संग-संग : सुशांत सिंह और मोलिना

-अजय ब्रह्मात्मज
- घर का मालिक कौन है?
मोलिना - कभी सोचा नहीं। कभी कोई निर्णय लेना होता है तो इकटृठे ही सोचते हैं। सलाह-मशवरा तो होता ही है। अगर सहमति नहीं बन रही हो तो एक-दूसरे को समझाने की कोशिश करते हैं। जो अच्छी तरह से समझा लेता है उसकी बात चलती है। उस दिन वह मालिक हो जाता है। ऐसा कुछ नहीं है कि जो मैं  बोलूं वही सही है या जो ये बोलें वही सही है।
सुशांत - हमने तो मालिक होने के बारे में सोचा ही नहीं। कहां उम्मीद थी कि कोई घर होगा। इन दिनों तो वैसे भी मैं ज्यादा बाहर ही रहता हूं। घर पर क्या और कैसे चल रहा है? यह सब मोलिना देखती हैं। कभी-कभी मेरे पास सलाह-मशविरे का भी टाइम नहीं होता है। आज कल यही मालकिन हैं। वैसे जब जो ज्यादा गुस्से में रहे, वह मालिक हो जाता है। उसकी चलती है।
मोलिना - मतलब यही कि जो समझा ले जाए। चाहे वह जैसे भी समझाए। प्यार से या गुस्से से।
सुशांत - मेरी पैदाइश बिजनौर की है। मैं पिता जी के साथ घूमता रहा हूं। बिजनौर तो केवल छुट्टियों में जाते थे। नैनीताल में पढ़ाई की। कॉलेज के लिए दिल्ली आ गया। किरोड़ीमल कॉलेज में एडमिशन ले लिया। स्कूल से ही नाटकों का शौक था। एक मित्र ने अलका जी का नाटक दिखा दिया। बाद में उनके लिविंग थिएटर एकेडमी में शामिल हो गया। 15 अक्टूबर 1992 से शुरुआत हुई। 1993 में एक मणिपुरी लडक़ी कथक सीखने दिल्ली आई थी। उसे एक्टिंग की धुन चढ़ी थी। वह मेरी तरफ पीठ किए शायद एडमिशन का फॉर्म भर रही थी। घुटने तक उसके बाल पहुंच रहे थे। झटका तो मुझे वहीं लग गया था।
मोलिना - मैं हूं मणिपुरी लेकिन मेरी पढ़ाई-लिखाई धनबाद में हुई थी। दिल्ली तो मैं कथक सीखने आई थी। मेरे माता-पिता दोनों डांसर थे। वे नहीं चाहते थे कि उनकी पांच बेटियों में कोई भी डांस फील्ड में आए। मेरा रुझान शुरू से डांस की तरफ था। पापा को मैंने राजी किया कि वे मुझे एक मौका आजमाने दें। मैंने चुपके से फॉर्म भरा। मुझे एडमिशन के साथ स्कॉलरशिप भी मिल गई। फिर पापा राजी हुए। कथक केन्द्र में दिन भर व्यस्तता रहती थी। शाम का समय खाली रहता था। उस समय के सदुपयोग के लिए मैंने लिविंग थिएटर ज्वाइन करने के लिए सोचा। जिस दिन मैं अलकाजी सर से मिलने गई थी उसी दिन सुशांत ने मुझे देखा था। अलकाजी सर ने सबसे पहले पूछा कि हिंदी आती है या नहीं? मेरे हां कहने पर उन्होंने सामने की आलमारी से कोई भी किताब निकाल कर पढऩे के लिए कहा। मैंने जो किताब निकाली वह ‘सखाराम बाइंडर’ उस किताब से मैंने कुछ अंश सुनाए। उन्होंने अगले दिन से आने के लिए कहा।
सुशांत - उसी दिन शाम में फिर से मुलाकात हुई।
