दरअसल : ‘वन बाय टू’ की डिजिटल रिलीज
-अजय ब्रह्मात्मज
अभय देओल अभिनीत और निर्मित ‘वन बाय टू’ दर्शकों और समीक्षकों को पसंद नहीं आई। बाक्स आफिस पर फिल्म का प्रदर्शन बहुत बुरा रहा। फिल्म अंतर्निहत कारणों से नहीं चली। फिर भी यह फिल्म हिंदी फिल्मों के इतिहास में याद रहेगी। अक्षर सुनहरे हो या न हो।
सबसे पहले अभय देओल ने अपने संगीतकारों और गायकों के पक्ष में खड़े होने की हिम्मत दिखाई। टी सीरिज के दबाव में न आकर उन्होंने संगीत के भविष्य में उपयोग के स्वत्वाधिकार और हिस्सेदारी के मामले को उठाया। इसकी वजह से उनकी फिल्म ऐन रिलीज के मौके पर पारंपरिक प्रचार से वंचित रह गई। अमूमन म्यूजिक कंपनी अपनी फिल्मों के संगीत के प्रचार के लिए उनके ‘सौंग प्रोमो’ चलाते हैं। ऊपरी तौर पर दिखता है कि अब संगीत का बाजार खत्म हो गया है। लोग न तो सीडी खरीदते हैं और न उनकी मार्केटिंग की जाती है। डिजिटल युग में संगीत का डिजिटल उपयोग बढ़ गया है। गाने डाउनलोड होते हैं। उनके कलर ट्यून बनते हैं। मोबाइल इंडस्ट्री से म्यूजिक कंपनियों को लाभ मिलता है। मॉनिटरिंग की व्यवस्था बढऩे से अब उन्हें मालूम रहता है कि उनके संगीत का कौन, कहां इस्तेमाल कर रहा है। कॉपी राइट के नए नियमों के मुताबिक गायक, संगीतकार और गीतकार को रॉयलटी मिलनी चाहिए। लगभग सभी म्यूजिक कंपनियां नियमों के पालन में उदारता नहीं दिखा रही हैं। म्यूजिक कंपनियां दबाव डालकर फिल्मों के संगीत के लिए एकमुश्त रकम देने के बाद सारा लाभ अपने पास रखना चाहती हैं। पूंजी निवेश से संबंधित उनके अपने तर्क हैं, जो कलाकारों को मान्य नहीं हैं। ऐसी स्थिति में फिल्मों का हाल ‘वन बाय टू’ जैसा हो सकता है। सुनने में आ रहा है कि सोनू निगम और सुनिधि चौहान के गाने के अवसर कम हो रहे हैं। अभय देओल की फिल्म ‘वन बाय टू’ इस स्थिति की पहली शिकार बनी।
अभय देओल की फिल्म सीमित बजट की थी। हिंदी के प्रचलित फार्मूले से अलग थी। फिल्म में स्वयं अभय देओल ही सबसे लोकप्रिय फेस थे। और फिर प्रचार में आई अड़चनों से फिल्म के प्रति दर्शकों की जिज्ञासा नहीं बढ़ पाई थी। नतीजतन वितरकों ाअैर प्रदर्शकों के बीच भी फिल्म के प्रति उत्साह नहीं था। निश्चित हो गया था कि यह फिल्म ओवरसीज में रिलीज नहीं हो सकेगी। अभय देओल इस वास्तविकता से हताश नहीं हुए। उन्होंने एक नया रास्ता खोज निकाला। उन्होंने डिजिटल युग में सोशल मीडिया के प्रसार का लाभ उठाया। उन्होंने फैसला लिया कि वे फिल्म की रिलीज के दिन ही उसे इंटरनेशनल दर्शकों के लिए जारी कर देंगे।
‘वन बाय टू’ 31 जनवरी को ही फेसबुक के प्लेटफार्म से दुनिया भर के दर्शकों के लिए उपलब्ध थी। 4 ़99 डॉलर में कोई भी ग्राहक इसे 48 घंटों के लिए डाउनडोल कर सकता है। बताते हें कि अमेरिका और दूसरे देशों में पायरेटेड डीवीडी भी लगभीग इसी कीमत में मिलती है, इसलिए इच्छुक दर्शक हाई रिजोलयूशन में वैध तरीके से ‘वन बाय टू’ देख सकते हैं। चूंकि यह फिल्म भारत और नेपाल में रिलीज हुई थी इसलिए थिएटर मालिकों के हित को ध्यान में रखते हुए स्थानीय दर्शकों के लिए यह सुविधा नहीं दी गई है। यानी अगर भारत से कोई इसे डाउनडोल करना चाहे तो नहीं कर सकेगा। फेसबुक स्थानीय आईपी नंबर का एंटरटेन ही नहीं करेंगे।
अभी देखना है कि ‘वन बाय टू’ ने डिजीटल रिलीज की पहल से कितनी कमाई की। कमाई कम हो या ज्यादा, यह प्रयास स्वयं में सराहनीय और कम खर्चीला है। छोटे-मझोले बजट की फिल्मों की रिलीज के लिए यह पहल बेहतर विकल्प देती है। अब जरूरी नहीं है कि आप थिएटर रिलीज के लिए ज्यादा खर्च करें और अपना नुकसान बढ़ाएं। अगर ‘वन बाय टू’ की पहल का संतोषजनक परिणाम रहा तो भविष्य में दूसरी फिल्में भी फेसबुक या किसी और प्लेटफार्म का इस्तेमाल कर सकती हैं।
पिछले कुछ समय से फिल्मों के थिएटर रिलीज से होने वाली कमाई पर निर्माताओं की निर्भरता कम हुई है। पहले तो फिल्म का सारा कारोबार थिएटर रिलीज पर ही निर्भर करता था। बाद में प्रदर्शन के दूसरे माध्यमों के आने के बाद भी मुख्य कमाई थिएटर से ही होती रही है। विदेशों में निर्माता फिल्मों की डिजिटल रिलीज से अपनी कमाई का प्रतिशत बढ़ा रहे हैं। कई फिल्मों के मामले में कुल कमाई का 31-40 प्रतिशत डिजिटल से आ जाता है। भारत में डिजिटल अभी तक एक संभावना है। इस संभावना का पहला इस्तेमाल ‘वन बाय टू’ ने किया है। अभय देओल की पहली कोशिश फिल्म के तौर पर तो सफल नहीं रही, लेकिन उसने प्रदर्शन और दर्शकों के बीच पहुंचने के नए द्वार खोले।
Comments