संग-संग : तिग्‍मांशु घूलिया-तूलिका धूलिया



-अजय ब्रह्मात्मज
तिग्‍मांशु और तूलिका की यह कहानी अत्‍यंत रोचक और रोमैंटिक है। इलाहाबाद शहर की पृष्‍ठभूमि में पनपे उनके संग-संग चलने का यह सफर प्रेरक भी है। साथ ही विवाह की संस्‍था की प्रांसिगकता भी जाहिर होती है। 
तूलिका - पहली मुलाकात की याद नहीं। तब तो हमलोग बहुत छोटे थे। छोटे शहरों में लड़कियों को बाहर के लडक़ों से बात नहीं करने दिया जाता है। कोई कर ले तो बड़ी बात हो जाती है। मुद्दा बन जाता है। हम दोनों की इधर-उधर मुलाकातें होती रहती थीं। कोई ऐसी बड़ी रुकावट कभी नहीं रही। उस समय तो सबकुछ एडवेंचर लगता था। एडवेंचर में ही सफर पूरा होता चला गया। पलटकर देखूं तो कोई अफसोस नहीं है। मुझे सब कुछ मिला है। कभी कुछ प्लान नहीं किया था तो सब कुछ सरप्राइज की तरह मिलता गया। हमारा संबंध धीरे-धीरे बढ़ा। पता ही नहीं चला। हमलोग बाद में मुंबई आकर रम गए। हमारे थोड़े-बहुत दोस्त थे। उन सभी के साथ आगे बढ़ते रहे। मां-बाप की यही सलाह थी कि पहले कुछ कर लो। हर मां-बाप यही सलाह देते होंगे। अब हम भी ऐसे ही सोचते हैं। परिवार वालों को सीधी पढ़ाई और सीधी नौकरी समझ में आती है। तिग्माुशु की पढ़ाई और करिअर का मामला तो ऐसा था कि जिसके बारे में कुछ भी कहा-बताया नहीं जा सकता। जब हमने शादी कर ही ली तो परिजनों ने उसे मान लिया। उनकी तरफ से कोई अड़चन नहीं रही। शुरू में जरूर जितना रोकने का हो सकता था, उतना रोका। हमलोग बहुत ही नार्मल लाइफ जीते रहे। ‘पान सिंह तोमर’ के बाद कामयाबी मिली। मां-बाप के लिए तो यह सब गर्व के क्षण होते हैं।
तिग्मांशु - मुलाकात या आकर्षण के बारे में क्या बताऊं? तूलिका देखने में अच्छी लगती थी। इतना ज्यादा मिलना-जुलना तो हो नहीं पाता था। स्वभाव की सीधी लगती थी। इनके बहुत ज्यादा दोस्त नहीं थे। नेचर अच्छा था। मिलना-जुलना यों ही हो पाता था। कभी किसी दोस्त के यहां मुलाकात हो गई। कभी कहीं अचानक मिल गए। तय कर मिलना तो मुमकिन नहीं था। चिट्ठियां लिखी जाती थीं। आज भी ऐसे ही होता होगा। इंटरनेट और मोबाइल आने पर माध्यम और तरीका बदल गया है। उस वक्त अधिक सिनेमाघर नहीं थे, जो थे वहां आप जा नहीं सकते थे। वहां पहचाने या पकड़े जा सकते थे।
तूलिका - अपना टाइम तो हम सभी को ज्यादा अच्छा लगता है। हमें लगता है कि अब मां-बाप भी अब उदार हो गए हैं। बच्चों को स्पेस और लिबर्टी मिल रही है। हमलोगों के समय मिलने जाते समय जो दिल का धडक़ता होता था, अब शायद नहीं होता होगा। तब तो हमारे लिए वह बहुत बड़ी बात होती थी। रोमांस वाली बात थी। इन दिनों रोमांस बदल गया होगा।
तिग्मांशु - मैं बताऊं,जब किसी से प्यार नहीं होता। उसका एहसास नहीं होता तो उससे मिलना-जुलना आसान रहता है। क्लासमेट या दोस्तों की बहनों से हम बेहिचक मिल सकते थे। उसमें दिक्कत नहीं थी। बड़े भाइयों की पार्टियां होती थीं। उनकी दोस्त आती थीं। डांस वगैरह होता था। कोई नहीं पूछता था कि कहां जा रहे हो? कैसे जा रहे हो? ये अच्छी लगने लगीं तो एक स्वाभाविक झिझक आ गई। साथ में घूमना या पिक्चर देखना नहीं होता था।
