लिखनी थी दिलचस्प किताब-पंकज दूबे
-अजय ब्रह्मात्मज
पेशे से पत्रकार रहे पंकज दूबे का पहला उपन्यास एक साथ हिंदी और अंग्रेजी में छपा। हिंदी में इसका नाम ‘लूजर कहीं का’ और अंग्रेजी में ‘ह्वाट अ लूजर’ है। दोनों ही भाषाओं में यह किताब बेस्ट सेलर रही है। पंकज दूबे में हिंदी-अंग्रेजी के विरले लेखकों में हैं,जो समान गति और ज्ञान से हिंदी और अंग्रेजी में लिख सकते हैं। अभी वे मुंबई मैं अपनी पत्नी श्रद्धा और बेटी कुग्गी के साथ रहते हैं। पंकज जल्द ही फिल्म निर्देशन में कदम रखना चाहते हैं। उनकी पहली फिल्म ‘लूजर कहीं का’ पर आधारित होगी।
-क्या चल रहा है अभी? आप के पहले उपन्यास का जोरदार स्वागत हुआ।
0 ‘लूजर कहीं का’ अभी तक बिक ही रही है। इस बीच एक निर्माता ने इस उपन्यास के फिल्मांकन में रुचि दिखाई। मेरी योजना थी कि आराम से इसी पर स्क्रिप्ट तैयार करूंगा और फिर स्टूडियोज और निर्माताओं के पास जाऊंगा। मेरी तैयारी के पहले ही कोई तैयार हो गया। अभी मैं ‘लूजर कहीं का’ की स्क्रिप्ट लिख रहा हूं।
-इतनी आसानी से निर्माता मिल गया? यहां तो निर्देशकों को लंबा स्ट्रगल करना पड़ता है?
0 स्ट्रगल तो मैंने भी किया है,लेकिन मैं उसे निर्देशक बनने की प्रक्रिया मानता हूं। इस निर्माता ने भी पूरी तहकीकात और जांच के बाद ही सहमति दी है। इस उपन्यास के दो दृश्यों की डमी शूटिंग कर उन्हें दिखायी। वे राजी और आश्वस्त हुए कि मैं निर्देशित कर सकता हूं ‘लूजर कहीं का’ एंटरटेनिंग फीचर फिल्म होगी। मुख्यधारा की फिल्मों के सारे तत्व इसमें रहेंगे। हमलोग जल्दी ही शूटिंग आरंभ करेंगे।
-उपन्यास को एक साथ हिंदी और अंग्रेजी में लाने का विचार क्यों और कैसे आया?
0 मेरे दोस्त दोनों भाषाओं के हैं। मैं स्वयं सोचता तो हिंदी में हूं,लेकिन मेरे अध्ययन और एक्सप्रेशन की भाषा अंग्रेजी रही है। मैं दोनों भारूााओं में सहज और प्रवहमान हूं। मैंने देखा और पाया कि हिंदी की बात अंग्रेजी में या अंग्रेजी के साथ की जाए तो आदर और स्वीकार बढ़ जाता है। सिर्फ हिंदी हिंदी करूं तो धारणा बनती है कि अंग्रेजी नहीं आती होगी। दूसरे डिजिटल मीडिया में अभी तक अंग्रेजी का चलन है। मेरा उपन्यास काउबेल्ट कॉमेडी है। उसके पाठक हिंदी में हैं,लेकिन चर्चा के लिए अंग्रेजी जरूरी है। नतीजतन दोनों ही भारूााओं में उपन्यास बेस्टसेलर रहा। अब फिल्म आएगी तो किताब से फिल्म को फायदा होगा और फिर फिल्म से किताब की आगे बिक्री बढ़ेगी।
-आप का उपन्यास लोकप्रिय होगा,इस अनुमान और विश्वास का आधार क्या था?
