अब तक गुलजार
गुलजार साहब से कई बार मिलना हुआ। उनके कई करीबी अच्छे दोस्त हैं। गुलजार से आज भी अपरिचय बना हुआ है। अक्सरहां कोई परिचित उनसे मिलवाता है और वे तपाक से मिलते हैं। हर बार लगता है कि पहला परिचय हो रहा है। इस लिहाज से मैं वास्तव में गुलजार से अपरिचित हूं। यह उम्मीद खत्म नहीं हुई है कि उनसे कभी तो परिचय होगा।
आज उनका जन्मदिन है। गुलजार के प्रशंसकों के लिए उनसे संबंधित सारी एंट्री यहां पेश कर रहा हूं। चवन्नी के पाठक अपनी मर्जी से चुनें और पढ़ें। टिप्पणी करेंगे तो अच्छा लगेगा।
अतृप्त,तरल और चांद भावनाओं के गीतकार गुलजार को नमन। वे यों ही शब्दों की कारीगरी करते रहें और हमारी सुषुप्त इच्छाओं का कुरेदते और हवा देते रहें।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (19-08-2014) को "कृष्ण प्रतीक हैं...." (चर्चामंच - 1710) पर भी होगी।
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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'