छह लूजर्स का ख्वाब है ‘हैप्पी न्यू ईयर’- शाह रुख खान


-अजय ब्रह्मात्‍मज 
- आजादी की पूर्व संध्या पर ट्रेलर लाने का कोई खास मकसद है क्या?
0 इसके टेक्निकल कारण हैैं। ‘सिंघम रिटर्न्‍स’ 15 अगस्त को रिलीज हो रही है। इसी के साथ ‘हैप्पी न्यू ईयर’ का ट्रेलर आ रहा है। वितरक और मार्केटिंग टीम ही यह फैसला करती है। फिल्म का एक अलग पहलू भी है, इसमें कमर्शियल हैप्पी पैट्रियटिक फील है। ‘हैप्पी न्यू ईयर’ बहुत बड़ी फिल्म है। इसमें फन, गेम और फुल एंटरटेनमेंट है। आमतौर पर बॉलीवुड की फिल्मों के बारे में दुष्प्रचार किया जाता है कि वे ऐसी होती हैैं, वैसी होती हैैं। फराह खान ने जब इस फिल्म की स्टोरी सुनाई, तभी यह तय किया गया कि बॉलीवुड के बारे में जो भी अच्छा-बुरा कहा जाता है, वह सब इस फिल्म में रहेगा। बस इसे इंटरनेशनल स्तर का बनाना है। पूरे साहस के साथ कहना है, जो उखाडऩा है, उखाड़ लो। हम यहीं खड़े हैैं। इस फिल्म में गाना है, रिवेंज है, फाइट है, डांस है... अब चूंकि समय बदल गया है, इसलिए सभी चीजों के पीछे लॉजिक भी है। उन्हें थोड़ा रियल रखा गया है। अब ऐसा नहीं होगा कि कमरा खोला और स्विटजरलैैंड पहुंच गए। हमने ऐसा विषय चुना, जिसमें बॉलीवुड के सभी तत्व डाले जा सकें। फिल्म के अंदर इंडिया वाले कांसेप्ट बहुत महत्वपूर्ण है। यह अच्छा संयोग है कि स्वतंत्रता दिवस के एक दिन पहले हम लोग ट्रेलर लेकर आ रहे हैैं।
- क्या कांसेप्ट है इंडिया वाले का? आपकी एक पुरानी फिल्म है, फिर भी दिल है हिंदुस्तानी?
0 फिर भी दिल है हिंदुस्तानी मीडिया पर थी। इंडिया वाले के पीछे दो बातें हैैं। अमूमन लोग विजेताओं पर फिल्में बनाते हैैं। जो जीत जाते हैैं, कुछ हासिल करते हैैं, हम उनकी ही फिल्में बनाते हैैं। वे इंस्पायरिंग और हीरो होते हैैं। हमने लूजर्स की कहानी कही है। पहले के हीरो बहुत अच्छे होते थे। हमारे हीरो हर तरह से हारे हुए हैैं। उन सभी के पास कुछ ख्वाब है, जिन्हें वे पूरा करना चाहते हैैं। यह पहली फिल्म होगी, जो लूजर्स होने का जश्न मनाती है। आप थक गए हों, हार गए हों तो भी अपने ख्वाबों को पूरा करने की साकारात्मकता रहनी चाहिए।
- आपके लिए लूजर्स का रोल प्ले करना बहुत मुश्किल रहा होगा। 
0 मैैं लूजर्स होने का मतलब समझता हूं,इसीलिए मैैं विनर हूं। हार की समझ हो, तभी आप जीत सकते हैैं। हम जिंदगी में बहुत कुछ खोते हैैं। हर किसी का अपना एक लेवल होता है। हम लोगों का खोना 100 करोड़ का होता है। हार को मैैंने करीब से देखा है। आईपीएल में हारता रहा हूं। ‘हैप्पी न्यू ईयर’ में एक लाइन है। दुनिया में हर तरह के लोग होते हैैं, काले-गोरे, बड़े-छोटे, सच्चे-झूठे, मेरे खयाल से यह विभाजन सही नहीं है। दुनिया में दो ही तरह के इंसान होते हैैं। एक विनर और दूसरा लूजर। जिंदगी हर हारने वाले को एक मौका जरूर देती है, जब वह जीत सके। यह कहानी उन सभी की है। गौर करें तो दुनिया में ज्यादातर लोग लूजर हैैं, लेकिन उनकी खुशियों पर कोई गौर नहीं करता। बहुत कम लोग ही सफल होते हैैं। एक-दो ही स्टीब जॉब होते है। लूजर की हार को भी सेलीब्रेट करना चाहिए। ‘हैप्पी न्यू ईयर’ लूजर्स की हार को सेलिब्रेट करती है।
- अपने पिता को भी आप सफल फैल्योर कहते रहे हैैं?