0 मैं खुद ़ ़ ़ मैं बेहद संकोची पाठक हूं। मुझ ज्यादातर साहित्य बोझिल और अप्रासंगिक लगता रहा है। मैं दिलचस्प किताब लिखना चाहता था। एक अनुभव शेयर करना चाहूंगा। बीबीसी की नौकरी के दरम्यान एक बार सुबह दफ्तर से लौट रहा था। मैंने देखा कि एक दुकान के आगे भीड़ लगी है। पता करने पर मालूम हुआ कि आज जेके रोलिंग की हैरी पॉटर सीरिज में नयी किताब आ रही है। वह दृश्य दिमाग में बैठ गया। मैं बेस्ट सेलर ही लिखना चाहता था। इच्छा रही कि जो नहीं पढ़ते उन्हें पाठक बनाया जाए। मुझे लगता है कि पाठक लेखक की तुलना में तेजी से परिपक्व हो रहे हैं। 16 से 21 की उम्र के पाठकों के सपने,विजुअल और भाषा बदल चुकी है,लेकिन हमारे लेखक अपने टाइमलाइन में फंसे हुए हैं। ह्वाट्स ऐप जेनरेशन के लिए लिखना जरूरी है। लेखन क्लिफहैंगर हो। पाठक किताब न रखे। लिखते समय ही आश्वस्त हो गया था कि बात बन रही है।
-लेखन की प्रक्रिया क्या रही?
-लेखन की प्रक्रिया क्या रही?
0 दोनों भाषाओं में साथ लिखता गया। कंसेप्ट और शुरुआत अंग्रेजी में रही। फिर कभी हिंदी में लिखा तो कुछ ज्यादा चैप्टर लिख दिए। ऐसा अंग्रेजी के साथ भी हुआ। घटनाक्रम और स्ट्रक्चर एक जैसा है,लेकिन दोनों में से कोई भी अनुवाद नहीं है। अगर हिंदी श अंग्रेजी में बाद में कुछ नया आ गश तो उसे दूसरी भाषा में डाल देता था। भाषा और सेंस ऑफ ह्यूमर में मेहनत करनी पड़ी।
-साहित्यकारों का क्श रेस्पांस रहा?
0 अभी तक गालियां पड़ी नहीं हैं। अगर किसी ने दी भी हो तो मुझ तक नहीं पहुंची है। मुझे तो तारीफ ही मिली है। कुछ लोगों को इसमें श्रीलाल शुक्ल के राग दरबारी की झलक मिली। मेरे लिए यह बड़ी बात है। अच्छी बात है कि उपन्यास पर गंभीर विमर्श भी हुआ है। इसके गंभीर पहलुओं को रेखांकित किया गया है।
पेशे से पत्रकार रहे पंकज दूबे का पहला उपन्यास एक साथ हिंदी और अंग्रेजी में छपा। हिंदी में इसका नाम ‘लूजर कहीं का’ और अंग्रेजी में ‘ह्वाट अ लूजर’ है। दोनों ही भाषाओं में यह किताब बेस्ट सेलर रही है। पंकज दूबे में हिंदी-अंग्रेजी के विरले लेखकों में हैं,जो समान गति और ज्ञान से हिंदी और अंग्रेजी में लिख सकते हैं। अभी वे मुंबई मैं अपनी पत्नी श्रद्धा और बेटी कुग्गी के साथ रहते हैं। पंकज जल्द ही फिल्म निर्देशन में कदम रखना चाहते हैं। उनकी पहली फिल्म ‘लूजर कहीं का’ पर आधारित होगी।
-क्या चल रहा है अभी? आप के पहले उपन्यास का जोरदार स्वागत हुआ।
0 ‘लूजर कहीं का’ अभी तक बिक ही रही है। इस बीच एक निर्माता ने इस उपन्यास के फिल्मांकन में रुचि दिखाई। मेरी योजना थी कि आराम से इसी पर स्क्रिप्ट तैयार करूंगा और फिर स्टूडियोज और निर्माताओं के पास जाऊंगा। मेरी तैयारी के पहले ही कोई तैयार हो गया। अभी मैं ‘लूजर कहीं का’ की स्क्रिप्ट लिख रहा हूं।
-इतनी आसानी से निर्माता मिल गया? यहां तो निर्देशकों को लंबा स्ट्रगल करना पड़ता है?
0 स्ट्रगल तो मैंने भी किया है,लेकिन मैं उसे निर्देशक बनने की प्रक्रिया मानता हूं। इस निर्माता ने भी पूरी तहकीकात और जांच के बाद ही सहमति दी है। इस उपन्यास के दो दृश्यों की डमी शूटिंग कर उन्हें दिखायी। वे राजी और आश्वस्त हुए कि मैं निर्देशित कर सकता हूं ‘लूजर कहीं का’ एंटरटेनिंग फीचर फिल्म होगी। मुख्यधारा की फिल्मों के सारे तत्व इसमें रहेंगे। हमलोग जल्दी ही शूटिंग आरंभ करेंगे।
-उपन्यास को एक साथ हिंदी और अंग्रेजी में लाने का विचार क्यों और कैसे आया?
