हंसी की पुडिय़ा बांधता हूं मैं-साजिद खान


-अजय ब्रह्मात्मज

    ‘हिम्मतवाला’  की असफलता के बाद साजिद खान ने चुप्पी साध ली थी। अभी ‘हमशकल्स’ आ रही है। उन्होंने इस फिल्म के प्रचार के समय यह चुप्पी तोड़ी है। ‘हिम्मतवाला’ के समय किए गए दावों के पूरे न होने की शर्म तो उन्हें है, लेकिन वे यह कहने से भी नहीं हिचकते कि पिछली बार कुछ ज्यादा बोल गया था।
- ‘हिम्मतवाला’ के समय के सारे दावे गलत निकले। पिछले दिनों आपने कहा कि उस समय मैं झूठ बोल गया था।
0 झूठ से ज्यादा वह मेरा बड़बोलापन था। कह सकते हैं कि वे बयान नासमझी में दिए गए थे। दरअसल मैं कुछ प्रुव करना चाह रहा था। तब ऐसा लग रहा था कि मेरी फिल्म अवश्य कमाल करेगी। अब लगता है कि ‘हिम्मतवाला’ का न चलना मेरे लिए अच्छा ही रहा। अगर फिल्म चल गई होती तो मैं संभाले नहीं संभलता। इस फिल्म से सबक मिला। यह सबक ही मेरी सफलता है। मैंने महसूस किया कि मैं हंसना-हंसाना भूल गया था। अच्छा ही हुआ कि असफलता का थप्पड़ पड़ा। अब मैं संभल गया हूं।
- ऐसा क्यों हुआ था?
0 मैं लोगों का ध्यान खींचना चाहता था। एक नया काम कर रहा था। मेरी इच्छा थी कि लोगों की उम्मीदें बढ़ें। वैसे भी दर्शकों की अपेक्षाएं बढ़ी हुई थी। पिछली फिल्मों की सफलता से उन्हें भी लग रहा था कि इस बार साजिद खान बड़ा धमाल करेगा। सच्चाई यह थी कि मैं अंदर से हिला हुआ था। अपनी घबराहट छिपा रहा था। बाकी फिल्मों के समय मेरा बड़बोलापन काम आ गया था। मेरा दिमाग चढ़ा हुआ था। अब लग रहा है कि मैं तो फिल्मकार हूं। मैं क्यों फिल्म के कलेक्शन की परवाह करूं?
- कलेक्शन का दबाव तो है। सब यही पूछते हैं कि यह फिल्म 100 करोड़ का बिजनेस करेगी कि नहीं?
0 दबाव तो है। इस दबाव को अपने काम से ही कम किया जा सकता है। हमारा काम है दर्शकों की अपेक्षा के मुताबिक फिल्म बनाना। ‘हिम्मतवाला’  जैसी गलती दोबारा नहीं करूंगा। मेरा काम हंसना-हंसाना है। मैं कामेडी बनाता हूं। फनी टाइप का निर्देशक हूं। इस बार यही उम्मीद है कि ‘हमशकल्स’ दर्शकों को खूब हंसाएगी। इस फिल्म में पूरा पागलपन डाल दिया है। हर दृश्य में दर्शक हंसेंगे।
- क्या एक्टर की तरह डायरेक्टर भी टाइपकास्ट होते हैं?
0 बिल्कुल होते हैं। हिचकॉक पूरी जिंदगी थ्रिलर बनाते रहे। भारत में अब्बास-मस्तान केवल थ्रिलर बनाते हैं। मेरी बहन फराह खान लार्जर दैन लाइफ मसाला एंटरटेंमेंट फिल्में बनाती हैं। डेविड धवन कामेडी फिल्में बनाते हैं। ये सभी टाइपकास्ट हैं। इनकी तरह मैं भी टाइपकास्ट हूं। मुझे कामेडी फिल्मों के लिए जाना जाता है। रोहित भी टाइपकास्ट हैं, लेकिन उन्होंने ‘सिंघम’ बना कर अपनी इमेज तोड़ी। सब कोई उनकी तरह सफल नहीं होता। अपने बारे में मैंने समझ लिया है कि मेरा काम है लोगों को हंसाना। मुझे कामेडी लिखने और डायरेक्ट करने में मजा आता है। टीवी से लेकर फिल्मों तक यही करता रहा हूं।
- पहले फिल्मों में हंसी का ट्रैक रहता था। अब पूरी फिल्म हंसी पर रहती है। ऐसा क्या हुआ है कि पिछले पांच-सात सालों में दर्शकों को हंसी की ज्यादा जरूरत हो गई है?
0 जब से हीरो कामेडी करन लगे तब से धीरे-धीरे यह ट्रेंड बन गई। भारत की रोजमर्रा जिंदगी में इतना ज्यादा स्ट्रेस है कि अगर फिल्मों से थोड़ी देर के लिए तनाव कम हो तो दर्शक खुश हो जाते हैं। स्ट्रेस रिलीफ के लिए फिल्में रामबाण हैं। इधर हर भाषा में कामेडी फिल्मों की संख्या बढ़ी है। कहा जा सकता है कि हमें हंसने की खुराक चाहिए। शायद भारत में अधिक समस्याएं होने की वजह से कामेडी फिल्में दर्शकों को रिलीफ दे रही हैं। हमारे चारो तरफ तनाव ही तनाव है। हंसी बेहतरीन दवा है और हम इस दवा के बिक्रेता हैं। मैं हंसी की पुडिय़ा बांधता हूं।
- ‘हमशकल्स’ में क्या नया है?
0 एक नया कंसेप्ट है। सैफ अली खान, रितेश देशमुख और राम कपूर तीन-तीन भूमिकाओं में हैं। तीन एक्टर के ट्रिपल रोल यानी नौ कैरेक्टर। उनके नाम भी एक समान हैं। अशोक, कुमार और मामा जी। ये तीनों एक ही शहर में रहते हैं। संयोग ऐसा बनता है कि वे एक ही घर में भी आ जाते हैं और फिर कामेडी पर कामेडी होती रहती है। इस फिल्म में ढेर सारी नई बातें हैं। मैं दावा कर रहा हूं कि दर्शकों को इस बार नौ गुणा ज्यादा मजा आएगा। अच्छी बात है कि अपने ट्रेलर और गानों से हमें ऐसा ही रिस्पांस मिल रहा है।

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