घमंड लेशमात्र नहीं है। उनके साथ ‘शहंशाह’ से ‘बागवान’ तक कई फिल्मों में साथ काम करने का मौका मिला। सेट पर वे अपने साथी कलाकार को यह कभी महसूस नहीं होने देते कि वे अमिताभ बच्चन जैसे बड़े कलाकार के साथ काम कर रहे हैं। माहौल खुशनुमा बनाए रखते हैं। टिप्स भी देते रहते हैं कि फलां शॉट कैसे करना चाहिए। हंसी-मजाक उनकी आदत में शामिल है। जिस दिन भावुक सीन देने होते हैं, उस दिन थोड़े गंभीर रहते हैं। हिंदी सिनेमा में इतना संपूर्ण एक्टर आया ही नहीं।
(अभिनेता)
: अनुपम खेर
वे हर एक इंसान के लिए इंसपिरेशन हैं। उनसे काफी कुछ सीखने, समझने और जिंदगी को दूसरे नजरिए से देखने का मौका मिला। वे हर हाल में खुश रहने वाले इंसान हैं। उनकी जितनी कामयाबी किसी को नहीं मिली होगी, लेकिन उनके जितना विनम्र इंसान मैंने नहीं देखा। कहावत है कि फल लगने पर पेड़ और झुक जाता है, इसे वही चरितार्थ करते हैं।
(अभिनेता)
: राजकुमार गुप्ता
जबसे इस इंडस्ट्री में कदम रखा है, एक ही सपना है कि उनके साथ काम करना है। उनको देखकर लगता ही नहीं कि वे 70 साल के होने जा रहे हैं। जिस तरह वे सेट और समारोहों में नजर आते हैं, वे काफी कमाल की चीज है। हम लोगों को तो अपने ऊपर शर्म आती है कि हम उनकी तरह क्यों नहीं बन पा रहे हैं? व्यक्तिगत तौर पर उनसे नहीं मिला, लेकिन उनके प्रभाव को मैं महसूस कर सकता हूं। मैं इस वक्त खुलासा नहीं करूंगा, पर उनके लिए कई किरदार मैंने सोच रखे हैं, जो उनके ऊपर फिल्माना चाहता हूं
(निर्देशक)
: रवीश कुमार
अनुशासन अमिताभ बच्चन की सबसे बड़ी कुंजी है । आरक्षण फि़ल्म के संदर्भ में उनके साथ रिकार्डिंग करनी थी । उससे पहले की रात वे अंग्रेज़ी चैनल के साथ देर तक रिकार्डिंग कर रहे थे । लेकिन वे बिल्कुल डाट समय पर पहुँचे । सभी कलाकारों से पहले और इस बात की परवाह भी नहीं की कि एंकर नया है या पुराना । वे बच्चे की तरह मेकअप रूम में आए और मेकअप के लिए ख़ुद को हवाले कर दिया । यह एक कलाकार के बने रहने के लिए बेहद ज़रूरी है कि वो अपने पेशे से जुड़े माध्यमों में निरंतर दिलचस्पी बनाए रखे ।
अभिनय के अलावा उनके कुछ और पहलुओं की बात करना चाहता हूं । अमिताभ की भाषा उच्च कोटी की है । हिन्दी और अंग्रेज़ी दोनों । अगर आप उनके ट्वीट फालो करते हैं तो उनकी अंग्रेज़ी पर ग़ौर कीजिएगा । अमिताभ अपनी भाषा में भी बेहद अनुशासित हैं । वे भाषा के साथ कोई लापरवाही नहीं करते हैं । हिन्दी भी हिन्दी की तरह लिखते हैं । नए माध्यमों में भी उन्होंने भाषा के संस्कार से खिलवाड़ नहीं किया है । टाइपिंग की ग़लती को भी गंभीरता से लेते हैं और सुधार की घोषणा करते हैं । इसीलिए बच्चन आकर्षक बने रहते हैं ।
बाज़ार के अभिनेता तो सब हैं लेकिन उस बाज़ार में बच्चन की जगह उनके अभिनय से कहीं ज़्यादा माँग के अनुसार बदलने के आग्रह से है । इस उम्र में भी वे ट्वीट करते हैं कि सुबह के चार बज रहे हैं, मुंबई में बारिश हो रही है और मैं शूट के लिए निकल रहा हूं । वे कभी भी अपनी बोरियत थकान का जश्न नहीं मनाते और न ज़िक्र करते हैं । इससे पता चलता है कि रोजग़ार को कितनी गंभीरता और सम्मान देते हैं । यह सब अनुकरणीय है ।
(टीवी एंकर और ब्लॉगर)
: राजपाल यादव
उनका समर्पण,पैशन और लोगों के प्रति उनकी सोच ही उन्हें इतने सालों से ऊपर बिठाए हुए है।उनके सामने मैं क्या हूं? फिर भी मेरे निमंत्रण पर वे अता पता लापता का म्यूजिक लांच करने आए और कार्यक्रम में बैठे रहे। उन्होंने सभी के सामने मेरे कंधे पर हाथ रख कर मेरा हौसला बढ़ाया। मैं उनकी दृढ़ता,गंभीरता और कमिटमेंट का आदर करता हूं।
(अभिनेता) : निखिल द्विवेद्वी
बिग बी की शख्सियत का वर्णन नहीं किया जा सकता। हम उन्हें सिर्फ महसूस कर सकते हैं। मेरे ख्याल से इंडस्ट्री में वे अकेले ऐसे कलाकार हैं, जो कुली, डॉन या फिर रईस इंसान का रोल बखूबी निभा सकते हैं। उनकी वजह से मैंने भी अदाकारी करने की ही ठानी।
(अभिनेता)
: नवाजुद्दीन
आमतौर पर इस इंडस्ट्री में वक्त को लेकर ज्यादातर कथित स्टार लापरवाही बरतते हैं, लेकिन बिग बी में ऐसा नहीं रहा है। वे वक्त के बड़े पाबंद हैं। उनकी इंटेनसिटी मुझे बहुत भाती है। अपने किरदार में डूब जाना कोई उनसे सीखे। रिश्तों को निभाने में उनसे बेहतर इनसान मैंने अब तक नहीं देखा। मेरा मानना है कि जो इंसान सफल है, अपना काम बेहतर तरीके से अंजाम देता है, वह नेकदिल भी जरूर होगा।
(अभिनेता)
: समीर कार्णिक
भारतीय सिनेमा को उनसे बेहतर कलाकार, स्टार और एक इंसान दुबारा शायद ही मिले। उनके साथ बार-बार काम करने की इ'छा है। मेरा सपना है कि उन्हें ‘गॉडफादर’ के रूप में देख सकूं।
(निर्देशक)
: पंकज त्रिपाठी
उन्हें यहां के तीन पीढिय़ों के दर्शकों के बारे में पता है। सही मायनों में पेशेवर हैं। उनका नाम अमिताभ अनुशासन बच्चन होना चाहिए।
(अभिनेता)
: अमोल गुप्ते
कमाल की शख्यिसत हैं। ज्ञान से भरपूर हैं। विनम्रता की प्रतिमूर्ति हैं। उन्हें आज के दौर का पुरुषोत्तम कहूं तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
(निर्देशक)
: सीमा आजमी
वे हर किसी के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं। ‘आरक्षण’ में पहली बार उनके साथ काम करने का मौका मिला। सेट पर उस फिल्म की शूटिंग घंटों हुआ करती थी, लेकिन वे कभी आराम करते नहीं दिखते।
(अभिनेत्री)
: रणबीर कपूर
अभिनेता अमिताभ बच्चन के बारे में कुछ भी कहना चाहूं तो ‘बर्बाद करें अल्फाज मेरे’। वे फिल्म इंडस्ट्री के साथ ही देश का चेहरा हैं। उन्होंने हिंदी सिनेमा को कई मोड़ और ऊचाइयां दी हैं। फिल्म, टीवी में हम उनका साम्राज्य देख रहे हैं। कल को रेडियो पर आए तो हर तरफ उन्हीं की आवाज गूंजेगी। मेरी जानकारी में फिल्म इंडस्ट्री में उनसे अच्छा इंसान देखने को नहीं मिला। कॉलेज के दिनों में वे मुझे हर जन्मदिन पर बधाई जरूर देते थे। कभी घर पर नहीं रहा तो मैसेज छोड़ते थे। ‘सांवरिया’ और ‘रॉकस्टार’ के बाद उन्होंने मुझे पत्र भी लिखे। उन्होंने मुझे और इम्तियाज को डिनर पर बुलाया। वे नई पीढ़ी को प्रोत्साहित करते हैं। उन्होंने हिंदी सिनेमा को ‘कूल’ बनाया है।
(अभिनेता)
: करीना कपूर
मेरा करियर उनके बेटे की फिल्म के साथ शुरू हुआ। उन दिनों काफी मिलना-जुलना था। मैंने बाद में दो फिल्में भी उनके साथ कीं। वे हिंदी फिल्मों के लिविंग लिजेंड हैं। हमारी पीढ़ी के सभी स्टार उनके जबरदस्त फैन हैं। वे बहुत ही तेज, मधुर और विनम्र व्यक्ति हैं। हम सब उनसे यह सीख सकते हैं।
(अभिनेत्री)
: प्रसून जोशी
बिग बी को ब्रांड बिल्डिंग की जरूरत नहीं है। मैंने उनके संग विज्ञापन फिल्मों में काम किया है। उनके लिए आईपीएल में गाने लिखे हैं। वे हिंदी हार्टलैंड और मल्टीप्लेक्स दोनों वर्ग के ऑडिएंस को कनेक्ट करते हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि उनकी भाषा पर बहुत गहरी पकड़ है। इस बात का अहसास आज की पीढ़ी के के कलाकारों को भी होना चाहिए।
