स्क्रिप्‍ट चुन लेती है मुझे-विद्या बालन


-अजय ब्रह्मात्मज
    नए साल के शुरू में दस दिनों की छुट्टी लेने के बाद विद्या बालन फिर से कैमरे के सामने आ गई हैं। पिछले दिनों वह हैदराबाद में अपनी अगली फिल्म ‘बॉबी जासूस’ की शूटिंग कर रही थीं। पहाडिय़ों पर बने गोलकुंडा किले में वह एक गाने की शूटिंग कर रही थीं। उन्होंने सपनों में आ रही औरत के सपनीले परिधान पहन रखे थे। जब मालूम हुआ कि किले में ऊपर के हिस्से की तरफ जाना है तो उन्होंने झट से सैंडिल उतारा और स्पोटर््स शूज पहन कर चलने को तैयार हो गईं। इस फिल्म में वह हैदराबाद के मध्यवर्गीय मोहल्ले की उम्रदराज लडक़ी बिल्किश उर्फ बॉबी जासूस बनी हैं। विद्या की आंखें हमेशा चमकती रहती है। सवाल पूछने पर उनकी आंखों की चमक और बढ़ जाती है। वह बात शुरू करती हैं ‘मुश्किल से दस दिनों के आराम के बाद फिर से काम पर लौट आई हूं। एक महीने के शेडयूल के बाद नए साल के मौके पर ब्रेक लिया था। आज से फिर वही दौड़-धूप जारी है।’
    जब पड़ी भिखारी की डांट 
दीया मिर्जा और साहिल संघा की फिल्म ‘बॉबी जासूस’ की जिज्ञासा का जवाब देती हैं विद्या बालन, ‘इस फिल्म का फस्र्ट लुक सभी को पसंद आया। मेकअप करते समय ही सभी को एहसास हो गया था कि कुछ अच्छा हो रहा है। विद्यासागर भट्टे की देखरेख में सब हुआ। मेरे मेकअप सहयोगी श्रेयस ने उनकी मदद की थी। मेकअप करने के बाद जब नामपल्ली स्टेशन के पास जाकर मैं बैठी तो किसी को पता ही नहीं चला। दूसरे भिखमंगों के साथ बैठ कर मैं भी हाथ फैला रही थी। एक बार हाथ कुछ ज्यादा बढ़ा दिया तो उन्होंने मुझे डांट दिया। उस क्षण मैंने जबरन हंसी रोकी वरना शॉट खराब हो जाता। वहां हमलोग गुरिल्ला शूटिंग कर रहे थे। तब विश्वास हो गया कि लुक परफेक्ट है।’ वह आगे जोडती हैं, ‘हिंदी फिल्मों में पहली बार लेडी डिटेक्टिव दिखेगी। यह महज डिटेक्टिव स्टोरी नहीं है। साथ में एक आम लडक़ी की कहानी भी है। हैदराबाद के मुगलपुरा मोहल्ले की एक लडक़ी अलहदा क्षेत्र में अपना नाम बनाना चाहती है। इसके पहले छोटे पर्दे पर ‘करमचंद’ में किट्टी आती थी, लेकिन वह जासूस नहीं थी।’
   फर्स्‍ट लेडी डिटेक्टिव 
 ‘बॉबी जासूस’ के काम के तरीके और जासूसी की तरकीबों के बारे में पूछने पर विद्या बताती हैं, ‘बॉबी कोई तिकड़मी जासूस नहीं है। वह कॉमन सेंस से काम लेती है। वह हर मामले की तहकीकात के आसान तरीके खोज लेती है। अब उसकी कोशिश है कि मुगलपुरा में उसका एक ऑफिस हो। हैदराबाद में उसका नाम हो। मुझे निर्देशक समर शेख की यह स्क्रिप्ट बहुत पसंद आई। खुशी की बात है कि अपने सब्जेक्ट पर उनका पूरा कमांड है। वे मुझे बेझिझक डायरेक्ट करते हैं। एक अलग अनुभव है। हम अभिनेत्रियां विभिन्न किस्म की भूमिकाओं के बारे में सोचती हैं। यकीन करें मुझे कभी ख्याल नहीं आया कि डिटेक्टिव का भी रोल किया जा सकता है।’