मोलिना - अलकाजी सर ने ही कहा कि नीचे जाकर दूसरे छात्रों से मिल लो। नीचे एक चाय की दुकान थी। वहीं सभी मौजूद थे। मैंने अपना परिचय दिया और इन लोगों ने अपना। इन्होंने कहा - मैं सुशांत हूं। तब मेरी हिंदी में स और श का फर्क नहीं था। मैंने कह दिया सुसांत। सुशांत मेरा उच्चारण ठीक करते रहे और मैं चिढ़ती रही। फिर चाय के लिए पूछा और कहा मेरे पास दो रुपए हैं उसमें मेरी चाय आ जाएगी। तुम अपनी चाय खरीद लो। उसी दिन सुशांत थोड़े अलग लगे। ये अपने क्लास में बहुत पापुलर भी थी। इनको संवाद जल्दी याद हो जाती थी। सर नहीं होते तो सुशांत ही क्लास कंडक्ट करते थे। फिर मिलना-जुलना आरंभ हुआ।
सुशांत - परिचय बढ़ा और फिर उम्र का पता चला। दोस्तों ने कहा  कि सॉरी सुशांत नो चांस। वजह यह थी कि मोलिना उम्र में मुझसे बड़ी हैं।
मोलिना - बाद में इनके एक मित्र ने मुझे बताया कि सुशांत मेरे बारे में क्या सोचते हैं? उन्होंने बताया कि सुशांत प्रपोज करेंगे। उस समय मेरे सामने पापा का चेहरा आ गया। एक बार रामकृष्ण परमहंस और विवेकानंद पर बात चली। सुशांत ने बहुत विस्तार से बात की। उस दिन लगा कि ये सिर्फ दिलफेंक ही नहीं हैं दिमाग भी रखते हैं। हमारी मुलाकातें बढ़ गईं। एक दिन मुझे लगा कि मैं करने तो कुछ और आई थी। मैंने स्पष्ट शब्दों में अपनी फीलिंग सुशांत को बताई।
सुशांत - उस दिन माहौल पूरा फिल्मी था। दिल्ली में आंधियां चल रही थी। मुझे लगता है हमें फिल्मों में ही आना था।
मोलिना - इस बातचीत के बाद जब ये छोडऩे के लिए मुझे कथक केन्द्र तक आए तो मैंने रास्ते में कहा कि यह संभव नहीं है। उस समय सुशांत ने कहा था कि यहां से निकल कर मुझे अपना गांव चला जाना है।
सुशांत - तब मुझे लगता था कि मैंने दुनिया देख ली है। मेरे जैसे दार्शनिक व्यक्ति के लिए अब और कुछ नहीं बचा है। मु़झसे बड़ा ज्ञानी कोई नहीं है। मैं कविताएं लिखता और पेंटिग करता था। अपने साथ के लडक़ों को मैं तुछ मानव समझता था। उस समय यही लगता था कि खानाबदोसों की जिदंगी जीनी चाहिए। अजीब फैनटेसी में रहता था। शादी के लिए कमिट नहीं कर रहा था, लेकिन प्यार करते रहना चाहता था। प्यार के सारे लक्षण दिख रहे थे, लेकिन उसे मानने में दिक्कत हो रही थी। सच कहें तो जिसे मैं अपनी स्पष्टता समझ रहा था वह मेरे लाइफ का कंफ्यूजन था।
मोलिना - बाद में अलकाजी के नाटकों में मैं ही मेन लीड करने लगी। हमारा मिलना बढ़ता गया। हम साथ काम करते थे। प्यार की बातें तो शायद ही होती थी। हमें तो यह भी समझ में नहीं आता था कि हमारे दोस्त प्रेमी-पे्रमिकाओं से इतनी लंबी-लंबी क्या बातें करते हैं। हमलोग तो चाय पीते समय खामोश बैठे रहते थे। केवल एक-दूसरे को महसूस करते थे।
सुशांत - हमारे बीच नाटक और डांस के शोज की बातें होती थी। फिल्मों पर चर्चा होती थी। एक-दूसरे की तारीफ करना हमें नहीं आता था। जानू जानम जैसे शब्दों का भी इस्तेमाल नहीं किया।
मोलिना - मैंने तो कहा था कि कभी ऐसे शब्द बोले तो मैं भाग जाऊंगी। मजाक में ये कहते थे चलो डार्लिंग दिल्ली घूमा लाऊं।