(लेखक-गीतकार)
: दीपिका पादुकोण
मेरे पिता खिलाड़ी रहे हैं, लेकिन स्पोट्र्समैन स्पिरिट बिग बी में भी हैं। वे कभी थकते नहीं, हारते नहीं और जबरदस्त वापसी करते हैं। उनके दौर के कुछ ही कलाकारों में यह बात है। मेरी कोशिश रहेगी कि उनके नक्शेकदम पर चल सकूं। हैट्स ऑफ टू देम।
(अभिनेत्री)
: विमल कुमार
अमिताभ जब फिल्मों में आए उस समय राजेश खन्ना की रोमांटिक फिल्मों का दौर रहा था, लेकिन उन्होंने यंग एंग्री मैन के रूप में युवा पीढ़ी को अपने अभिनय से नई अभिव्यक्ति दी। वो दौर जे.पी. मूवमेंट का भी था, जब छत्र आंदोलन देश में फैल रहा था। अमिताभ समाज में फैले अन्याय दमन और अत्याचार से मुक्ति दिलाने वाले नायक के रूप में सामने आए। उनके दर्शकों में कुली, रिक्शाचालक मिल के मजदूर भी थे, जो कहीं न कहीं पीडि़त थे। अमिताभ ने उन्हें अपनी आवाज दी। अमिताभ के अभिनय की विविधता भी थी। एक तरफ वो ‘आनंद’ कर रहे थे, तो दूसरी ओर ‘डॉन’ की भूमिका में थे। ‘रेशमा और शेरा’ के गूंगे के रूप में परिचय दे रहे थे तो वे ‘जंजीर’ के पुलिस इंस्पेक्टर थे तो ‘सिलसिला’ के रोमांटिक प्रेमी। ‘अभिमान’ के पति भी। बाद में हास्य कलाकार के रूप में नई पहचान कायम की। ‘नमक हलाल’ और ‘अमर अकबर एंथनी’ और बहुत बाद में ‘ब्लैक’ और ‘पा’ में एक नए तरह का अभिनय दिखाया। वे एक संपूर्ण अभिनेता हैं। स्टार भी हैं और एक्टर भी। कई एक्टर अच्छे हैं, पर स्टार नहीं और कई स्टार हैं, लेकिन अच्छे एक्टर नहीं। अमिताभ उन सबसे परे हैं।
(लेखक पत्रकार)
: मिहिर पंड्या
वे भिन्न थे। सिनेमा का ’अन्य’। और उन्होंने इसे ही अपनी ताक़त बनाया। उस ’सिनेमा के अन्य’ को सदा के लिए कहानी का सबसे बड़ा नायक बनाया। वो ्रढ्ढक्र वाला अस्वीकार याद है, उनकी आवाज़ को मानक सांचों से ’भिन्न’ पाया गया था। जल्द ही उन्होंने वे ’मानक सांचे’ बदल दिए। पंजाब के देहातों से भागे गबरू जवानों और पीढिय़ों से सिनेमा बनाते आए खानदानी बेटों के बीच वे एक हिन्दी साहित्यकार के बेटे थे। वे एक ऐसे शहरी मायानगरी के महानायक बने जहाँ आज भी उनके गृहराज्य से आए लोगों को ’भईया’ कहा जाता है। वे ज़रूरत से ज़्यादा लम्बे थे। इसे उनके नायकीय व्यक्तित्व पर प्रतिकूल टिप्पणी की तरह कहा गया। फिर हुआ यह कि उनकी यह लम्बाई उस ऊंची महत्वाकांक्षाओं वाले महानगर के सपनों की वैश्विक प्रतीक बन गई। कहा गया कि वे नायिकाओं के साथ सफ़ल रोमांटिक जोड़ी कैसे बना पायेंगे? उन्होंने अपने सिनेमा में नायिकाओं की ज़रूरत को ही ख़त्म कर दिया। अमिताभ ने हिन्दी सिनेमा की मुख्यधारा को हमेशा के लिए बदल दिया और यह अलिखित नियम पुन: स्थापित किया कि चाहे यहाँ सौ में से नब्बे नायक हमेशा ’अन्दर वाले’ रहें, ’महानायक’ हमेशा कोई बाहरवाला होगा। वे हिन्दी सिनेमा का ’अन्य’ थे, फिर भी वे ’बच्चन’ हुए, यही उनका हमको दिया सबसे बड़ा दाय है।
(फिल्म समीक्षक)
: डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी
‘रेशमा और शेरा’ के एक मूक चरित्र से लेकर ‘कौन बनेगा करोड़पति’ के मुखर अमिताभ बच्चन कुछ-कुछ हिंदी फिल्मों की कहानी से लगते हैं - कुछ अच्छी,कुछ सच्ची और कुछ अविश्वसनीय.पर एक ऐसी कहानी जिसे भूलना मुश्किल है क्यों कि इस अमिताभ-कथा में संघर्ष है,जिंदगी से लडऩे की जि़द है,संकल्प है,विडम्बना है,विरोधाभास है,जीवन का उत्सव और उल्लास है,रोमांच है,करुणा है,पीड़ा है और इन सबके मूल में गहरी आस्था, आशा,तथा अनुसन्धान है.इसलिए यह कहानी अद्वितीय है।
‘सात हिन्दुस्तानी’ से लेकर अब तक चली आ रही सृजनात्मक संभावनाओं के आविष्कार की अविस्मरणीय और विस्मयकारी कहानी है -अमिताभ बच्चन !
सत्तरवें जन्म दिवस पर शुभ कामनाएं और दीर्घ एवं स्वस्थ जीवन के लिए प्रार्थनाएं !
(लेखक -निर्देशक)
: विनोद अनुपम
अमिताभ को सफल होना ही था। इस सफलता में कहीं न कहीं थोडा योगदान अमिताभ के व्यक्तित्व का भी था। उंचा कद जो कभी हिन्दी सिनेमा के नायकों के लिए असामान्य माना जाता था,वही अमिताभ के लिए यू. एस. पी. बन गया, शायद उनके दर्शकों को अपने नायक का सामान्य हिन्दुस्तानियों से अलग दिखना संतोष देता था। अमिताभ तो वही ‘बंशी बिरजू’ थे, लेकिन फिल्में बदलते ही दर्शकों को एक नए अमिताभ का आभाष हुआ। अमिताभ के 1975 से 1990 के बीच की फिल्मों के अधिकांश किरदार शहर के हाशिए पर पडे जीवन से जुडे दिखते हैं। ‘दीवार’ में उनकी भूमिका की शुरुआत डाकयार्ड के कुली से होती है जो बाद में अपनी हैसियत ऐसी बना लेता है कि कह सके, ‘मेरे पास ग$ाड़ी है, बंगला है, पैसा है, तुम्हारे पास क्या है’। अमिताभ यह सवाल भले ही परदे पर अपने पुलिस अधिकारी भाई से करते दिखते हैं, लेकिन लोगों को लगता है उनके बीच का कोई व्यक्ति पूरे आभिजात्य समाज से रु ब रु है। आज भी अमिताभ को देख उसी संतोष का आभाष होता है।
(फिल्म समीक्षक)
: अनुराग कश्यप
उनके जैसा अभिनेता बनने का ख्वाब हर अभिनेता का होता है। हम तो बचपन में निर्देशक बनने की बजाय अमिताभ बच्चन ही बनना चाहते थे। पिता जी के साथ हमारे लखनऊ जाने की एक ही वजह होती थी कि अमिताभ बच्चन की फिल्में देखनी है। मुंबई आने के बाद थोड़ी सी मोहभंग की स्थिति हो गई थी लेकिन अब रिश्ते फिर से सुधर रहे हैं। मैं जल्द ही उनके साथ एक शॉर्ट फिल्म की शूटिंग शुरू करने जा रहा हूं। यह एक अभिनेता की कहानी है]जो उनके जीवन पर ही आधारित होगी।
(लेखक -निर्देशक)
: यश चोपड़ा
अमिताभ बच्चन को मैं उनके कुंवारेपन के दिनों से जानता हूं। हमारी दोस्ती को चालीस साल से अधिक हो गए। उनसे जुड़ी मरी अनगिनत यादें हैं। मेरे लिए वे अनमाल खजाने की तरह हैं।
अमिताभ बच्चन लिजेंडरी एक्टर हैं। उच्च कोटि के अभिनेता हैं। मैंने उनके जैसा पेशेवर और समर्पित अभिनेता नहीं देखा। वे न केवल अप्रतिम अभिनेता हैं,बल्कि अप्रतिम इंसान भी हैं। वे अद्वितीय पति,पिता और पुत्र हैं।
70 वें जन्मदिन पर मैं उनके लिए प्रेम,स्वास्थ्य और खुशी की कामना करता हूं। मैं चाहूंगा कि वे ऐसे ही देदीप्यमान बने रहें और हमें यादगार भूमिकाएं देते रहें।
(निर्देशक)
२: आशुतोष राणा
३: सुरेश शर्मा
४: मनोज बाजपेयी
५: विद्या बालन
६: तिग्मांशु धूलिया
७: संजय चौहान
८: सोनू सूद
९: जयदीप अहलावत
१०: राणा डग्गुबाती
११: अविनाश
१२: कमलेश पांडे
१३: जावेद अख्तर
१४: शाजान पद्मसी
१५: जरीन खान
१६: शक्ति कपूर
१७: श्रेयस तलपड़े
१८: सोनाली बेंद
१९: असिन
२०: ओमी वैद्य
२१: सतीश कौशिक
२२: कुणाल खेमू
२३: रूमी जाफरी
२४: अर्चना पूरन सिंह
२५: मुग्धा गोडसे
२६: गौरव सोलंकी
२७: गुलशन देवैया
२८: रजत बरमेचा
२९: रुसलान मुमताज
३०: रानी मुखर्जी
३१: सौरभ शुक्ला
३२: कल्कि
३३: सलमान खान
३४: सुजॉय घोष
३५: विवेक अग्निहोत्री
३६: रजा मुराद
३७: वरुण धवन
३८: जॉनी लीवर
३९: यशपाल शर्मा
४०: रणदीप हुड्डा
४१: ऋचा चड्ढा
४२: के के मेनन
४२: मनु ऋषि
४४: चित्रांगदा सिंह