0 मैैं उनसे बहुत प्रभावित हूं। उनकी भद्रता, शिक्षा और उनके सबक। प्रभाव की वजह शायद यह भी हो सकती है कि वे हमें छोडक़र जल्दी चले गए। वे बहुत ही योग्य, सुंदर और त्याग करने वाले व्यक्ति थे। वे स्वतंत्रता सेनानी थे। आजादी के लिए उन्होंने अपना परिवार छोड़ दिया। शायद उन्हें मालूम था कि वह जो हासिल कर सकते हैैं, वह सब वे नहीं कर पाएंगे। फिर भी उन्होंने हमें मूल्य दिए। हमेशा यही कहते थे कि धोखा मत देना। घटियापन, छिछोरापन नहीं करना, बदतमीजी नहीं करना। पठान होने के बावजूद वे यह सब सिखाते थे। आमतौर पर पठानों में ये गुण नहीं होते। वे बहुत ही विनम्र और सुशील थे। मैैं पूर गर्व से कहता हूं कि वे दुनिया के सफलतम फैल्योर थे। इसके बावजूद मैैं उन्हें लूजर नहीं कहूंगा, क्योंकि उनकी सारी सफलताएं मुझे मिली हैैं। उनकी शिक्षा से ही मैैं सफल हुआ, उनका सिखाया बेकार नहीं गया।
- आपके अमेरिका टूर स्लैम में भी क्या इंडिया वाले कांसेप्ट ही रहेगा?
0 नहीं। पिछले 10 सालों से मैैं किसी वल्र्ड टूर नहीं गया। इसमें फिल्म के यूनिट के लोग जरूर हैैं, लेकिन हम सिर्फ अपनी ही फिल्म ‘हैप्पी न्यू ईयर’ पर परफॉर्म नहीं करेंगे। सभी की राय थी कि हम लोग वल्र्ड टूर पर चलें। मुझे भी लगा कि मेरी फिल्म में हीरो-हीरोइन और बाकी टैलेंट हैैं तो उन सभी के साथ क्यों न एक टूर किया जाए। हम सुष्मिता सेन को भी शामिल करना चाह रहे थे। ‘मैैं हूं ना’ से उनके साथ एसोसिएशन रहा है, लेकिन वह कहीं शूटिंग कर रही हैैं। व्यस्त हैं। हम लोग छह शो करेंगे। मैैं अमूमन 18 शो करता हूं। इस टूर को ‘हैप्पी न्यू ईयर’ टूर कहना ठीक नहीं होगा,इसीलिए हम ने इसे स्लैम नाम दिया है। हां, सभी को एक साथ देखकर लोगों को ‘हैप्पी न्यू ईयर’ का खयाल आएगा। फिल्म के प्रचार के लिए हमें जाना ही है। उसमें रेगुलर सवाल के जवाब देने से बेहतर है कि हम परफॉर्म और एंटरटेन करें। तब तक अगर ’हैप्पी न्यू ईयर’ के गाने आ गए तो उन पर भी परफॉर्म करेंगे। यह ढाई घंटे का एंटरटेनिंग पैकेज होगा।  मैैं, अभिषेक, दीपिका, सोनू, फराह, डिनो और बोमन ईरानी के अलावा कुछ और लोग भी होंगे। जैकी श्राफ को भी निमंत्रित करूंगा।
- क्या आप अच्छे लूजर हैैं? 3
0 मैैं अच्छा लूजर हूं। मैैं खिलाड़ी रहा हूं। खेल में हमेशा जीतते ही नहीं हैैं। खेल बताता है कि आप हार को कैसे स्वीकार करते हैैं। क्रिकेट और फुटबाल में हार जाता था तो टीचर कहते थे, तुम कल जीतोगे। माइकल जार्डन ने कहा था,मैं बार-बार हारता हूं,बार-बार गलत हो जाता हूं,एक टीम के तौर पर इतना हार चुका हूं कि मैंने जीत सीख ली है। लूजर होने के बाद यह सबक मिलता है कि इस एहसास से निकलने के लिए कल अलग तरीके से खेलना होगा। मैैं गुड लूजर हूं। मैँ बैड