मोलिना - मुझे सुशांत की ईमानदारी बहुत अच्छी लगी। सुशांत तकलीफ की हद तक ईमानदार हैं। मैंने सुशांत को कभी किसी के लिए बुरा बोलते हुए नहीं सुना है। मैं कुछ बोल भी दूं तो समझाने लगते हैं। अगर सुशांत किसी की बुराई कर रहे हैं तो सचमुच उसने बहुत बुरा किया होगा। यह हमेशा माफ करने के मूड में रहते हैं।
सुशांत - मैं तो पहले ही दिन इनके बालों में उलझ गया। कोई एक बात बता पाना मेरे लिए मुश्किल होगा। मोलिना प्रतिभाशाली हैं। कला विधाओं को समझने और विश्लेषित करने की शक्ति है। डांसर अच्छी हैं। एक्टर भी अच्छी हो गई थीं। स्टेज पर एक-दो दफा इन्होंने ही मुझे धूल चटाई।

अनुशासित हैं। जिद्दी भी हैं। काम के लिए सकारात्मक जिद्द करती हैं।
सुशांत - हम दोनों ने पहले तो घर बसाने का सोचा ही नहीं था। सिर्फ इतना कुबूल हुआ था कि हमें प्यार है। मैंने कभी शादी करने का दबाव नहीं डाला। हां मैंने यह जरूर पूछा था कि क्या आप मेरे बच्चों की मां बनेंगी? शादी की रूढिय़ां हमारे दिमाग में नहीं थी। मेरा मानना है कि परस्पर सहमति हो जाना ही काफी है। अग्नि को साक्षी मानने के बाद भी तो मैं भाग सकता हूं।
मोलिना - हमारे देश में कई मामलों में शादी की सर्टिफिकेट की जरूरत होती है। बच्चे हो जाते हैं तो उनके लिए भी नाम और प्रमाण पत्र चाहिए। हमारी तो शादी करवा दी गई। तो हमने कर ली।
सुशांत - उत्तर भारत में मारपीट और दबाव से लोगों की शादी नहीं होने दी जाती है। हमारे साथ बिल्कुल उल्टा मामला था। हम लिवइन रिलेशन में थे मोलिना 1997 में मुंबई आ गई थी। इनका वहां मन नहीं लग रहा था, क्योंकि मैं मुंबई आ चुका था। एक शूटिंग के सिलसिले में मैं दिल्ली गया था। बातचीत हुई तो इन्होंने मुंबई चलने की बात कही। मैंने हामी भर दी। हमारे पास पैसे भी नहीं थे। बगैर रिजर्वेशन के ट्रेन में चढ़ गए। बाथरूम के पास की जगह पर बैठ कर मुंबई आए थे। तब मैं चार बंगला में रत्नाकर बिल्डिंग में चार दोस्तों के साथ रहता था। पहला डेरा वहीं बना। दोस्तों को थोड़ा अटपटा जरूर लगा। बाद हमलोग वहां से चार बंगला म्हाडा शिफ्ट किए।
मोलिना - तभी मुझे मंत्रालय से स्कॉलरशिप का चेक मिल गया था। कुछ पैसे आ गए थे। हम लोगों ने अलग ठिकाना बना लिया। 6 महीने का भाड़ा देकर हमलोग वहां शिफ्ट कर गए।
सुशांत - मेरी कोई खास कमाई नहीं थी। तब तो मैं घर से साढ़े सात हजार मंगवाता था। उसी से काम चलता था। कुछ समय के बाद मैं भी शिफ्ट कर गया। मैंने अपने घरवालों को बता दिया कि हमलोग साथ रहने लगे हैं। मेरा एक दोस्त भी अपनी गर्लफ्रेंंड के साथ साथ में रहता था। मेरे अलावा इन तीनों ने अपने घर वालों को नहीं बताया था कि वे किनके साथ रह रहे हैं। लैंड लाइन एक ही था। फोन बजने पर डर रहता था कि कौन उठाए। कहीं भेद न खुल जाए। परिवार वालों का दबाव बढ़ता गया। 29 नवंबर 1999 को हम लोगों ने शादी कर ली।