४५: संगीत सिवन
४६: राहुल ढोलकिया
४७: राम गोपाल वर्मा
४८: मैरी कॉम
४९: जे डी चक्रवर्ती
५०: गौरी श्ंिादे
५१: करण जौहर
५२: अक्षय कुमार
५३: परेश रावल
५४: प्रीति जिंटा
५५: अर्जुन रामपाल
५६: विपुल शाह
५७: कुणाल कोहली
५८: शरत सक्सेना
५९: अनुपम खेर
६०: राजकुमार गुप्ता
६१: रवीश कुमार
६२: राजपाल यादव
६३: निखिल द्विवेद्वी
६४: नवाजुद्दीन
६५: समीर कार्णिक
६६ : पंकज त्रिपाठी
६७: अमोल गुप्ते
६८: सीमा आजमी
६९ : रणबीर कपूर
७० : करीना कपूर
७१ : प्रसून जोशी
७२ : दीपिका पादुकोण
७३ : विमल कुमार
७४: मिहिर पंड्या
७५: डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी
७६: विनोद अनुपम
७७: अनुराग कश्यप
७८: यश चोपड़ा
: राकेश ओमप्रकाश मेहरा
अपने अनुभवों से यही कहूंगा कि अमित जी किसी पर भरोसा करहते हैं तो पूरी तरह से खुद को समर्पित कर देते हैं। उनके समर्पण से ही उनकी फिल्में निकली हैं। वे संपूर्ण एक्टर हैं। उन्हें सिर्फ एक बार सहमत करना होता है। उस सहमति के बाद वे फिर कुछ नहीं पूछते। ‘अक्स’ के समय तो मैं एकदम नया था, लेकिन सहमति और विश्वास के बाद मेरी पीठ पर अपना हाथ रखा। मुझे पूरा सपोर्ट दिया। कभी किसी दृश्य या संवाद पर नहीं अड़े।
(निर्देशक)
: आशुतोष राणा
या तो पिता महान होते हैं या पुत्र। पिता-पुत्र दोनों कालजयी हैं। एक ने भावों को उकेरने के लिए कविता का सहारा लिया तो दूसरे ने अभिनय। दोनों इनके लिए जाने जाते होंगे। अदाकार खुद को दोहराता है। कलाकखुद को नहीं दोहराता है। वे हिंदी फिल्मों ऐसे अदाकार हैं, जो सही अर्थों में कलाकार हैं। उनकी अदाओं में कला दिखती है। एंग्री यंग मैन, ‘ब्लैक’ और ‘पा’ या फिर ‘दीवार’ या ‘आंखें’ ़ ़ ़इन फिल्मों में उनके अभिनय में जमीन-आसमान का अंतर पाएंगे। उनकी अदा भी चली,कला भी। सौ प्रतिशत अभिनेता हैं वे। अभिनय का सुर और सुख दोनों अमिताभ ने दिखाया। इस 70 वर्षीय युवा में हमें भाई, पिता, गुरू और मित्र नजर आता है। वे सखा सदृश हो गए हैं। सखा पलट दें तो वह खास हो जाता है। अमित जी हमारे खास हैं।
(अभिनेता)
: सुरेश शर्मा
हिंदी सिनेमा में कुछ ही नायकों ने अभिनय की दुनिया में निर्एायक परिवर्तन किए, उनमें अमिताभ बच्चन पहली पंक्ति में हैं। वे चार्ली चैप्लिन की तरह ऐसे महान अभिनेता हैं जो महज चरित्र को अभिव्यक्त नहीं करते, बल्कि अपने अभिनय की रचनात्मकता से उसका विकास करते हैं। पटकथा जो चरित्र उन्हें देती है वह उनके अभिनय के बाद वही नहीं रह जाता है, वह उससे आगे निकल जाते हैं। यही विशेष्ता बिग बी को बिग ए एक्टर बनाती है। यह अफसोस का विषय है कि निर्देशकों ने उनसे ज्यादातर घोर व्यावसायिक और फार्मूला वाली फिल्मों में काम लिया है। ‘ब्लैक’ और ‘सौदागर’ जैसी फिल्में अगर ज्यादा नहीं मिलीं तो उन्हें स्वयं ऐसे रोल के लिए पहल करनी चाहिए थी। वैसे 70 वर्ष की उम्र तक फिल्म की मुख्यधारा में वे अपनी अद्वितीय रचनात्मकता के कारण ही बने हुए हैं। र्
(विभागाध्यक्ष, नाट्य कला और हिंदी अध्ययन विभाग, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय, वर्धा)
: मनोज बाजपेयी
हाल-फिलहाल के दिनों में मैंने गौर किया है कि अमित जी का झुकाव खास तरह की फिल्मों और अभिनेताओं की ओर हुआ है। वे केवल उनकी सराहना नहीं करते हैं। सराहना करते समय अपनी आवाज ऊंची रखते हैं। उन सभी में मैं भी एक भाग्यशाली हूं। मेरे बारे में वे कुछ न कुछ बोलते रहे हैं। बुरी कम,अच्छी ज्यादा। उनसे मिली सराहना हम सभी के लिए प्रेरक है। इससे यह भी जाहिर होता है कि वे प्रतियोगी की मानसिकता से बाहर आ गए हैं। अनुशासन, समय की पाबंदी, सभी के प्रति आदर, काम के प्रति उत्साह और उत्सुकता.. क़ैसे कोई व्यक्ति इन तत्वों को लगातार बनाए रख सकता है। यह एक रहस्य है। यही सीखने की चीज है।
: विद्या बालन
मुझसे अधिक भाग्यशाली और कौन हो सकता है। मैंने उनकी मां का किरदार निभाया है। जिस शख्स को पूरी दुनिया महानायक के तौर पर जानती है, उसकी मां को कितना गर्व होगा? उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है। उनकी ऊर्जा प्रेरित करती है। बताती है कि मुझे अभी लंबा सफर तय करना है।
(अभिनेत्री)
: तिग्मांशु धूलिया
गोविंदा और बिग बी, मेरे दो सबसे पसंदीदा अभिनेता रहे हैं। बिग बी और मेरा इलाहाबाद का कनेक्शन है। कौन निर्देशक होगा जो उनको निर्देशित नहीं करना चाहेगा? किसी निर्देशक के जीवन का सबसे बेहतरीन दिन होगा जब वह बिग बी जैसी शख्सियत को निर्देश दे रहा होगा।
(निर्देशक)
: संजय चौहान
वे एक बेहतरीन अभिनेता ही नहीं उम्दा इंसान भी है। अनुशासन कोई उनसे सीखे। सबसे बड़ी बात वे किसी की बेइइज्जती नहीं करते। सबको एक समान समझते हैं। एक लेखक के तौर पर मैं कह सकता हूं कि उनसे ज्यादा लेखकीय इज्जत किसी अभिनेता को बख्शी नहीं जा सकती।
(लेखक)
: सोनू सूद
मेरी कद-काठी उन जैसी है। मेरे घरवाले हमेशा मुझे डुप्लीकेट बच्चन कह कर पुकारते हैं। ‘मैक्सिमम’ में कॉप का रोल कर मैं खुद को ‘जंजीर’ का इंस्पेक्टर विजय समझने लगा था। उनके साथ आगे काम करने की बहुत इच्छा है।
(अभिनेता)
: जयदीप अहलावत
उन्हें हमेशा लार्जर दैन लाइफ इमेज में देखा है। इंडस्ट्री की तीन पीढिय़ों के कलाकारों को प्रेरित किया है। भगवान उन्हें लंबी उम्र दे। काम के प्रति उनका समर्पण कमाल का है।
(अभिनेता)
: राणा डग्गुबाती
मैं उनका कायल हूं। काबिलियत के सारे कीर्तिमान वे ध्वस्त कर चुके हैं। बस एक चीज में मैं उनसे आगे हूं, वह है लंबाई। मैं उनसे एक इंच लंबा हूं। ‘डिपार्टमेंट’ के सेट पर इस बात का अनुभव हुआ। अपने घर वालों और दोस्तों को बड़े फख्र से यह बात बार-बार बताता रहता हूं।
(अभिनेता)
: अविनाश
हम उन दिनों से अमिताभ बच्चन को जानते हैं, जिन दिनों अपने आपको भी हम नहीं जानते थे। वे हमारे समय के पहले और (यकीनन) आखिरी महानायक हैं। उनके जादुई जीवन के उत्तराद्र्ध पर गौर करने से पता चलता है कि उन्हें शून्य से उठना आता है और शिखर पर पहुंच कर भी संयमित रहना आता है। वे हिंदी के भी गौरव हैं। इसलिए नहीं कि उनके पिता एक मशहूर कवि थे। बल्कि इसलिए कि अंग्रेजियत से भरे बॉलीवुड के कारोबार में भी उन्हें हिंदी बोलना और बरतना आता है। इस बड़बोले समय में अमिताभ बच्चन से हम एक चीज और सीख सकते हैं कि कैसे अपनी वाणी पर संयम रखा जाए। नेहरु-गांधी परिवार से अपने उलझे हुए रिश्तों पर उन्होंने जब भी कुछ कहा है, मर्यादा की ओट लेकर कहा है। जीवन के उतार-चढ़ाव और अभिनय के ऊबड़-खाबड़ में हमेशा गरिमामय व्यक्तित्व धारण करने वाले सत्तर-साला अमिताभ बच्चन से हम नौजवान हमेशा प्रेरणा ग्रहण करते रहेंगे।
(मोहल्ला लाइव के संचालक)
: कमलेश पांडे
हॉलीवुड के महान अभिनेता गैरी कूपर के बारे में कहा जाता है कि सिनेमा के पर्दे पर उनकी जैसी बोलती हुई खामोशी कोई नहीं ले आ पाया है। उनकी फिल्में दर्शकों के अंदर झांकने का निमंत्रण है। हेनरी फोंडा, मर्लिन ब्रांडो, अल पचीनो जैसे कुछ अभिनेताओं ने अपनी खामोशी को सफलतापूर्वक चेहरे की भाषा बनाया है। यह भाषा शब्दों की मोहताज नहीं है।