लूजर नहीं हूं। निजी तौर पर उदास हो जाऊंगा, परेशान रहूंगा, दुख तो पहुंचता ही है। कोई काम करें आप और वह लोगों को पसंद न आए, अच्छी न जाए। हमारा काम इतना तनाव से भरा होता है। सभी कहते हैैं कि यह कला है, लेकिन यह कला लोगों की पसंद-नपसंद पर निर्भर करती है। मेरे खयाल में कला के साथ आर्थिक विचार नहीं जुड़ा होना चाहिए। कविता तो कविता होती है, कोई कविता 250 या 500 रुपए की कैसे हो सकती है? यह कहने में ही घटिया लगता है। लेकिन फिल्मों के साथ अलग मामला है। हम 150-300 करोड़ की फिल्में बना रहे हैैं। हम ऐसी विवश स्थिति में हैैं।
- क्या सफलता और समृद्धि आपके लिए जुड़ी हुई चीजें नहीं हैैं? 3
0 बिल्कुल नहीं। मैैंने बहुत पैसे बनाए हैैं। मैैं सफल भी हूं। अल्लाह का फजल है। मैैं खुशकिस्मत हूं। मैैं आपको इंटरव्यू दे सकता हूं कि मुझे बिजनेस की अच्छी समझ है। जब चल पड़ती है, तब खूब चलती है। वजह और बहाने एक ही जैसी चीजें हैैं। जीतने की वजह लोग बताते हैैं और हारने के बहाने बताते हैैं। और दोनों में से कोई भी सही नहीं होता।
- आप हमेशा यह कहते रहे हैैं कि आपको बिजनेस की ज्यादा जानकारी नहीं है। लेकिन स्मार्ट बिजनेसमैन का तमगा आपको ही मिला है? आक्रामक प्रचार का तरीका आपने ही शुरू किया।
0 दो बातें हैैं, मैैं अपनीे बिजनेस टीम के साथ बैठता हूं तो वे कई योजनाएं लेकर आते हैैं। मैैं उन्हें सुनकर कुछ बता देता हूं। कुछ सुझा देता हूं। चल पड़ती है तो क्रेडिट मुझे मिल जाता है। मेरे खयाल में बड़े सिनेमा का एक्सपीरियंस ऐसा होना चाहिए कि सभी खुश हों। वरना लोग टीवी या लैपटॉप पर फिल्में देखने लगेंगे। फिल्म की वह इज्जत हो कि उसे सिनेमाघर में ही देखा जाए। हमारे यहां जिंदगी डिब्बों में होती है। हम लोग अपने परिवारों में सब कुछ डिब्बों और पैकेट्स में बंद कर के रखते हैैं। गहने, जेवर, बच्चों के कपड़े, अपने कपड़े... सब कुछ संजोकर डब्बे में रखते हैैं। अपने पहले लेख, पहली किताब, पहला सब कुछ संजोने की कोशिश करते हैैं। अगर उन्हें डब्बे में न रखें या डब्बे इधर-उधर हो जाएं तो हम डर जाते हैैं। हमें उन सभी चीजों से दिक्कत होती है, जिन्हें हम डब्बाबंद या श्रेणीबद्ध नहीं कर पाते। हम श्रेणीबद्ध या रेफरेंस से जोडक़र सुरक्षित महसूस करते हैैं। मुझे जो तमगे मिले या दिए गए हैैं, उनके बारे में मुझे भी नहीं मालूम। कुछ हो जाता है और लोग समझ नहीं पाते तो तमगे दे देते हैैं। मैैं आज तक नहीं समझ पाया कि मैैं कैसी फिल्में करता हूं। यह लोग मुझे समझा देते हैैं। सभी की इच्छा रहती है कि वे हर चीज समझ लें और समझा दें। मैैं सब कुछ करता हूं और चल भी रहा हूं। इसे समझने की कोशिश में लोग अलग-अलग चीजों को श्रेय देते हैैं। कभी कोई कहता है