दरअसल : चौदहवीं का चांद की स्क्रिप्ट
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-अजय ब्रह्मात्मज
पिछले हफ्ते इस स्तंभ में फिल्मों की स्क्रिप्ट की किताबों की चर्चा की गई थी। प्रकाशकों को लगता है कि यह लाभ का धंधा नहीं है। कविता,कहानी और अन्य विषयों पर घोषणा के मुताबिक 500-1000 प्रतियां छाप कर संतुष्ट होने वाले प्रकाशकों का मानना है कि स्क्रिप्ट के खरीददार नहीं होते,जबकि छात्रों,लेखकों और शोधार्थियों की हमेशा जिज्ञासा रहती है कि उन्हें फिल्मों की स्क्रिप्ट कहां से मिल सकती है। फिल्में देखना और स्क्रिप्ट पढऩा रसास्वादन की दो अलग क्रियाएं हैं। हमें स्क्रिप्ट के महत्व को समझना चाहिए। फिल्मकारों को भी इस दिशा में ध्यान देना चाहिए। विदेशों में ताजा फिल्मों की स्क्रिप्ट भी ऑन लाइन उपलब्ध हो जाती है। इस साल ऑस्कर से सम्मानित सभी फिल्मों की स्क्रिप्ट आसानी से पढ़ी जा सकती हैं। भारत में नई तो क्या पुरानी फिल्मों की स्क्रिप्ट भी अध्ययन और शोध के लिए नहीं मिल पातीं।
दिनेश रहेजा और जितेन्द्र कोठारी के संपादन में ‘चौदहवीं का चांद’ की स्क्रिप्ट प्रकाशित हुई है। इसे ओम बुक्स के स्पॉटलाइट और विनोद चोपड़ा प्रोडक्शन के सहयोग से छापा गया है। विनोद चोपड़ा प्रोडक्शन पिछले कुछ सालों से यह नेक कार्य कर रहा है। इसके तहत गुरूदत्त की फिल्मों की स्क्रिप्ट प्रकाशित की जा रही हैं। राजकुमार हिरानी की मुन्नाभाई सीरिज की फिल्मों की स्क्रिप्ट आ चुकी हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि यशराज फिल्म्स और धर्मा प्रोडक्शन समेत सभी निर्माता इस पहल में जल्दी ही शामिल होंगे। ििदनेश रहेजा और जितेन्द्र कोठारी केवल फिल्म की स्क्रिप्ट हरी नहीं पेश करते। वे फिल्म के कलाकारों और तकनीशियनों के साक्ष्य भी इंटरव्यू के रूप मे संकलित करते हैं। इसके साथ ही फिल्म कें संवाद हिंदी के अलावा अंग्रेजी और रोमन में भी अनूदित किए जाते हैं। आज के देशी-विदेशी पाठकों को इस से सुविधा होती है।
दिनेश रहेजा और जितन्द्र कोठारी ने ‘चौदहवीं का चंाद’ स्क्रिप्ट के साथ वहीदा रहमान,फरीदा दादी,श्याम कपूर,भानु अथैया और बाबूराव पावस्कर के ईटरव्यू प्रस्तुत किए हैं। सभी की बातचीत फिल्म और गुरूदत्त पा केंद्रित है। इन इंटरव्यू में ‘चौदहवीं का चांद’ की मेकिंग से संबंधित रोचक जानकारियां मिलती हैं। पढ कर विस्मित हुआ जा सकता है कि आरंभ में गुरूदत्त को आफताब शब्द का अर्थ नहीं मालूम था। गुरूदत्त जैसे फिल्मकार इस अज्ञान को दूर करते थे। भाषा के जानकारों को वे अपने आसपास रखते थे। हिंदी फिल्मों में हिंदी भाषा के संदर्भ में यह दूरी और अपरिचय आज भी मौजूद है। अंग्रेजी का वर्चस्व बढऩे के बाद यह विडंबना ज्यादा प्रगट होने लगी है। आज के फिल्मकार भाषा समझने की कोशिश नहीं करते।
