निडर हो गई हूं-दीपिका पादुकोण


जन्मदिन विशेेष
(5 जनवरी 1986 को पैदा हुई दीपिका पादुकोण ने हिंदी फिल्मों में कामयाबी का नया कीर्तिमान स्थापित किया है। ऐसी कामयाबी के बाद अभिनेत्रियों की चाल और सोच टेढ़ी हो जाती है। दीपिका में भी परिवत्र्तन आया है। अब वह अधिक संयत,समझदार और सचेत हो गई हैं। वह देश के पॉपुलर अभिनेताओं के समकक्ष दिख रही हैं।)
-अजय ब्रह्मात्मज
    हाल ही में  दीपिका पादुकोण ने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के अपने परिचितों, दोस्तों और शुभचिंतकों को एक पंचतारा होटल में आमंत्रित किया। वह अपनी कामयाबी को सभी के साथ सेलिब्रेट कर रही थी। इस अवसर पर फिल्म इंडस्ट्री के महत्वपूर्ण हस्ताक्षरों ने उपस्थिति दर्ज की। निस्संदेह दीपिका हीरोइनों की कतार में सबसे आगे आ खड़ी हुई हैं। छह साल पहले फराह खान की फिल्म ‘ओम शांति ओम’ से धमाकेदार शुरुआत करने के बाद कुछ फिल्मों में दीपिका की चमक फीकी हुई। आदतन आलोचकों और पत्रकारों ने उन्हें ‘वन फिल्म वंडर’ की संज्ञा दे दी। कहा जाने लगा कि फिर से उन्हें किसी शाहरुख खान की जरूरत पड़ेगी। निराशा के इसी दौर में दीपिका का प्रेम टूटा। असफलता के इस अकेलेपन को उन्होंने किसी खिलाड़ी की तरह अभ्यास के तौर पर लिया। वह लौटीं। उन्होंने जबरदस्त तरीके से कामयाबी और मौजूदगी दोनों दर्ज की। ‘कॉकटेल’ के बाद वह लगातार प्रशंसा और सफलता हासिल कर रही हैं। दूसरी समकालीन अभिनेत्रियों से दीपिका इस लिहाज से अलग और उल्लेखनीय हैं कि वह निकट अतीत की तमाम फिल्मों में निर्णायक किरदारों में रही हैं।
    जोखिम की जिद 
निरंतर कामयाबी से मिली चौतरफा तारीफ के बावजूद दीपिका पादुकोण संयत , संतुलित और समझदार हैं। स्पष्ट शब्दों में वह कहती हैं, ‘सफलता से निडर होने की शक्ति मिलती है। सफलता के बाद दो चीजें होती है। सफलता बनाए रखने के लिए या तो आप सोच-समझ कर फिल्में चुनते हैं या फिर आप रिस्क लेने के लिए तैयार रहते हैं। मैंने दूसरा विकल्प चुना है। मुझे लगता है कि मैं नई कोशिशें कर सकती हूं। फिल्में सफल हों या असफल, लोग तारीफ करें या निंदा ... मुझे कम से कम संतोष रहेगा कि मैंने कुछ नया किया।’ अपनी सफलता को स्वीकार करती हुई वह आगे कहती हैं, ‘2013 मेरे लिए बहुत ही अच्छा साल था। आगे के बारे में ज्यादा सोचा नहीं है। मैं हमेशा अपने काम से खुश रहना चाहती हूं। कभी कैलकुलेट कर कोई फिल्म साइन नहीं की।’
    आते रहेंगे उतार-चढ़ाव 
100 करोड़ क्लब में दीपिका पादुकोण समेत अनेक अभिनेत्रियां हैं। इन फिल्मों को दोबारा देखें तो सहज एहसास होगा कि अपनी फिल्मों में दीपिका की बड़ी साझेदारी है। दूसरी अभिनेत्रियों की तरह वे केवल शो पीस नहीं हैं। यह महज संयोग नहीं हो सकता कि हर फिल्म में हम दीपिका के किरदार को महसूस करने के साथ उन्हें याद रखते हैं। इस मजबूत मौजूदगी के बारे में पूछने पर वह बताती हैं, ‘फिल्में साइन करते समय मैं इतना कुछ नहीं सोच पाती। मुझे लगता है कि कुछ फिल्में बन जाती हैं। हां, इधर फिल्में करते समय सही फील होने लगता है। पिछली तीन फिल्मों में ‘ये जवानी है दीवानी’, ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ और ‘ .. ऱाम-लीला’ में यह एहसास गहरा रहा। अपने प्रशंसकों को स्पष्ट कर देना चाहती हूं कि भविष्य में मेरी कुछ फिल्में असफल हो सकती हैं और कुछ में मेरा काम आप को नापसंद हो सकता है। वास्तव में यह एक जर्नी है। उतार-चढ़ाव तो चलते रहेंगे। देखें तो असफल फिल्मों में भी मेरे रोल और किरदार दमदार रहे हैं। अभी मुझे लगने लगा है कि अपने किरदार के साथ पूरी फिल्म पर ध्यान देना चाहिए। फिल्म अच्छी लगनी चाहिए’ दीपिका अपनी असफल फिल्मों में ‘ब्रेक के बाद’, ‘कार्तिक कॉलिंग कार्तिक’ और ‘लफंगे परिंदे’ की याद दिलाती हुई कहती हैं कि ये फिल्में भी मुझे प्रिय हैं।
   हर फिल्‍म की दिल से 
 ‘ये जवानी है दीवानी’ और ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ में दीपिका पादुकोण रणबीर कपूर और शाहरुख खान के समकक्ष रहीं। ‘राम-लीला’ में लीला (दीपिका पादुकोण) राम (रणवीर सिंह) पर हावी दिखती हैं। दीपिका बता नहीं पातीं कि दर्शकों ने लीला को क्यों इतना पसंद किया। वह पलट कर पूछती हैं, ‘आप लोग बताएं। मैंने तो सफल-असफल दोनों फिल्मों में समान लगन से काम किया। समझ में नहीं आता कि तब क्या बुरा था और अब क्या अच्छा है। लोगों की तारीफें जरूर अच्छी लगती है। ‘.. ऱाम-लीला’ में पहली बार मुझे लगा कि मैंने अभिनय नहीं किया है। यह संजय सर का अप्रोच रहा। समय के साथ दर्शकों को लीला की बोल्डनेस और पहलकदमी अच्छी लगी। दर्शकों की स्वीकार्यता बढ़ गई है। कुछ लोगों ने मुझे कहा कि दस साल पहले ऐसे किरदार को अश्लील कहा जाता। लीला कहीं न कहीं आज की औरत को प्रतिबिंबित करती है। समाज में महिलाएं आगे बढ़ कर फैसले ले रही हैं। दर्शकों से लीला का कनेक्ट बना,इसीलिए उन्हें मेरा परफारमेंस में पसंद आया।’
   बदल रही है यथास्थिति 
 दीपिका स्वीकार करती हैं कि अपने काम की वजह से उनका एक्सपोजर और एक्सपीरियेंस हमउम्र लड़कियों से अधिक और विविध है। अपने अनुभव के आधार पर वह समाज में लड़कियों की बढ़ी हिस्सेदारी के बारे में कहती हैं, ‘विकास के साथ लड़कियों की भूमिकाएं बदल रही हैं। अब वे नेतृत्व कर रही हैं। लड़कियों में जागरुकता आई है। शिक्षा से उनका आत्मविश्वास बढ़ा है। सभी जानते हैं कि हमारा देश पुरुष संचालित रहा है। स्त्रियों के आगे आने से समाज में यथास्थिति बदल रही है। पुरुषों की तरफ से आक्रामक प्रतिक्रियाएं हो रही है। पुरुषों का एक तबका इस बदलाव से सहज नहीं है। मुझे तो लगता है कि अभी स्त्रियों को अपनी क्षमता का एहसास होने लगा है। हम सभी क्षेत्रों में देख रहे हैं कि मौका या चुनौती मिलने पर वे सार्थक प्रदर्शन कर रही हैं। अगर महिलाएं शक्तिशाली हो रही हैं तो प्रतिक्रिया में बलात्कार तो नहीं ही होना चाहिए। यह शर्म की बात है। जाहिर होता है कि हमारा समाज अभी पूरी तरह से शिक्षित नहीं है।’
 
