फिल्म समीक्षा : शादी के साइड इफेक्टृस
-अजय ब्रह्मात्मज
न तो फरहान अख्तर और न विद्या बालन,दोनों में से कोई भी कामेडी के लिए
चर्चित नहीं रहा। निर्देशक साकेत चौधरी ने उन्हें शादी के साइड इफेक्ट्स
में एक साथ पेश करने का जोखिम उठाया है। फरहान अख्तर की पिछली फिल्म 'भाग
मिल्खा भाग' रही है। उसके पहले भी वे अपनी अदाकारी में हंसी-मजाक से दूर
रहे हैं। विद्या बालन ने अवश्य घनचक्कर में एक कोशिश की थी,जो अधिकांश
दर्शकों और समीक्षकों के सिर के ऊपर से निकल गई थी। साकेत चौधरी ने शादी के
साइड इफेक्ट्स में दोनों को परिचित किरदार दिए हैं और उनका परिवेश घरेलू
रखा है। इन दिनों ज्यादातर नवदंपति सिड और तृषा की तरह रिलेशनशिप में
तनाव,दबाव और मुश्किलें महसूस कर रहे हैं। सभी शिक्षा और समानता के साथ
निजी स्पेस और आजादी की चाहत रखते हैं। कई बा लगता है पति या पत्नी की
वजह से जिंदगी संकुचित और सीमित हो रही है। निदान कहीं और नहीं है। परस्पर
समझदारी से ही इसे हासिल किया जा सकता है,क्योंकि हर दंपति की शादीशुदा
जिंदगी के अनुभव अलग होते हैं।
सिड और तृषा अपनी शादीशुदा जिंदगी में ताजगी बनाए रखने के लिए नए
एडवेंचर करते रहते हैं। वे नित नए तरीके अपनाते हैं। उनकी हैपनिंग शादी में
बेटी के आगमन से झटका लगता है। सिड को लगता हैकि तृषा उसके हर काम और
एक्शन में कोई कमी निकालती रहती है। वह धीरे-धीरे खुद को तृषा और घरेलू
जिंदगी से दूर करता है। रणवीर की उल्टी-सीधी सलाह से उसकी दिक्कतें और
बढ़ती हैं। शादी संभालने के चक्कर में वह और गलतियां करता है। तृषा भी नहीं
भूल पाती है कि बेटी के आगमन से उसे प्रमोशन और नौकरी छोड़नी पड़ी। दोनों
एक-दूसरे को जिम्मेदार नहीं ठहराने पर भी कुढ़ते रहते हैं। उनकी शादीशुदा
जिंदगी पहले की तरह खशहाल नहीं रह जाती। आखिकर उन्हें एहसास होता है कि
कहीं और जाने या सलाह करने से बेहतर है कि खुद को समझाएं और भरोसा रखें।
सुलह होने के बाद हम फिर देखते हैं कि आदतन पति-पत्नी में से एक निजी
तफरीह के लिए पुन: झूठ बोलने से बाज नहीं आता।
साकेत चौधरी ने पति-पत्नी के बीच की गलतफहमियों और मुश्किलों को
एडल्ट कामेडी नहीं होने दिया है। सचमुच यह रोमांस से अधिक रिलेशनशिप की
कामेडी है। फरहान अख्तर और विद्या बालन ने बहुत संजीदगी से अपने किरदारों
को जिया है। वे हंसाने के लिए हरकतें नहीं करते हैं। उनकी हरकतों पर हंसी
आती है। दोनों अपने संबंधों को लेकर गंभीर और चिंतित हैं। उनकी उलझनों में
सादगी है। अभिनय की दृष्टि से दोनों की संगत और टाइमिंग सही है। परफारमेंस
में वे पूरक भूमिकाएं भी अदा करते हैं।
हिंदी में ऐसी कामेडी फिल्में नहीं बनी हैं। रिलेशनशिन कामेडी में
हमेशा एक वो रहती या रहता है। यहां भी वो है,लेकिन वह कोई व्यक्ति नहीं है।
सिड और तृषा की इच्छाएं ही वो हैं। हालांकि फिल्म में रणवीर कहता है कि
अफयर तो अफेयर है। चाहे वह व्यक्ति से हो या खुद से ़ ़ ़ समाज में किसी
दूसरी या दूसरे से हुए अफेयर को ही अफेयर माना जाता है,जबकि हम में से
ड्यादातर दांपत्य जीवन में किसी और अफेयर की वजह से पार्टनर को कम समय और
महत्व देकर अपनी जिंदगी की रिक्तता बढ़ाते रहते हैं।
स्टार- 3
अवधि-145 मिनट
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