दरअसल : अज्ञान के साथ लापरवाही


-अजय ब्रह्मात्मज
    हिंदी फिल्मों की अनेक विडंबनाओं में से एक बड़ी विडंबना यह भी है कि धीरे-धीरे हिंदी फिल्मों के नाम फिल्म और पोस्टर में हिंदी में आने बंद या कम हो गए हैं। इधर ऐसी कई फिल्में आई हैं, जिनके टायटल तक हिंदी में नहीं लिखे जाते। आप बड़े शहरों के किसी भी मल्टीप्लेक्स या सिनेमाघर में घूम आएं। बहुत मुश्किल से कुछ पोस्टर हिंदी में दिखेंगे। उत्तर भारत में फिल्म रिलीज होने के हफ्ते-दस दिन पहले पोस्टर हिंदी में लगते हैं। उनमें भी कई बार गलत हिंदी लिखी रहती है। मान लिया गया है कि हिंदी फिल्मों के दर्शक अंग्रेजी समझ लेते हैं, इसलिए देवनागरी में नाम लिखने की जरूरत नहीं रह गई है। निर्माता और वितरकों पर दर्शकों की तरफ से दबाव भी नहीं है। इस लापरवाही और आलस्य में भाषा की तमीज और शुद्धता खत्म होती जा रही है।
    इन दिनों साजिद खान की फिल्म ‘हमशकल्स’ की काफी चर्चा है। धुआंधार प्रचार चल रहा है। हर कोई ‘हमशकल्स’ बोल और लिख रहा है। गौर करें तो हिंदी या उर्दू में ‘हमशक्ल’ के बहुवचन के लिए कोई अलग शब्द नहीं है। एक तो यह शब्द ‘हमशक्ल’ है। ‘हमशक्ल’ का बहुवचन भी ‘हमशक्ल’ ही होगा। बहुवचन के लिए हिंदी अंग्रेजी के नियम से ‘एस’ अक्षर लगाने की जरूरत नहीं है। ‘हमशकल्स’ नाम पर किसी को आपत्ति नहीं है। हिंदी पत्र-पत्रिकाओं में भी यही गलत नाम लिखा जा रहा है। साजिद खान का बेशर्म लॉजिक है कि फिल्म में तीन हमशक्ल हैं तो वे ‘हमशकल्स’ हो जाएंगे। टायटल के प्रति ऐसी लापरवाही इधर कुछ और फिल्मों में दिखाई पड़ी है।
    कुछ महीने पहले शाहिद कपूर की फिल्म ‘फटा पोस्टर निकला हीरो’  आई थी। इस फिल्म का पोस्टर भी अंग्रेजी में था और निकला को उच्चारण के हिसाब से निखला लिखा गया था - हृढ्ढ्य॥रु्र। निर्माताओं ने अक्षर ज्योतिष के हिसाब से लाभ के लिए अतिरिक्त अक्षर ‘एच’ लगा दिया। अगर ऐसा ही चलता रहा तो नागरी में लिखे नामों के अप्रचलन से कुछ सालों में भ्रष्ट और गलत उच्चारण चलने लगेंगे। निश्चित ही भाषा और शब्दों का स्थायी स्वरूप और अर्थ नहीं होता, लेकिन प्रचलित शब्दों का भ्रष्ट या गलत प्रयोग अनुचित है। पिछले दिनों टायगर श्रॉफ की फिल्म आई। इस फिल्म का नाम अंग्रेजी के तर्ज पर हिंदी में ‘हिरोपंती’ लिखा गया। हिंदी की पत्र-पत्रिकाओं में पुराने संस्कार से ‘हिरोपंती’ को सुधार कर ‘हीरोपंती’ कर दिया गया। यह ख्याल नहीं रहा कि सही शब्द  ‘हीरोपंथी’ है। मुंबई में निर्माता-निर्देशक ने तो बताने पर भी परवाह नहीं की। फिल्म हिट हो चुकी है तो अब उनका तर्क होगा - नाम में क्या रखा है? करण जौहर के धर्मा प्रोडक्शन की फिल्म ‘हंसी तो फंसी’ को अंग्रेजी में लिखते समय ‘हंसी’ और ‘फंसी’ में ‘एन’ लगाने की चिंता नहीं की गई। अंग्रेजी अक्षरों का उच्चारण लिखते तो नाम ‘हसी तो फसी’ होता। पिछले दिनों विशाल भारद्वाज अपवाद रहे थे। उनकी फिल्म ‘मटरू की बिजनी का मन्डोला’ के पोस्टर केवल हिंदी में थे।
    वास्तव में यह अज्ञान के साथ लाभ की लापरवाही है। अक्षर ज्योतिष की लोकप्रियता के बाद टायटल में अतिरिक्त अक्षर जोड़ लेना प्रचलन में है। अक्सर हिंदी फिल्मों के नामों अंग्रेजी के कुछ अतिरिक्त अक्षर दिख जाते हैं। अब तो कलाकार भी अपने नाम में अतिरिक्त अक्षर जोड़ लेते हैं। उन्हें लगता है कि अतिरिक्त अक्षर लगाने मात्र से उनका करिअर चमक जाएगा। सुनील शेट्टी, करीना कपूर, रितेश देशमुख, मनोज बाजपेयी आदि ने अपने नाम में अतिरिक्त अक्षर जोड़े हैं। इन्हें चिता ही नहीं रहती कि उनका नाम हिंदी में अतिरिक्त अक्षर के साथ लिखा जाए तो वह कैसे पढ़ा जाएगा? इस लापरवाही और षिेध पर तो अब ध्यान भी नहीं जाता कि हिंदी फिल्मों में कलाकारों और तकनीशियनों के नाम अंग्रेजी में ही लिखे जाते हैं।
    हिंदी में नाम लिखने की एक समस्या पुरानी है। अंग्रेजी अक्षरों के मराठी उच्चारण थोड़े अलग हो जाते हैं। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री मुंबई में स्थित है। आरंभ से अभी तक यहीं से पोस्टर या उसकी डिजाइन यहीं से बन कर जाते हैं। मराठीभाषी डिजाइनर या लेखक मराठी भाषा के प्रभाव में ‘सिंह’ को ‘सिंग’ लिखने की गलतियां करता रहा है। हम अर्से तक ‘दारा सिंह’ को ‘दारा सिंग’ पढ़ते रहे हैं। इसी का असर था अक्षय कुमार की फिल्म का नाम ‘सिंग इज किंग’ लिखा जा रहा था। बताने पर विपुल शाह माने थे कि ‘सिंग’ की जगह ‘सिंह’ लिखना सही और उचित होगा।

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