तूलिका - हमलोग अलग-अलग स्कूल में थे। मैं लड़कियों के स्कूल में थी। तिग्मांशु लडक़ों के स्कूल में थे। तिग्मांशु जिंदादिल इंसान थे। अभी तो थोड़े नरम हो गए हैं। पहले बहुत बिंदास हुआ करते थे। उस उम्र की खूबसूरती इनमें थी। मुझे अच्छे लगते थे।
शादी का प्रस्ताव
तूलिका - मैं परिवार की बड़ी बेटी हूं। परिवार में रिवाज था कि सही समय पर शादी कर देनी है। पहल मैंने की थी। तिग्मांयाु तब नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में पढ़ाई कर रहे थे।
तिग्मांशु - शादी तो करनी ही थी, लेकिन हम दोनों ही छोटे थे। 22 साल की उम्र थी। वह शादी करने की उम्र होती नहीं है। मैं ड्रामा स्कूल में था। थर्ड ईयर में अभी पास आउट नहीं हुआ था। दो-तीन महीने बाकी थी। गर्मियों की छुट्टियां थीं। मुझे पता था कि इनके घर पर कुछ तनाव चल रहा है ,इसलिए मैं उन छुट्टियों में इलाहाबाद नहीं गया था। हास्टल में रूक गया था। मेरे एक दोस्त थे संजय ब्राउन। वे मयूर विहार में रहते थे। उनके घर आता-जाता था। तूलिका एक दिन उनके घर पर आ गई। तय हुआ कि शादी करनी है। पैसे नहीं थे मेरे पास। केवल 40 रुपए थे। दोस्तों की मदद से शादी हुई। तीस हजारी कोर्ट जाकर हमने रजिस्ट्रेशन कर लिया। घर वालों के विरूद्ध जाकर शादी करनी पड़ी। हमारी उम्र नहीं थी। तब तो यह रहता था कि इश्क किया है तो निभाएंगे। कुछ दिनों तक छुप कर रहे। इनके पिताजी बड़े अधिकारी थे। शादी के बाद हम इलाहाबाद चले। प्रयागराज से नहीं गए। हमने एक दूसरी ट्रेन पकड़ी। कानपुर तक जाने वाली ट्रेन ली। वहां से दूसरी ट्रेन ली। घर वाले नाराज थे,लेकिन हफ्ते भर में सब ठीक हो गया। फिर लौट आए दिल्ली। पहले कुछ साथ दोस्तों के साथ रहे। फिर अपना कमरा ले लिया। एक ही कमरा था हिंदुस्तान टाइम्स अपार्टमेंट में। बालकनी को किचेन बना लिया था।
तूलिका - कभी ख्याल नहीं आया कि कल क्या होगा? सपनों की दुनिया ही थी। तय था कि शादी तो करनी है। पविार के लोग आनाकानी कर रहे थे तो एक दिन तिग्मांशु के पास आ गई। आ जाने के बाद सारी औपचारिकताएं और जरूरतें पूरी की गईं। मेरे मन में कभी कोई संशय नहीं रहा।
तिग्मांशु - दोस्तों की मदद से हम ने शादी कर ली। दिल्ली में हमलोग छुप के रहे। इनके पिताजी एडमिंस्ट्रेटिव ऑफिसर थे। बड़े पोस्ट पर थे। सारे पड़ोसी पुलिस में थे। डीआईजी किस्म के लोग थे। शादी की और फिर सोचे कि इलाहाबाद ही चलते हैं। वैसे एक एक ट्रेन प्रयाग इलाहाबाद तक जाती थी। हमको लगा कि इससे जाएंगे तो पकड़े जाएंगे। तो मैंने एक दूसरी ट्रेन पकड़ी जनसाधारण एक्सप्रेस वह कानपुर जाती है। फिर कानपुर बदल ली। नाराज थे,घर वाले उन्होंने एक्सेप्ट कर लिया। - तुलिका - हमलोग सपनों की दुनिया में बचपन से रहते हैं और हम उसी दुनिया को परफेक्ट मानते हैं। एक बार तिग्मांशु ने एक जिंगलस किया था। उसमें पांच सौ रुपए मिले थे। हमें लगा था कि पांच सौ रुपए में तो हम पूरी दुनिया खरीद सकते हैं। हमें कभी नहीं लगा कि यह सब नहीं कर पाएंगे। हमने यह भी नहीं सोचा था कि इस मुकाम तक पहुंच जाएंगे। हमारी हर सिचुएशन अच्छी रही। हम हर सिचुएशन में खुश रहते थे। मैं ये नहीं सोचती थी कि सबके पास शादी के बाद ये-वो है,हमारे पास नहीं है। मैं कभी सोचती ही नहीं थी। हमें लगता था कि हम डिफरेंट हैं।