हमारे यहां भी यह खूबी दिलीप कुमार, मीना कुमारी, मधुबाला, नूतन, बलराज साहनी, गुरूदत्त में रही है। वे सब बिना संवाद के भी अपने चेहरे को भाव पढऩे देते थे और दर्शकों को बांधे रखते थे। ये चेहरे वे चेहरे थे, जिसमें गहरे पानी का ठहराव था। जिसके अंदर न जाने कितने तूफान छिपे हुए थे।
वर्तमान में यह खूबी सिर्फ एक में है-अमिताभ बच्चन। अमिताभ बच्चन का चेहरा पुरानी कीमती शराब की तरह वक्त के साथ और नशीला होता गया है। उनके चेहरे का एक भूगोल है। इस भूगोल को एक लेखक भी पढऩा चाहता है और कैमरामैन भी। कैमरामैन के लिए उनके चेहरे की घाटियां और पठारों से गुजरती, उनके आते-जाते मूड्स के साथ बदलती परछाइयां और उन घाटियों के बीच उनकी सर्द ज्वालामुखी सी अंदर ही अंदर सुलगती आंखें एक ऐसा लोक निर्मित करती हैं, जहां जाने में डर भी लगता है और जहां जाए बिना रहा भी नहीं जाता है। लेखक और कैमरामैन दोनों के लिए अमिताभ बच्चन एक ईनाम हैं और चुनौती हैं। यह और बात है कि केबीसी के संचालक के रूप में उन्होंने एक सम्मानीय बुजुर्ग का चोला अख्त्यिार कर लिया है। टीवी में कुछ हद तक दर्शकों से धीरज का गुण छीन लिया। उन्हें हर चीज इंस्टेंट कॉफी की तरह तैयार चाहिए। उनके पास चेहरों की गहराई पढऩे का न समय है, न धीरज। ऐसे समय में अमिताभ जैसा अभिनेता, जिसने अपनी खामोशी को अपने चेहरे का व्याकरण और भाषा दिया है, क्या सोचता होगा? मेरा अपना ख्याल है कि टीवी पर उनका भरपूर इस्तेमाल नहीं हो सका है। हमने उन्हें सस्ते में छोड़ दिया। उनसे अभी और बहुत कुछ अभी मिल सकता था, पता नहीं अभी कितनी जंजीर, अभिमान, अक्स आनी बाकी है। अक्स मैं उनके लिए लिख चुका हूं। दिल्ली-6 में भी उनके लिए थोड़ा सा काम किया था। मगर बहुत सी कहानियां मैंने सिर्फ उनके लिए लिख रखी हैं, जो आज भी उनका इंतजार कर रही हैं। जैसे भैरवी, विधान, मधुशाला और कुणाल।
(लेखक)
: जावेद अख्तर
उन्हें तब से जानता हूं, जब उन्होंने पहली बार मुंबई में कदम रखा था। वे स्टैंड लेने वाले इंसान हैं, वरना आज इस मुकाम पर नहीं होते। कोलकाता में अच्छी खासी नौकरी छोडक़र अनिश्चितता से भरी इस इंडस्ट्री में आना और छा जाना आम इंसान के बस की बात नहीं। राजनीति में जाकर उन्होंने सिस्टम को सुधारने की कोशिश की। उन पर लांछन लगे, लेकिन वे बेदाग वापस लौट आए। ‘आरक्षण’ जैसी संवेदनशील फिल्म में काम करना भी उनकी हिम्मत को दर्शाता है। वे इस बात की मिसाल हैं कि सच चाहे जितना परेशान हो, लेकिन अंत में जीत उसी की होती है।
(लेखक-गीतकार)
: शाजान पद्मसी
उनमें स्टारडम और कमाल की अदाकारी दोनों है। उन्होंने एनएसडी या उस जैसे दूसरे प्रतिष्ठित संस्थान से अदाकारी की ट्रेनिंग नहीं ली है, लेकिन इस कला में उनका नाम सबसे ऊपर है। मेरे पिता भी उनके बहुत बड़े फैन रहे हैं।
(अभिनेत्री)
: जरीन खान
उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह जा सकता। यह अलग बात है कि वे इसका इस्तेमाल किसी पर अपना रसूख कायम करने के लिए नहीं करते। ज्यादातर लोग अपने आभामंडल से सामने वाले पर हावी होने की कोशिश करते हैं। बिग बी ऐसा नहीं करते। यह उनका बड़प्पन है।
(अभिनेत्री)
: शक्ति कपूर
अभिनय कला में वे सब के बाप हैं। अपने जमाने में उन्होंने हीरो वाले रोल तो प्ले किए ही, ‘आंखे’ और ‘राम गोपाल वर्मा की आग’ में विलेन के रोल में भी कमाल के लगे। फिर ‘पा’ जैसी फिल्म में अपने बेटे का बेटा बनना बहुत जिगरे वाला काम है। उनकी जैसी हिम्मत हो तो कोई काम नामुमकिन नहीं।
(अभिनेता)
: श्रेयस तलपड़े
उनका व्यक्तित्व ग्रंथ है। हर पन्ने पर जीवन में आगे बढऩे लायक सैकड़ों चीजें मिलेंगी। सही मायनों में पेशेवर होना और काम के प्रति समर्पण की भावना सीखनी हो तो उनसे बेहतर और कोई नहीं हो सकता। उनकी संगत से कोई भी इंसान संयत बन सकता है।
(अभिनेता)
: सोनाली बेंद्रे
वे पिता सरीखे हैं। गोल्डी बहल और अभिषेक बच्चन बहुत अच्छे दोस्त हैं। अमित अंकल का भी आना- जाना हमारे घर रहा है। उनकी मौजूदगी से पूरे फिल्म जगत को लगता है कि उनके सिर पर संरक्षक का हाथ है। इस अहसास से सब काफी सुरक्षित महसूस करते हैं। हम सब खुशकिस्मत हैं, जो एक ऐसे युग में पैदा हुए जो साक्षात लिजेंड के दर्शन हुए।
(अभिनेत्री)
: असिन
वे कमाल के पेशेवर इंसान हैं। बेहद सजग हैं। जानते हैं कि दर्शकों को क्या चाहिए? इसलिए छवि बदलने में जोखिम महसूस नहीं करते। एंग्री यंग मैन से लेकर टीवी प्रस्तोता के रूप में उन्होंने अपने भिन्न-भिन्न रूपों से हमें अवगत कराया है। वे सबमें काफी विश्वसनीय लगे। सहज इस मायने में हैं कि उन्हें किसी अच्छे कॉज के लिए अप्रोच करें तो वे ना नहीं करते।
(अभिनेत्री)
: ओमी वैद्य
उनकी जितनी लंबी पारी खेलना नामुमकिन है। उनके समकालीन लोगों में किसी को ऐसी सफलता हाथ नहीं लगी। इसके पीछे अहम वजह उनका व्यवहार है। ईगो नहीं है। किसी भी रोल को कमतर नहीं समझते। तभी उम्र के इस पड़ाव पर भी उनको ध्यान में रखकर रोल लिखे जाते हैं।
(अभिनेता)
: सतीश कौशिक
उनकी सफलता अविश्वनीय है। वे अपवाद हैं। उनकी व्याख्या नहीं की जा सकती। उनके साथ कई फिल्में करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। बतौर साथी कलाकार उनसे बेहतर इंसान मैंने अपनी जिंदगी में आज तक नहीं देखा। वे ऐसे शख्स हैं, जिनके पदचिह्नों पर हर किसी को चलना चाहिए।
(अभिनेता-निर्देशक)
: कुणाल खेमू
वे भले ही 70 साल के होने जा रहे हों, लेकिन मैं उन्हें यूथ आइकन मानता हूं। उन्होंने इस इंडस्ट्री को बहुत कुछ दिया है। असल जिंदगी में भी हर मायने में कमाल की शख्सियत हैं। अपने मेकअप मैन की फिल्में मुफ्त में करते हैं। दोस्तों या जानने वालों की फिल्मों के लांच समारोह में चले जाते हैं। वह भी बिना किसी टैंट्रम और लेटलतीफी के। आज के युग में ऐसे लोग कहां मिलते हैं।
(अभिनेता)
: रूमी जाफरी
उनके सरीखा अनुशासित व्यक्ति मैंने कहीं नहीं देखा। मुझे याद है कई साल पहले मुंबई में एक ही दिन तीन अलग अलग जगहों पर समारोह आयोजित थे। तीनों दूर-दूर थे। इसके बावजूद उन्होंने सभी समारोहों में तय समय से पहले शिरकत की। उनकी यह आदत आज भी बरकरार है। समय से सेट और समारोह पर पहुंचते हैं। यही उनकी सफलता और बीमारी से सफलतापूर्वक लड़ कर वापस आने का राज है।
(लेखक-निर्देशक)
: अर्चना पूरन सिंह
सिनेमा के प्रति उनका सेंस कमाल का है। बहुत जुनूनी हैं। रिसर्च से नहीं घबराते। ‘अग्निपथ’ से लेकर ‘मोहब्बतें’ तक उनका रिसर्च ग्राफ देखा जा सकता है। ‘अग्निपथ’ के लिए जहां उन्होंने अपनी आवाज बदली, वहीं ‘मोहब्बतें’ में एंग्री यंग मैन के बजाय एंग्री ओल्ड मैन की भूमिका में दिखे। इसके बाद उनकी छवि आइडियल पिता के रूप में उभरी।
(अभिनेत्री)
