फिल्म समीक्षा : मिस लवली
-अजय ब्रह्मात्मज
फिल्म इंडस्ट्री के चमकदार और रोचक पहलुओं पर अनेक फिल्में बनी हैं।
फिल्मों की अपनी दुनिया को अलग नजरिए से देखने और परोसने की रोचक परंपरा
रही है। 'मिल लवली' इस चमकदार फिल्म इंडस्ट्री की उन स्याह गलियों से गुजरी
है, जिनके बारे में सिनेमा के सभ्य और आभिजात्य समाज की अधिक रुचि नहीं
होती। बी और सी ग्रेड फिल्मों का भी एक संसार रहा है। कुछ दशकों पहले तक इस
संसार में सक्रियता थी। ये फिल्में छोटे-बड़े शहरों के निचले इलाकों में
खूब देखी जाती थीं। इधर हिंदी फिल्मों की मुख्यधारा में बी-सी ग्रेड
फिल्मों की धारा भी मिल गई है।
असीम आहलूवालिया ने इसी स्याह संसार में जिंदा उजली भावनाओं को
संबंधित परिवेश में रेखांकित किया है। ऊपरी तौर पर यह दो भाइयों की कहानी
है, लेकिन सतह से नीचे उतरने पर एक खदबदाती दुनिया है, जहां सेक्स,
स्वार्थ, शोषण और संशय है। विकी (अनिल जॉर्ज) और सोनू (नवाजुद्दीन
सिद्दिकी) भाई है। विकी इस संसार में आकंठ डूबा है। इस कारोबार में उसे
किसी प्रकार की नैतिकता परेशान नहीं करती। बड़े भाई के कारोबार में शामिल हो
रहा छोटा भाई सोनू खिन्न है। वह भी फिल्में बनाना चाहता है, लेकिन उसकी
कल्पनाओं में प्रेम कहानियां घूमती है। उसे पिंकी (निहारिका सिंह) मिल भी
जाती है। पिंकी के साथ वह अपने ढाई अक्षरों के (प्रेम और फिल्म) की
कल्पनाओं और योजनाओं में जुट जाता है। यहां दोनों भाइयों की आकांक्षाएं
टकराती हैं तो स्वार्थ नंगे रूप में नजर आता है।
असीम आहलूवालिया ने बी-सी ग्रेड के गलीज संसार के प्रति हिकारत या
समर्थन का भाव नहीं रखा है। डॉक्यूमेंट्री फिल्म की शैली में वे दोनों
भाइयों के फैसलों और कदमों को रिकॉर्ड करते जाते हैं। वे एक-दूसरे को क्रॉस
करने के साथ टकराते भी हैं। ऐसे प्रसंगों से ही एक कहानी आकार लेती है।
फिल्म के अनुरूप ही कैमरावर्क है, जो इस संसार के धुंधलके को उसी रंगों में
उतारता है।
'मिस लवली' में नवाजुद्दीन सिद्दिकी की नैसर्गिक प्रतिभा का उपयोग हुआ
है। उल्लेखनमीय है कि 'मिस लवली' उनकी ताजा ख्याति के पहले की फिल्म है। इस
किरदार की अतृप्त आकांक्षाओं से उत्पन्न विवशता को नवाजुद्दीन सिद्दिकी ने
बहुत गहराई और सादगी से जीवंत किया है। फिल्म के अन्य कलाकार अनिल जॉर्ज
और निहारिका सिंह भी उद्घाटन हैं। जीना भाटिया और मेनका लालवाणी की
भूमिकाएं याद रह जाती हैं।
'मिस लवली' हिंदी सिनेमा के गलीज भंवर की यात्रा है। यह फिल्म दिखावे
का दावा नहीं करती। यह हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के स्याह गलियारे में अपने
साथ ले जाती है, जहां के अनुभव बहुत सुखद और मनोरंजक नहीं हैं।
अवधि-112 मिनट
*** तीन स्टार
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