दिल्ली के दिन
तूलिका - कुछ ऐसा था कि हमलोग के बचपन के सारे दोस्त आस पास रह रहे थे। हम भी उनसे मिलते रहते थे।  एक तरह से बहुत ही अच्छा वह माहौल था। लगता नहीं था कि स्ट्रगल चल रहा है। हम जिंदगी में रम गए थे।
तिग्मांशु - दोस्तों ने बहुत साथ दिया। शादी की तो मैं ड्रामा स्कूल में था और ये अपने घर में ही थीं। हमलोग केरल गए थे एक-सवा महीने के लिए। संजय उसे साढ़े सात सौ रुपए देते थे महीने के। एक कमरा हमको मिला। पूरा घर ही था टू बेडरूम का। सब के अपने-अपने कमरे थे। रहना भी वहीं और खाना भी वहीं। वह कहानी बिल्कुल सही है - एक राजकुमार था वह गरीब हो गया। हमारी एक रोमांटिक दुनिया थी। कोई प्रॉब्लम नहीं था।
तुलिका - वो कहते हैं न स्ट्रगलिंग  के दौर से गुजरना पड़ता है। हमलोग को भी थोड़ा सा गुजरना पड़ा। फैमिली का सपोर्ट, फ्रेंड का सपोर्ट, इमोशनली सपोर्ट हमारा खुद ही, सबकुछ स्मूथली बीत गया। कभी नहीं लगा कि कोई बड़ी कमी रही?
शादी की जरूरत
तिग्मांशु - शादी का फैसला इन्होंने लिया था। शायद अगर घर में दिक्कत नहीं आती तो दो-तीन साल के बाद शादी करते। तब तक लीव इन रिलेशन प्रचलित नहीं हुआ था। शादी के लिए इनके घर वाले राजी हो जाते तो शायद बाद में करते शादी। शादी किए आज पच्चीस साल हो गए। अगर मैंने शादी नहीं की होती तो मेरे बिगडऩे के बहुत चांस थे, क्योंकि मैं दोस्ती-यारी वाला बंदा हूं। आओ चलो, आओ चलो। आओ पीओ, खाओ पीओ। इस तरह का हूं मैं। शादी का जो अंकुश शायद मेरे लिए जरूरी था। मेरे लिए अच्छा हुआ। 22 साल की उम्र में ही शादी हो गई। अच्छा हुआ।
तूलिका - हमलोग सब कंडिशनिंग वाले लोग थे। पत-पत्नी से ज्यादा कंपैनियनशिप की फीलिंग रही। शादी करने का दबाव या प्रभाव जैसा कुछ नहीं रहा। इस एज में अभी जो जमाना हो रहा है, उसमें हमें लग रहा है कि हमारी बेटी बहुत भाग्यशाली होगी। क्योंकि उसे दोनों पैरेंट्स वैसे ही मिले हैं। आजकल इतनी छोटी-छोटी चीजों पर लोग अलग होना चाह रहे हैं, जैसे लग रहा है पूरी दुनिया का संतुलन बिगड़ रहा है। आज के माहौल में संतुलन बिगडऩे से शेर ही कम नहीं हो रहे हैं। आदमी की इंसानियत भी कम हो रही है। प्यार-मोहब्बत से आदमी दूर भाग रहा है। उसे यह सब बोझ लग रहा है। क्यों जरूरी है प्रेम। सभी को फ्रीडम चाहिए। वास्तव में सभी को फ्रीडम नहीं चाहिए। सबको प्यार चाहिए।
तिग्मांशु - हमारे आसपास ऐसे लोग हैं। अच्छी-खासी शादी सालों की। बच्चा भी है। क्यों छोड़ा? एक होता है न लडक़ा या लडक़ी किसी और के चक्कर में पड़ गए हैं। बीवी किसी के साथ पकड़ी गई है। मियां कहीं फंस गया है। ऐसा कुछ नहीं है। कुछ नहीं। सिर्फ यह है कि बोर हो गए हैं। इस इंडस्ट्री क्या पूरी दुनिया में यही हो रहा है। एक की शिकायत थी कि घर में पड़ा रहता है। जबकि वह घर में काम ही कर रहा है। बीवी को लगा कि मियां इंटरप्राइजिंग नहीं है। अब हर आदमी एक तरीके से तो काम नहीं करेगा। सभी का अपना एक रिदम होता है। सिस्टम होता है। शरीर का अपना संविधान होता है। नहीं,पता चला उसी चक्कर में मियां को छोड़ दिया।
