जिद्दी धुन के धनी संजय लीला भंसाली


-अजय ब्रह्मात्मज
    हाल-फिलहाल में करण जौहर ने एक चैट शो में संजय लीला भंसाली का जिक्र आने पर मुंह बिचकाया तो सलमान खान ने सूरज बडज़ात्या के साथ चल रही एक बातचीत तें कहा कि संजय को सूरज जी से सीखना चाहिए कि कैसे ठंडे मन से काम किया जा सकता है। इन दोनों प्रसंगों का उल्लेख करने के बाद जब संजय लीला भंसाली की प्रतिक्रिया लेने की कोशिश की गई तो उन्होंने खामोशी बरती। हां,इतना जरूर कहा कि समय आने पर कुछ कहूंगा। जवाब दूंगा। संजय लीला भंसाली के बारे में विख्यात है कि वे तुनकमिजाज हैं। सेट पर कुछ भी उनकी सोच के खिलाफ हो तो वे भडक़ जाते हैं और फिर उनकी डांट-डपट आरंभ हो जाती है। लोगों से मुलाकात में भी उनके चेहरे पर सवालिया भाव रहते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि वे खीझे हुए हैं और मुंह खोला तो कुछ कटु ही बोलेंगे। संजय लीला भंसाली अपने प्रति फैली इस धारणा को तोडऩा नहीं चाहते। हालांकि वे इधर काफी बदल गए हैं। उम्र के साथ संयत हो गए हैं। दूसरों की सुनते हैं और उनके पाइंट ऑफ व्यू को समझने की कोशिश करते हैं। उनमें आए बदलाव का सीधा उदाहरण अन्य निर्देशकों के साथ आई उनकी फिल्में हैं। उन्होंने राघव डार के साथ ‘माई फ्रेंड पिंटो’,प्रभदेवा के साथ ‘राउडी राठोड़’,बेला सहगल के साथ ‘शीरीं फरहाद की तो निकल पड़ी’ और अब ओमंग कुमार के साथ ‘मैरी कॉम’ बनाई है। ये सभी फिल्में संजय लीला भंसाली की निर्देशित फिल्मों से अलग मिजाज की हैं।
          शुक्रवार को रिलीज हुई ‘मैरी कॉम’ के बारे में वे जोर देकर कहते हैं,‘प्रियका चोपड़ा की ‘मैरी कॉम’ देश के हर यूथ को देखनी चाहिए। असंभव को संभव करने की यह कहानी प्रेरक है। यह उम्मीद और जीत की कहानी है। अपने देश में महिला खिलाडिय़ों को लेकर कोई फिल्म नहीं बनी है। मणिपुर की मैरी कॉम की कहानी चकित करती है। उसकी जीत में आप गर्व महसूस करेंगे।’ निर्माता के तौर पर संजय को ‘राउडी राठोड़’ और ‘मैरी कॉम’ समान संतोष देती हैं। वे कहते हैं,‘मैं एक ही तरह से नहीं सोचता। मुझे लगता है कि मैं सारी फिल्में तो नहीं बना सकता,इसलिए उन विषयों को पर्दे पर लाने का मौका दूसरों को देता हूं। उनसे सीखता हूं मैं। मैं असीमित रुचि का कलाकार हूं। मुझे हर जोनर की फिल्में पसंद हैं। लोगों को लगता है कि मैं अनरियल वल्र्ड का मिस्टिकल व्यक्ति हूं। जब ‘मैरी कॉम’ जैसी फिल्म ले आता हूं तो वे चौंकते हैं। सच कहूं तो मैं जिद्दी धुन का व्यक्ति नहीं हूं। वक्त के साथ मेरे अंदर भी बदलाव आया है। दूसरी तरह की फिल्मों का हिस्सा बन कर भी मैं खुश हूं। मैं अपने निर्देशकों को किसी करार के बंधन में नहीं रखता। क्रिएटिव व्यक्ति की उड़ान नहीं रोकनी चाहिए। सभी को स्पेस और फ्रीडम मिलना चाहिए।’
