फिल्म समीक्षा : गुलाब गैंग
विरोध का गुलाबी रंग
-अजय ब्रह्मात्मज
सौमिक सेन की 'गुलाब गैंग' में गुलाबी साड़ी पहनी महिलाएं समूह में चलती हैं तो उनमें किसी झरने की गति और चंचलता नजर आती है। बेधड़क सीमाओं को तोड़ती और नए सितारों को छूती गंवई महिलाओं के अधिकार और समस्याओं की 'गुलाब गैंग' माधुरी दीक्षित और जूही चावला की अदाकारी और भिड़ंत के लिए भी देखी जा सकती है।
रज्जो को पढ़ने का शौक है। उसकी सौतेली मां पढ़ाई की उसकी जिद को नहीं समझ पाती। वह उसे घरेलू कामों में झोंकना चाहती है। यही रज्जो बड़ी होकर शिक्षा को मिशन बना लेती है। वह गुलाब गैंग आश्रम की स्थापना करती है। अपने गैंग की लड़कियों की मदद से वह नारी संबंधित सभी अत्याचारों और आग्रहों से लड़ती है। अपनी ताकत से वह पहचान बनाती है। यहां तक कि स्थानीय राजनीतिज्ञ सुमित्रा देवी की निगाहों में आ जाती है। सुमित्रा देवी की अपनी ताकत बढ़ाने के लिए रज्जो को साथ आने का ऑफर देती है, लेकिन रज्जो सामने आना बेहतर समझती है। यहां से दोनों की भिड़ंत आरंभ होती है।
लेखक-निर्देशक और संगीतकार सौमिक सेन की त्रिआयामी प्रतिभा में संगीतकार फिल्म पर ज्यादा हावी रहा है। संगीत का सुंदर उपयोग है, लेकिन फिल्म के मसालेदार संरचना में वह योग नहीं करता। संगीत और नृत्य पृथक रूप से उत्तम होने के बावजूद फिल्म की गति को धीमी करता है। गीतों में रज्जो की ऊर्जा को शब्द नहीं मिल पाते।
'गुलाब गैंग' मुख्य रूप से हिंदी फिल्मों की प्रौढ़ अभिनेत्रियों के लिए रची गई कहानी है। माधुरी दीक्षित ने रज्जो और जूही चावला ने सुमित्रा देवी के किरदार को सही रंग दिया है। रज्जो के जोश को माधुरी दीक्षित पर्दे पर ले आती हैं। वहीं साजिश रचती सुमित्रा देवी की चालाकी को जूही चावला सटीक अंदाज देती है। दोनो जब-जब एक फ्रेम में आई है, उन्होंने दृश्यों को प्रभावशाली बना दिया है।
सौमिक सेन ने फिल्मों में गैंग की गतिविधियों को तरजीह दी है। सामूहिकता पर बल देने के कारण वे हिंदी फिल्मों की परिपाटी से बाहर निकल जाते हैं। अगर रज्जो की केंद्रीयता को परिभाषित किया जाता तो फिल्म अधिक प्रभावशाली हो जाती। फिल्म के दृश्य संयोजन और विषय में हल्का बिखराव है। शायद निर्देशक हिंदी फिल्मों के ढांचे से निकलना चाहते हो और सुदृढ़ छलांग न लगा सके हों।
फिल्म के कुछ दृश्यों में संवादों का तेजाबी इस्तेमाल हुआ है। खासकर माधुरी दीक्षित और जूही चावला के आमने-सामने के दृश्यों में दोनों कलाकारों के अनुभव सिद्ध परफॉर्मेस से हम प्रभावित होते हैं।
अवधि-149 मिनट
-अजय ब्रह्मात्मज
सौमिक सेन की 'गुलाब गैंग' में गुलाबी साड़ी पहनी महिलाएं समूह में चलती हैं तो उनमें किसी झरने की गति और चंचलता नजर आती है। बेधड़क सीमाओं को तोड़ती और नए सितारों को छूती गंवई महिलाओं के अधिकार और समस्याओं की 'गुलाब गैंग' माधुरी दीक्षित और जूही चावला की अदाकारी और भिड़ंत के लिए भी देखी जा सकती है।
रज्जो को पढ़ने का शौक है। उसकी सौतेली मां पढ़ाई की उसकी जिद को नहीं समझ पाती। वह उसे घरेलू कामों में झोंकना चाहती है। यही रज्जो बड़ी होकर शिक्षा को मिशन बना लेती है। वह गुलाब गैंग आश्रम की स्थापना करती है। अपने गैंग की लड़कियों की मदद से वह नारी संबंधित सभी अत्याचारों और आग्रहों से लड़ती है। अपनी ताकत से वह पहचान बनाती है। यहां तक कि स्थानीय राजनीतिज्ञ सुमित्रा देवी की निगाहों में आ जाती है। सुमित्रा देवी की अपनी ताकत बढ़ाने के लिए रज्जो को साथ आने का ऑफर देती है, लेकिन रज्जो सामने आना बेहतर समझती है। यहां से दोनों की भिड़ंत आरंभ होती है।
लेखक-निर्देशक और संगीतकार सौमिक सेन की त्रिआयामी प्रतिभा में संगीतकार फिल्म पर ज्यादा हावी रहा है। संगीत का सुंदर उपयोग है, लेकिन फिल्म के मसालेदार संरचना में वह योग नहीं करता। संगीत और नृत्य पृथक रूप से उत्तम होने के बावजूद फिल्म की गति को धीमी करता है। गीतों में रज्जो की ऊर्जा को शब्द नहीं मिल पाते।
'गुलाब गैंग' मुख्य रूप से हिंदी फिल्मों की प्रौढ़ अभिनेत्रियों के लिए रची गई कहानी है। माधुरी दीक्षित ने रज्जो और जूही चावला ने सुमित्रा देवी के किरदार को सही रंग दिया है। रज्जो के जोश को माधुरी दीक्षित पर्दे पर ले आती हैं। वहीं साजिश रचती सुमित्रा देवी की चालाकी को जूही चावला सटीक अंदाज देती है। दोनो जब-जब एक फ्रेम में आई है, उन्होंने दृश्यों को प्रभावशाली बना दिया है।
सौमिक सेन ने फिल्मों में गैंग की गतिविधियों को तरजीह दी है। सामूहिकता पर बल देने के कारण वे हिंदी फिल्मों की परिपाटी से बाहर निकल जाते हैं। अगर रज्जो की केंद्रीयता को परिभाषित किया जाता तो फिल्म अधिक प्रभावशाली हो जाती। फिल्म के दृश्य संयोजन और विषय में हल्का बिखराव है। शायद निर्देशक हिंदी फिल्मों के ढांचे से निकलना चाहते हो और सुदृढ़ छलांग न लगा सके हों।
फिल्म के कुछ दृश्यों में संवादों का तेजाबी इस्तेमाल हुआ है। खासकर माधुरी दीक्षित और जूही चावला के आमने-सामने के दृश्यों में दोनों कलाकारों के अनुभव सिद्ध परफॉर्मेस से हम प्रभावित होते हैं।
अवधि-149 मिनट
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