फिल्‍म समीक्षा : मैं तेरा हीरो

डेविड धवन, गोविंदा और सलमान खान मिल कर कामेडी, सेक्स और डबल मीनिंग डायलॉग खास किस्म की मसाला फिल्में परोसते रहे थे। सच यही है कि उनकी फिल्मों को दर्शकों ने खूब पसंद भी किया। समय के साथ तीनों तीन दिशा में बढ़ गए। इस बीच डेविड धवन के बेटे वरुण धवन को करण जौहर ने 'स्टूडेंछ आफ द ईयर' में लॉन्च किया। रिलीज के बाद सभी ने फिल्म के दूसरे हीरो सिद्धार्थ मल्होत्रा को लपक लिया। डैडी डेविड धवन मौके पर फिर से डायरेक्टर की कुर्सी पर बैठ गए। उन्होंने वरुण धवन को फिल्म में लिया। कोई पॉपुलर हीरोइन साथ आने को तैयार नहीं हुई तो नरगिस फाखरी और और इलियाना डिक्रूज को साथ में लिया और मसाला मनोरंजन 'मैं तेरा हीरो' पेश किया।
इस पृष्ठभूमि के बाद फिल्म से कोई शिकायत नहीं रहती। 'मैं तेरा हीरो' उन दर्शकों के लिए ही बनाई गई है, जो हिंदी में मसाला फिल्में देखते रहे हैं। इधर ऐसा लगने लगा था कि दर्शकों की रुचि का खयाल रखते हुए फिल्मकार नए फॉर्मूले आजमा रहे हैं। फिल्म देखते हुए कभी सलमान खान के लटकों तो कभी गोविंदा के झटकों की याद आती है। सीनु पढ़ने के लिए बेंगलुरु आता है। पहले ही दिन कैंपस में उसे सुनयना भा जाती है। उधर आयशा उस पर पहले ही मर मिटी है। दो हीरोइन और एक हीरो, तीन-चार नाच गाने, कुछ फूहड़ दृश्य और द्विअर्थी संवादों की तुकबंदी, मार-धाड़ और विदूषक किरदारों की पछाड़, हो गई फिल्म पूरी। डेविड धवन ने पूरा खयाल रखा है कि दर्शकों को फिजूल में कुछ सोचना न पड़े। तर्क को रखा ताक पर और कामेडी डाली नाप कर।
वरुण धवन ने सलमान खान और गोविंदा के लटके-झटकों से लैस होकर डैडी डेविड धवन की हर मांग पूरी की है। कहना चाहिए कि डैडी की सौंपी जिम्मेदारी को पूरी फूहड़ता और आवश्यक अश्लीलता के साथ निभा कर वे सलमान और गोविंदा के उत्तराधिकारी होते नजर आते हैं। रूप-रंग और डील-डौल उन्होंने हासिल किया है। कुछ और फिल्मों के अनुभव के बाद वे अभिनय करने के साथ प्रिय भी लगने लगेंगे। वरुण धवन को अपनी आवाज पर मेहनत करनी चाहिए। निश्चित ही वे मसाला हीरो के तौर पर स्वीकृत होंगे।
फिल्म के बाकी कलाकारों और दोनों हीरोइनों का योगदान यथायोग है। अच्छा तो नहीं लगता जब राजपाल यादव, अनुपम खेर और सौरभ शुक्ला जैसे कलाकारों को हम ऐसी फिल्मों में साधारण काम करते देखते हैं। यह उनकी पसंद और निर्देशक की जरूरत है।
अवधि-128 मिनट

Comments

Popular posts from this blog

तो शुरू करें

फिल्म समीक्षा: 3 इडियट

सिनेमालोक : साहित्य से परहेज है हिंदी फिल्मों को