स्ट्रगल में साथ,कामयाबी में अलग
तिग्मांशु - एक-दूसरे को समझना। दुनिया को समझना, अपने दोस्तों को समझना। ये बातें खत्म हो गई हैं। आदमी धीरे-धीरे टेकनोलॉजी के तरफ बढ़ रहा है।  एक-दूसरे के साथ जुडऩे की टेकनोलॉजी आ गई है। इंटरनेट, फेसबुक और सब  ़ ़ ़ दूरियां बढ़ गई है उससे। जरूरत से ज्यादा बढ़ गई है। फेसबुक और ये सब जो है,वहां  एक्चुअल फ्रेंड नहीं हैं। ये सभी वर्चुअल फेंड हैं। सैटेलाइट से भेजे गए दोस्त हैं। आप उन्हें जानते नहीं हैं। इनमें सब लोग इतना ज्यादा रम गए हैं कि मेरे कितने-कितने फ्रेंड हैंकी तुलना होती है। मेरे सेवन हंड्रेड है, मेरे टू थाउजंड हैं, मेरे थ्री थाउजंड हैं। लाइक और डिसलाइक दोनों पर बातें होती हैं। इगो फील वहां पर रहती है। मेरी फोटो दस लोगों थम डाउन किया। मेरा दिमाग खराब हो गया। अरे ये क्या? जाओ बाहर खेलो गिल्ली-डंडा। उसमें हारो और उसमें दोस्तों से नाराज हो। वो सब खत्म हो गया है। इसी पर लगा हुआ है आदमी और दूरियां और बढ़ रही है। अकेलेपन और अलगाव के शिखर पर हैं हम।
तूुलिका - मेरी बेटी पिछले साल एक दिन घर आई  और बताने लगी कि मम्मा हमारे क्लास में ज्यादातर बच्चों के  पैरेंट्स अलग हो चुके हैं। हमलोग तीन-चार बच्चे जिनके पैरेंट्स साथ में हैं। मुझे अजीब सी बात लगी। हमलोग को लगता है कि हमलोग के ऐसे पैरेंट्स रहे। उन्होंने जितना अच्छा जीवन हमलोगों को दिया उसका आधा भी हम नहीं दे पा रहे हैं। वो प्यार-मोहब्बत ़ ़ ़ किस को प्यार नहीं चाहिए। अकेले कितना आदमी रह लेगा। वह फैमिली ढूंढ़ता है। पैरेंट्स ढूंढ़ता है। फ्रेंडस ढूंढ़ता है। फैमिली में रहना बहुत ही जरूरी है,क्योंकि केवल परिवार में बिना शर्त प्यार होता है। बाकी रिश्ते मतलबी होते हैं। हमलोग की बांडिंग इतनी स्ट्रोंग है कि कितना भी कुछ हो जाए सब एक साथ रहेंगे हर चीज से मुकाबला करने के लिए ।
तिग्मांशु - मैंने कितने लोगों को देखा है। हम नहीं करेंगे शादी, हम बैचलर रहेंगे। हम शादी की संस्था में यकीन नहीं करते। फिर 45-50 की उम्र के बाद शादी करते हैं। आप 70 के हो गए और बच्चे 15 के ही हैं। फिर कंपैनियनशिप नहीं हो पाती।
तूलिका - परिवार की कंपैनियनशिपअनकंडिशनल होती है। बाकी फ्रेंड चार ही होते हैं,जो आपको प्यार करते हैं। सौ नहीं हो सकते। हर इंसान को वह चीज चाहिए ही चाहिए। जितना माडर्न हो जाए, जितनी टेकनोलॉजी आ जाए। जिस मुकाम पर भी पहुंचे। सुख-दुख शेयर करना चाहते हैं। चाहे वे दो ही लोग हों। फैमिली इज वेरी इंर्पोटेंट। इस दुनिया को ठीक कर लें नहीं तो सब कुछ बिखर जाएगा। जानवर तो फिर भी कंट्रोल में आ जाएगा लेकिन इंसान कंट्रोल में नहीं आएगा।
घर के फैसले
तिग्मांशु - ये लेती हैं।