    संजय लीला भंसाली अपनी फिल्मों के जरिए पूरे देश की यात्रा करवा रहे हैं। उनकी हर फिल्म किसी नए परिवेश में होती है और वे उस परिवेश के रंग,खूश्बू,लोग और वातावरण को फिल्मों में ले आते हैं। अपनी इस यात्रा की वे जानकारी देते हैं, ‘मैंने ‘खामोशी’ गोवा के बैकड्राप पर बनाई थी। उसके बाद ‘हम दिल दे चुके सनम’ में गुजरात गया। ‘देवदास’ बनाते समय मैं बंगाल चला गया। फिर ‘ब्लैक’ मैं हिमाचल प्रदेश की बर्फीली वादियों में गया। ‘सांवरिया’ में लखनऊ की नजाकत और तहजीब ले आया। ‘गुजारिश’ में फिर से गोवा था। ‘राम-लीला’ में सुदूर कच्छ पहुंच गया। अगली फिल्म ‘बाजीराव मस्तानी’ में महाराष्ट्र का पुणे इलाका रहेगा। मजा आता है न? मैं अपनी फिल्मों के जरिए देश से वाकिफ हो रहा हूं। दर्शकों भी अलग रंग और ढंग का विजुअल आनंद और अनुभव दे रहा हूं। अभी आप ने ‘मैरी कॉम’ में पहली बार मणिपुर के लोगों और जीवन को देखा। सिनेमा में हम हिंदुस्तान के अलग-अलग हिस्सों को ले आते हैं और आप के घर-शहर में पहुंचा देते हैं। मेरा भी मन है कि एक बार पंजाब जाऊं। बिहार जाना है। दक्षिण भारत की यात्रा करनी है। ऐसी यात्राओं में फिल्मों के जरिए संबंधित इलाकों की खुश्बू मिलती है। मुझे तो स्वाद भी मिल जाता है।’
    संजय लीला भंसाली के साथ काम कर चुकी सभी अभिनेत्रियों और दर्शक भी मानते हैं वे किसी और फिल्म में वैसी खूबसूरत नहीं दिखीं। ‘राम-लीला’ की अभिनेत्री दीपिकर पादुकोण ने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि मैं अपने रूप के ऐसे सौंदर्य और लावण्य से परिचित नहीं थी। आखिर वह कौन सी पारखी नजर है संजय की जो परिचित अभिनत्रियों को भी विशेष बना देती हैं? संजय हंसने लगते हैं। शरारती मुस्कान और मुग्धता की चमक उनकी आंखों में आती है। वे बताते हैं,‘मैं अपनी नायिकाओं से प्यार करता हूं। उनसे मेरा लगाव हो जाता है। मैं उन्हें सबसे खूबसूरत और मादक रूप में पेश करता हूं। उनकी छोटी-छोटी चीजों और जरूरतों का खयाल रखता हं। उनके किरदारों को गढऩे में मेहनत की जाती है,इसलिए वे पुष्ट दिखती हैं। गौर करेंगे वे सभी सशक्त किरदार भी हैं।  मैं अपनी फिल्मों में उनके औरत होने को सेलिब्रेट करता हूं। औरतों को देखने का मेरा नजरिया अलग है। सभी जानते हैं कि मैं अपनी मां से कितना प्यार करता हूं। उन्हें पेश करते समय शूटिंग के दरम्यान कपड़े,लाइट,फोकस,मेकअप आदि से उनके व्यक्तित्व को निखारता हूं। मैं उन्हें नाहने लगता हूं। दीवानगी की हद तक मेरी मोहब्बत रहती है। मोहब्बत में हर चीज खूबसूरत हो जाती है। किरदार और कलाकार से मोहब्बत और इज्जत मिले तो वह खिल उठती है। उनमें एक दीप्ति आ जाती है,जो पर्दे पर रोशन होती है। उनके ग्लैमर में ग्लो आ जाता है। मुझे ऐसा लगता है।’
     संजय लीला भंसाली की हीरोइनें हिरणियों की तरह गर्व और दर्प के साथ कुलांचें भरती हैं। उनके विस्मय में भी लावण्य रहता है। स्वाभिमानी होने के साथ वे स्वतंत्र और सगुण सोच की होती हैं।
   
   

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