: मुग्धा गोडसे
मेरी नजर में वे असल ग्रीक गॉड हैं। उन पर लड़कियां मरती थीं, लेकिन उन्होंने कभी खुद को कैसानोवा नहीं बनने दिया। आमतौर पर फिल्म इंडस्ट्री में ऐसा नहीं होता, पर वे अपवाद थे। तभी एक-दो घटनाओं को छोड़ दें तो कभी उनके अफेयर के किस्से सुनने को नहीं मिले। वे मिसाल हैं संयम का।
(अभिनेत्री)
कुल कोट : 25
: गौरव सोलंकी
अमिताभ हमारे पिताओं और बच्चों, दोनों को अपने दोस्त-से लगते हैं। ऐसा और कोई मशहूर व्यक्ति नहीं. यह अपनापन अनजाने में या जानबूझकर गढ़ा गया एक भ्रम भी हो सकता है लेकिन अमिताभ की छवि ऐसी है कि कोई भी उत्तरभारतीय मध्यवर्गीय परिवार उन्हें अपने घर के बुजुर्ग जैसा मान सकता है। बीस साल पहले तक वह उन्हें अपने लिए लडऩे वाला जवान बेटा मानता था। आप कस्बों और गांवों की ओर बढ़ेंगे तो वह छवि कई मिथक अपने साथ जोड़ती जाएगी। मसलन अपने बचपन में हम सबके लिए वही दुनिया के सबसे लंबे आदमी थे। मेरे पिता के लिए वे ऐसे आदमी हैं जिन्होंने अदभुत सफलता को अपने सिर नहीं चढऩे दिया और सब संस्कार बचाकर रखे।
(गीतकार-समीक्षक)
: गुलशन देवैया
इस देश के हर उम्र के लोगों को पता है कि बच्चन साहब ही एकमात्र ऐसे सुपरस्टार हैं, जो सभी पीढिय़ों के करीब हंै। बच्चा-बच्चा जानता है कि बिग बी कौन हैं।
(अभिनेता)
: रजत बरमेचा
बच्चन साहब 70 वें साल में वह सब कुछ कर रहे हैं, जिनकी हम सिर्फ कल्पना कर सकते हैं। मेरे दिल में उनके और उनके द्वारा किए गए काम के प्रति अगाध श्रद्धा और प्रेम है। मेरा सपना है कि उनकी उम्र का होने पर मैं भी उनकी तरह ही ऊर्जावान और सुंदर दिखता रहूं।
(अभिनेता)
: रुसलान मुमताज
बिग बी मेरे लिए लार्जर दैन लाइफ शख्सियत हैं। वे इंडिया शब्द के समानार्थी हैं। मतलब यह कि अगर आप किसी विदेशी से कहो कि आप इंडिया से हो तो उसकी पहली प्रतिक्रिया होगी, ओह अमिताभ बच्चन। जो 3 साल के बच्चे से लेकर 80 साल के बुजुर्ग तक की पहली पसंद है, वह सिर्फ और सिर्फ अमिताभ बच्चन है।
(अभिनेता)
: रानी मुखर्जी
मेरी खुशनसीबी है कि मुझे उनके साथ काम करने का मौका मिला। ऐसे लीजेंड के साथ मैं फ्रेम शेयर कर सकी। मुझे इस बात की खास खुशी है कि मैंने उनके साथ ‘ब्लैक’ की है। वह मेरे करियर की सबसे खास फिल्म है। उनसे मिलने और बातचीत करने में बहुत मजा आता है। वे अत्यंत विनम्र हैं। वे कभी सामने बैठे व्यक्ति को एहसास नहीं कराते कि वे अमिताभ बच्चन हैं। वे हमारे साथ हमारी उम्र के बन जाते हैं। मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा है, जो अपने जीवन में अमल करती हूं और आगे भी करूंगी। काम के प्रति उनका समर्पण, ध्यान और फोकस उल्लेखनीय है। मैंने उनके साथ हमेशा एन्ज्वॉय किया। मेरी मुलाकातें ज्यादातर सेट पर ही हुई हैं। इसलिए अभिनेता अमिताभ बच्चन के बारे में ही कुछ कह सकती हूं।
(अभिनेत्री)
: सौरभ शुक्ला
बच्चन साहब से सब परिचित हैं। वे कई पीढिय़ों के लिए बेंचमार्क हैं। संपूर्ण लिजैंड हैं। उनकी फिल्मों से एंग्री यंग मैन का इमेज आया। उनको देखकर लोगों का दबा गुस्सा बाहर आया। बिग बी एक्टर थे या नहीं, यह अलग मुद्दा है, लेकिन उनकी सरीखी ऊंचाई हासिल करना नामुमकिन है।
(अभिनेता)
: कल्कि
मेरे ख्याल से हिंदुस्तान में सिर्फ दो लोग ऐसे हैं, जिनके पते पर सिर्फ उनका नाम लिखकर खत भेज दिया जाए तो वह आसानी से पहुंच जाए। एक राष्ट्रपति और दूसरे अमिताभ बच्चन। कमाल की शख्सियत हैं। वे इस बात की मिसाल हैं कि सफलता का कोई शॉर्ट कट नहीं। सतत साधना की बहुत जरूरत है।
(अभिनेत्री)
: सलमान खान
वे 70 साल के होने जा रहे हैं। उनको ढेर सारी शुभकामनाएं। उस इंसान में कमाल की दृढ़ता है। जबरदस्त ताकत है। आज भी पूरी तरह तरोताजा दिखते हैं। वे हर क्षेत्र के लोगों के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं। सफल और संयत रहना कोई उनसे सीखे।
(अभिनेता)
: सुजॉय घोष
मुझसे उनके बारे में पूछा जाए तो वे ऐसे फिल्म स्कूल हैं, जहां की क्लास हर किसी को अटेंड करनी चाहिए। कमाल के अदाकार और उतने ही अ'छे इंसान हैं। मृदुभाषी हैं। सफल हैं। सभी गुणों से परिपूर्ण इंसान की श्रेणी में उन्हें रखना चाहूंगा।
(निर्देशक)
: विवेक अग्निहोत्री
हमारी जेनरेशन के लोग इस इंडस्ट्री में तीन ही लोगों की वजह से आए। सलीम-जावेद, तीसरे अमिताभ बच्चन। जिन्हें लेखक निर्देशक बनना था,उनके लिए सलीम-जावेद प्रेरणा थे। जिन्हें एक्टर बनना था, उनके जहन में सिर्फ अमिताभ बच्चन हुआ करते थे। मैं सबसे कहूंगा कि जब भी आप परेशानी महसूस करो, बिग बी को याद कर लिया करो। सारी शंकाएं दूर हो जाएंगी।
(निर्देशक)
: रजा मुराद
अमिताभ बच्चन जैसी शख्सियत हजार साल में एक बार पैदा होते हैं। वे खास हैं। किसी दूसरी मिट्टी के बने हुए हैं। उन्होंने जिंदगी में जितने उतार-चढ़ाव देखे हैं, उतना किसी और के साथ हो, तो वह बिस्तर गोल कर कहीं और रवाना हो जाए, मगर अमित जी ने ऐसा नहीं होने दिया। उनको देखकर एक शेर याद आता है कि ‘हजारों साल नरगिस अपनी बेनुरी पर रोती है, बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा।’
(अभिनेता)
: वरुण धवन
उनकी मेहनत के काफी चर्चे मैंने करण सर से सुने हैं। वक्त के पाबंद, कमाल की याददाश्त और गजब के हाजिरजवाब हैं। उन्हें साल 2000 में ‘केबीसी’ में देखा था। अब देख रहा हूं। कोई फर्क महसूस नहीं होता। कभी मिलने का मौका मिला तो जरूर पूछूंगा कि वे इतनी ऊर्जा लाते कहां से हैं। हर किसी के साथ अदब से पेश आना उन्हीं से सीख रहा हूं।
(अभिनेता)
: जॉनी लीवर
बच्चन साहब के साथ ‘जादूगर’ फिल्म में काम किया था। उनकी मेहनत देखकर दांतो तले उंगलियां दबाने का मन करता था। याद है मुझे उस फिल्म की शूट चल रही थी। हम सब असिस्टेंट डायरेक्टर से अपने-अपने सीन मांग रहे थे। उस दिन देखा था अमित जी कुर्सियों पर बैठे कुछ बुदबुदा रहे थे। पता किया तो मालूम हुआ कि उन्होंने अपने सीन के स्क्रिप्ट हम लोगों से एक दिन पहले ही मंगवा लिए थे। खुद पर शर्मिंदगी महसूस हुई।
: यशपाल शर्मा
‘आरक्षण’ में उनके साथ काम कर पता चल गया कि क्यों उनका कद इतना बड़ा है। उनका स्टार पावर तो जबरदस्त है ही, अदाकारी के मामले में भी वे अपने समकालीन और अगली पीढ़ी के कलाकारों से बहुत आगे हैं। वे इंडस्ट्री के एकमात्र कलाकार हैं, जिनको ध्यान में रखकर भूमिकाएं लिखी जाती हैं। ‘पा’ और ‘ब्लैक’ जैसी फिल्में उनके सिवा और कोई नहीं कर सकता था।
(अभिनेता)
: रणदीप हुड्डा
मेरे लिए उनके व्यक्तित्व पर कोई टिप्पणी करना ‘छोटी मुंह बड़ी बात’ सरीखी होगी। वे इंडस्ट्री के ऑल टाइम लिजैंड हैं। वे नित नए कीर्तिमान गढऩे वाले इंसान हैं। संगीन आरोपों का सामना करने के बावजूद उस चक्रव्यूह से बाहर निकलना सचमुच हर किसी के बस की बात नहीं है।
(अभिनेता)
: ऋचा चड्ढा