    शूटिंग का गुरिल्‍ला अंदाज 
विद्या बालन फिल्म की बारीकियों के बारे में कहती हैं, ‘हिंदी फिल्मों में हम हैदराबाद देखते रहे हैं। यह फिल्म उनसे अलग हैदराबाद की सच्ची झलक देगी। भाषा में हमने दक्कनी हिंदी का लहजा रखा है। हैदराबाद के गली-मोहल्लों में फिल्म की शूटिंग हुई है। आप ही बताएं कि क्या किसी हिंदी फिल्म में आपने गोलकुंडा किले को देखा है? ‘बॉबी जासूस’ किसी भी महत्वाकांक्षी लडक़ी की कहानी हो सकती है। वह अपने परिवेश और सीमाओं से बाहर निकलना चाहती है। अच्छी बात है कि ऐसी फिल्मों से आम आदमी हिंदी फिल्मों में वापस आ रहा है। बीच के पूरे दौर में सिनेमा के किरदार और नायक-नायिका बदल गए थे।’
    लुक पर विशेष ध्‍यान 
पिछली कुछ फिल्मों से विद्या बालन अपने लुक के प्रति ज्यादा सजग हो गई हैं। फिल्मों के प्रचार के समय भी वह किरदार के लुक में ही नजर आती हैं। लुक के प्रति इस लगाव के बारे में वह कहती हैं, ‘मुझे लगता है कि प्रचार के समय फिल्म के किरदार के लुक में आने पर लोगों का ध्यान जाता है। अभी फिल्मों की रिलीज के समय सबसे बड़ी चिंता यही रहती है कि दर्शक कैसे आकर्षित हों और उन्हें फिल्म याद रहे। लुक में लगातार देखने से फिल्म उनके जहन में बनी रहती है। रही बात फिल्मों में लुक बदलने या उन पर जोर देने की तो इस संबंध में यही कहूंगी कि स्कोप होने पर ही लुक पर काम करती हूं। पिछली पांच फिल्मों में मैंने लुक पर विशेष ध्यान दिया। ‘शादी के साइड इफेक्ट्स’ में मेरा रेगुलर लुक है। उसमें वेस्टर्न लुक और कैजुअल ड्रेसिंग है। ‘बॉबी जासूस’ में मेरे छह गेटअप हैं।’ 
छोटी चीजों से बनता है किरदार 
विद्या बालन मेथड एक्टिंग में यकीन करती हैं। उन्हें किरदार में ढलने का चस्का है। ‘बॉबी जासूस’ के लिए उन्होंने मुगलपुरा मोहल्ले की तस्वीरें और वीडियो फुटेज मंगवाए। वहां के किरदारों को देखा-समझा। वह हंसते हुए स्वीकार करती हैं, ‘छोटी-छोटी चीजों से कोई किरदार बनता है। किरदार के परिवेश की वाकिफियत जरूरी है। भाषा, चाल, लहजा और रिएक्शन में वह दिखता है।’ हर बार लगता है कि विद्या बालन को अगली फिल्म मिल पाएगी या नहीं, क्योंकि महिलाओं को केंद्र में रख कर बहुत कम फिल्में लिखी जाती हैं। ‘बॉबी जासूस’ जैसी फिल्मों से उन्हें अगला मौका मिल जाता है। आखिर यह कैसे संभव होता है? विद्या स्पष्ट करती हैं, ‘अच्छी भूमिकाओं की चाहत में ऐसी स्क्रिप्ट मुझे आकर्षित करती है। बई बार स्क्रिप्ट भी मुझे खोज लेती है। कहीं न कहीं यह चाहत दोतरफा है।’


Comments

Popular posts from this blog

तो शुरू करें

फिल्म समीक्षा: 3 इडियट

सिनेमालोक : साहित्य से परहेज है हिंदी फिल्मों को