कि इसकी पीआर टीम बहुत अच्छी है। कभी किसी को लगता है कि मैैं खुद ही कुछ कमाल कर देता हूं। मैैं एक्टर हूं। मुझ इस तरह के तमगे अच्छे लगते हैैं। जब तक लोग समझ नहीं पाएंगे, तब तक लोग तमगे देते रहेंगे। इसकी वजह से मेरे साथ जुड़ा रहस्य बरकरार रहता है। जो लोग बाहर से देखते-समझते हैैं, उनकी धारणा कुछ और होती है। जो लोग आसपास रहते हैैं, वे लोग मुझे थोड़ा-बहुत समझ पाते हैैं। कई पत्रकार पहले से कुछ सोचकर इंटरव्यू करने आते हैैं। मैैं उनके सवालों से समझ जाता हूं और फिर वैसा ही इंटरव्यू दे देता हूं। उन्हें खुश कर देता हूं। मुझे आप बता दें, मैैं वैसा ही इंटरव्यू दे दूंगा। अभी आप लोगों के साथ इंटरव्यू नहीं कर रहा हूं। यह तो बातचीत हो रही है। इसके पहले अनुपम खेर के शो में उनके साथ बातचीत कर रहा था। कई बार लोग कुछ निकालने की कोशिश में अजीब से सवाल पूछते हैैं तो मैैं स्मार्ट सा जवाब देकर उन्हें खुश कर देता हूं। अब कोई पूछे कि मैैं सुबह उठकर क्या बनना चाहूंगा तो उसे क्या जवाब दिया जा सकता है। फिर भी मैैं कुछ चटपटा-सा जवाब देता हूं।
- अभी आपकी उम्र के सारे हीरो सोलो हीरो की फिल्में कर रहे हैैं। ऐसे दौर में ‘हैप्पी न्यू ईयर’ जैसी फिल्म लेकर आना कुछ नया है? ऐसा एंसेबल कास्ट जमा करने की जरूरत क्यों महसूस हुई?
0 इस फिल्म में न केवल सारे कलाकारों को प्रमुख भूमिका मिली है। पोस्टर पर भी हम सभी साथ नजर आएंगे। सच कहूं तो अपने प्रोडक्शन में अभी तक मैैंने खुद के लिए कोई फिल्म नहीं बनाई। कभी यह नहीं सोचा कि यह मेरी खासियत है और मुझे ऐसी ही फिल्म करनी चाहिए। अभी मैैंने खुद के लिए फिल्में बनाना शुरू ही नहीं किया है। अभी मैैं ऐसी फिल्में चुनता हूं, जिनमें कुछ अलग-अलग कर सकूं। वही फिल्म करता हूं, जिन्हें करते हुए मजा आता है। वैसे लोगों के साथ करता हूं, जिनके साथ काम करना अच्छा लगता है। फराह यह फिल्म सुनाते समय आशंकित थीं कि तुम यह फिल्म क्यों करोगे? ऐसी फिल्म का हिस्सा क्यों बनोगे, जिसमें सभी के रोल बराबर हों। इस फिल्म में एक भी कैरेक्टर ऐसा नहीं है, जिसका रोल एक-दूसरे से कम या ज्यादा हो। सबका कमोबेश बराबर ही है।  इस फिल्म का कोई हीरो है ही नहीं। रोमांटिक एंगल होने की वजह से कह सकते हैैं कि मैैं हीरो हूं। हीरोइन मुझे मिलती है। यह छह लोगों की कहानी है। मैैंने शुरू में ही कह दिया था कि पोस्टर में कोई अकेला नहीं आएगा, टे्रलर में अकेला नहीं आएगा, बात कोई अकेले नहीं करेगा। हम सभी साथ में बोलेंगे। सभी का रोल समान है। ‘हैप्पी न्यू ईयर’ छह लूजरों की कहानी है। मैैं अभी कॉमेडी और एक्शन फिल्में नहीं करना चाहता हूं। क्वाइट और इंक्लूसिव फिल्म करना चाहता हूं।
-अभी सब कुछ बड़े स्केल पर होने लगा है?