परिवार का प्रेरक संबल 
  पॉपुलर अभिनेताओं की तरह दीपिका पादुकोण भी फिल्मों में सैलरी और शेयर पर काम करने लगी हैं। हिंदी फिल्मों के बड़े स्टार इन दिनों अपनी फिल्मों के मुनाफे में शेयरिंग लेने लगे हैं। उन्हीं के तर्ज पर दीपिका ने भी ‘फाइंडिंग फैनी’ इन शर्तों के साथ साइन किया है। इस उपलब्धि के बारे में पूछने पर वह सकुचा जाती हैं। कहती हैं, ‘यह तो आप निर्माताओं से पूछें। सभी फिल्मों में ऐसा नहीं होगा। अगर कोई फिल्म मुझे पसंद हो और उसके निर्माता शेयरिंग के लिए तैयार हों तो क्यों नहीं।’ दीपिका अपनी सफलता का श्रेय अपनी टीम के साथ पैरेंट्स को देती हैं। वह बताती हैं, ‘पिछले दो सालों में मैं परिवार के साथ रहने का समय नहीं निकाल सकी। फिर भी मम्मी-पापा ने कभी कोई शिकायत नहीं की। हमेशा की तरह प्रोत्साहित किया। उनका यह संबल मुझे प्रेरित करता है। और हां, सबसे बड़ा श्रेय दर्शकों को मिलना चाहिए।’
    फिल्म इंडस्ट्री के बाहर से आई दीपिका पादुकोण आज कामयाबी के शीर्ष पर हैं। इस फील्ड में आने वाली लड़कियों को वह सलाह देती हैं, ‘यह इंडस्ट्री बहुत अच्छी जगह है, लेकिन सबकुछ इतना आसान नहीं है। कड़ी मेहनत, समर्पण और त्याग के साथ काम करना पड़ता है।’
   



Comments

Popular posts from this blog

तो शुरू करें

फिल्म समीक्षा: 3 इडियट

सिनेमालोक : साहित्य से परहेज है हिंदी फिल्मों को