एक कलाकार के तौर पर उन्होंने देश के लिए जो किया है, वह कल्पना से परे है। उन्होंने खुद को रिडिफाइन किया है। आज भी नाचते-गाते झूमते मिल जाते हैं। ‘बोल बच्चन’ ताजातरीन उदाहरण है इसका। हर इंसान को पूरी इज्जत देते हैं। वे सही मायनों में अजीमो शान शहंशाह हैं।
(अभिनेत्री)
: के के मेनन
उनका हीरोइज्म को ‘विजय बच्चन’ नाम देना चाहूंगा। हमारी पीढ़ी के लोगों ने हमेशा अमिताभ बच्चन बनना चाहा। वे एक परिकल्पना हैं। वे प्रेरित करते हैं कि कभी मत थको, मत झुको, जीत तुम्हारे कदम चूमेगी। जिस तरह से विवादों, बीमारी और वित्तीय संकट पर उन्होंने पार पाया, वह कोई रीयल लाइफ फाइटर ही कर सकता है। मेरे ख्याल से दुनिया में उनसे बड़ा मोडेस्ट और कोई नहीं हो सकता।
(अभिनेता)
: मनु ऋषि
उन्होंने इंसानियत की एक नई क्लास ईजाद की है। मेरे ख्याल से दुनिया में अच्छा आदमी, बुरा आदमी और तीसरा अमिताभ बच्चन होता है। याद है मुझे आइफा अवार्ड समारोह में उन्होंने मुझे पुरस्कार देते हुए कहा, हाय मैं हूं अमिताभ बच्चन। यह सुनकर मैं अभिभूत हो गया। वे सामने वालों को इतना कम्फर्ट देते हैं कि उसे किसी तरह की नवर्सनेस महसूस नहीं होती।
(अभिनेता)
चित्रांगदा सिंह- अभिनेत्री
उन्हें अभिनेता कहना एक सामान्य कथन होगा। अभिनय के टैग से परे उनका व्यक्तित्व बहुत हद तक लोगों को बेहतर करने की सीख देता है। हिंदी सिनेमा को अपनी फिल्मों के जरिए एक अलग मकाम तक पहुंचाया है। किस अभिनेता की तमन्ना नहीं होगी उनके साथ काम करने की।
(अभिनेत्री)
: संगीत सिवन
तेलुगू सिनेमा से हिंदी में आने की मेरी सबसे बड़ी वजह बिग बी हैं। मैं कॉलेज के दिनों में उनका बहुत बड़ा फैन था,लेकिन हमारे परिवार में हिंदी और हिंदी सिनेमा को सपोर्ट करने वाला कोई माहौल नहीं था। जब भी बिग बी की फिल्म हमारे यहां सिनेमाघरों में लगती तो मैं कॉलेज बंक करके फिल्में देखने चला जाता। उनकी प्रेरणा और एंग्री यंगमैन वाले जमाने का मेरे ऊपर काफी असर हुआ। मैं सिनेमा में उन्हीं की वजह से हूं।
(निर्देशक)
: राहुल ढोलकिया
अमित जी अपने आप में एक इंडस्ट्री है। समय के बदलने के साथ ही उन्होंने अपने आप को भी बदला और प्रूव कर दिया कि वह एक बेहतरीन परफॉरमर हैं। उतार-चढ़ाव इंडस्ट्री में हर व्यक्ति के जीवन में आते रहते हैं,लेकिन उनका करियर की बुलंदी पर पहुंचना एक अभिनेता के अभिनय की ललक को दर्शाता है। वे पूरी तरह निर्देशक के अभिनेता हैं। मेरा उनके साथ काम करने का बहुत ही मन है।
(निर्देशक)
: राम गोपाल वर्मा- निर्देशक
मैंने उनके साथ बहुत काम किया है और आगे भी करता रहूंगा। उनके बारे में बोलना बहुत ही प्रेडिक्टेबल है और लोगों को लगेगा कि मैं अपना संबंध बनाने के लिए उनकी तारीफ कर रहा हूं। लेकिन, मुझे पता है कि मैं जो अंदर हूं, वही बाहर हूं। उनके जैसे विश्वसनीय लोग कम ही हैं।
(निर्देशक)
: मैरी कॉम
वह बहुत ही जिंदादिल इंसान हैं। एक स्पोर्टपर्सन होने के नाते मैंने उनके अंदर के अभिनेता को तुरंत समझ लिया था। मेरे मेडल जीतने के बाद लोगों की बधाई का तांता लग गया,लेकिन अमिताभ बच्चन की बधाई मेरे लिए बहुत ही खास रही। इस उम्र में उनका जज्बा हम खिलाडिय़ों को बहुत ही प्रोत्साहन देने वाला है।
(बॉक्सर)
: जे डी चक्रवर्ती
कौन नहीं काम करना चाहता है उनके साथ। हम मूल रूप से हिंदी बोलने वाले लोग नहीं है,लेकिन उनका हिंदी बोलना हमारे लिए किसी सीख से कम नहीं है। उनकी फिल्में देखकर हम जैसे कई दक्षिण भारतीय कलाकारों ने हिंदी बोलनी सीखी है।
(अभिनेता)
: गौरी श्ंिादे
विज्ञापन फिल्मों की कैचलाइन की तरह हैं बिग बी। जहां जाते हैं वहां क्लिक हो जाते हैं। पा और चीनी कम में मैं और बाल्की उनके एनर्जी लेवल का मुरीद हो गए थे। कभी-कभी तो हम थक जाते थे लेकिन उनकी ललक देखकर हमें भी निरंतर काम करने की सीख मिलती है।
(निर्देशक)
: करण जौहर
अमित अंकल के लिए मैं क्या कह सकता हूं। सारी दुनिया जानती है उनके बारे में। वे भगवान हैं हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के। वे इंसान नहीं संस्थान हैं। मेरा मानना है कि उन्होंने अपने टाइम स्पैन में जो कुछ किया, वह इनक्रेडिबल है। लिजेंड के आगे का दर्जा दिया जा सकता है उन्हें। उनकी एक मौजूदगी है। वे जहां भी जाते हैं, जिनसे मिलते हैं, उसेे प्रभावित कर देते हैें। हिंदुस्तान में एक ही अमिताभ बच्चन है और एक ही रहेगा।
(निर्देशक)
: अक्षय कुमार
खुद को खुशकिस्मत मानता हूं, जो उनके साथ काम कई बार काम करने का मौका मिला। वे जहां भी मिलते हैं, लंदन हो, टोरंटो हा या हिंदुस्तान का कोई शहर, मन में आदर भाव जग जाते हैं। उनके चरण स्पर्श करता हूं। ऊपरवाले से यही कामना करता हूं कि मैं भी उनकी तरह नेकदिल इंसान बन सकूं। सही मायने में पेशेवर होना और काम के प्रति समर्पण की भावना उन्हीं से सीखी है। उनकी संगत और ट्विंकल के साथ ने मुझे संयत इंसान बनने में मदद की।
(अभिनेता)
: परेश रावल
उनकी जैसी ऊर्जा हो तो इंसान नामुमकिन काम भी चुटकियों में कर ले। वे आज भी 20-20 घंटे काम करते हैं। सोने से पहले सोशल साइट पर अपने प्रशंसकों के नाम मैसेज छोड़ते हैं। यह बताता है कि इंसान चाहे तो अपने काम और संबंधों के बीच आसानी से संतुलन साधा जा सकता है। रिश्तों को सहेजने की कला कोई उनसे सीखे। दोस्तों, परिचितों और समकालीन कलाकारों की मदद के लिए वे हमेशा तैयार रहते हैं। वे पैट्रन हैं। वे कभी-कभी मस्ती भी करते हैं।
(अभिनेता)
: प्रीति जिंटा
मैं उनकी बचपन से बहुत बड़ी फैन रही हूं। कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उन जैसी हस्ती के साथ काम करने को मौका मिलेगा। इंडस्ट्री में जब मैंने कदम रखा तो दो लोगों के साथ काम करने की दिली ख्वाहिश थी। एक धरम जी और दूसरे अमित अंकल। धरम जी के साथ इसलिए, क्योंकि उनकी शक्ल मेरे पिता से काफी मिलती-जुलती थी, जबकि अमित जी को बतौर कलाकार मैं काफी चाहती थी। सोने पर सुहागा यह रहा कि उनके साथ-साथ जया आंटी और अभिषेक के साथ भी काम करने का मौका मिला। बिग बी संपूर्णता शब्द के समानार्थक हैं।
(अभिनेत्री)
: अर्जुन रामपाल
वे फिल्म जगत के बादशाह तो हैं हीं, मैं उन्हें सबसे बड़ा मॉडल भी मानता हूं। अपने दौर में उन्होंने जिन किस्मों के स्टाइल स्टेटमेंट से पूरी दुनिया को रू-ब-रू कराया, वह कमाल का था। मेरे ख्याल से आला दर्जे का मॉडल वह है जिन्हें लोग फिजिकल लिमिटेशन के बावजूद पसंद करें। अमित जी में वह बात थी। वे बॉडी बिल्डर या तीखे नैन-नक्श वाले नहीं थे, पर उन पर लड़कियां जान छिडक़ती थीं। 60 के पार भी उनका जलवा रहा। विज्ञापन जगत में वे धूम मचाते नजर आए। उनके दौर में विज्ञापन कंपनियां होतीं, तो शायद सबसे बड़े बै्रंड एंबेसेडर वह होते।
(अभिनेता)
: विपुल शाह
