तो ऐसे बना ऐ मेरे वतन के लोगों


पहली बार यह गाना 27 जनवरी 1963 को लता मंगेशकर ने भारत के पहले प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के सामने गाया था. लेकिन क्या आपको पता है कि ये गाना बना कैसे ? बीबीसी को बताया एक ख़ास बातचीत में इस गाने को लिखने वाले कवि प्रदीप ने .
कवि प्रदीप से ख़ास बातचीत की बीबीसी के नरेश कौशिक ने.हम ने चवन्‍नी के पाठकों के लिए इंटरव्‍यू को शब्‍दों में उतार दिया है।

http://www.bbc.co.uk/hindi/multimedia/2014/01/140124_kavi_pradeep_audio.shtml


कवि प्रदीप
आप से मिलिए कार्यक्रम में नरेश कौशिक का नमस्‍कार। इस कार्यक्रम में हम हिंदी कवि और गीतकार प्रदीप के करा रहे हैं। जी हां। वही गीतकार प्रदीप जिन्‍होंने भारत-चीन युद्ध के बाद प्रसिद्ध गीत लिखा था ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी। लेकिन प्रदीप ने हिंदी फिल्‍मों के लिए भी अनेक देशभक्ति गीत लिखें जो लोकप्रियता की पृष्टि से अमर है। कवि प्रदीप से मैंने ये भेंटवार्ता कुछ महीने पहले मुंबई में की थी। सबसे पहले मैंने प्रदीप जी से पूछा था- उनके
- कवि जीवन का आरंभ कैसे हुआ?
0 मैं असली में अध्‍यापक होने वाला था। अध्‍यापन के साथ-साथ मैं साइड में कविता भी करने लग गया था। मैं कवि सम्‍मेलन में जम जाता था। मुझे यह कल्‍पना नहीं थी कि यही कविता भविष्‍य में जा कर के मेरे भाग्‍योदय का कारण बनेगी। मेरा कवि जीवन ज्‍यादा नहीं रहा। पांच-छह बरस तक मैंने कविता की। और उस कविता का प्रभाव ऐसा पड़ा कि आपको शायद आश्‍चर्य होगा कि 1938 के अंदर... मैं तो 39 में यहां आ गया। 38 में महाकवि निराला जैसे आदमी ने मेरे बारे में चार पन्‍ने का एक आर्टिकल लिख दिया माधुरी के अंदर। वो नवल किशोर प्रेस से निकलता था लखनऊ में 1938 में। वह लेख अभी भी निराला रचनावली के अंदर है। उस लेख का शीर्षक है, नवीन कवि प्रदीप
- आप यहां फिल्‍म उद्योग में, मुंबई में फिल्‍मों से कैसे जुड़े?
0 अनायास। किसी का लड़का यहां बीमार था। उसने कहा मुझे मुंबई जाना पड़ेगा मेरा लड़का बीमार है। तुम भी मेरे साथ चलो। तो हमने कहा चलो। उस चक्‍कर के अंदर एक कवि सम्‍मेलन हुआ था छोटा सा। बायचांस भगवान ने वहां एक आदमी ऐसा भेज दिया जो बांबे टॉकीज के अंदर सर्विस करता था। उस आदमी ने जाकर अपने बॉस से कहा कि साहब एक लड़का आया हुआ है लखनऊ से, यूपी से आया हुआ है। उसने कविता सुनाई तो मुझे तो बड़ी अच्‍छी लगी। हिमांशु राय जो देविका रानी के पति थे। उन्‍होंने कहा कि अभी-अभी अपनी गाड़ी लेकर जाओ अपनी कंपनी की। जाओ उसको कहीं से भी ढूंढ़ लाओ। हम भी उसकी कविता सुनेंगे। तो वह ले गया।  तो मैं चला गया। उन्‍होंने कहा कि कविता लिखते हैं? मैंने कहा हां कविता तो लिखता हूं। उन्‍होंने कहा कि एक लाइन हमको सुनाओ। तो मैंने सुनाई तो वह चौंक गए। वो लाइन वो थी एक कविता मैंने लिखी थी। मेरे छंदों के बंद-बंद में तुम हो, प्रिय तुम हो। तो मैंने सुनाया उनको। सुनाने के बाद ये नतीजा हुआ कि हिमांशु राय मुझ पर मुग्‍ध हो गए। 2 सौ रुपए पर मंथ पर मेरा एपाएटमें हो गया। मैं तो चौंक गया। उन दिनों तो ये बहुत बड़ी रकम थी। तो में रह गया। उन्‍होंने पहला पिक्‍चर मुझे कंगन दिया। भगवान का नाम लेकर मैंने कंगन लिखा। कुछ मैंने लिखा और कुछ भगवान ने दया कर दी तो मेरा पिक्‍चर सिल्‍बर जुबली हो गया। मैं तो चिपक गया यहां।
- 1952 में शायद जागृति फिल्‍म के लिए आपको अनुबंध किया गया। उसका एक गीत था हम लाए हैं तुफान से किश्‍ती निकाल कर। इस गीत की प्ररेणा आपको कहां से मिली।