तूलिका - उस पर कोई बहस नहीं होती है। वह अनकहा फैसला है कि मैं करूंगी। बाकी ये देखेंगे।
तिग्मांश - इनका एस्थेटिक्स सेंस अच्छस है। पेंटिंग करती थीं। कलर पसंद,फैब्रिक की जानकारी इन सब का सेंस अच्छा है। मैं इस मामले में जीरो हूं।। क्या खरीदा जाए और घर को कैसे रखा जाए? अभी नया घर हमने लिया है उस घर का इंटीरियर चल रहा है। सब कुछ यही देख रही है। मैं केवल इतना कहा कि मेरा बार ठीक कर देना। इन चीजों में मैं बिल्कुल दखल नहीं देता। ये शॉपिंग में लंबा टाइम लेगी। चाहे एक चीज खरीदनी हो। दो घंटा लगाएगी खरीदने में। मैं जाता हूं एक ही दुकान में पंद्रह मिनट में पांच समान खरीद कर वापस आ जाता हूं।

तूलिका- लेकिन बाद में तीन फेंक देते हैं।

ग्लैमर वल्र्ड
तुलिका - तिग्मांशु फिल्मों में हैं। कभी यह आशंका यह भय नहीं रहा कि ये भटक जाएंगे। निश्चित रूप से ऐसा खयाल कभी नहीं आया। कभी हमारे दिमाग से भी नहीं गुजरती है यह बात। हमको लगता है कि हम इतना अच्छे से एक-दूसरे को जानते हैं। हमलोग को मालूम है कि हमलोग आखिर तक साथ रहेंगे।
तिग्मांशु- मुझे रास्ते पर यही रखती हैं।
तूलिका - जब साथ आदमी रहने लगता है तभी एक-दूसरे का गुण जान पाता है। वैसे इतनी समझदारी और पहचान तो होती है। इंसान सिंपल और मेहनती होना चाहिए। वफादार होना चाहिए।
तिग्मांशु - लडक़ा-लडक़ी साथ तो शादी के बाद रहते हैं। उसके पहले किसके साथ रहते हैं? उसके पहले अपने पैरेंट्स के साथ रहते हैं। भाई-बहन के साथ रहते हैं। अपने दोस्तों के साथ रहताा है। अगर किसी ने ये सारे रिश्ते ठीक से निभाए और आपको उसकी जानकारी है। अगर वो अपने माता-पिता के साथ बहुत प्यार है, केयरिंग है, सिस्टर को लेकर प्रोटेक्टिव है। दोस्तों का यार है तो बंदा या बंदी ठीक है। देखिए दुनिया बदल रही है। समाज बदल रहा है। पहले वाला सवाल नहीं रहा कि आराम वाला एक स्लो जिंदगी चल रही है। छोटे शहरों में भी रोज पार्टी करते हैं। तो बदल गया है समाज। लडक़ी हो या लडक़ा ़ ़ ़ दोनों को स्पेस देना बहुत जरूरी हो गया है। आदमी हमेशा अपनी स्पेस चाहता है। उससे पहले वो अपने परिवार के साथ रहा होता है। अपने दोस्तों के साथ रहा होता है। लडक़ों के ज्यादा दोस्त होते है, वह हमेशा घूमता रहता है। पान की दुकान पर जाता है। रेस्टोरेंट में जाता है। शादी के पहले खुली होती है उसकी जिंदगी। शादी के बाद कम हो जाती है एक्टिविटी। वाइफ के साथ शॉपिंग करने, वाइफ के साथ घूमने की जरूरत बढ़ती है। रिश्तेदारों में जाओ, शादियों में जाओ। फिर बहुत ज्यादा बंधा-बंधाया फील करता है। यार तबाह हो गई है जिंदगी। नरक हो गई है। संभव है मेरे साथ भी ऐसा हुआ होगा।



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तिग्मांशु धूलिया - हमसफर