0 शेखर कपूर ने कहा था कि फिल्में बहुत बड़ी हो जाएंगी। अभी सब कुछ कमर्शियल और बड़ा हो गया है। मौत कमर्शियल हो गई है। एमएच 17 की एक पूरी डॉक्यूमेंट्री है। लोग इसे देख रहे हैैं। समाचार देख लो, कैसे म्यूजिक, एंकर और प्रेजेंटेशन से बेचा जा रहा है। इलेक्शन बेचा गया। लोग बॉलीवुड पर इल्जाम लगाते हैैं कि हम लोग सब कुछ बेचते हैैं। बाहर पूरे समाज में भी तो यही बिक्री चालू है। मैैं इसे गलत नहीं मानता हूं। ‘फिर भी दिल है हिंदुस्तानी’ के समय भी मैैंने इसे गलत नहीं कहा। एक दर्शक आईपीएल और इलेक्शन कैंपेन एक ही रुचि के साथ देख सकता है। वह एंटरटेन हो रहा है। सब कुछ एंटरटेनमेंट हो गया है। तब हमने कहा था कि मौत भी बिकेगी और कोई शीतल पेय उसका स्पांसर होगा। हम इस कमर्शियललाइजेशन के बहुत करीब पहुंच गए हैैं। ट्रेजडी बिक रही है। इंवेंशन ऑफ लाइज एक फिल्म आई थी, उसमें लोग झूठ नहीं बोलते हैैं और जब झूठ बोलने लगते हैैं तो वे ईश्वर भी बना लेते हैैं। कमर्शियल सिनेमा में अब यह सब चीजें भी आएंगी। मेरा यही कहना है कि यह सारी चीजें लाएं, लेकिन उसे खुशी और कॉमर्स से भर दें।
- आप पर हमेशा आरोप रहता है कि आप एक जैसी ही फिल्में करते हैैं?
0 कहां एक जैसी फिल्में करता हंू। मेरी पिछले 10 साल की फिल्में देख लें, कितनी भिन्नता है। मैैं एक एक्टर हूं, आपको हंसा भी सकता हूं और रूला भी सकता हूं। मैैं कभी भी फैशन और चलन के मुताबिक फिल्में नहीं करता। मैैं सुबह 9 बजे से अगले दिन सुबह छह बजे तक काम करता रहता हूं। मुझे मजा आता है। ‘हैप्पी न्यू ईयर’ में छह लोगों को साथ में लेकर चलना फराह के लिए बहुत मुश्किल कम रहा है। हर फ्रेम में सबको साथ रखना, उनके खड़े होने और बैठने की पोजिशन तय करना, उसके हिसाब से सेट बनाना, यह सब कुछ मुश्किल रहा।
- मुझे याद है कभी आपकी दिली इच्छा थी कि आप आइकॉन बनें। अब तो आप आइकॉन होने के साथ सफल ब्रांड भी हैैं। यहां से आगे कहां जाना है? कभी अमरता के लिए कुछ करने का खयाल आता है? आपको लोग याद रखें?