0 प्ररेणा। प्ररेणा देश में से मिली। वो बैकग्राउंड था स्‍कूल का। स्‍कूल का बैकग्राउंड होने की वजह से हमको तीन गाने लिखन पड़े देशभक्ति के। एक तो ये पिकनिक के ऊपर जाते हैं। तो पिकनिक पर जाते हैं तो तरह-तरह की होती है, लेकिन हमने पिकनिक को अलग अंदाज से लिया और ट्रेन में बच्‍चों को बिठा कर करे और जो टीचर था आवि भट्टाचार्य उससे कहा कि गाना गाओ –‘आओ बच्‍चों तुम्‍हें दिखाऊं झांकी हिंदुस्‍तान की, इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की। बात कुछ अलग बनी। इसी तरह से एक सिचुएशन में प्रोड्यूसर ने कहा कि भई गांधी जी की जयंती आ रही है तो गांधी जी के बारे में गाने लिखो। गांधी जी के बारे में मैंने कहा कि यह गाना चल रहा है और राजेन्‍द्र कृष्‍ण ने लिखा हुआ है और मोहम्‍मद रफी ने गाया है। बड़ा पापुलर है –‘सुनो सुनो ये दुनिया वालों बापु जी की अमर कहानी हमने कहा ये लिखना पड़ेगा। तो हमने डिफरेंट गाना लिखी –‘दे दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना ढाल, साबरमती के संत तू ने कर दिया कमाल। अलग टाइप का हुआ। इस तरह से कई अंतरे मैंने लिखे। एक अंतरा मैं खास तौर से सुनाना चाहूंगा। जिसमें राजेन्‍द्र बाबू बैठे हुए थे। तो वो उन पर चिपक गया। तो दूसरे दिन उन्‍होंने बुलाया राज भवन में। वो गाना फिर से सुनाओ मुझे। उसमें था। जग में कोई जिया है तो बापू तू ही जिया है प्रसीडेंट बैठा हुआ है। जग में कोई जिया है तो बापू तू ही जिया तूने वतन की राह पे सब कुछ लुटा दिया। मांगा न कोई तक्‍खत, न तो ताज लिया ही लिया। अमृत दिया सभी को और खुद जहर पिया। जिस दिन तेरी चिता जली, रोया था महाकाल। साबरमती के संत तू ने कर दिया कमाल। जब मास्‍टर विदा होने लगता है बच्‍चों को छोड़ कर। कहता है बच्‍चों अब हम जा रहे हैं। हमारा तबादला हो गया है, लेकिन हम एक संदेश तुमको देना चाहते हैं। - तो पाशें सभी उलट गए दुश्‍मन की चाल के, अक्षर सभी पलट गए भारत के भाल के। मंजिल पर आया मुल्‍क हर बला को टाल के। सदियों के बाद फिर उड़े बादल गुलाल के। अरे हम लाए हैं तूफान से किश्‍ती निकाल के। इस देश को रखना मेरे प्‍यारों संभाल के।
- बहुत सुंदर। अब आप उसके बारे में बताइए। ऐ मेरे वतन के लोगों के बारे में। वो आपने कब लिखा?
0 अरे भाई वो तो बाद की बात है। 1962 में चाइना ने अटैक कर दिया हमको। उन्‍होंने हमको थप्‍पड़ मारा, हमको पराजित किया। और अपने आप उन्‍होंने निर्णय कर लिया कि चला वापिस। अब चारो तरफ से आवाज उठी कि ये देश जो है उसमें जागृति रहना चाहिए। देश हिम्‍मत न हार बैठे इसलिए सब का ध्‍यान या तो रेडियो पर जाता था या फिल्‍म वालों पर जाता था। आप लोग कुछ बनाइए, कुछ बनाइए। तो हम से भी कहा। ये तो फोकटिया काम था। तो फोकटिया काम करने की हमारी आदत नहीं थी। हम बचते फिरे। इधर-उधर छिपते फिरे, लेकिन ऑफ्टर ऑल पकड़ में आ गए। उन दिनों दो तीन गानों जो थे वो तो फिक्‍स थे। एक गाना तो नौशाद भाई ने शकील बदाउनी से लिखवा कर के जो बाद में लीडर में आया। अपनी आजादी को हम हरगिज मिटा सकते नहीं, सर कटा सकते हैं लेकिन सर झुका सकते नहीं। वो गाना मोहम्‍मद रफी गाने वाला था इसलिए मोहम्‍मद रफी नाम का शानदार गानो वाला स्‍वर आदमी की आवाज वो नौशाद भाई साहब ने रिजर्व कर ली। अब मुकेश रह गए थे, तो मुकेश को राज कपूर ने रिजर्व कर लिया। हम उस देश के वासी हैं, जिस देश में गंगा बहती है। वो भी रिजर्व हो गए। हमारे पल्‍ले लता बाई आई। अब लता बाई को हम कोई जोशीला गाना दे नहीं सकते। हमने ये कहा कि लता मंगेश्‍कर नाम की स्‍वर सम्राज्ञनी कहती है कि भाईयों अभी चंद महीने पहले अपने यहां एक लड़ाई हुई थी उसमें