तूलिका - आज के माडर्न जमाने में दोनों को स्पेस चाहिए। एक-दूसरे पर ट्रस्ट होना चाहिए और  ़ ़ ़ ये मत करो, वो मत करो, यहां मत जाओ, वहां मत जाओ। अब ये चीजें कम होती हैं। यही चीजें वजह बनती है अलग होने की। औरतों को भी चाहिए होता है फ्रीडम। जब दोनों स्पेस दे रहे हों तो संतुलन हो जाता है। लडक़ों की तरह लड़कियों को भी लगता है कि अरे यह क्या  ़ ़ ़ हर चीज में ये करो, वो करो। औरत को ये करना चाहिए। आप उस चीज  को समझ जाते हो और स्पेस देते हो तो। स्पेस क्या है आप एक-दूसरे को जीने दें, करने दें। वही प्यार, वही फैमिली, बैलेंस रहता है तो सब चीजें ठीक रहती है।
बदलाव
तूलिका - ऐसा कुछ बदलाव नहीं है। सब वैसे ही है। अभी थोड़े शांत हो गए हैं। वेरी सेकरीफाइजिंग एंड वेरी लविंग पर्सन हैं तिग्मांशु। सिंपल लिविंग,हाई थिकिंग में यकीन रखते हैं। हर के लिए चिंतित रहते हैं। केवल फैमिली तक सीमित नहीं है इनका श्ह व्यवहार। कुछ भी पता चल जाए, चाहे पैसों को लेकर हो चाहे खुद जाकर करना हो। सच है, झूठ है यह जानने के पहले किसी की भी तकलीफ से उद्वेलित हो जाते हैं। यह बड़ी क्वालिटी होती है आजकल।
तिग्मांशु - शादी के समय हम दोनों का उम्र ही क्या थी? मैं बहुत ज्यादा इंटलेक्चुअली, बहुत 'ज्यादा स्प्रीचुअली ग्रोथ की बात नहीं करूंगा। दुनियादारी और क
ाम की जिम्मेदारी थीा। आपको अपना ड्रीम पूरा करना है, स्ट्रगल भी करना है और घर को भी देखना है। तो शायद वो ग्रोथ जल्दी हो गई काम के वजह से। इतना भाग-दौड़ करना। मुझे लगता है जानसीं के आने के बाद बहुत परिवत्र्तनकारी ग्रोथ हुआ। किसी ने सिखाया तो नहीं। और बच्चों को मैं देखता हूं, जानसीं तो जो भी है, जैसी भी है वैसी ही है। मुझे जानसीं को देख कर बहुत खुशी होती है। वह बहुत समझदार है।
तुलिका - यह भी होता है न कि हमलोगों को देखती है। हमलोगों को लगता है कि प्यार से पढ़ाते हैं, बोल कर पढ़ाते हैं। बहुत सी चीजें अनजाने में आप ही से सीख लेते हैं बच्चे। हम दोनों से उसे सीख मिली है। हमलोगों की ग्राउंड थिंकिंग है तो उसकी भी वैसी ही है।
तिग्मांशु-उसे सलीम जावेद की सारी फिल्में अच्छी लगती है। शक्ति और दीवार बहुत अच्छी लगती है। उसको अमिताभ बच्चन की डॉन अच्छी लगती है। शाहरुख खान की डॉन अच्छी नहीं लगती है। हमलोगों को भी जंगल और जानवर पसंद है, म्यूजिक पसंद है। उसको भी पसंद है। प्यानो सीखती है। म्यूजिक का बहुत शौक है। छुट्टियां हैं। हमलोग कहीं नहीं जा रहे हैं। वह जिद नहीं करती है कि मुझे कहीं लेकर चलो। हमको असिस्ट करती है। ऑफिस जाती है। ये सब फैमिली की देन होती है।
क्या है शादी
तिग्मांशु - शादी है क्या? आप अपनी जेनेटिक्स को बढ़ा रहे हैं।  वो अच्छी जेनेटिक्स भी होने चाहिए। मैंने भी वही सीखा है जो हमारे फादर ने, मदर ने, बड़े भाईयों ने, उसी को आगे लेकर जा रहे हैं। यही फैमिली यूनिटी है। इसी से बनी रहेगी चीजें,नहीं तो सब अलग-अलग बिखर जाएंगे।
तूलिका - अपने परिवारों से जुड़ हुए हैं हम। एक बार की बात बताऊं। अब यहां बैठ कर पता नहीं चलता। नैनीताल में करीबन पौने ग्यारह बज रहा था। इन्होंने हमारे फोन से भी किया और अपने फोन से भी किया। वे सब सो गए थे। सुबह-सुबह उनका फोन आ गया। क्या बात हो गई तुम लोगों का फोन रात को ग्यारह बजे आया। मैं बोली ऐसे ही किया। बोले कि मैं तो घबरा ही गया था। ऐसी प्रतिक्रिया से पता चलता है कि कंसर्न है।