मोलिना - हमलोग अपने संबंधों को लेकर काफी खुले थे। कभी उसे ढंक कर या छिपा कर नहीं रखे। दिल्ली में सभी को मालूम था कि हमारे कैसे संबंध हैं। हमारे संबंध को लेकर लोगों के बीच आदर भी था, क्योंकि हम सिर्फ मटरगश्ती नहीं करते थे साथ में काम भी करते थे। हमें उदाहरण के तौर पर पेश किया जाता था। अगर अपने इंस्टीट्यूट में कभी कह देती थी कि मैं सुशांत के साथ जा रही हूं तो कोई बुरा नहीं मानता था।
सुशांत - मैं किरोड़ीमल कॉलेज के हॉस्टल में था। वहां ब्वायज हॉस्टल में लड़कियां नहीं रुक सकती, लेकिन मोलिना को पूरी अनुमति मिल जाती थी।
सुशांत - शादी में एक मात्र अड़चन इनके परिवार से आई थी। ये हैं मणिपुर से। मातृ सत्तात्मक समाज है वहां पर। वहां लडक़े वालों को शादी का प्रस्ताव लेकर लडक़ी वालों के यहां जाना पड़ता है। इनका परिवार मुझे ज्यादा पसंद नहीं करता था।
मोलिना - वे जाट सुनकर थोड़े डर गए थे। जब मेरी शादी हुई तो सुशांत ‘जंगल’ के गेटअप में थे। दाढ़ी बढ़ हुई थी। बाल लंबे थे। सिर्फ आंखें चमकती थी।
सुशांत - समस्या यह थी कि इनकी नानी या अपने घरवालों को मैं कंटीन्यूटी क्या समझाता? ‘जंगल’ से सात दिनों की छुट्टी मिली थी। उसी में सब कुछ करना था। मां तो जोर देती रही कि कम से कम दाढ़ी छंटवा ले। उनको भी क्या समझाता।
मोलिना - मेरी नानी ने तो दोनों हाथों से सुशांत के गाल पकड़ के आंखों में देखा। उन्होंने कहा, मैंने उसकी आंखों में झांक कर देखा। लडक़ा शरीफ लगता है।
सुशांत - मुझे अपने घरवालों को समझाना पड़ा था कि आप एक चि_ी लिख कर इनके यहां शादी का प्रस्ताव भेज दें। फिर समस्या थी कि शादी कहां होगी? मेरे यहां से सभी मणिपुर नहीं जा सकते थे। भारी खर्चा आता। दूसरे मणिपुर की शादी सादी होती है। वहां तो भजन संध्या होता है।
मोलिना - शादी हुई तो इनके परिवार के लोग बंदूकें दाग रहे थे। मेरे घर वाले तो डर ही गए।
सुशांत - हां हमारी शादी बिजनौर में हुई थी। इनके परिवार को समझा दिया गया था कि यही ठीक रहेगा। बंदूकों का तांडव देख कर जरूर इनके परिवार के लोग डर गए थे।
मोलिना - तीन दिनों की शादी हुई थी।
मोलिना - दिल्ली में मेरा काम ठीक ठाक चल रहा था। सुशांत मुंबई आए तो सबसे पहले इन्हें चेतन आनंद की एक फिल्म मिल गई। फिर किसी कारण बस वह फिल्म नहीं हो पाई।
सुशांत - मुझे निकाल दिया गया। उसके निर्माता भरत शाह थे। उनकी समझ में आ गया था कि चेतन आनंद बुढ़ापे में सही फैसला नहीं ले पा रहे हैं। भरत शाह फिल्म को अटकाते रहे। ज्यादा दबाव पड़ा तो उन्होंने कहा कि हीरो की नाक बहुत लंबी है। आप यकीन करें मैं सर्जरी तक के लिए तैयार हो गया था। मैं तो नाक कटवाने तक के लिए तैयार हो गया था। उस समय 35 हजार रुपए लगते थे जो मेरे पास नहीं थे। विजय शर्मा सर्जन थे। यह सब तैयारी चल ही रही थी कि एक दिन चेतन आनंद का फोन आया। उन्होंने कहा बेटा वेरी सॉरी। मैं सारी बातें समझ गया। छह महीने तक हवा में उडऩे के बाद मैं धड़ाम से गिर गया। छोटे-मोटे काम करने के साथ मैं ट्रांसलेशन करने लगा।