पहले तो मैं उनका सबसे बड़ा फैन हूं। उनकी इतनी चीजों का मुझपर इम्प्रेशन है कि किसी एक चीज के बारे में बोलना गलत होगा। ‘आंखे’ के दौरान का वाकया सुनाता हूं। विक्रम फडणीस फिल्म के कॉस्ट्यूम डिजाइनर थे। किसी कारण से सेट पर नहीं आ रहे थे। मैंने अमित जी से कहा कि सर आप एक एसएमएस विक्रम को करें कि आप उनके कॉस्ट्ूयम में सहज महसूस नहीं कर रहे हैं। उन्होंने किया। मैसेज मिला कि विक्रम सारी दुनिया छोडक़र दौड़ते-भागते अमित जी के पास आए।
(निर्देशक)
: कुणाल कोहली
उनके सामने सुपरस्टार शब्द भी छोटा पड़ जाता है। उनका नाम ही एक अलग कीर्तिमान है। सफलता को सिर न चढऩे देना और असफलता को दिल में जगह न देना कोई उनसे सीखे। वे इंडस्ट्री के अकेले बेताज बादशाह हैं। उनकी जितनी लंबी पारी खेलना नामुमकिन हैं। इसके पीछे अहम वजह उनका व्यवहार है।
े(निर्देशक)
: शरत सक्सेना
उनके बारे में क्या बताऊं, हर कोई उनसे वाकिफ है। वे ऐसे स्टार हैं, जिनमें घमंड लेशमात्र नहीं है। उनके साथ ‘शहंशाह’ से ‘बागवान’ तक कई फिल्मों में साथ काम करने का मौका मिला। सेट पर वे अपने साथी कलाकार को यह कभी महसूस नहीं होने देते कि वे अमिताभ बच्चन जैसे बड़े कलाकार के साथ काम कर रहे हैं। माहौल खुशनुमा बनाए रखते हैं। टिप्स भी देते रहते हैं कि फलां शॉट कैसे करना चाहिए। हंसी-मजाक उनकी आदत में शामिल है। जिस दिन भावुक सीन देने होते हैं, उस दिन थोड़े गंभीर रहते हैं। हिंदी सिनेमा में इतना संपूर्ण एक्टर आया ही नहीं।
(अभिनेता)
: अनुपम खेर
वे हर एक इंसान के लिए इंसपिरेशन हैं। उनसे काफी कुछ सीखने, समझने और जिंदगी को दूसरे नजरिए से देखने का मौका मिला। वे हर हाल में खुश रहने वाले इंसान हैं। उनकी जितनी कामयाबी किसी को नहीं मिली होगी, लेकिन उनके जितना विनम्र इंसान मैंने नहीं देखा। कहावत है कि फल लगने पर पेड़ और झुक जाता है, इसे वही चरितार्थ करते हैं।
(अभिनेता)
: राजकुमार गुप्ता
जबसे इस इंडस्ट्री में कदम रखा है, एक ही सपना है कि उनके साथ काम करना है। उनको देखकर लगता ही नहीं कि वे 70 साल के होने जा रहे हैं। जिस तरह वे सेट और समारोहों में नजर आते हैं, वे काफी कमाल की चीज है। हम लोगों को तो अपने ऊपर शर्म आती है कि हम उनकी तरह क्यों नहीं बन पा रहे हैं? व्यक्तिगत तौर पर उनसे नहीं मिला, लेकिन उनके प्रभाव को मैं महसूस कर सकता हूं। मैं इस वक्त खुलासा नहीं करूंगा, पर उनके लिए कई किरदार मैंने सोच रखे हैं, जो उनके ऊपर फिल्माना चाहता हूं
(निर्देशक)
: रवीश कुमार
अनुशासन अमिताभ बच्चन की सबसे बड़ी कुंजी है । आरक्षण फि़ल्म के संदर्भ में उनके साथ रिकार्डिंग करनी थी । उससे पहले की रात वे अंग्रेज़ी चैनल के साथ देर तक रिकार्डिंग कर रहे थे । लेकिन वे बिल्कुल डाट समय पर पहुँचे । सभी कलाकारों से पहले और इस बात की परवाह भी नहीं की कि एंकर नया है या पुराना । वे बच्चे की तरह मेकअप रूम में आए और मेकअप के लिए ख़ुद को हवाले कर दिया । यह एक कलाकार के बने रहने के लिए बेहद ज़रूरी है कि वो अपने पेशे से जुड़े माध्यमों में निरंतर दिलचस्पी बनाए रखे ।
अभिनय के अलावा उनके कुछ और पहलुओं की बात करना चाहता हूं । अमिताभ की भाषा उच्च कोटी की है । हिन्दी और अंग्रेज़ी दोनों । अगर आप उनके ट्वीट फालो करते हैं तो उनकी अंग्रेज़ी पर ग़ौर कीजिएगा । अमिताभ अपनी भाषा में भी बेहद अनुशासित हैं । वे भाषा के साथ कोई लापरवाही नहीं करते हैं । हिन्दी भी हिन्दी की तरह लिखते हैं । नए माध्यमों में भी उन्होंने भाषा के संस्कार से खिलवाड़ नहीं किया है । टाइपिंग की ग़लती को भी गंभीरता से लेते हैं और सुधार की घोषणा करते हैं । इसीलिए बच्चन आकर्षक बने रहते हैं ।
बाज़ार के अभिनेता तो सब हैं लेकिन उस बाज़ार में बच्चन की जगह उनके अभिनय से कहीं ज़्यादा माँग के अनुसार बदलने के आग्रह से है । इस उम्र में भी वे ट्वीट करते हैं कि सुबह के चार बज रहे हैं, मुंबई में बारिश हो रही है और मैं शूट के लिए निकल रहा हूं । वे कभी भी अपनी बोरियत थकान का जश्न नहीं मनाते और न ज़िक्र करते हैं । इससे पता चलता है कि रोजग़ार को कितनी गंभीरता और सम्मान देते हैं । यह सब अनुकरणीय है ।
(टीवी एंकर और ब्लॉगर)
: राजपाल यादव
उनका समर्पण,पैशन और लोगों के प्रति उनकी सोच ही उन्हें इतने सालों से ऊपर बिठाए हुए है।उनके सामने मैं क्या हूं? फिर भी मेरे निमंत्रण पर वे अता पता लापता का म्यूजिक लांच करने आए और कार्यक्रम में बैठे रहे। उन्होंने सभी के सामने मेरे कंधे पर हाथ रख कर मेरा हौसला बढ़ाया। मैं उनकी दृढ़ता,गंभीरता और कमिटमेंट का आदर करता हूं।
(अभिनेता) : निखिल द्विवेद्वी
बिग बी की शख्सियत का वर्णन नहीं किया जा सकता। हम उन्हें सिर्फ महसूस कर सकते हैं। मेरे ख्याल से इंडस्ट्री में वे अकेले ऐसे कलाकार हैं, जो कुली, डॉन या फिर रईस इंसान का रोल बखूबी निभा सकते हैं। उनकी वजह से मैंने भी अदाकारी करने की ही ठानी।
(अभिनेता)
: नवाजुद्दीन
आमतौर पर इस इंडस्ट्री में वक्त को लेकर ज्यादातर कथित स्टार लापरवाही बरतते हैं, लेकिन बिग बी में ऐसा नहीं रहा है। वे वक्त के बड़े पाबंद हैं। उनकी इंटेनसिटी मुझे बहुत भाती है। अपने किरदार में डूब जाना कोई उनसे सीखे। रिश्तों को निभाने में उनसे बेहतर इनसान मैंने अब तक नहीं देखा। मेरा मानना है कि जो इंसान सफल है, अपना काम बेहतर तरीके से अंजाम देता है, वह नेकदिल भी जरूर होगा।
(अभिनेता)
: समीर कार्णिक
भारतीय सिनेमा को उनसे बेहतर कलाकार, स्टार और एक इंसान दुबारा शायद ही मिले। उनके साथ बार-बार काम करने की इ'छा है। मेरा सपना है कि उन्हें ‘गॉडफादर’ के रूप में देख सकूं।
(निर्देशक)
: पंकज त्रिपाठी
उन्हें यहां के तीन पीढिय़ों के दर्शकों के बारे में पता है। सही मायनों में पेशेवर हैं। उनका नाम अमिताभ अनुशासन बच्चन होना चाहिए।
(अभिनेता)
: अमोल गुप्ते
कमाल की शख्यिसत हैं। ज्ञान से भरपूर हैं। विनम्रता की प्रतिमूर्ति हैं। उन्हें आज के दौर का पुरुषोत्तम कहूं तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
(निर्देशक)
: सीमा आजमी
वे हर किसी के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं। ‘आरक्षण’ में पहली बार उनके साथ काम करने का मौका मिला। सेट पर उस फिल्म की शूटिंग घंटों हुआ करती थी, लेकिन वे कभी आराम करते नहीं दिखते।
(अभिनेत्री)
: रणबीर कपूर
अभिनेता अमिताभ बच्चन के बारे में कुछ भी कहना चाहूं तो ‘बर्बाद करें अल्फाज मेरे’। वे फिल्म इंडस्ट्री के साथ ही देश का चेहरा हैं। उन्होंने हिंदी सिनेमा को कई मोड़ और ऊचाइयां दी हैं। फिल्म, टीवी में हम उनका साम्राज्य देख रहे हैं। कल को रेडियो पर आए तो हर तरफ उन्हीं की आवाज गूंजेगी। मेरी जानकारी में फिल्म इंडस्ट्री में उनसे अच्छा इंसान देखने को नहीं मिला। कॉलेज के दिनों में वे मुझे हर जन्मदिन पर बधाई जरूर देते थे। कभी घर पर नहीं रहा तो मैसेज छोड़ते थे। ‘सांवरिया’ और ‘रॉकस्टार’ के बाद उन्होंने मुझे पत्र भी लिखे। उन्होंने मुझे और इम्तियाज को डिनर पर बुलाया। वे नई पीढ़ी को प्रोत्साहित करते हैं। उन्होंने हिंदी सिनेमा को ‘कूल’ बनाया है।
(अभिनेता)
: करीना कपूर
