फिल्म समीक्षा : हंप्टी शर्मा की दुल्हनिया
हिदी फिल्मों की नई पीढ़ी का एक समूह हिंदी फिल्मों से ही प्रेरणा और
साक्ष्य लेता है। करण जौहर की फिल्मों में पुरानी फिल्मों के रेफरेंस रहते
हैं। पिछले सौ सालों में हिंदी फिल्मों का एक समाज बन गया है। युवा
फिल्मकार जिंदगी के बजाय इन फिल्मों से किरदार ले रहे हैं। नई फिल्मों के
किरदारों के सपने पुरानी फिल्मों के किरदारों की हकीकत बन चुके हरकतों से
प्रभावित होते हैं। शशांक खेतान की फिल्म 'हंप्टी शर्मा की दुल्हनिया'
आदित्य चोपड़ा की फिल्म 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' की रीमेक या स्पूफ
नहीं है। यह फिल्म सुविधानुसार पुरानी फिल्म से घटनाएं लेती है और उस पर नए
दौर का मुलम्मा चढ़ा देती है। शशांक खेतान के लिए यह फिल्म बड़ी चुनौती
रही होगी। उन्हें पुरानी फिल्म से अधिक अलग नहीं जाना था और एक नई फिल्म का
आनंद भी देना था।
चौधरी
बलदेव सिंह की जगह सिंह साहब ने ले ली है। अमरीश पुरी की भूमिका में आशुतोष
राणा हैं। समय के साथ पिता बदल गए हैं। वे बेटियों की भावनाओं को समझते
हैं। थोड़ी छूट भी देते हैं, लेकिन वक्त पडऩे पर उनके अंदर का बलदेव सिंह
जाग जाता है। राज मल्होत्रा इस फिल्म में हंप्टी शर्मा हो गया है।
मल्होत्रा बाप-बेटे का संबंध यहां भी दोहराया गया है। हंप्टी लूजर है।
सिमरन का नाम काव्या हो गया है। उसमें गजब का एटीट्यूड और कॉन्फिडेंस है।
वह करीना कपूर की जबरदस्त फैन है। काव्या की शादी आप्रवासी अंगद से तय हो
गई है। पुरानी फिल्म का कुलजीत ही यहां अंगद है। शादी के ठीक एक महीने पहले
काव्या मनीष मल्होत्रा का डिजायनर लहंगा खरीदना चाहती है, जो करीना कपूर
ने कभी पहना है। अंबाला में वैसा लहंगा नहीं मिल सकता, इसलिए वह दिल्ली आती
है। दिल्ली में हंप्टी और काव्या की मुलाकात होती है। पहली नजर में प्रेम
होता है और 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' की कहानी थोड़े फेरबदल के साथ
घटित होने लगती है।
शशांक
खेतान की फिल्म पूरी तरह से 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' पर आश्रित होने
के बावजूद नए कलाकरों की मेहनत और प्रतिभा के सहयोग से ताजगी का एहसास देती
है। यह शशांक के लेखन और फिल्मांकन का भी कमाल है। फिल्म कहीं भी अटकती
नहीं है। उन्होंने जहां नए प्रसंग जोड़े हैं, वे चिप्पी नहीं लगते। 'हंप्टी
शर्मा की दुल्हनिया' आलिया भट्ट के एटीट्यूड और वरुण धवन की सादगी से रोचक
हो गई है। दोनों कलाकारों ने अपने किरदारों के मिजाज को अच्छी तरह निभाया
है। वरुण के अभिनय व्यवहार में चुस्ती-फुर्ती है। वे डांस, एक्शन और रोमांस
के दृश्यों में गति ले आते हैं। दूसरी तरफ आलिया ने इस फिल्म में काव्या
की आक्रामकता के लिए बॉडी लैंग्वेज का सही इस्तेमाल किया है। खड़े होने के
अंदाज से लेकर चाल-ढाल तक में वे किरदार की खूबियों का उतारती हैं। अलबत्ता
कहीं-कहीं उनके चेहरे की मासूमियत प्रभाव कम कर देती है। लंबे समय के बाद
आशुतोष राणा को देखना सुखद रहा। बगैर नाटकीय हुए वे आधुनिक पिता की
पारंपरिक चिंताओं को व्यक्त करते हैं। हंप्टी शर्मा के दोस्तों की भूमिका
में गौरव पांडे और साहिल वैद जंचते हैं। सिद्धार्थ शुक्ला अपनी पहली फिल्म
में मौजूदगी दर्ज करते हैं।
शशांक
खेतान की 'हंप्टी शर्मा की दुल्हनिया' हंसाती है। यह फिल्म रोने-धोने और
बिछड़े प्रेम के लिए बिसूरने के पलों को हल्का रखती है। भिड़ंत के दृश्यों
में भी शशांक उलझते नहीं हैं। यह फिल्म अंबाला शहर और दिल्ली के गलियों के
उन किरदारों की कहानी है,जो ग्लोबल दौर में भी दिल से सोचते हैं और प्रेम
में यकीन रखते हैं। शशांक खेतान उम्मीद जगाते हैं। अब उन्हें मौलिक सोच और
कहानी पर ध्यान देना चाहिए।
अवधि: 134 मिनट
*** तीन स्टार
*** तीन स्टार
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