फिल्म समीक्षा : मछली जल की रानी है
-अजय ब्रह्मात्मज
फिल्म मछली जल की रानी है के पोस्टर पर लिखा है 'यह बच्चों की नहीं,
बड़ों की फिल्म है'। यह हिदायत जरूरी है, क्योंकि टाइटल में बच्चों की फिल्म
का आकर्षण है। निर्देशक देवालय डे ने कहानी, किरदार व परिवेश के स्तर पर
हॉरर फिल्मों की परंपरा में कुछ नया करने का प्रयास किया है। हॉरर फिल्मों
की चुनौती है दर्शकों को चौंकाना और उन्हें अप्रत्याशित हादसों के लिए
तैयार रखना। देवालय इस चुनौती को समझते हैं।
आयशा और उदय नवदंपति हैं। उनकी एक बेटी भी है। एक बार हंसी-मजाक में
आयशा की तेज ड्राइविंग से दुर्घटना में एक लड़की मारी जाती है। आयशा उस
हादसे को दिमाग से नहीं निकाल पाती। इस बीच, उदय का ट्रांसफर जबलपुर हो
जाता है। दोनों को लगता है कि नई जगह पर वे खुशहाल रहेंगे। वहां पहुंचने पर
नई अज्ञात हरकतें आरंभ होती हैं। आयशा को संदेह होता है कि घर में कुछ
गड़बड़ है। आयशा की संदेह को उदय उसका वहम मानता है, लेकिन एक समय के बाद
स्थितियां बेकाबू हो जाती है। फिर तांत्रिक उग्र प्रताप की मदद लेनी पड़ती
है।
देवायल डे डर को बुनने में ज्यादा वक्त लेते हैं। आरंभिक प्रसंग पूरी
तरह से बांध नहीं पाते। उनमें ढीलापन है। प्रेतात्मा का प्रसंग आ जाने पर
फिल्म पूरी तरह से स्वरा भास्कर पर निर्भर करती है। स्वरा के लिए ऐसे
किरदार को निभाना आसान नहीं रहा होगा। उन्होंने आयशा के मन में बैठे डर और
फिर प्रेतात्मा से आवेशित होने के बाद के भावों को अच्छी तरह व्यक्त किया
है। इस फिल्म में स्वरा ने साबित किया है कि अगर उन्हें बहन और दोस्त से
बड़ी भूमिकाएं मिलें तो वह उन्हें सहजता से निभा सकती हैं। इस बार उन्हें
पर्दे पर गाने-नाचने का भी मौका मिला है।
अन्य कलाकारों में केवल दीपराज राणा तांत्रिक की भूमिका में प्रभावित
करते हैं। उन्होंने इस किरदार के लिए आवश्यक ऊर्जा व आवाज का सुंदर संयोग
किया है। पड़ोसी की छोटी भूमिका में मुरली शर्मा निराश नहीं करते। अच्छी बात
है कि देवालय ने हॉरर में किसी और तत्व का मिश्रण नहीं किया है।
अवधि - 120 मिनट
**1/2 ढाई स्टार
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