0 और बड़ा आइकॉन बनाना चाहूंगा। याद रखने के लिए मैैं कोई काम नहीं करता। कोई भी नहीं करता। मैैं उदाहरण देता हूं, प्यासा अभी देश की सबसे अच्छी फिल्म मानी जाती है। जब यह फिल्म रिलीज हुई थी, तब किसी ने इसे पानी नहीं दिया था। बनी होगी, तब न जाने लोगों ने क्या-क्या कहा होगा। दत्त साहब को कितनी बातें सुनाई होंगी। कह नहीं सकते, आज की असफल फिल्म 50 साल के बाद बड़ी फिल्म साबित हो सकती है। हो सकता है कि ‘फिर भी दिल है हिंदुस्तानी’ की अलग व्याख्या हो। हो सकता है कि मेरा बेटा मेरे ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’, ‘चक दे’, ‘अशोका’, ‘देवदास’ आदि की तारीफ करे और कोई उसे समझाए कि यह सब तो ठीक है,लेकिन ‘गुड्डू’ तेरे पापा की सबसे अछी फिल्म है। जो लोग भविष्य के बारे में सोचकर काम करते हैैं, वे अंधेरे में तीर चलाते हैैं। भविष्य का किसी को ज्ञान ही नहीं है। अगर हमें पांच साल बाद की चीजों का इल्हाम हो गया रहता, तब न जाने हम कहां से कहां पहुंच जाते। वैज्ञानिकों को भी नहीं मालूम होता है। हमें वर्तमान और इस पल के लिए काम करना चाहिए। फिल्मों की मेरी एक जानकारी हो गई है। फिर भी कोई नई चीज आती है तो मैैं नहीं कतराता। मैैं रीमेक और पुरानी चीजें करने से दूर रहता हूं।
- ‘देवदास’ और ‘डॉन’ के बारे में क्या कहेंगे?
0 मैैं उन्हें रीमेक नहीं कहता। मेरे खयाल से वे क्लासिक फिल्मों का रिइंट्रोडक्शन हैैं। इन फिल्मों को देखकर हम बड़े हुए हैैं। नई पीढ़ी ‘डॉन’ के बारे में नहीं जानती। अमित जी को देखकर हम पागल हो जाते थे। 11 मुल्कों की पुलिस उनके पीछे पड़ी रहती थी। उनके बारे में तो बताया जाना चाहिए। फराह कहती है कि हमारी फिल्म न भी देंखे, कम से कम इसी बहाने पुरानी फिल्में तो देखें। सच कहूं तो मैैं दिलीप कुमार के ‘देवदास’ के बारे में ज्यादा नहीं जानता था। मेरी मम्मी हमेशा उसकी तारीफ करती थीं। संजय लीला भंसाली ने कहा तो मैैंने स्वीकार कर लिया और कहा कि चलो बनाते हैैं। मेरा दिल कल के बारे में सोचकर नहीं धडक़ता। मेरा दिल आज के लिए धडक़ता है। मैैं सबसे यही कहता हूं कि आप जिस वक्त पर जहां हैैं, आपकी दुनिया वही हैैं। अभी हम लोग बातचीत कर रहे हैैं, इस पल के बाहर दुनिया में क्या हो रहा है, हमें कुछ नहीं मालूम। हम जहां नहीं हैैं,वहां की चीजों से हम वाकिफ नहीं हैैं। हो सकता है कि 30 सेकंड के बाद एक सुनामी आए। मैैं तो समुद्र के किनारे रहता हूं। हमें 30 सेकंड का फ्यूचर नहीं मालूम,आप आगे की बात पूछ रहे हैैं। हम लोग यहां बातें कर रहे हैैं और बाहर कोई इंटरनेशनल लीडर मारा जाए या जैसे जहाज में 400 लोग जा रहे थे और जहाज अचानक विस्फोट कर गया। उस विस्फोट के समय न जाने कौन क्या कर रहा होगा? किसी को पता ही नहीं चला होगा कि क्या हो गया। मैैं बहुत स्पष्ट हूं। 20 साल के बाद मुझे किसी ने याद रखा या नहीं रखा, इसकी मुझे परवाह नहीं है। लोग अभी तो मुझे याद रख रहे हैैं। मेरा होना उनके लिए मानीखेज है। अपने बेटे के लिए मैैं जरूरी हूं। अपनी फिल्मों के लिए जरूरी हूं। दर्शकों और दोस्तों के लिए जरूरी हूं। हूं कि नहीं, यह देखना चाहिए।