0 मेरे दोस्त दोनों भाषाओं के हैं। मैं स्वयं सोचता तो हिंदी में हूं,लेकिन मेरे अध्ययन और एक्सप्रेशन की भाषा अंग्रेजी रही है। मैं दोनों भारूााओं में सहज और प्रवहमान हूं। मैंने देखा और पाया कि हिंदी की बात अंग्रेजी में या अंग्रेजी के साथ की जाए तो आदर और स्वीकार बढ़ जाता है। सिर्फ हिंदी हिंदी करूं तो धारणा बनती है कि अंग्रेजी नहीं आती होगी। दूसरे डिजिटल मीडिया में अभी तक अंग्रेजी का चलन है। मेरा उपन्यास काउबेल्ट कॉमेडी है। उसके पाठक हिंदी में हैं,लेकिन चर्चा के लिए अंग्रेजी जरूरी है। नतीजतन दोनों ही भारूााओं में उपन्यास बेस्टसेलर रहा। अब फिल्म आएगी तो किताब से फिल्म को फायदा होगा और फिर फिल्म से किताब की आगे बिक्री बढ़ेगी।
-आप का उपन्यास लोकप्रिय होगा,इस अनुमान और विश्वास का आधार क्या था?
0 मैं खुद ़ ़ ़ मैं बेहद संकोची पाठक हूं। मुझ ज्यादातर साहित्य बोझिल और अप्रासंगिक लगता रहा है। मैं दिलचस्प किताब लिखना चाहता था। एक अनुभव शेयर करना चाहूंगा। बीबीसी की नौकरी के दरम्यान एक बार सुबह दफ्तर से लौट रहा था। मैंने देखा कि एक दुकान के आगे भीड़ लगी है। पता करने पर मालूम हुआ कि आज जेके रोलिंग की हैरी पॉटर सीरिज में नयी किताब आ रही है। वह दृश्य दिमाग में बैठ गया। मैं बेस्ट सेलर ही लिखना चाहता था। इच्छा रही कि जो नहीं पढ़ते उन्हें पाठक बनाया जाए। मुझे लगता है कि पाठक लेखक की तुलना में तेजी से परिपक्व हो रहे हैं। 16 से 21 की उम्र के पाठकों के सपने,विजुअल और भाषा बदल चुकी है,लेकिन हमारे लेखक अपने टाइमलाइन में फंसे हुए हैं। ह्वाट्स ऐप जेनरेशन के लिए लिखना जरूरी है। लेखन क्लिफहैंगर हो। पाठक किताब न रखे। लिखते समय ही आश्वस्त हो गया था कि बात बन रही है।
-लेखन की प्रक्रिया क्या रही?
-लेखन की प्रक्रिया क्या रही?
0 दोनों भाषाओं में साथ लिखता गया। कंसेप्ट और शुरुआत अंग्रेजी में रही। फिर कभी हिंदी में लिखा तो कुछ ज्यादा चैप्टर लिख दिए। ऐसा अंग्रेजी के साथ भी हुआ। घटनाक्रम और स्ट्रक्चर एक जैसा है,लेकिन दोनों में से कोई भी अनुवाद नहीं है। अगर हिंदी श अंग्रेजी में बाद में कुछ नया आ गश तो उसे दूसरी भाषा में डाल देता था। भाषा और सेंस ऑफ ह्यूमर में मेहनत करनी पड़ी।
-साहित्यकारों का क्श रेस्पांस रहा?
0 अभी तक गालियां पड़ी नहीं हैं। अगर किसी ने दी भी हो तो मुझ तक नहीं पहुंची है। मुझे तो तारीफ ही मिली है। कुछ लोगों को इसमें श्रीलाल शुक्ल के राग दरबारी की झलक मिली। मेरे लिए यह बड़ी बात है। अच्छी बात है कि उपन्यास पर गंभीर विमर्श भी हुआ है। इसके गंभीर पहलुओं को रेखांकित किया गया है।
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