मोलिना - तब सुशांत डिस्कवरी और नेशनल ज्योग्रेफी चैनल के लिए अनुवाद करते थे। अंतिम समय में काम करने की इनकी पुरानी आदत रही है। इनके अनुवाद और स्क्रिप्ट को आदर्श माना जाता था। दूसरों को नमूने के तौर पर दिखाया जाता था। सुशांत डबिंग भी किया करते थे।
सुशांत - सन् 2000 में ‘जंगल’ रिलीज होने के समय मैं इन कामों से 20-30 हजार रुपया कमा लेता था। उस समय बत्ती वाला स्टोव था। दोस्तों ने कुछ बर्तन दे दिए थे। अपनी गृहस्थी चल जाती थी।
मोलिना - वे बर्तन मैंने अभी तक रखे हुए हैं। वे हमारी गृहस्थी के पहले बर्तन थे।
सुशांत - तब तो यह हालत रहती थी कि चेक आते ही उसे भुना लेने की हड़बड़ी हो जाती थी। हमने जिंदगी को कभी पैसों से तौला ही नहीं। पैसों के प्रति तुक्ष्य सा रवैया रहता था।
मोलिना - कभी डर नहीं रहा कि कल क्या होगा? कई दिन तो सिर्फ दो रुपयों में गुजर जाते थे।
सुशांत - अभी तक यही स्थिति है। बच्चों के आने के बाद थोड़ा सावधान हो गया हूं। थोड़ी प्लानिंग कर लेते हैं। जिम्मेदारी तो है ही जल्दबाजी में फैसला लेने पर गलत काम कर लेता हूं। बाद में उस पर हंसी आती है। हमेशा लगता है कि इससे बुरी स्थिति क्या होगी?
मोलिना - इसके बावजूद हम कभी डिप्रेशन में नहीं गए। ऐसा नहीं लगा कि अब दुनिया लुट गई। मेरे कुछ दोस्त करोड़ों में कमा रहे हैं। उससे भी अधिक कमाने के लिए वे परेशान रहते हैं। उनका माइंडसेट मेरी समझ में नहीं आता। शायद लाइफ को एनज्वॉय करने का उनका यही तरीका है। उनकी लालसा खत्म ही नहीं होती।
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सुशांत - माहौल से भी फर्क पड़ता है। हम उन्हें पूरी तरह से दोषी नहीं ठहरा सकते। हम अपने माहौल के परिणाम हैं। जैसी परवरिश और संगत रही वैसा विकास हुआ।
मोलिना - मेरे पापा की पीढ़ी हमें कहती है कि हम बहुत खर्च करते हैं।
सुशांत - ये लाइसेंस जमाने के लोग हैं। मैं सारे माता-पिताओं को बच्चों के भविष्य की चिंता करते देखता हूं। मेरे ख्याल में आपके पास इतना होना चाहिए कि जब तक बच्चा कमाने न लगे तब तक आप उसे सपोर्ट करें। इतना सक्षम तो होना ही चाहिए। क्या मेरे मां-बाप ने कभी सोचा था कि उनका बेटा एक्टर बनेगा? या क्या मेरे दादा ने सोचा था कि उनका बेटा इंजीनियर बनेगा। वे दोनों इसी हिसाब से पैसे जमा कर रहे थे कि उनके बेटे कुछ नहीं बनेंगे। यह गलत सोच है।
मोलिना - यह सोच ही गलत है कि मेरा बच्चा कुछ नहीं करेगा।
सुशांत - सचेत तो नहीं लेकिन अचेत रूप में यही सोच रहे हैं कि बच्चा निकम्मा होगा। शिक्षा-दीक्षा जरूर देनी चाहिए। मूल्य और संस्कार देनी चाहिए।
