फिल्‍म समीक्षा : एंटरटेनमेंट

कौए क किलकारी 
-अजय ब्रह्मात्‍मज 
        फरहाद-साजिद ने रोहित शेट्टी की फिल्में लिखी हैं। अब्बास-मस्तान की तरह वे दोनों भी सहोदर भाई हैं। वे लतीफों को दृश्य बनाने में माहिर हैं, जिन्हें रोहित शेट्टी रोचक, रंगीन और झिलमिल तरीके से चित्रित करते हैं। 'गोलमाल' से 'चेन्नई एक्सप्रेस' तक के कामयाब सफर वे इस प्रकार के मनोरंजन में सिद्धहस्त हो गए हैं। फरहाद-साजिद ने रोहित शेट्टी के काम को करीब से देखा है, क्योंकि वे उस टीम का अविभाज्य हिस्सा हैं। फिल्मों से जुड़े सभी व्यक्तियों की अंदरूनी ख्वाहिश रहती है कि वह किसी दिन निर्देशक की कुर्सी पर बैठे। फरहाद-साजिद की इस ख्वाहिश को अक्षय कुमार ने हवा दी। फरहाद-साजिद ने सीने से लगा कर रखी स्क्रिप्ट निकाली और नतीजा 'एंटरटेनमेंट' के रूप में सामने आया। 'एंटरटेनमेंट' देखते हुए लग सकता है कि यह रोहित शेट्टी और साजिद खान की शैली की किसी पुरानी फोटोस्टेट मशीन से मिश्रित जेरोक्स कॉपी है, जिसमें स्याही की काली लकीर आ गए हैं और कुछ टेक्स्ट गायब हैं।
यह अखिल की कहानी है। वह अपने बीमार पिता के इलाज और आजीविका के लिए हर जरह की दिहाड़ी करता है। एक दिन उसे पता चलता है कि उसके असली पिता तो कोई और हैं। पिता से ही उसे मालूम होता है कि वह किसी अमीर जौहरी का बेटा है, जो अभी बैंकॉक में बस गए हैं। बैंकॉक पहुंचने तक उसके पिता की मृत्यु हो जाती है। यह भी जानकार मिलती है कि वे अपनी संपत्ति पालतू कुत्ते एंटरटेमेंट के नाम कर गए हैं। अखिल पिता की संपत्ति हासिल करने के लिए एंटरटेमेंट को रास्ते से हटाने के यत्न में लगातार विफल होता है। इस बीच ऐसी घटना घटती है कि वह एंटरटेमेंट के पक्ष में आ खड़ा होता है। अब उसे कजिन करण-अर्जुन की साजिशों से एंटरटेमेंट को बचाना है। मनुष्य और पशु के रिश्ते को मजाकिया तरीके से पेश करती 'एंटरटेनमेंट' एक मजाक बन कर रह जाती है। हालांकि लेखक और निर्देशक ने हंसी, लतीफे, प्रहसन और कलाकारों की कॉमिक अदाकारी के पशु की इंसानियत की बात की है, लेकिन 'एंटरटेनमेंट' आखिरकार 'कौए की किलकारी' (फिल्म में प्रयुक्त) बन कर रह जाती है।
फिल्म के कुछ लक्षण उल्लेखनीय हैं। कुछ दृश्यों में सारे संवाद हिंदी क्रियाओं के साथ बोले गए अंग्रेजी शब्दों में हैं। यह वही भाषा है, जो शहरों में हिंग्लिश के रूप में विकसित हुई है। लेखक ने बेहिचक यह प्रयोग किया है। अक्षय कुमार ने कल्पित दृश्यों में अपनी छवि और उम्र की परवाह न करते हुए बचकानी हरकतें की हैं। अभिनय में यह एक प्रकार की सकारात्मक निर्लज्जता है, जो गहन आत्मविश्वास से आती है। अक्षय कुमार ने निर्देशक की सौंपी जिम्मेदारी को बगैर लाग-लपेट के निभाया है। कृष्णा अभिषेक ने किरदार की फूहड़ता बनाए रखी है। फिल्म कलाकारों के नाम लेकर बोले गए उनके संवाद कुद प्रसंगों के बाद अपनी नवीनता और प्रभाव खो बैठते हैं। जॉनी लीवर, मिथुन चक्रवर्ती और तमन्ना के चरित्रों में कोई नयापन नहीं है। सोनू सूद और प्रकाश राज किरदार के सांचे में घुसने की असफल कोशिश करते रह गए हैं।
मनूष्य और पशु के रिश्तों को लेकर हिंदी में अनेक फिल्में बन चुकी हैं। 'हाथी मेरे साथी', 'गाय और गोरी', 'तेरी मेहरबानियां' आदि में हाथी, गाय और कुत्ते के साथ मनुष्य के पारस्परिक रिश्ते को संवेदनशील तरीके से रचा गया है। कोशिशों के बावजूद 'एंटरटेनमेंट' वैसी संवेदना नहीं जगा पाती। खास कर शीर्षक भूमिका के लिए चुने गए जूनियर ने निराश किया है। कमी रह गई है जूनियर के एक्सप्रेशन या फिर उसे कैद करने में।
अवधि: 140 मिनट
** दो स्‍टार 

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