मुलाकात माधुरी दीक्षित से
-अजय ब्रह्मात्मज
माधुरी दीक्षित नहीं मानतीं कि उनकी कोई दूसरी या तीसरी पारी चल रही है। वह स्वीकार करती हैं कि शादी के बाद की घरेलू जिम्मेदारियों और अमेरिका प्रवास से एक गैप आया,लेकिन वह थोड़ा ठहर कर वही पारी पूरी कर रही हैं। बातचीत की शुरुआत में ही वह स्पष्ट करती हैं,‘मुझे वापसी और कमबैक जैसे सवालों का तुक समझ में नहीं आता। मैंने संन्यास की घोषणा तो नहीं की थी। काम तो मैं कर ही रही हूं।’ माधुरी दीक्षित की ‘डेढ़ इश्किया’ को दर्शकों की अच्छी सराहना मिली। समीक्षकों ने भी उनके काम की तारीफ की। 7 मार्च को ‘गुलाब गैंग’ रिलीज होगी। निर्माता अनुभव सिन्हा के लिए सौमिक सेन ने इसे निर्देशित किया है। फिल्म में जूही चावला के साथ उनकी मुठभेड़ के प्रति दर्शकों की जिज्ञासा है। ट्रेड सर्किल में इस फिल्म की चर्चा है।
जूही से बैर नहीं
पहली जिज्ञासा यही होती है कि क्या सचमुच जूही चावला से कोई प्रतिद्वंद्विता थी,जिसकी वजह से पहले दोनों कभी साथ नहीं आईं? वह कहती हैं,‘हमारे बीच कभी कोई प्रतिद्वंद्विता नहीं रही। अगर रहती तो मैं अभी क्यों उनके साथ फिल्म कर अपनी दिमागी शांति खोती। किसी फिल्म में साथ काम करना एक दिन की तो बात नहीं होती है। महीनों साथ रहना पड़ता है।किसी प्रकार का वैमनस्य हो तो फिल्म नहीं की जा सकती। मैं तो बहुत खुश हुई थी कि जूही के साथ काम करने का मौका मिल रहा है। मैंने पहले प्रीति जिंटा,ऐश्वर्या राय,करिश्मा कपूर और अभी हुमा कुरेशी के साथ काम किया है। सभी के साथ मेरे अच्छे संबंध रहे। संयोग है कि पहले कभी हम दोनों को साथ में फिल्म नहीं मिली। इस फिल्म में जूही निगेटिव किरदार निभा रही हैं। मुझे लगता है कि उनके प्रशंसक उन पर गर्व और आश्चर्य करेंगे।’ इस फिल्म में माधुऱी दीक्षित और जूही चावला ने वे सारे संवाद बोले है,जो अमूमन मर्द किरदार बोलते हैं। माधुरी हंसती हैं और निर्देशक सौमिक सेन के हवाले से कहती हैं,‘सौमिक यही चाहते थे कि फिल्म देखते समय दर्शक पर्दे पर किरदारों को देखें। वे भूल जाएं कि उन किरदारो को औरतें निभा रही हैं। फिल्म में रज्जो समाज के निकृष्ट लोगों से भी डील करती है। वह उनके साथ उनकी भाषा में ही बात करती है। हमलोगों ने कहीं भी ओवर द टॉप संवाद या एक्टिंग नहीं रखी है।’
संघर्ष की प्रतीक रज्जो
संघर्ष की प्रतीक रज्जो
‘गुलाब गैंग’ में माधुरी दीक्षित ने रज्जो का किरदार निभाया है। उनके किरदार की तुलना ‘गुलाबी गैंग’ की संपत पाल से की जा रही है। माधरी इस तुलना से इंकार करती हुई संपत पाल के काम की तारीफ करती हैं,‘संपत जी बहुत अच्छा और जरूरी काम कर रही हैं। उन्होंने नारी अधिकारों की लड़ाई जारी रखी है। मेरा किरदार उन पर आधारित नहीं है। रज्जो उन सभी औरतों की प्रतिनिधि और प्रतीक है,जो औरतों के हम और समाज की बेहतरी के लिए लड़ रही हैं। रज्जो बहुत ही स्ट्रांग किरदार है। पढ़ाई में उसकर इंटरेस्ट है। वह मानती है कि शिक्षा ही कुंजी है। वैसे वह यह भी कहती है कि डंडा ही सबका पीर है। रॉड इज गॉड उसका नारा है। अगर कोई समझाने से नहीं माने तो उसे लाठी उठाने में देर नहीं लगती। मैं इस फिल्म में एक्शन भी कर रही हूं। मैंने कनिष्क शर्मा से उसकी खास ट्रेनिंग ली। कनिष्क शाओलिन मार्शल आर्ट में माहिर हैं।’ माधुरी अपने निर्माता अनुभव सिन्हा की तारफ करना नहीं भूलतीं। वह जोर देकर कहती हैं,‘मुख्य भूमिका में औरतों को लकर फिल्म की कल्पना और योजना ही सराहनीय है। मैंने सुना है कि लोग उनसे पूछते थे कि इस फिल्म के लीड या विलेन के लिए उन्होंने किसी इभिनेता को क्यो नहीं लिया? वे चट्टान की तरह सौमिक के साथ खड़े रहे।’
औरत बनाम औरत की जंग
औरत बनाम औरत की जंग
माधुरी मानती हैं कि सौमिक सेन और अनुभव सिन्हा ने सही फैसला किया। वह बताती हैं,‘मुख्श् किरदार में दो औरतों के आमने-सामने होने से दृश्यों का समीकरण ही बदल गया। एक अलग किस्म की टक्कर है। विलुन या हीरो में कोई अभिनेता होता तो दोनों के बीच जिस्म या स्त्रीत्व की बात आ जाती। बहुत कुछ पर्सनल होने लगता है। फिर वह औरत और मर्द की लड़ाई हो जाती है। यहां हम दोनों औरतें हैं। दर्शक भी देखना चाहते हैं कि हम क्या कर रही हैं? हमारी टक्कर सामाजिक कारणों से है। जूही सत्ता की भूखी हैं। मैं उनकी अड़चन बन जाती हूं।’
सही दिशा में हुई शुरुआत
औरतों की बात चलने पर वह अपना निरीक्षण शेयर करती हैं,‘इस बार सबसे अच्छी और बढिय़ा बात यह लगी कि सब जगह औरतें दिखाई पड़ रही हैं। मैंने पहले कभी सहायक निर्देशकों के तौर पर औरतों को नहीं देखा। फिल्म निर्माण के सभी विभागों में औरतों की मौजूदगी देख कर हर्ष होता है। कैमरा,लाइट,मेकअप,प्रोडक्शन हर जगह तो महिलाएं हैं। अभह और बदलाव आएगा। यकीन करे यह सही दिशा में हुई शुरुआत है। इसकी वजह से औरतों की प्रस्तुति का नजरिया भी बदलेगा। पहले महिला प्रधान फिल्मों में बदले या शोषण की बात होती थी। अभी औरतों की इच्छा और महात्वाकांक्षा को तरजीह दी जा रही है।’
खूबसूरती का राज है खुशी
खूबसूरती का राज है खुशी
एक औरत के रूप में खुद के बारे में भी माधुरी खुल कर बातें करती हैं,‘मैंने सांसारिक जिंदगी में औरतों की सारी भूमिकाएं लिभाई हैं और मजे ले रही हूं। केवल दादी बनना बाकी है। मुझे सबसे ज्यादा मजा मां की भूमिका में आता है। बच्चे साथ में होते हैं तो पूर्णता का एहसास होता है। उनके आउटलुक और पर्सपेक्टिव से यही दुनिया नई नजर आने लगती है। उसके साथ ही मैं बेटी और बीवी की भी भूमिका निभा रही हूं।’ अपनी मुस्कान और सौंदर्य के बारे में वह बेहिचक संतुष्ट भाव से कहती हैं,‘मैं कभी नाखुश नहीं रही। मुझे कोई अफसोस भी नहीं है। लोग कहते हैं कि खुशी और तकलीफ की लकीरें चेहरे पर आ जाती हैं। मेरी सुदरता और मुस्कान का राज मेरी खुशी है। मैं सुंदर दिखने कि लिए करेले का ज्यूस पीने जैसी अतिरिक्त मेहनत नहीं करती। मैं खुश हूं और अपने स्पेस को पूरी तरह एंज्वॉय करती हूं।’
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