तुलिका - छोटे शहर से निकले। दिल्ली पहुंचे। फिर मुंबई आ गए। शादी हुई। बच्ची हुई। तिग्मांशु को पहचान मिली। जो भी सफर रहा बहुत ही खूबसूरत रहा। मेरे फ्रेंड और फैमिली बहुत हैं। उस वजह से लगता है कि सपने की तरह अभी तक पूरी हो रही है।
तिग्मांशु-मैं खुश हूं कि थोड़ा टेढ़ा काम चुना। जैसे आप खुद ही कह रहे हैं कि आउटसाइडर हैं। हमलोग जब आए थे, अब हमलोग भी पुराने हो गए। नए डायरेक्टर और आ गए। उस वक्त अभी की तरह फिल्ममेकिंग व्यवस्थित नहीं थी। उस वक्त था कि आप किसी डायरेक्टर को असिस्ट करो और पिक्चर बनाते-बनाते आप एक्टर के नजदीक हो जाओगे और अपनी स्क्रिप्ट पिच करो और पिक्चर बनने की संभावना हो जाती है। हमलोग ऐसे ही किए हैं। हम साल डेढ़ साल शेखर कपूर के साथ लगे रहे। फिर वे एलिजाबेथ करने चले गए। कोई था ही नहीं। और भी मुश्किल आ गई थी। ये अच्छा हो गया अपना सपना भी पूरा किया। हालांकि सपने अभी तक बचे हैं। फिर भी जहां पहुंचे कभी किसी तरह की दिक्कत नहीं आई। कई मौके होते थे बिल्कुल पैसे नहीं होते थे। कोई न कोई दोस्त या कुछ और हो जाता है। मेरे साथ हमेशा हुआ है। मुझे पैसे उधार बहुत कम मांगने पड़े।
कौन बोलता है सॉरी
तिग्मांशु - शायद हम दोनों को पता चल जाता है कि गलती किसकी थी। मेरी गलती हो तो मैं सॉरी बोल देता हूं। कभी कभी गलती इनकी गलती रहती है लेकिन मैं उसे नहीं झेल पाता। आप सभी के सामने भी चुप हैं। बात नहीं कर रहे हैं तो वह फैलता है। वह रोग जैसा हो जाता है।




















Comments

Anonymous said…
thanks ajai ji.tigmanshu sir ki
'kahaani' ke lie.
sanjeev5 said…
पूरी कहानी को और मनोरंजक बना सकते थे. तिग्मांशु के पास कहने को बहुत है. कैसे एक एक पढाव पर दोनो ने किस प्रकार सब मुश्किलों का एक साथ सामना किया. कैसे तिग्मांशु को काम मिला और कैसे एक एक मील के पत्थर पर दोनों ने साथ दिया एक दूसरे का. लिखने वाले ने इतने छोटे से लेख में केवल खुद को दोहराया है....मेरे विचार में कुछ बेहतर लिख सकते थे.....
Apni Baat said…
बहुत ही खूबसूरत बातचीत रही आप तीनों की , समय के साथ-साथ जिंदगी में बहुत कुछ सीखना पढ़ता है । इस इंटरव्यू से भी काफी सीख मिली
बहुत सुंदर !
Apni Baat said…
बहुत ही खूबसूरत बातचीत रही आप तीनों की , समय के साथ-साथ जिंदगी में बहुत कुछ सीखना पढ़ता है । इस इंटरव्यू से भी काफी सीख मिली
बहुत सुंदर !
Unknown said…
People like Tigmanshu Dhulia ji pride of Allahabad. We feel so happy to see him acting and all his movies. His movies have been so down to earth n meaningful, it relates all the event of Allahabad n it has essence of Allahabad in it.
Though his mother was student of my grandmother and his mother use to frequently vistar our home long back but I have never met him n his mother.

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