मोलिना -  मुझे याद है मेरे पापा आए थे अलकाजी से मिलने। उन्होंने कहा कि मेरी बेटी का ख्याल रखिएगा। सर सुनते रहे और उन्होंने इतना ही कहा कि मोलिना कहीं भी रहेगी तो अपने खाने-कमाने का इंतजाम कर लेगी। बाद में पापा ने मुझे बताया था। 
सुशांत - मुझे बच्चों में जो लक्षण दिख रहा है उससे ऐसा नहीं लगता कि मुझे कोई विरासत या पूंजी नहीं छोडऩी होगी।
मोलिना - पहले हम काफी अवॉर्ड फंक्शन में जाते थे। एक दिन अचानक लगा कि झूठी हंसी से जबड़े दर्द करने लगते हैं। जिन्हें जानते नहीं। जिन से कभी दोबारा मुलाकात नहीं होगी। उन सभी को देख कर झूठी हंसी हंसना।  संगीत और नृत्य की दुनिया में मिलने से आत्मिक खुशी होती है। अंदर से आदर आता है। फिल्मी लोगों के बीच लगता है कि अपना समय खोटा हो रहा है। ऐसी जगहों पर जाना मैंने छोड़ दिया। मैंने छोड़ा तो सुशांत भी कम जाने लगे। यह निर्णय लिया कि ही ही, हा हा, हू हू नहीं करना है। वाइन-डाइन, टाटा-बाय-बाय करने में मजा नहीं आता है।
सुशांत - हमारे फिल्मी दोस्त बने भी नहीं। मुझे कई बार गलतफहमी हो जाती थी। उनकी इज्जत और महफिलों से यह भ्रम होता था। धीरे-धीरे मुझे पता चला कि स्टार के दरबार लगते हैं। हमारी भूमिका दरबारी की हो जाती है। जाहिर सी बात है कि मैं उनके समकक्ष तो कभी था नहीं।
मोलिना - एक उदाहरण देती हूं। डैनी साहब हमलोगों को बहुत प्यार करते हैं। उम्र और स्टेटस में हम उनके बराबरी नहीं कर सकते हैं। सपने में भी उनकी बराबरी की बात नहीं सोच सकते। उनका बड़प्पन है कि वे बुलाते हैं। हमें लगने लगा कि हम क्यों जाएं? फिर छोड़ दिया।
सुशांत - वह एक दुख है। मुझे लगता है कि वह रिश्ता बरकरार रखना चाहिए था। उन्होंने जब दोस्त की तरह ट्रीट किया तो वाकई दोस्त समझा। इत्तफाकन वे मेरे स्कूल के सीनियर भी हैं। हमलोग अपनी ग्रंथि में उनसे मिलना बंद कर दिया।
मोलिना - मैं इसे ग्रंथि नहीं कहूंगी।  हमलोग रियलीस्टिक रहे। उनकी गाड़ी ले जाती और छोड़ती थी। यह सब अच्छा नहीं लगता था।
सुशांत - तब हमारे पास एक कमरे का फ्लैट था। गाड़ी भी नहीं थी। हम एहसान तले दबने लगे थे। वह हमारी हीन भावना ही थी।

सुशांत - हमारे लिए चीजें कभी सुगम नहीं रही। मैं बिल्कुल महत्वाकांक्षी नहीं हूं। कभी कोई इच्छा ही नहीं रखी। इगो इतना ज्यादा है कि काम क्यों मांगें। हालत खराब थी तो मांगा। मांग कर भी देख लिया। न इज्जत मिली न पैसे मिले और रोल मिला छोटा सा। जो लोग हर फिल्म में लेने का भरोसा दे रहे थे वे टीवी में काम करने का सलाह देने लगे। यहां के नियम-तरीके धीरे-धीरे सीखे। कभी पापा ने सलाह दी तो उन्हें ही समझाने लगा। सारे दुनिया की तरह यहां भी मेल-मिलाप और लेन-देन चलता है। पैसे आते-जाते रहे। दो साल पहले एकाउंट में सिर्फ तीन हजार रुपए बच गए थे। बच्चों की फीस देनी थी। फिर तय किया कि सीरियल कर लेता हूं। इतना समझ में आया कि टैलेंट है तो कुछ न कुछ कर ही लेंगे। बहुत बुरा होगा तो एक नाटक कर लेंगे। सफलता की