दरअसल : सितारे झेलते हैं बदतमीजी
-अजय ब्रह्मात्मज
हिंदी फिल्मों के सितारों की लोकप्रियता असंदिग्ध है। मनोरंजन के सर्वाधिक लोकप्रिय माध्यम फिलम से संबंधित होने के कारण पहली फिल्म से ही उनके प्रशंसकों का दायरा बढऩे लगता है। अगर सितारा कामयाब होने के साथ दर्शकों को प्रिय है तो उसकी लोकप्रियता का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। सार्वजनिक स्थानों पर उनकी मौजूदगी मात्र से हलचल होने लगती है। उनके पहुंचने के पहले ही उनके गंतव्य स्थान पर सरसराहट सी होने लगती है। सरकारी लाल बत्तियों और प्रशासनिक सुरक्षा में विचरण करने वाले नेताओ,मंत्रियों और आला अधिकारियों से अलग सितारों के मूवमेंट का असर होता है। महानगरों और बड़े शहरों तक में उनकी उपस्थिति से किसी भी स्थान की दशा बदल जाती है। वे भीड़ में भंवर बन जाते हैं। सारा हुजूम उनकी तरफ धंस रहा होता है। हवाई अड्डा,रेस्तरां,स्टेडियम आदि स्थानों पर सुरक्षा कवच में होने के बावजूद उन्हें धक्कामुक्की झेलनी पड़ती है। किसी भी स्थान पर उनके होने या वहां से गुजरने पर दसों दिशाओं की आंखें उन पर केंद्रित हो जाती हैं। वे सभी को सुकून देते हैं। उनकी छवि आंखों में समाते ही होंठों पर मुस्कान आती है। जरूरी नहीं है कि आप उस सितारे के निजी प्रशंसक ही हों। उल्लास का रंग हम सभी को रंगीन करता है।
इस संदर्भ में यह भी देखें कि मोबाइल क्रांति के बाद सभी हाथों में एक कैमरा आ गया है। किसी भी सेलिब्रिटी से मिलने के साथ पहला काम उसके साथ अपनी तस्वीर उतारना हो गया है। पहले ऑटोग्राफ का चलन था तो कागज के किसी भी टुकड़े पर लोग ऑटोग्राफ ले लेते थे। भले ही वह कागज का टुकड़ा दो दिनों के बाद खो जाता था। इन दिनों वही स्थिति फोटोग्राफ की हो गई है। हर कोई मोबाइल के कैमरे से तस्वीर उतारता है। खुद देखता और दूसरों को दिखाता है। सोशल मीडिया पर एक्टिव हुआ तो फेसबुक और ट्विटर पर डालता है। फिर समय के साथ भूल भी जाता है। अमूमन देखा जा रहा है कि सितारों की छवि उतारने के पहले उनसे अनुमति नहीं ली जाती। पता भी नहीं चलता और उनकी छवि मोबाइल कैमरों में कैद हो जाती है। साथ में तस्वीर उतारनी हो तो अवश्य पूछना पड़ता है। अगर सितारा पुरुष है तो वह ज्यादातर आग्रह मान लेता है। महिला सेलिब्रिटी के इंकार को लोग नखरा-पैंतरा समझ बैठते हैं। सच्चाई यह है कि उनके स्टारडम का बड़ा आधार उनकी छवि है। कई बार वे उचित सज-धज या मूड में नहीं होते तो वे मना कर देते हैं। मैेंने खुद देखा है कि फोटो खिंचवाते समय प्रशंसक नजदीकी दिखाने के लिए सटने या कंधे और कमर पर हाथ रखने की कोशिश करते हैं। एक बार अक्षय कुमार ने अपने प्रशंसक को इस हरकत के लिए डांट दिया था। उन्होंने बताया था कि हर सेलिब्रिटी को यह ध्यान रखना चाहिए कि वह अपरिचित को अपने कंधे पर हाथ न रखने दें। ऐसी तस्वीरों का बेजा लाभ उठाया जाता है।
पिछले दिनों माधुरी दीक्षित अपनी फिल्म के प्रचार के लिए भोपाल शहर गई थीं। वहां एयरपोर्ट पर एक अधिकारी ने पहले उन्हें आग्रह के साथ वीआईपी रूम में बिठाया। फिर अपना इरादा जाहिर किया। वह माधुरी दीक्षित के साथ अपनी तस्वीर चाहता था। माधुरी के मैनेजर ने मना कर दिया। मना करने के बाद उस अधिकारी ने फिर से दो बार आग्रह किया। तीनों बार मना किए जाने के बाद उक्त अधिकारी तैश में आ गया। उसने साफ कहा,फिर तो आप को वीआईपी लाउंज से बाहर जाना होगा। माधुरी दीक्षित और उनके सहयोगियों ने कोई बखेड़ा नहीं किया। अधिकारी की यह हरकत शुद्ध बदतमीजी ही कही जाएगी। फिल्मी सितारों को आए दिन ऐसी बदतमीजियां झेलनी पड़ती हैं। वे चाहें तो इसकी शिकायत कर सकते हैं,लेकिन भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता। उनकी हर सावधानी बेअसर होती है। साथ ही उन्हें खयाल भी रखना पड़ता है कि उनकी मनाही,शिकायत और रवैए को गलत अर्थों में लेकर बात का बतंगड़ न बना दिया जाए।
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