मेरा करियर उनके बेटे की फिल्म के साथ शुरू हुआ। उन दिनों काफी मिलना-जुलना था। मैंने बाद में दो फिल्में भी उनके साथ कीं। वे हिंदी फिल्मों के लिविंग लिजेंड हैं। हमारी पीढ़ी के सभी स्टार उनके जबरदस्त फैन हैं। वे बहुत ही तेज, मधुर और विनम्र व्यक्ति हैं। हम सब उनसे यह सीख सकते हैं।
(अभिनेत्री)
: प्रसून जोशी
बिग बी को ब्रांड बिल्डिंग की जरूरत नहीं है। मैंने उनके संग विज्ञापन फिल्मों में काम किया है। उनके लिए आईपीएल में गाने लिखे हैं। वे हिंदी हार्टलैंड और मल्टीप्लेक्स दोनों वर्ग के ऑडिएंस को कनेक्ट करते हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि उनकी भाषा पर बहुत गहरी पकड़ है। इस बात का अहसास आज की पीढ़ी के के कलाकारों को भी होना चाहिए।
(लेखक-गीतकार)
: दीपिका पादुकोण
मेरे पिता खिलाड़ी रहे हैं, लेकिन स्पोट्र्समैन स्पिरिट बिग बी में भी हैं। वे कभी थकते नहीं, हारते नहीं और जबरदस्त वापसी करते हैं। उनके दौर के कुछ ही कलाकारों में यह बात है। मेरी कोशिश रहेगी कि उनके नक्शेकदम पर चल सकूं। हैट्स ऑफ टू देम।
(अभिनेत्री)
: विमल कुमार
अमिताभ जब फिल्मों में आए उस समय राजेश खन्ना की रोमांटिक फिल्मों का दौर रहा था, लेकिन उन्होंने यंग एंग्री मैन के रूप में युवा पीढ़ी को अपने अभिनय से नई अभिव्यक्ति दी। वो दौर जे.पी. मूवमेंट का भी था, जब छत्र आंदोलन देश में फैल रहा था। अमिताभ समाज में फैले अन्याय दमन और अत्याचार से मुक्ति दिलाने वाले नायक के रूप में सामने आए। उनके दर्शकों में कुली, रिक्शाचालक मिल के मजदूर भी थे, जो कहीं न कहीं पीडि़त थे। अमिताभ ने उन्हें अपनी आवाज दी। अमिताभ के अभिनय की विविधता भी थी। एक तरफ वो ‘आनंद’ कर रहे थे, तो दूसरी ओर ‘डॉन’ की भूमिका में थे। ‘रेशमा और शेरा’ के गूंगे के रूप में परिचय दे रहे थे तो वे ‘जंजीर’ के पुलिस इंस्पेक्टर थे तो ‘सिलसिला’ के रोमांटिक प्रेमी। ‘अभिमान’ के पति भी। बाद में हास्य कलाकार के रूप में नई पहचान कायम की। ‘नमक हलाल’ और ‘अमर अकबर एंथनी’ और बहुत बाद में ‘ब्लैक’ और ‘पा’ में एक नए तरह का अभिनय दिखाया। वे एक संपूर्ण अभिनेता हैं। स्टार भी हैं और एक्टर भी। कई एक्टर अच्छे हैं, पर स्टार नहीं और कई स्टार हैं, लेकिन अच्छे एक्टर नहीं। अमिताभ उन सबसे परे हैं।
(लेखक पत्रकार)
: मिहिर पंड्या
वे भिन्न थे। सिनेमा का ’अन्य’। और उन्होंने इसे ही अपनी ताक़त बनाया। उस ’सिनेमा के अन्य’ को सदा के लिए कहानी का सबसे बड़ा नायक बनाया। वो ्रढ्ढक्र वाला अस्वीकार याद है, उनकी आवाज़ को मानक सांचों से ’भिन्न’ पाया गया था। जल्द ही उन्होंने वे ’मानक सांचे’ बदल दिए। पंजाब के देहातों से भागे गबरू जवानों और पीढिय़ों से सिनेमा बनाते आए खानदानी बेटों के बीच वे एक हिन्दी साहित्यकार के बेटे थे। वे एक ऐसे शहरी मायानगरी के महानायक बने जहाँ आज भी उनके गृहराज्य से आए लोगों को ’भईया’ कहा जाता है। वे ज़रूरत से ज़्यादा लम्बे थे। इसे उनके नायकीय व्यक्तित्व पर प्रतिकूल टिप्पणी की तरह कहा गया। फिर हुआ यह कि उनकी यह लम्बाई उस ऊंची महत्वाकांक्षाओं वाले महानगर के सपनों की वैश्विक प्रतीक बन गई। कहा गया कि वे नायिकाओं के साथ सफ़ल रोमांटिक जोड़ी कैसे बना पायेंगे? उन्होंने अपने सिनेमा में नायिकाओं की ज़रूरत को ही ख़त्म कर दिया। अमिताभ ने हिन्दी सिनेमा की मुख्यधारा को हमेशा के लिए बदल दिया और यह अलिखित नियम पुन: स्थापित किया कि चाहे यहाँ सौ में से नब्बे नायक हमेशा ’अन्दर वाले’ रहें, ’महानायक’ हमेशा कोई बाहरवाला होगा। वे हिन्दी सिनेमा का ’अन्य’ थे, फिर भी वे ’बच्चन’ हुए, यही उनका हमको दिया सबसे बड़ा दाय है।
(फिल्म समीक्षक)
: डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी
‘रेशमा और शेरा’ के एक मूक चरित्र से लेकर ‘कौन बनेगा करोड़पति’ के मुखर अमिताभ बच्चन कुछ-कुछ हिंदी फिल्मों की कहानी से लगते हैं - कुछ अच्छी,कुछ सच्ची और कुछ अविश्वसनीय.पर एक ऐसी कहानी जिसे भूलना मुश्किल है क्यों कि इस अमिताभ-कथा में संघर्ष है,जिंदगी से लडऩे की जि़द है,संकल्प है,विडम्बना है,विरोधाभास है,जीवन का उत्सव और उल्लास है,रोमांच है,करुणा है,पीड़ा है और इन सबके मूल में गहरी आस्था, आशा,तथा अनुसन्धान है.इसलिए यह कहानी अद्वितीय है।
‘सात हिन्दुस्तानी’ से लेकर अब तक चली आ रही सृजनात्मक संभावनाओं के आविष्कार की अविस्मरणीय और विस्मयकारी कहानी है -अमिताभ बच्चन !
सत्तरवें जन्म दिवस पर शुभ कामनाएं और दीर्घ एवं स्वस्थ जीवन के लिए प्रार्थनाएं !
(लेखक -निर्देशक)
: विनोद अनुपम
अमिताभ को सफल होना ही था। इस सफलता में कहीं न कहीं थोडा योगदान अमिताभ के व्यक्तित्व का भी था। उंचा कद जो कभी हिन्दी सिनेमा के नायकों के लिए असामान्य माना जाता था,वही अमिताभ के लिए यू. एस. पी. बन गया, शायद उनके दर्शकों को अपने नायक का सामान्य हिन्दुस्तानियों से अलग दिखना संतोष देता था। अमिताभ तो वही ‘बंशी बिरजू’ थे, लेकिन फिल्में बदलते ही दर्शकों को एक नए अमिताभ का आभाष हुआ। अमिताभ के 1975 से 1990 के बीच की फिल्मों के अधिकांश किरदार शहर के हाशिए पर पडे जीवन से जुडे दिखते हैं। ‘दीवार’ में उनकी भूमिका की शुरुआत डाकयार्ड के कुली से होती है जो बाद में अपनी हैसियत ऐसी बना लेता है कि कह सके, ‘मेरे पास ग$ाड़ी है, बंगला है, पैसा है, तुम्हारे पास क्या है’। अमिताभ यह सवाल भले ही परदे पर अपने पुलिस अधिकारी भाई से करते दिखते हैं, लेकिन लोगों को लगता है उनके बीच का कोई व्यक्ति पूरे आभिजात्य समाज से रु ब रु है। आज भी अमिताभ को देख उसी संतोष का आभाष होता है।
(फिल्म समीक्षक)
: अनुराग कश्यप
उनके जैसा अभिनेता बनने का ख्वाब हर अभिनेता का होता है। हम तो बचपन में निर्देशक बनने की बजाय अमिताभ बच्चन ही बनना चाहते थे। पिता जी के साथ हमारे लखनऊ जाने की एक ही वजह होती थी कि अमिताभ बच्चन की फिल्में देखनी है। मुंबई आने के बाद थोड़ी सी मोहभंग की स्थिति हो गई थी लेकिन अब रिश्ते फिर से सुधर रहे हैं। मैं जल्द ही उनके साथ एक शॉर्ट फिल्म की शूटिंग शुरू करने जा रहा हूं। यह एक अभिनेता की कहानी है]जो उनके जीवन पर ही आधारित होगी।
(लेखक -निर्देशक)
: यश चोपड़ा
अमिताभ बच्चन को मैं उनके कुंवारेपन के दिनों से जानता हूं। हमारी दोस्ती को चालीस साल से अधिक हो गए। उनसे जुड़ी मरी अनगिनत यादें हैं। मेरे लिए वे अनमाल खजाने की तरह हैं।
अमिताभ बच्चन लिजेंडरी एक्टर हैं। उच्च कोटि के अभिनेता हैं। मैंने उनके जैसा पेशेवर और समर्पित अभिनेता नहीं देखा। वे न केवल अप्रतिम अभिनेता हैं,बल्कि अप्रतिम इंसान भी हैं। वे अद्वितीय पति,पिता और पुत्र हैं।
70 वें जन्मदिन पर मैं उनके लिए प्रेम,स्वास्थ्य और खुशी की कामना करता हूं। मैं चाहूंगा कि वे ऐसे ही देदीप्यमान बने रहें और हमें यादगार भूमिकाएं देते रहें।
(निर्देशक)
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