बात करूं तो मैंने राजेश खन्ना को भी देख लिया। बच्चन साहब को देख रहे हैं। बुरे दौर के बाद वे वापस फिर से लौटे हैं। आज वे खुद बोलते हैं कि मैं कैरेक्टर एक्टर हूं। सच्चाई यह है कि वे आज भी सुपर स्टार हैं। अपने सामने ही कुछ स्टारों को उड़ कर आते हुए देखा। वे जैसे आए थे वैसे ही उड़ कर चले गए। भागूं तो कहां भागूं। पत्रकार पूछते हैं कि क्या अपने वर्तमान से खुश हूं? एक्टर को असुरक्षा मिलती ही मिलती है। वह खून में रहती है। मैं असुरक्षित न रहूं तो परफार्म ही न कर सकूंगा। असफलता की असुरक्षा से गुजर चुका हूं। तब कहता था यहां साजिश के तहत एक्टर को उभरने नहीं दिया जाता है। भाग्यशाली हूं कि अपनी इगो और एटीट्यूड के बाद भी मुझे घर बैठे काम मिल रहा है।
मोलिना - पारिवारिक जिम्मेदारी की वजह से मुझे विराम देना पड़ा। मैं खुद ही संभल गई और काम पर लौट आई। मुंबई आने पर समझ में आया कि यहां शास्त्रीय नृत्य में कम संभावनाएं हैं। यहां के माहौल में मायूसी थी। मुंबई रहते हुए दिल्ली जाकर काम नही किया जा सकता था। शेखर सुमन के साथ ‘मुवर्स एंड शेखर्स’ में कुछ काम किए। मुझे थिएटर में मजा आता है। थिएटर में पूरा कैरेक्टर आप जीते हैं। मुझे तो सुशांत को देख कर आश्चर्य होता है कि कैसे कैमरा ऑन होते ही इमोशन ले आते हैं। यह एक्टिंग मेरी समझ में नहीं आई। पूरा प्रोसेस ही अजीब सा लगता था। मेरा चेहरा अलग है। नॉर्थ ईस्ट के होने की वजह से रोल निश्चित कर दिए जाते हैं। कुछ फिल्में मिली भी तो उनमें रेड लाइट ऐरिया की लडक़ी का काम मिला। मैंने स्वयं सोचा और सुशांत ने भी कहा कि ऐसे काम मत करो। मुझे ऐसा काम नहीं करना था। शादी और बच्चों के बीच टाइम ही नहीं मिला। डांस करते रहने के लिए हर तरह से स्वस्थ रहना जरूरी है। अभी फिर से रियाज करना शुरू किया है। इधर एक-दो परफारमेंस किया। अभी नवरस के ऊपर अपना प्रोडक्शन किया है। यह लोगों को पसंद आया है। द्रौपदी पर एक स्क्रिप्ट लिखी है। वह महंगा प्रोडक्शन होगा। सकेंड प्रोडक्शन गौहर जान के ऊपर है।
मोलिना - मुझे घर भी संभालना है। बच्चों को भी देखना है। मैं संतुलन बिठाने की कोशिश कर रही  हूं।
सुशांत - मैं मदद करता हूं। बीच-बीच में फोन करता रहता हूं। मोलिना बड़े प्रोजेक्ट में अटकी थीं। मैंने समझाया कि कब इतने पैसे होंगे। 70-80 लाख का प्रोडक्शन कैसे करेंगे? समझाया कि छोटे पैमाने पर कुछ करो। ऐसा नहीं है कि मुझे डर नहीं लगता। ज्यादा बिजी हो जाएगी तो दिक्कत होगी।
मोलिना - शिवाक्ष के पैदा होने के पांच महीने के बाद अभ्यास आरंभ किया। पहले दिन अभ्यास के बाद सीढिय़ों से उतरते समय मेरे पांव कांपने लगे। किसी को नहीं बताया। यही लगा कि सुशांत को पता चला तो अभ्यास बंद हो जाएगा। सोचा कि सही कर रहूं या नहीं? फिर खयाल आया कि कमबैक करना है तो हिम्मत करनी होगी। दो साल ओडिशी की ट्रेनिंग ली। शिवाक्ष के जन्म के दस महीने बाद परफॉर्म किया था। बहुत सारे इंतजाम करने पड़े। मेड खोजना पड़ा। क्लास में भी बच्चे का ध्यान रहता था। दोस्तों के यहां आना जाना भी बंद हो गया था। पहली बार शिवाक्ष को छोड़ कर दो दिनों के लिए गई थी तो वह वापस देख कर घबरा गया था।