दिनेश रहेजा और जितेन्द्र कोठारी ने ‘चौदहवीं का चांद’ की भूमिका में गुरूदत्त के प्रभाव का विस्तार से उल्लेख किया है। गुरूदत्त को फिल्म की कहानी पसंद आई थी। यूनिट के सदस्य चाहते थे कि वे स्वयं इस फिल्म का निर्देशन करें। गुरूदत्त को अपनी सीमाएं मालूम थीं। मुस्लिम परिवेश की तहजीब,रूढिय़ों और नफसतों के सही चि।ण के लिए उन्होंने एक सादिक का सहयोग लिया। ‘चौदहवीं का चांद’ हिंदी फिल्मों में प्रचलित छठे-सातवें दशक की लोकप्रिय विधा मुस्लिम सोशल की महत्वपूर्ण फिल्म है। लखनऊ की पृष्ठभूमि में इस फिल्म के किरदारों को रखा गया। लखनऊ के बाशिंदे भी मानते हैं कि उनके शहर को इस फिल्म ने ढंग से पेश किया। दिनेश रहेजा और जितेन्द्र कोठारी ने आज के पाठकों के लिए ‘चौदहवीं का चांद’ को इसी संदर्भ में विश्लेषित किया है। यह पुस्तक फिल्म निर्माण संबंधी जानकारियां भी देती है। अंग्रेजी के पाठकों के लिए दोनों लेखकों ने गीतों का सटीक अनुवाद किया है। मूल के करीब रहने की उनकी यह कोशिश संवादों के अनुवादों में भी दिखती है।
चौदहवीं का चांद : द ओरिजनल स्क्रीनप्ले
संकलन,अनुवाद,निबंध और इंटरव्यू : दिनेश रहेजा और जितेन्द्र कोठारी
ओम बुक्स इंटरनेशनल
-अजय ब्रह्मात्मज
पिछले हफ्ते इस स्तंभ में फिल्मों की स्क्रिप्ट की किताबों की चर्चा की गई थी। प्रकाशकों को लगता है कि यह लाभ का धंधा नहीं है। कविता,कहानी और अन्य विषयों पर घोषणा के मुताबिक 500-1000 प्रतियां छाप कर संतुष्ट होने वाले प्रकाशकों का मानना है कि स्क्रिप्ट के खरीददार नहीं होते,जबकि छात्रों,लेखकों और शोधार्थियों की हमेशा जिज्ञासा रहती है कि उन्हें फिल्मों की स्क्रिप्ट कहां से मिल सकती है। फिल्में देखना और स्क्रिप्ट पढऩा रसास्वादन की दो अलग क्रियाएं हैं। हमें स्क्रिप्ट के महत्व को समझना चाहिए। फिल्मकारों को भी इस दिशा में ध्यान देना चाहिए। विदेशों में ताजा फिल्मों की स्क्रिप्ट भी ऑन लाइन उपलब्ध हो जाती है। इस साल ऑस्कर से सम्मानित सभी फिल्मों की स्क्रिप्ट आसानी से पढ़ी जा सकती हैं। भारत में नई तो क्या पुरानी फिल्मों की स्क्रिप्ट भी अध्ययन और शोध के लिए नहीं मिल पातीं।
दिनेश रहेजा और जितेन्द्र कोठारी के संपादन में ‘चौदहवीं का चांद’ की स्क्रिप्ट प्रकाशित हुई है। इसे ओम बुक्स के स्पॉटलाइट और विनोद चोपड़ा प्रोडक्शन के सहयोग से छापा गया है। विनोद चोपड़ा प्रोडक्शन पिछले कुछ सालों से यह नेक कार्य कर रहा है। इसके तहत गुरूदत्त की फिल्मों की स्क्रिप्ट प्रकाशित की जा रही हैं। राजकुमार हिरानी की मुन्नाभाई सीरिज की फिल्मों की स्क्रिप्ट आ चुकी हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि यशराज फिल्म्स और धर्मा प्रोडक्शन समेत सभी निर्माता इस पहल में जल्दी ही शामिल होंगे। ििदनेश रहेजा और जितेन्द्र कोठारी केवल फिल्म की स्क्रिप्ट हरी नहीं पेश करते। वे फिल्म के कलाकारों और तकनीशियनों के साक्ष्य भी इंटरव्यू के रूप मे संकलित करते हैं। इसके साथ ही फिल्म कें संवाद हिंदी के अलावा अंग्रेजी और रोमन में भी अनूदित किए जाते हैं। आज के देशी-विदेशी पाठकों को इस से सुविधा होती है।
दिनेश रहेजा और जितन्द्र कोठारी ने ‘चौदहवीं का चंाद’ स्क्रिप्ट के साथ वहीदा रहमान,फरीदा दादी,श्याम कपूर,भानु अथैया और बाबूराव पावस्कर के ईटरव्यू प्रस्तुत किए हैं। सभी की बातचीत फिल्म और गुरूदत्त पा केंद्रित है। इन इंटरव्यू में ‘चौदहवीं का चांद’ की मेकिंग से संबंधित रोचक जानकारियां मिलती हैं। पढ कर विस्मित हुआ जा सकता है कि आरंभ में गुरूदत्त को आफताब शब्द का अर्थ नहीं मालूम था। गुरूदत्त जैसे फिल्मकार इस अज्ञान को दूर करते थे। भाषा के जानकारों को वे अपने आसपास रखते थे। हिंदी फिल्मों में हिंदी भाषा के संदर्भ में यह दूरी और अपरिचय आज भी मौजूद है। अंग्रेजी का वर्चस्व बढऩे के बाद यह विडंबना ज्यादा प्रगट होने लगी है। आज के फिल्मकार भाषा समझने की कोशिश नहीं करते।