हमारे भाई कुछ अपने घरों से, अपनी माताओं से, अपनी बी‍बियों से, अपनी बहनों से तिलक लगवा कर गए थे। देश के लिए कुछ करने के लिए। लेकिन वह वापस नहीं लौटे। क्‍यों न हम तुम मिलकर कुछ आज उनको याद करें। क्‍यों न हम उनको याद कर के अश्रु की दो अंजलि उनको प्रदान करें। बस यही बेस था इस गाने का। लेकिन शुरू में हमने पहली दो लाइन लिखी ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी, जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो कुर्बानी लिखने के बाद म्‍यूजिक डायरेक्‍टर एक दिन दौड़ा-दौड़ा आया। उसने कहा कि प्रदीप जी अपनी तो पोल खुल गई। मैंने कहा क्‍या हुआ? एक आदमी दिल्‍ली से आया है कह रहा है वह स्‍वेनियर निकाल रहा है और कह रहा है कि पहली दो लाइन लिख कर के दो। मैंने कहा कि यार ये शहीदों का टॉपिक है, यह तो ओपन हो गया। ये कोई भी दूसरा रायटर लिख देगा शहीदों के बारे में। तो आपन जो डार्क हार्स दोहराना चाहते हैं इसके अंदर कि सब चौंक जाएं। वो चौंकने का जो तत्‍व है वो खत्‍म हो जाएगा। उसने कहा कि करो कुछ? हमने कहा कि करते हैं। कल सबेरे आना मेरे पास। रात भर मुझे नींद नहीं आयी। वो प्रोग्राम होने वाला था लालकिले के अंदर 26 या 27 जनवरी को 1963 को। उसमें प्राइमीनिस्‍टर इत्‍यादि सब थे। तो हमने उसको चेंज कर दिया। क्‍योंकि दूसरी लाइन में, तीसरी लाइन में हमने उसको ओपन किया। ऐ मेरे वतन के लोगों तुम खूब लगा लो नारा, ये शुभ दिन है हम सब का लहरा लो तिरंगा प्‍यारा। पर मत भूलो सीमा पर वीरों ने है प्राण गंवाए। कुछ याद उन्‍हें भी कर लो, जो लौट के घर न आए। ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी, जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो कुर्बानी।
- आपने 1939 से यहां देश भक्ति के लिए गाए हैं और फिल्‍मों के लिए लिखा है। इसके बाद के लेखन इन फिल्‍मों में रहा है। उस पर आप क्‍या सोचते हैं?
0 देखिए हमने जो कुछ भी फिल्‍मों में लिखा तो वो लोग लिखवाते थे तो हमने लिखा। फिल्‍में हमको ऐसी मिलती थी जिसमें देशभक्ति के गाने का स्‍कोप था तो हमने लिखा। आज कहानियां इस तरह की बनती हैं जिसके अंदर देश-वेश से कोई मतलब नहीं है। इसलिए नहीं नहीं लिखे जाते। पैसा परमात्‍मा हो गया है। कौन देश को पूछता है।
- आपके पास प्रोडयूसर लोग अभी भी आते हैं कि आप हमारे लिए लिख दें?
0 नहीं आते। अब नहीं आते। क्‍योंकि लोगों को तो खटिया के गाने चाहिए। कबूतर के गाने चाहिए। कउवे के गाने चाहिए। हमारे पास क्‍यों आएंगे।
- कारण है नहीं है कि इस तरह की ही फिल्‍में अब ज्‍यादा देखते हैं लोग। मांग ऐसी फिल्‍मों की है?
0 कारण आपको मालूम नहीं है। गांधी, जवाहरलाल, राजेन्‍द्र बाबू और सुभाषचंद्र बोस उनके कोई वारिशदार हैं आज? क्‍या हुआ इस देश को? कहां गए वो लोग? वो भी इसी देश के अंदर पैदा हुए थे। आज क्‍यों पैदा नहीं होते?
- भविष्‍य क्‍या देखते हैं आपं?
0 भविष्‍य जो है वो प्रलय है। आज लोग धीरे-धीरे सब लोगों को भूल रहे हैं। बी.एन. सरकार को भूल गए। आज शांताराम को भी धीरे-धीरे भूल रहे हैं। अब कोई शांताराम को याद नहीं करता। आज गुलाम हैदर को भी भूल रहे हैं। आज आएगा आने वाला आएगा। वो खेमचंद प्रकाश को भी लोग भूल रहे हैं। समय जो है बड़ा क्रूर है।
- प्रदीप जी आपका बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

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प्रदीप जी ने 1943 में किस्मत में लिखा था , दूर हटो दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है
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