- अजय ब्रह्मात्मज सिस्टम खास कर एजुकेशन सिस्टम पर सवाल उठाती और उसके अंतर्विरोधों का मखौल उड़ाती राजकुमार हिरानी की 3 इडियट्स शिक्षा और जीवन के प्रति एक नजरिया देती है। राजकुमार हिरानी की हर फिल्म किसी न किसी सामाजिक विसंगति पर केंद्रित होती है। यह फिल्म ऊंचे से ऊंचा मार्क्स पाने की होड़ के दबाव में अपनी जिंदगियों को तबाह करते छात्रों को बताती है कि कामयाबी के पीछे भागने की जरूरत ही नहीं है। अगर हम काबिल हो जाएं तो कामयाबी झख मार कर हमारे पीछे आएगी। 3 इडियट्स अनोखी फिल्म है, जो हिंदी फिल्मों के प्रचलित ढांचे का विस्तार करती है। राजकुमार हिरानी और अभिजात जोशी इस फिल्म में नए कथाशिल्प का प्रयोग करते हैं। राजू रस्तोगी,फरहान कुरैशी और रणछोड़ दास श्यामल दास चांचड़ उर्फ रैंचो इंजीनियरिंग कालेज में आए नए छात्र हैं। संयोग से तीनों रूममेट हैं। रैंचो सामान्य स्टूडेंट नहीं है। सवाल पूछना और सिस्टम को चुनौती देना उसकी आदत है। वह अपनी विशेषताओं की वजह से अपने दोस्तों का आदर्श बन जाता है, लेकिन प्रिंसिपल वीरू सहस्रबुद्धे उसे फूटी आंखों पसंद नहीं करते। यहां तक कि वे फरहान और राजू के घरव...
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पर मिले हों दिल के तार जहाँ
जब मिल बैठे हम साथ साथ
हम दोनों की पहचान वहाँ
एक बोले कलाकार तो एक पत्रकार है
व्यावसायिक मुठभेड़ या कहें रोजगार है.
छाप है चवन्नी और काम है रुपैया
कला की बाजार में घुसपैठ है भैया.
दाढ़ी है कुरता है और यूनियन जैक है
आप ही कहते हैं यहाँ सब कुछ फेक है.
आलिया पर हमला और चिंग पर फ़िदा
बाहरी और भीतरी अंदाज़ हैं जुदा.
प्रेस रिलीज से आगे की पर्सनल गुफ्तगू
न वोह तुम्हे जाने न जाने उसे तू.
हम भी कभी मिले और सेल्फी भी हुआ था
न कोई सलाम और न ही कोई दुआ था.
रणवीर की जय हो और उन्हें ब्रहाम्त्ज़ मिले
देखें किसे कब और कैसे सरताज मिले.
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"अरे सुरेश! यहाँ कैसे?"
"रमेश! तू यहाँ कैसे?"
"इधर से गुजर रहा था, भीड़ खडी़ देखी तो रुक गया। ये क्या हुलिया बना रखा है?"
"अबे मैं स्टार हो गया हूँ, देखता नहीं शूटिंग कर रहा हूँ। तू अपनी सुना..."
"मैं तो ऐंवेई भटक रहा हूँ। कोई जलसा, पार्टी होती दिखी तो घुस जाता हूँ। खाने का जुगाड़ हो जाता है..."
"अपनी शकल क्या बना रखी है, ओत्तेरी, दाढ़ी भी पक गई।"
"इसी की तो इज्जत होती है। जानता है, मैं एक पत्तरकार बन गया हूँ।"
"इस बार तू हार गया। देख, मेरे डोल्ले-शोल्ले! देख मेरे ठाट! हीरो हूँ। अंदर की बात बताऊँ... दो-तीन गोरी चिट्टी हीरोइनों के साथ मेरा घर का उठना बैठना है। खी..
खी...खी..."
"ल्ले, बस दो-तीन। रहा ना घोंचू का घोंचू। बेटा, अपनी फोटुएँ दिखाऊँ?"
"यार सुरेश, इस बार भी तू जीता।"
"कोई नहीं यार रमेश। लगा रह। चल कुछ खिला-पिला। वो वाली चॉकलेट तो होगी न तेरे पास?"