- अभी ऐसी क्या तीन चीजें हैैं, जो आपको चिंतित करती हैैं? 3
0 पहला,मेरे बच्चे सेहतमंद रहें। उनको जुकाम वगैरह भी हो जाता है, तो मैैं घबरा जाता हूं। बेटी को अभी दिल्ली में बुखार लग गया था, मुझे मालूम है कि ठीक हो जाएगा, लेकिन मैैं घबरा गया था। दूसरा, अपने होने का लाभ उठाते हुए ऐसा काम कर जाना जो लोगों को आनंदित कर सके। वह आज का खास काम हो। तीारा, दूसरों की खुशी, सफलता और काम देखकर परेशान न हों। आप खुश रहो, मैैं भी खुश हूं अपनी जगह। किसी के पास इतना समय नहीं है कि वह दूसरों की जिंदगी के बारे में सोच सके। मैैं सिनिकल नहीं हो रहा हूं। अपना खयाल रखो, अपनी लाइफ लीड करो, दूसरों का भी ठीक-ठाक हो ही जाएगा। मैैंने खुद तो एक आवरण में लपेट लिया है। मैैं सभी चीजों से अप्रभावित रहता हूं। अपने बारे में ही मैैंने इतनी चीजें सुन ली हैैं कि घोर निराशा में जा सकता हूं। बेहतर है मैैं उस पर मजाक करूं। अन्यथा मैैं पागल हो जाऊंगा।
-आप प्रेस कांफ्रेस और पब्लिक इंटरैक्शन में हंसी-मजाक के मूड में रहते हैं?
0 ज्यादातर समय मुझ से वैसे ही सवाल पूछे जाते हैैं, जिनके जवाब पूछने वालों के पास पहले से रहते हैैं। लोगों को लगता है कि उन्हें मेरे बारे में सब कुछ मालूम है, वे कोई ऐसा सवाल नहीं करते हैैं कि जिससे कोई नई बात पता चले। अभी दुबई में एक महिला मिलीं। उन्होंने पूछा कि आप अनुपम खेर के शो में इतने दुखी क्यों थे। मैैंने उन्हें बताया कि आंखों की लेसिक करवाई है, इसलिए ऐसा लग रहा होगा। उसमें आंखें थक जाती हैैं। महिला नहीं मानीं। उन्होंने कहा कि आप थके हुए थे, आप उदास थे। मैैं 20 साल से आप की आंखें देख रही हूं, ऐसी उदासी नहीं देखी। फिर मैैंने उनसे कहा कि आप सच कह रही हैैं। मैैं बहुत दुखी था उस दिन। अब खुश हो। वह मेरा मजाक नहीं समझ पाईं। उन्होंने खुश होकर कहा, मैैं कह रही थी कि आप उदास थे। यही वजह है कि मैैं अपनी किताब लिख रहा हूं। मैैं जो बताना चाहता हूं, उसके बारे में कोई पूछता ही नहीं है। मैैंने सोचा कि मैैं खुद ही लिख देता हूं। इन दिनों अपने एहसास लिखा करता हूं। प्रेस कांफ्रेंस वगरैह में तो मजाक ही चलते रहते हैैं। वहां तो वही दो सवाल सलमान पर होते हैैं, दो फिल्मों के बारे में और ढाई किसी नई घटना के बारे में। अब आप कितना मजाक उड़ाएं। उनकी भी मजबूरी है, वे हेडलाइन के इंतजार में रहते हैैं। मेरा पूरा यकीन है कि 20 सालों से अगर कोई किसी फील्ड में काम कर रहा है, तो उससे ऐसी कई बातें पूछी जा सकती है, जो दूसरों के काम आएं। सचिन से आप कोई सवाल कर सकते हैैं, जिससे क्रिकेट और जिंदगी के बारे में कुछ नई बातें पता चले।
- आपके विज्ञापनों को देखकर लगता है कि उनमें फिल्मों से आपकी अर्जित छवि का ही विस्तार हो रहा है? दूसरे सितारों से अलग आपके विज्ञापनों में घरेलू और फैमिली अप्रोच दिखता है? यह संयोग है या किसी योजना के तहत आप ऐसा करते हैैं?