दिनेश रहेजा और जितेन्द्र कोठारी ने ‘चौदहवीं का चांद’ की भूमिका में गुरूदत्त के प्रभाव का विस्तार से उल्लेख किया है। गुरूदत्त को फिल्म की कहानी पसंद आई थी। यूनिट के सदस्य चाहते थे कि वे स्वयं इस फिल्म का निर्देशन करें। गुरूदत्त को अपनी सीमाएं मालूम थीं। मुस्लिम परिवेश की तहजीब,रूढिय़ों और नफसतों के सही चि।ण के लिए उन्होंने एक सादिक का सहयोग लिया। ‘चौदहवीं का चांद’ हिंदी फिल्मों में प्रचलित छठे-सातवें दशक की लोकप्रिय विधा मुस्लिम सोशल की महत्वपूर्ण फिल्म है। लखनऊ की पृष्ठभूमि में इस फिल्म के किरदारों को रखा गया। लखनऊ के बाशिंदे भी मानते हैं कि उनके शहर को इस फिल्म ने ढंग से पेश किया। दिनेश रहेजा और जितेन्द्र कोठारी ने आज के पाठकों के लिए ‘चौदहवीं का चांद’ को इसी संदर्भ में विश्लेषित किया है। यह पुस्तक फिल्म निर्माण संबंधी जानकारियां भी देती है। अंग्रेजी के पाठकों के लिए दोनों लेखकों ने गीतों का सटीक अनुवाद किया है। मूल के करीब रहने की उनकी यह कोशिश संवादों के अनुवादों में भी दिखती है।
चौदहवीं का चांद : द ओरिजनल स्क्रीनप्ले
संकलन,अनुवाद,निबंध और इंटरव्यू : दिनेश रहेजा और जितेन्द्र कोठारी
ओम बुक्स इंटरनेशनल
Comments
अंग्रेजी सिनेमा में में विदेशी लेखकों की लिखी हुई ढेर सारी पुस्तकें हैं लेकिन हिंदी में ऐसा क्यों नहीं है...पता नहीं..!!
मुन्नाभाई ,और ३ इडियट के अलावा मैंने और कोई स्क्रिप्ट पुस्तक के रूप में नहीं देखी है.
पता नहीं हिंदी फिल्मकार इस बारे में क्यों नहीं सोचते हैं की हिंदी सिनेमा साहित्य को और भी मज़बूत किया जाना चाहिए. अगर स्क्रिप्ट राइटिंग और फिल्म मेकिंग से लेकर एडिटिंग तक की किताबें हिंदी में मूल रूप में लिखी जाएँ तो सभी फिल्म मेकिंग सीखने वाले छात्रों को आसानी हो सकती है ,और इससे भारतीय सिनेमा भी विश्व पटल पर अच्छा कर सकता है.
अंग्रेजी सिनेमा में में विदेशी लेखकों की लिखी हुई ढेर सारी पुस्तकें हैं लेकिन हिंदी में ऐसा क्यों नहीं है...पता नहीं..!!
मुन्नाभाई ,और ३ इडियट के अलावा मैंने और कोई स्क्रिप्ट पुस्तक के रूप में नहीं देखी है.
पता नहीं हिंदी फिल्मकार इस बारे में क्यों नहीं सोचते हैं की हिंदी सिनेमा साहित्य को और भी मज़बूत किया जाना चाहिए. अगर स्क्रिप्ट राइटिंग और फिल्म मेकिंग से लेकर एडिटिंग तक की किताबें हिंदी में मूल रूप में लिखी जाएँ तो सभी फिल्म मेकिंग सीखने वाले छात्रों को आसानी हो सकती है ,और इससे भारतीय सिनेमा भी विश्व पटल पर अच्छा कर सकता है.
अंग्रेजी सिनेमा में में विदेशी लेखकों की लिखी हुई ढेर सारी पुस्तकें हैं लेकिन हिंदी में ऐसा क्यों नहीं है...पता नहीं..!!
मुन्नाभाई ,और ३ इडियट के अलावा मैंने और कोई स्क्रिप्ट पुस्तक के रूप में नहीं देखी है.
पता नहीं हिंदी फिल्मकार इस बारे में क्यों नहीं सोचते हैं की हिंदी सिनेमा साहित्य को और भी मज़बूत किया जाना चाहिए. अगर स्क्रिप्ट राइटिंग और फिल्म मेकिंग से लेकर एडिटिंग तक की किताबें हिंदी में मूल रूप में लिखी जाएँ तो सभी फिल्म मेकिंग सीखने वाले छात्रों को आसानी हो सकती है ,और इससे भारतीय सिनेमा भी विश्व पटल पर अच्छा कर सकता है.