सुशांत - औरतों के लिए बच्चे, परिवार और करिअर में संतुलन बिठा पाना मुश्किल होता है। मैं उन औरतों को सलाम करता हूं। जो ऐसा कर पाती हैं। बच्चे के लालन-पालन के लिए मां की जरूरत पड़ती है। पिता वह नहीं कर सकता। शुरू के तीन साल मां चाहिए। आरंभ में आया के हवाले कर दिया तो परिणाम हमारे सामने है। मैंने देखे हैं।
मोलिना - जब तग 100 प्रतिशत निश्चित नहीं हों, तब तक शादी न करें। हस्बैंड मैटेरियल जैसी कोई चीज नहीं होती। कभी कोई नहीं मिल सकता। अगर मिल जाए तो चिपक जाओ। कठिन करो और आगे बढ़ो।
सुशांत - मेरे दो मापदंड हैं। एक्टर हूं। आउटडोर रहता हूं। इंडस्ट्री में सुंदर लड़कियों की कमी नहीं है। प्यार का क्या मतलब है। मीर और गालिब नहीं बता सके। हम क्या बताएं एक ही मापदंड है कि क्या किसी एक शख्स के लिए मैं सब कुछ छोड़ सकता हूं। अगर छोडऩे और बदलने के लिए तैयार हैं तो प्यार है। गंभीरता से सोचें। भावावेश में नहीं। तेरे लिए जान दे दूंगा कहने की जरूरत नहीं है। माता-पिता, भाई, बहन हैं परिवार में... किसी दुर्घटना में उनकी शक्ल बिगड़ गई। आप क्या करेंगे? नफरत शुरू कर देंगे। ऐसा होता नहीं है। मल-मूत्र तक साफ करना होता है। यही प्यार है। प्यार को सूरत में न खोजें। सीरत से प्यार करें।
सुशांत - आज से 50 साल बाद शादी अप्रासंगिक हो जाएगा। सोच और मूल्य बदल रहे हैं। जमाना तेजी से बदल रहा है। आज आप बगल में बैठे इंसान से वैसे नहीं जुड़े हैं, जैसे वचुर्अल वल्र्ड में जुड़े हैं। मैं दिन-रात देखता हूं कि लोग आपस में बातें नहीं कर रहे हैं? सभी मोबाइल पर लगे रहते हैं। यह तकनीक और विकसित होगी। संभव है साथ में हों लेकिन फेसबुक पर बातें कर रहे हों। शादी के मायने बदल जाएंगे? प्यार के भी मायने बदलेंगे, अकेलापन बढ़ गई है। सिर्फ सहानुभूति चाहिए।
मोलिना - सभी उलझे हुए हैं। चार लडक़े और एक लडक़ी थी। सभी अपने फोन में लगे थे। मेंने सोचा कि मेरी बेटी बड़ी होकर यही करेगी। प्यार बदल रहा है। मुझे शादी की संस्था अेनारेटेड लगती है। जब तक आप अंदर से खुश नहीं होंगे, तब तक साथ का मतलब नहीं है।
सुशांत - अच्छा यह होगा कि औरतें सामान नहीं जाएंगी। औरतें नेतृत्व करेंगी। कैसी बिडंबना है कि आज कहना पड़ रहा है कि औरत को इंसान समझिए।

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महत्वपूर्ण बातचीत ....
आपकी इस पोस्ट को मैंने अपने ब्लॉग समकालीन कथायात्रा में साभार लिया है..... http://samkalinkathayatra.blogspot.in/

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