0 मैैं जब एड फिल्म वालों के साथ बैठता हूं तो वे अजीब-अजीब एक्सपलानेशन देते हैैं। मैैं उनसे कभी कोई सवाल नहीं करता। वे जो भी कहते हैैं, मैैं सुन लेता हूं। मैैं यह नहीं समझाता कि मैैं क्या हूं। वे बताते हैैं कि हमारा जो ब्रांड है। वह फलां वैल्यू के लिए स्टैैंड करता है। भले ही वे बनियान का विज्ञापन लेकर आए हों, लेकिन वे फैमिली की बात करेंगे। मुझे भी पता नहीं चलता कि यह सब कैसे होता है। वे बताते हैैं कि आप घर की आलमारी खोलेंगे तो यह लगेगा कि यह हमारे घर की शान है। उसमें प्यार है। वे प्रोडक्ट का मानवीकरण कर देते हैैं। फिर उसे मेरे ऊपर थोप देते हैैं। मैैं उनकी बात मान लेता हूं। कहेंगे कि यह ड्रिंक बबली, रिफरेसिंग और हैप्पी है आपकी तरह। मैैं भी मान लेता हूं। मैैं बबली हूं, रिफरेसिंग हूं, हैप्पी हूं। वे मुझे हमेशा यही कहते हैैं कि हमारे प्रोडक्ट के लिए आप फिट ब्रांड हो। मैैंने तमाम अलग-अलग ब्रांड किए हैैं। गजब बात है कि मैैं सब में फिट हो जाता हूं। पहले मैैं उनके क्रिएटिव में थोड़ा-बहुत बदलाव करता था। अब समझदार हो गया हूं। मैैंने समझ लिया है कि विज्ञापन बनाने वालों की जानकारी मुझसे ज्यादा है। फिल्म बनाते समय अगर मुझे कोई कहेगा तो मैैं मना कर दूंगा। वह मेरा मैदान है। अब तो मैैं उनसे जाकर पूछता हूं कि बताओ आपको क्या चाहिए। मैैं वही कर देता हूं। मैैं उनसे कभी सवाल नहीं करता। मेरे ज्यादातर प्रोडक्ट मिडिल क्लास और अपर मिडिल क्लास के हैैं। मैैं बहुत महंगी चीजों का विज्ञापन नहीं करता। मैैं टैग की घड़ी पहनता हूं। यह सस्ती घड़ी है। 80 हजार में आ जाती है। मेरा बेटा भी इसे खरीद सकता है। मेरे पास जब पैसे नहीं होते थे, तब भी मैैंने यही घड़ी खरीदी थी। मैैं उनसे नहीं पूछता कि वे इसे कैसे बेचेंगे। मुझसे यह कोई नहीं पूछता कि मैैं अपनी फिल्म कैसे बेचूंगा।
-क्या फिल्मों के प्रमोशन में सही जानकारी दी जाती है ?
0 अपनी फिल्मों के बारे में मैैं झूठ नहीं बोलता। जब से चीजें मेरे नियंत्रण में आई हैैं, तब से मैैं धोखे में नहीं रखता। कभी ऐसा नहीं किया कि दिखाऊं कुछ और बेचूं कुछ और। मैैं दर्शक को वही बताता हूं, जो फिल्म में होता है। हर ट्रेलर में फिल्म की सही जानकारी रहती है। फिल्में टीवी या फ्रिज नहीं हैैं कि पसंद नहीं आने पर आप उन्हें वापस कर सकते हैैं। आपने टिकट ले लिया तो फिल्म देखनी ही है। मैैं यही चाहता हूं कि दर्शक 700 रुपए खर्च करने के बाद यह न कहे कि शाहरुख ने बताया तो कुछ और था, दिखा कुछ और रहा है।
-अभी आप सेहतमंद हैं। कोई चोट वगैरह तो नहीं है ?
0 अब मैं चोट देने के लिए तैयार हूं।



Comments

Popular posts from this blog

तो शुरू करें

फिल्म समीक्षा: 3 इडियट

सिनेमालोक : साहित्य से परहेज है हिंदी फिल्मों को